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दक्षिण एशियाई देशों की महिला एथलीटों ने साझा की धीरज और मज़बूत इरादे की हौसला देने वाली कहानियाँ

भारत की राजधानी दिल्ली से दूर मणिपुर की रहने वाली साइखोम मीराबाई चानू के बारे में चंद दिनों पहले तक ज्यादातर भारतीय न के बराबर जानते थे
कुछ ऐसा ही हाल असम की लवलीना बोरगोहेन, पंजाब की कमलप्रीत कौर, हरियाणा की सविता पुनिया, पंजाब की गुरजीत कौर, झारखंड की सलीमा टेटे या निक्की प्रधान का था। ये सब ओलम्पिक में भाग ले रहीं महिला खिलाड़ी हैं। हाँ, पीवी सिंधू को हम सब कुछ सालों से ज़रूर जानने लगे हैं। इन स्त्रियों में कोई वज़न उठा कर पटखनी दे रहा है तो कोई मुट्ठी की कला दिखा रहा है। तो किसी ने इतना ज़ोरदार चक्का फेंका कि सबकी आँखें खुली की खुली रह गयीं। किसी की फ़ुर्ती तो किसी की पैनी निगाहें सामने वाली हॉकी खिलाड़ी के हर वार को जब नाकाम करतीं तो लोग दाँतों तले अँगुलियाँ दबाने लगते तो किसी ने बिजली सी तेज़ी दिखाई और फ़िर सुनाई दिया गोल। ये खिलाड़ी अब मशहूर हो गयी हैं।।
हालाँकि, इन महिला खिलाड़ियों को शोहरत के इस मुकाम तक पहुँचने के लिए जितनी बाधाएँ पार करनी पड़ी होंगी, उतनी किसी बाधा दौड़ के धावक को नहीं करनी पड़ती होगी। इसीलिए ये ओलम्पिक में खेल रही और झंडा गाड़ रही हमारी बेटियाँ सिर्फ़ भारत की ही नहीं, पूरे दक्षिण एशियाई खिते की स्त्रियों की फ़ख़्र की वजह हैं। आज हमारे सभी पड़ोसी मुल्क भी गर्व कर रहे है इन बेटियों की कामयाबी से महिलाओं खिलाडी की इस शोहरत के पीछे की कहानी, मंजिल तक पहुचने के इनके संघर्ष, पूरे दक्षिण एशियाई खिते की एक है।
इसी विषय पर समझ बनाने के लिए, साउथ एशिया पीस एक्शन नेटवर्क (सपन – SAPAN) पिछले दिनों दक्षिण एशियाई देशों की अनेक महिला खिलाडीयों को एक साथ जोड़ा आर उनकी ऑनलाइन मीटिंग रखी गई। लगभग 14 खिलाड़ी एक साथ आयीं।इन्होंने अपने सामने आने वाली चुनौतियों और कामयाबियों पर चर्चा की. दिल को छू लेनी वाली कहानियाँ साझा कीं. हौसला देने वाली एकजुटता दिखायी।
इस ऑनलाइन मीटिंग का विषय था, ‘खेल में महिलाएँ: चुनौतियाँ और कामयाबियाँ.’ रविवार, 25 जुलाई को आयोजित यह चर्चा दो घंटे से ज़्यादा वक़्त तक चली।
इस बैठक में भविष्य में सहयोग के लिए कई विचार आये. इसमें एक किताब तैयार करने और दक्षिण एशियाई महिला एथलीटों का एक संघ बनाने की बात भी शामिल है।
मैंने हार नहीं मानी: ख़ालिदा पोपल
अफगानिस्तान की महिला राष्ट्रीय फुटबॉल टीम की पूर्व कप्तान ख़ालिदा पोपल ने कहा, ‘जंग ने हमसे सब कुछ छीन लिया है।’
उन्होंने कहा, ‘किसी न किसी को तो कदम उठाना पड़ता. मुझे परेशान किया गया. बहुत बुरा-भला कहा गया. हमला किया गया। लेकिन मैंने हार नहीं मानी। मेरी लड़ाई सिर्फ़ मेरे लिए नहीं थी। यह मेरी बहनों के लिए था। मेरे देश की बाकी दूसरी सभी स्त्रियों के लिए था।’
ख़ालिदा पोपल ने कहा, ‘दक्षिण एशिया हमारे घर की तरह है. हमारा दर्द एक जैसा है। सिर्फ़ एक चीज़ की कमी है. वह है, हमारे बीच एकता नहीं है।’
‘सपन’ की मासिक शृंखला
