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हिम रंग महोत्सव-2016- के छठे दिन नाटक ‘”सुन्नी भुंकू” और लोकनाट्य “जिजीविषा” तथा “दाहाजा” का गेयटी थियेटर में हुआ मंचन

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Art and Culture Department Himachal Pradesh Shimla

26 मार्च को इसी क्रम में बिजेश्वर करियाला मण्डल कुथड,सोलन द्वारा लोकनाट्य “करयाला” एम्फी थियेटर मे अपराह्न 3 बजकर 30 मिनट में गेयटी के एम्फी थियेटर में मंचित किया जायेगा तथा ऐतिहासिक गौथिक हाॅल में समारोह का आठवां नाटक “बरसी” प्रणव थियेटर, वियोंड़ थियेटर, सोलन द्वारा प्रस्तुत किया जायेगा।

शिमला- आज की प्रस्तुुति में एक्टिव मोनाल कल्चरल एसोसिएशन, कुल्लू द्वारा नाटक “सुन्नी भुंकू” मंचित किया गया। जिसके लेखक तथा निर्देशक केहर सिंह ठाकुर है। इस नाटक की कहानी सुन्नी भुंकू के पे्रम की है जो हिमाचल के जनजातीय क्षेत्रों में आज भी गाथागीतों में प्रचलित है और इन्हें लैला-मजनू, हीर-रांझा तथा सोहनी-महिवाल जैसे प्रेमी समझा जाता है। तेजि़ंन,सुन्नी को पाने के लिए भुंकू के साथी गेशू से जान की धमकी देकर झूठ बुलवाता है कि भुंकू मर गया है। यह खबर सुनते ही सुन्नी चन्द्रभागा नदी में जो प्रेम की नदी मानी जाती है छलांग लगा लेती है और उसी के साथ उम्मीदें धूमिल हो जातीं हैं।

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अपने मायके के देस जाने की सुन्नी की मुहूंबोली भाभी की जो यह कहानी सुनाती है जिसे अब लड़कियां चाची कहतीं हैं, जो प्रेम में पड़कर यहां आई थी लेकिन अब उसका पति मर चुका है और लौटना चाहती है सुन्नी और भुंकू के साथ अपने मायके के देस क्योंकि भुंकू अपनी भेड़ें चराने उसके मायके के देस भी जाता है।

यह नाटक सुन्नी भुंकू के अमर प्रेम को दर्शाता है। जिस पर आज भी पहाड़ के लोगों की प्रबल आस्था है कि प्रेम कभी नहीं मिटता। प्रेम तो दो आत्माओं का मिलन है जो आपस में मिलकर परमात्मा में लीन हो जातीं हैं। पहाड़ों पर से बादलों के बीच से मृत सुन्नी की आवाज़ भुंकू के लिए आना और भुंकू का पहाड़ों की धुंद में सुन्नी-सुन्नी पुकारते हुए गुम हो जाना उन्हें अमरत्व प्रदान करता है। नाटक में गेशू का पागल हो जाना स्थिति का बस से बाहर हो जाना दिखाता है। अन्ततः तेंजि़न का लामा के परिवेश में दिखना इन्सान का भगवान बुद्व की शरण में जाकर किए पापों का प्रायश्चित दिखाता है।

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नाटक में एक और महत्वपूर्ण पहलू है जिसमें भुंकू का मित्र काली माता का सोने का छत्र चोरी करता है और बाद में सामने आता है यह कहते हुए कि मैंने चोरी नहीं की है बल्कि माता से छत्र मांगा है क्योंकि मेरी जन्म देने वाली मां बीमार है उसका इलाज करने के लिए मैंने मंदिर वाली माता से छत्र मांगा है और इसे गिरवी रख कर मैं मेरी जन्म देने वाली मां का इलाज़ करूंगा और जब ठीक हो जाएगी तो धीरे धीरे कमाकर छत्र मंदिर वाली माता को लौटा दूंगा। मैंने कोई चोरी नहीं की बल्कि एक माता से मांग कर दूसरी माता की ज़रूरत पूरी करने की कोशिश कर रहा हूं।

नाटक की यह घटना वर्तमान में भी लागू होती है कि हम मंदिरों में तो सोना आस्था के नाम पर चढ़ा देते हैं जहां उसकी कोई ज़रूरत नहीं होती। लेकिन गरीब ज़रूरतमंद को ईलाज के लिए कोई मदद नहीं देता।