खालिदा उन दर्जन भर महिला खिलाड़ियों में शामिल हैं, जिन्होंने इस वेबिनार में भाग लिया। साउथ एशिया पीस एक्शन नेटवर्क (सपन) के बैनर तले ‘इमेजिन! नेबर्स इन पीस,’ मासिक शृंखला के तहत यह चौथा वेबिनार था। इस शृंखला का शीर्षक मशहूर वेबसाइट चौक डॉट कॉम के अप्रकाशित संग्रह से लिया गया है। रविवार का यह वेबिनार ‘साउथ एशिया वीमेन इन मीडिय’ (एसएडब्ल्यूएम) के सहयोग से आयोजित किया गया. कार्यक्रम का संचालन ‘ई-शी’ पत्रिका की संपादक एकता कपूर ने किया।
भाग लेने वाले एथलीटों के साथ चर्चा का संचालन एथलीटों के अधिकारों की वकालत करने वाली प्रमुख कार्यकर्ता और जिनेवा स्थित ‘सेंटर फॉर स्पोर्ट एंड ह्यूमन राइट्स’ की निदेशक और ट्रस्टी पायोशनी मित्रा और कराची की खेल पत्रकार नताशा राहील द्वारा संयुक्त रूप से किया गया।
मैं तो लड़के के भेष में क्रिकेट खेलती थी: नूरेना
अंतरराष्ट्रीय स्क्वैश खिलाड़ी नूरेना शम्स, पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिमी प्रांत के मलाकंद इलाके की पहली अंतरराष्ट्रीय महिला एथलीट हैं। खालिदा पोपल की तरह नूरेना भी जंग के बीच पली-बढ़ी हैं। नूरेना ने कहा, ‘ मेरे कानों में अब भी बमों के धमाके गूँजते हैं।’ उन्होंने कहा कि उन्हें लगता था कि वे मर जायेंगी और कभी ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि वे स्क्वैश खेलेंगी। वह भी इतने बड़े स्तर पर।
नूरेना ने कहा कि ऐसे क्षेत्र में जहाँ लड़कियों के लिए तालीम हासिल करना ही बहुत बड़ी जद्दोजेहद है, वहाँ कोई खेल खेलना तो कठिन ही कठिन है। उन्होंने बताया, ‘मुझे पेशावर में क्रिकेट खेलने के लिए ख़ुद को एक लड़के के भेष में छिपाना पड़ता था।।’
नूरेना का सुझाव था, ‘…दक्षिण एशियाई लोगों को एक- दूसरे के लिए लगातार खड़े रहना चाहिए. यह किसी ट्रॉफी जीतने की बात नहीं है या इस बारे में भी नहीं है कि पहले किसने क्या किया। हमें जो करना है, मिल-जुलकर एक साथ करना है. एक-दूसरे के लिए खड़े रहना है।’
महिलाओं के लिए खेल का मुद्दा अहम है
‘सपन’ दक्षिण एशिया में अमन, इंसाफ़, लोकतंत्र और मानवाधिकारों के सिद्धांतों को मज़बूत करने और आगे बढ़ाने वाले व्यक्तियों और संगठनों का एक गठबंधन है. इसकी शुरुआत इसी साल मार्च में हुई. अपने जन्म के बाद से ही ‘सपन’ सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दे के तौर पर सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा पर काम कर रहा है. ‘सपन’ खेल – और संघर्ष – को, खासकर महिलाओं के लिए, सार्वजनिक स्वास्थ्य के मुद्दे के तौर पर ही देखता है.
इस बीच, टोक्यो में ओलंपिक शुरू हो चुका था. एक तरफ़ ‘सपन’ के कार्यक्रम में महिला खिलाड़ी, खेल को एक पेशे के रूप में अपनाने में आने वाली कठिनाइयों के बारे में बात कर रही थी और दूसरी ओर भारत की झोली में पहला पदक एक महिला खिलाड़ी ने दिलाया. यह एक ऐसा संघर्ष है जिसका अधिकांश महिला खिलाड़ियों ने सामना किया है… और अक्सर यह संघर्ष घर से शुरू होता है.
लड़कियाँ खेल में आयें, सब सोचें: अशरीन
बांग्लादेशी बास्केटबॉल खिलाड़ी अशरीन मृधा ने जोर देकर कहा कि लड़कियों को खेलों में लाने की जिम्मेदारी केवल खेल संघों और खेल संगठनों की नहीं है. यह ज़िम्मेदारी दोस्तों, परिवारीजनों, चाचाओं-मामाओं, चाचियों-मामियों और भाइयों की भी है. इन सबको महिला खिलाड़ियों को बढ़ाने के लिए आगे आने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा, ‘जेंडर/ लैंगिक असमानता को केवल महिलाओं की समस्या मानकर सुलझाने की ज़रूरत नहीं है.’