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“हिम रंग महोत्सव-2016” की पहली कड़ी में दोपहर 1 बजकर 30 मिनट में धाजा मण्डली, ऊना द्वारा सुप्रसिद्ध लोकनाट्य “दाहाजा” गेयटी सांस्कृतिक परिसर के खुले रंगमंच एम्फी थियेटर में प्रस्तुत किया गया। यह नाट्य द्वापर युग में कृष्ण और सिद्ध चानों बली का युद्ध हुआ था।

जिसमें कृष्ण भगवान के हाथों सिद्ध चानों मारा गया था। यह नाट्य श्री कृष्ण भगवान की आरती से शुरू होता है। जिसमें चद्रावलियां (सखिया) श्री कृष्ण भगवान जी की आरती उतारती है। और नृत्य करती है। श्री कृष्ण भगवान जी के आगे प्रार्थना करती है कि हमें सिद्ध चानों बनी जी के दर्शन चाहिए। श्री कृष्ण भगवान सिदचिनों बली जी के बोरासाई को बुलाते है और बौरा साई सिद्ध चानों बली हस वाली की सवारी करके स्मेला थान से चलते है। और अखाडे में पहुचकर लोगो को दर्शन देते है। यह नाट्य दाहाजा चद्रावली नाम से प्रसिद्ध है।

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“हिम रंग महोत्सव-2016” की दूसरी कड़ी में दोपहर बहस नाट्य एवं कला मंच, कुल्लू द्वारा सुप्रसिद्ध लोक शैली पर आघारित लोकनाट्य ‘‘जिजीविषा’’ गेयटी सांस्कृतिक परिसर के खुले रंगमंच एम्फी थियेटर में प्रस्तुत किया गया। हिमाचल प्रदेश का कबायली क्षेत्र लाहौल तक पहुंचने के लिए बर्फीले रोहतांग दर्रे का सामना, नेपाली मजदूरो का काम की तलाश में लाहौल पहुंचना एक कभी न खत्म होने वाला सिलसिला है।

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दर्रे का केवल छै महीने के लिए खुलना,मौसम बदलते ही यातायात के साधनों का चलना बन्द होना एक बड़ी भौगोलिक विवशता है। गर्मियों में भी जो दर्रा अपनी ठण्डक से हड्डियों तक को कंपा देता है उसी दर्रे को जिजीविषा की विवशता में लाहौल निवासी और गोरखे मज़दूरो को पार करना पड़ता है बिना किसी साधन के अक्सर पैदल।

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कंपकंपाती ठण्ड़ बर्फीली हवाओं,धुंध और किसी भी क्षण तेजी से बदलते मौसम के बीच जान हथेली पर रखे आदमी की दर्रा पार करने की कोशिश में कई बार जिन्दगी हार जाती है। इसी तरह जीने की इच्छा व मौत के बीच जूझते एक मजदूर गोरखा दम्पति (गर्भवती नेपाली महिला) की जिन्दगी व मौत के संघर्ष की सत्य घटना पर आधारित नाटक है-‘जिजीविषा’

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हिमाचल की तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर लगे 76,000 से अधिक सेब के पौधे

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nauni university himachal pradesh

शिमला- डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के विस्तार शिक्षा निदेशालय में पहाड़ी कृषि एवं ग्रामीण विकास एजेंसी(हार्प), शिमला द्वारा एक अनुभव-साझाकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया।

इस कार्यशाला में जिला किन्नौर के निचार विकास खंड के रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों के 34 किसानों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर जीएम नाबार्ड डॉ. सुधांशु मिश्रा मुख्य अतिथि रहे जबकि नौणी विवि के अनुसंधान निदेशक डॉ रविंदर शर्मा ने विशिष्ट अतिथि के रूप में शिरकत की।

संस्था के अध्यक्ष डॉ. आर एस रतन ने कहा कि यह कार्यक्रम एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना के तहत रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों में वर्ष 2014 से आयोजित किया जा रहा है। परियोजना को नाबार्ड द्वारा वित्त पोषित किया गया है और इसे हार्प द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।