विकलांग एथलीटों के सामने और कठिन संघर्ष
विकलांग एथलीटों को और भी कठिन संघर्ष का सामना करना पड़ता है. गुलशन नाज़ को आंशिक तौर पर देख सकने में दिक़्क़त है. गुलशन, भारत के उत्तर प्रदेश के एक छोटे शहर सहारनपुर की रहने वाली हैं.
वे कहती हैं, ‘देख सकने में मजबूर यानी दृष्टि बाधित एथलीट को कोई भी प्रायोजित नहीं करना चाहता है.’
महिलाओं खिलाड़ियों के सामने पैसे का संकट
एक बड़ा मुद्दा पैसे या संसाधन का है. बांग्लादेश की महिला क्रिकेट टीम की कप्तान रूहमाना अहमद सहित अनेक दक्षिण एशियाई एथलीटों ने महिला एथलीटों के सामने इस वजह से आने वाली चुनौतियों और मुश्किलों पर रोशनी डाली.
पाकिस्तान महिला क्रिकेट टीम की पूर्व कप्तान सना मीर ने कहा, ‘महिलाओं को पैसा हासिल करने के लिए ख़ुद को साबित करना पड़ता है. दूसरी ओर, पुरुष न भी जीतें तो उन्हें पैसे की पूरी मदद दी जाती है.’
यहां तक कि जब महिला एथलीट पदक के मामले में पुरुषों से बेहतर प्रदर्शन करती हैं, तब भी उन्हें वह शोहरत या पैसा नहीं मिलता जैसा पुरुष खिलाड़ियों को मिलता है. इस मामले में भारत की महिला खिलाड़ियों को हम देख सकते हैं.
महिला खिलाड़ी खेल न छोड़ें: निशा
वेबिनार में भाग लेने वालों ने जेंडर स्टीरियोटाइप तोड़ने की ज़रूरत और अहमियत के बारे में भी चर्चा की. भारत की ओलंपियन तैराक निशा मिलेट जुड़वाँ बेटियों के साथ इस बैठक में शामिल थीं. उन्होंने महिलाओं से अपील की कि प्रतिस्पर्धी खेल छोड़ने के बाद भी वे खेल न छोड़ें. वे खिलाड़ियों की अगली पीढ़ी को बनाने के लिए और उन्हें कोचिंग देने, सलाह देने, बढ़ावा देने में योगदान देने के लिए आगे आयें.
कौन–कौन शामिल हुआ
इस कार्यक्रम में बोलने वाली खिलाड़ियों में भारत की एथलीट और खेल निवेशक आयशा मनसुखानी, श्रीलंका की कार्यकर्ता और पूर्व नेटबॉल खिलाड़ी कैरिल टोज़र, बांग्लादेश की क्रिकेटर चंपा चकमा, बांग्लादेश की पुरस्कार विजेता भारोत्तोलन चैंपियन माबिया अख़्तर शिमांटो, भारत/संयुक्त अरब अमीरात की क्रिकेटर कोच और भारत ए टीम के पूर्व खिलाड़ी रूपा नागराज और नेपाल की राष्ट्रीय टेनिस खिलाड़ी प्रीति बराल शामिल थीं.
मैं इनकी बातें सुनकर दंग हूँ: नजम सेठी
प्रमुख विश्लेषक नजम सेठी ने इन सबकी बात सुनने के बाद कहा, ‘मैं बहुत ही मुश्किल हालात में आगे बढ़ने वाली इन खिलाड़ियों के साहस और दृढ़ संकल्प की बातें सुन कर दंग हूँ. कैसे इन्होंने मुस्कुराते हुए अपनी आपबीती सुनायी. मैं बेहत प्रभावित हूँ.’
नजम सेठी ने कहा कि दक्षिण एशिया की सभी महिला एथलीटों को लीडरशिप के मुद्दे, आर्थिक संकट, भेदभाव, स्टीरियोटाइप जैसी समस्याओं से लड़ना-जूझना पड़ रहा है. लेकिन उन्होंने दो और चिंताओं की तरफ़ ध्यान दिलाया. वे चिंता हैं- महिलाओं का वस्तुकरण और यौन उत्पीड़न. उनका कहना था कि इस पर और ज़्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है.
नजम सेठी एक प्रकाशन भी चलाते हैं. उन्होंने कहा कि इस चर्चा में उन्होंने जो कहानियाँ सुनीं, इन सब बातों को तो एक किताब की शक्ल में सामने आना चाहिए. ‘सपन’ टीम इस परियोजना पर काम करने के लिए सहमत हुई है.
इस आयोजन में दक्षिण एशियाई महिला एथलीटों का संघ बनाने का भी विचार आया. अनेक प्रतिभागियों को यह विचार पसंद आया.
वीज़ा मुक्त दक्षिण एशिया
प्रख्यात शिक्षाविद् बायला रज़ा जमील ने कार्यक्रम के दौरान ‘सपन’ के घोषणापत्र को पढ़कर सुनाया. इस घोषणापत्र में वीज़ा मुक्त दक्षिण एशिया के साथ ही व्यापार, पर्यटन और यात्रा में आसानी देने की माँग की गयी है. उन्होंने मौजूद लोगों से इस घोषणापत्र का समर्थन करने का आह्वान किया.
पिछले वेबिनार की तरह ही ‘सपन’ ने उन लोगों को श्रद्धांजलि दी जिनके आदर्शों को संगठन आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहा है. इनमें आईए रहमान, आसमा जहाँगीर, निर्मला देशपांडे, डॉ. मुब्बशीर हसन, मदनजीत सिंह जैसे लोग शामिल हैं. प्रतिभागियों ने उन प्रमुख दक्षिण एशियाई लोगों को भी याद किया, जिनका पिछले एक महीने में निधन हो गया है. साथी ही उन परिवारों के प्रति भी संवेदना व्यक्त की जिनके परिवारीजन कोरोना वायरस महामारी के शिकार हुए हैं.
व्यंग्य नाटक ‘कैप्टन समीना’ की प्रस्तुति
वेबिनार में शोएब हाशमी ने खेल में महिलाओं पर एक छोटा व्यंग्य नाटक “कैप्टन समीना” की भी प्रस्तुति की. 1980 के दशक में पाकिस्तान में जनरल जियाउल हक की दमनकारी सैन्य तानाशाही के दौरान इस नाटक का प्रदर्शन हुआ था. हालाँकि, ख़तरों को भाँपते हुए इसे कभी रिकॉर्ड नहीं किया गया था. तब से चीजें बहुत बदल चुकी हैं. इसके बाद भी इस नाटक में महिलाओं के खेल को दबाने का मुद्दा जिस तरह से उठाया गया है, वह आज भी प्रासंगिक है.
वेबिनार के प्रतिभागी इस बात पर एकमत थे कि आगे बढ़ने का रास्ता एकता, एकजुटता और दक्षिण एशियाई सहयोग में है.
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सनवारा टोल प्लाजा पर अब और कटेगी जेब, अप्रैल से 10 से 45 रुपए तक अधिक चुकाना होगा टोल

शिमला- कालका-शिमला राष्ट्रीय राजमार्ग-5 पर वाहन चालकों से अब पहली अप्रैल से नई दरों से टोल वसूला जाएगा। केंद्रीय भूतल एवं परिवहन मंत्रालय की ओर से बढ़ी हुई दरों पर टोल काटने के आदेश जारी हो गए हैं। जारी आदेश के अनुसार कालका-शिमला एनएच-5 पर सनवारा टोल प्लाजा पर 10 से 45 रुपए तक की वृद्धि हुई है।
टोल प्लाजा संचालक कंपनी के मैनेजर ने बताया कि 1 अप्रैल से कार-जीप का एक तरफ शुल्क 65 और डबल फेयर में 95 रुपये देने होंगे।
लाइट कामर्शियल व्हीकल, लाइट गुड्स व्हीकल और मिनी बस को एक तरफ के 105, बस-ट्रक (टू एक्सेल) को एकतरफ के 215, थ्री एक्सेल कामर्शियल व्हीकल को एक तरफ के 235, हैवी कंस्ट्रक्शन मशीनरी को एकतरफ के 340 और ओवरसीज्ड व्हीकल को एकतरफ के 410 रुपये का शुल्क नई दरों के हिसाब से देना होगा।
सनवारा टोल गेट से 20 किलोमीटर के दायरे में आने वाले वाहन चालकों को पास की सुविधा भी नियमों के अनुसार दी जाती है। इस पास के लिए अब 280 की जगह 315 रुपये प्रति महीना चुकाना पड़ेगा।
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बच्चों से खतरनाक किस्म की मजदूरी कराना गंभीर अपराध:विवेक खनाल

शिमला- बच्चों से खतरनाक किस्म की मज़दूरी कराना गंभीर अपराध है। 14 साल के अधिक आयु के बच्चों से ढाबे में 6 घंटे से अधिक काम नहीं लिया जा सकता। उन्हें तीन घंटे के बाद एक घंटे का आराम दिया जाना जरूरी है। यह बात वह उमंग फाउंडेशन द्वारा “मज़दूरों के कानूनी अधिकार, समस्याएं और समाधान” विषय पर वेबिनार में वरिष्ठ सिविल जज एवं राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के अतिरिक्त सचिव विवेक खनाल ने कही।