उन्होंने यह बताया कि यह एक बागवानी आधारित आजीविका कार्यक्रम है जिसे किसानों की भागीदारी से लागू किया गया है। इन तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर 76,000 से अधिक सेब के पौधे लगाए गए हैं और 607 परिवार लाभान्वित हुए हैं।

डॉ. सुधांशु मिश्रा ने यह भी कहा कि नाबार्ड हमेशा सामाजिक-आर्थिक उत्थान कार्यक्रमों के संचालन में आगे रहा है। उन्होंने इस कार्यशाला में भाग लेने वाले किसानों से अपने सहयोग से विभिन्न कार्यक्रमों को सफल बनाने का आग्रह किया।

अनुसंधान निदेशक डॉ. रविंदर शर्मा और विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. दिवेंद्र गुप्ता ने नाबार्ड और हार्प के प्रयासों की सराहना की और किसानों को आश्वासन दिया कि विश्वविद्यालय किसानों को तकनीकी रूप से समर्थन देने के लिए हमेशा तैयार है।

डॉ. नरेद्र कुमार ठाकुर ने कहा कि हार्प ने कृषक समुदाय के समन्वय से दुर्गम क्षेत्रों में कठिन परिस्थितियों में काम किया है। इस अवसर पर एक किसान-वैज्ञानिक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया जिसमें भाग लेने वाले किसानों के तकनीकी प्रश्नों को संबोधित किया गया।

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हिमाचल सरकार पुलिसकर्मियों का कर रही है शोषण

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hp police

पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है,कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है,राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है,हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।

शिमला सीटू राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। कमेटी ने यह कहा है कि वह हिमाचल प्रदेश के पुलिसकर्मियों की मांगों का पूर्ण समर्थन करती है। आरोप लगाते हुए सीटू ने कहा है कि प्रदेश सरकार पुलिसकर्मियों का शोषण कर रही है।

राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार से यह मांग की है कि वर्ष 2013 के बाद नियुक्त पुलिसकर्मियों को पहले की भांति 5910 रुपये के बजाए 10300 रुपये संशोधित वेतन लागू किया जाए व उनकी अन्य सभी मांगों को बिना किसी विलंब के पूरा किया जाए।

सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में भी कर्मचारियों की प्रमुख मांगों को अनदेखा किया गया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में पुलिसकर्मियों की मांगों को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है।

सीटू कमेटी ने कहा कि सबसे मुश्किल डयूटी करने वाले व चौबीस घण्टे डयूटी में कार्यरत पुलिसकर्मियों को इस बैठक से मायूसी ही हाथ लगी है। इसी से आक्रोशित होकर पुलिसकर्मी मुख्यमंत्री आवास पहुंचे थे। उनके द्वारा पिछले कुछ दिनों से मैस के खाने के बॉयकॉट से उनकी पीड़ा का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि पुलिस कर्मियों के साथ ही सभी सरकारी कर्मचारी नवउदारवादी नीतियों की मार से अछूते नहीं है। कमेटी ने कहा कि पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है। कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।

कमेटी ने यह भी कहा है कि थानों में स्टेशनरी के लिए बेहद कम पैसा है व आईओ को केस की पूरी फ़ाइल का सैंकड़ों रुपये का खर्चा अपनी ही जेब से करना पड़ता है। थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है। मैस मनी केवल दो सौ दस रुपये महीना है जबकि मैस में पूरा महीना खाना खाने का खर्चा दो हज़ार रुपये से ज़्यादा आता है। यह प्रति डाइट केवल साढ़े तीन रुपये बनता है, जोकि पुलिस जवानों के साथ घोर मज़ाक है। यह स्थिति मिड डे मील के लिए आबंटित राशि से भी कम है।

उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के जमाने के बने बहुत सारे थानों की स्थिति खंडहर की तरह प्रतीत होती है जहां पर कार्यालयों को टाइलें लगाकर तो चमका दिया गया है परन्तु कस्टडी कक्षों,बाथरूमों,बैरकों,स्टोरों,मेस की स्थिति बहुत बुरी है। इन वजहों से भी पुलिस जवान भारी मानसिक तनाव में रहते हैं।

सीटू ने कहा कि पुलिस में स्टाफ कि बहुत कमी है या यूं कह लें कि बेहद कम है व कुल अनुमानित नियुक्तियों की तुलना में आधे जवान ही भर्ती किये गए हैं जबकि प्रदेश की जनसंख्या पहले की तुलना में काफी बढ़ चुकी है यहाँ तक पुलिस के पास रिलीवर भी नहीं है।

आरोप लगाते हुए कमेटी ने कहा कि प्रदेश की राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है। वहीं पुलिस कर्मी निरन्तर ओवरटाइम डयूटी करते हैं। इसकी एवज में उन्हें केवल एक महीना ज़्यादा वेतन दिया जाता है। इस से प्रत्येक पुलिसकर्मी को वर्तमान वेतन की तुलना में दस से बारह हज़ार रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है। उन्हें लगभग नब्बे साप्ताहिक अवकाश,सेकंड सैटरडे,राष्ट्रीय व त्योहार व अन्य छुट्टियों के मुकाबले में केवल पन्द्रह स्पेशल लीव दी जाती है।

सीटू कमेटी ने यह भी कहा कि वर्ष 2007 में हिमाचल प्रदेश में बने पुलिस एक्ट के पन्द्रह साल बीतने पर भी नियम नहीं बन पाए हैं। इस एक्ट के अनुसार पुलिसकर्मियों को सुविधा तो दी नहीं जाती है परन्तु कर्मियों को दंडित करने के लिए इसके प्रावधान बगैर नियमों के भी लागू किये जा रहे हैं जिसमें एक दिन डयूटी से अनुपस्थित रहने पर तीन दिन का वेतन काटना भी शामिल है। पुलिसकर्मियों की प्रोमोशन में भी कई विसंगतियां हैं व इसका टाइम पीरियड भी बहुत लंबा है। हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।

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किन्नौर में लापता पर्यटकों में से 2 और के शव बरामद, 2 की तालाश जारी,आभी तक कुल 7 शव बरामद

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kinnaur trekker deaths

शिमला रिकोंगपिओ में 14 अक्तुबर को उत्तरकाशी के हर्षिल से छितकुल की ट्रैकिंग पर निकले 11 पर्यटकों में से लापता चार पर्वतारोहीयों में से दो  पर्वतारोहियों के शवो को आई.टी.बी.पी व पुलिस दल द्वारा पिछले कल सांगला लाया गया था जहां सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र सांगला में दोनों शवों का पोस्टमार्टम किया गया।

यह जानकारी देते हुए उपायुक्त किन्नौर अपूर्व देवगन ने बताया कि इन दोनों की पहचान कर ली गई है जिनमे मे एक उतरकाशी व दूसरा पश्चिम बंगाल से सम्बंधित था।

उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन किन्नौर द्वारा आज एक शव वाहन द्वारा उतरकाशी को भेज दिया गया है जहाँ शव को जिला प्रशासन उतरकाशी को सौंपा जाएगा। जब कि दूसरा शव वाहन द्वारा शिमला भेजा गया है जिसे शिमला में मृतक के परिजनों को सौंपा जायेगा।

उपायुक्त अपूर्व देवगन ने बताया कि अभी भी लापता दो  पर्यटकों की तलाश आई.टी.बी.पी के जवानों द्वारा जारी है। उल्लेखनीय है कि गत दिनों उतरकाशी से छितकुल के लिये 11 पर्वतारोही ट्रेकिंग पर निकले थे जो बर्फबारी के कारण लमखंगा दर्रे में फंस गये थे जिसकी सूचना मिलने पर जिला प्रशासन द्वारा सेना के हेलीकॉप्टर व आई.टी.बी.पी के जवानों की सहायता से राहत व बचाव कार्य आरम्भ किया था। सेना व आई.टी.बी.पी के जवानों ने 21 अक्टूबर को दो पर्यटकों को सुरक्षित ढूंढ निकाला था। इसी दौरान उन्हें अलग अलग स्थानों पर पाँच ट्रेकरों के शव ढूंढ निकलने में सफलता मिली थी। जबकि 4 पर्यटक लापता थे जिसमे से राहत व बचाव दल को 22 अक्तुबर को 2 शव ढूढ़ निकालने में सफलता मिली थी। अभी भी दो पर्यटक लापता हैं जिनकी राहत व बचाव दल द्वारा तलाश जारी है।

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