उन्होंने कहा कि असंगठित मजदूरों के शोषण का खतरा ज्यादा होता है। देश की जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद का 50% हिस्सा असंगठित मजदूरों के योगदान से ही अर्जित होता है।
विवेक खनाल ने संगठित एवं असंगठित श्रमिकों से जुड़े विभिन्न कानूनों की जानकारी दी। उन्होंने कहा की 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को खतरनाक किस्म के कामों में नहीं लगाया जा सकता। इनमें औद्योगिक राख, अंगारे, बंदरगाह, बूचड़खाना, बीड़ी, पटाखा, रेलवे निर्माण, कालीन, पेंटिंग एवं डाईंग आदि से जुड़े कार्य शामिल हैं।
उन्होंने बताया कि 14 से 18 वर्ष तक के बच्चे रेस्टोरेंट या ढाबे में काम के तय 6 घंटे तक ही काम कर सकते हैं। शाम 7 बजे से सुबह 8 बजे के बीच उन से काम नहीं लिया जा सकता।
उन्होंने बताया कि भवन निर्माण एवं अन्य कामगार बोर्ड में पंजीकृत होने के बाद श्रमिकों को अनेक प्रकार की सुविधाएं एवं सामाजिक सुरक्षा मिल जाती है।
विवेक के अनुसार असंगठित मजदूरों के लिए कानून भी काफी कम हैं। जबकि उनकी स्थिति ज्यादा खराब होती है। उन्होंने बताया कि मनरेगा के अंतर्गत काम करने वाली महिला मजदूरों के बच्चों को संभालने के लिए उन्हीं में से एक वेतन देकर आया का काम भी दिया जाता है।
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के अतिरिक्त सचिव ने कहा कि कि प्राधिकरण की ओर से समाज के जिन वर्गों को मुफ्त कानूनी सहायता दी जाती है उसमें एक श्रेणी मजदूरों की भी है।
इसके अतिरिक्त महिला, दिव्यांग, ट्रांसजेंडर, बच्चे, अनुसूचित जाति एवं जनजाति, और तीन लाख से कम वार्षिक आय वाले बुजुर्ग इस योजना में शामिल हैं। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से बद्दी में मजदूरों के लिए एक विशेष प्रकोष्ठ स्थापित किया गया है।
इसके अलावा विभिन्न जिलों में वैकल्पिक विवाद समाधान केंद्र चलाए जा रहे हैं। एक अलग पोर्टल पर सरकार ई-श्रम कार्ड भी बना रही है।
इस दौरान उन्होंने युवाओं के सवालों के जवाब भी दिए।
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हिमाचल कैबिनेट के फैसले:प्रदेश में सस्ती मिलेगी देसी ब्रांड की शराब,पढ़ें सभी फैसले

शिमला- मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की अध्यक्षता में आयोजित प्रदेश मंत्रीमंडल की बैठक में आज वर्ष 2022-23 के लिए आबकारी नीति को स्वीकृति प्रदान की गई।
इस नीति में वर्ष के दौरान 2,131 करोड़ रुपये के राजस्व प्राप्ति की परिकल्पना की गई है, जो कि वित्त वर्ष 2021-22 से 264 करोड़ रुपये अधिक होगा। यह राज्य आबकारी राजस्व में 14 प्रतिशत की कुल वृद्धि को दर्शाता है।
बैठक में वित्तीय वर्ष 2022-23 राज्य में प्रति इकाई चार प्रतिशत नवीनीकरण शुल्क पर खुदरा आबकारी ठेकों के नवीनीकरण को स्वीकृति प्रदान की गई। इसका उद्देश्य सरकारी राजस्व में पर्याप्त बढ़ोतरी प्राप्त करना और पड़ोसी राज्यों में दाम कम करके होने वाली देसी शराब की तस्करी पर रोक लगाना है।
लाइसेंस फीस कम होने के कारण देसी शराब ब्रांड सस्ती होगी। इससे उपभोक्ताओं को सस्ती दरों पर अच्छी गुणवत्ता की शराब उपलब्ध होगी और उन्हें अवैध शराब खरीदने के प्रलोभन से भी बचाया जा सकेगा और शुल्क चोरी पर भी निगरानी रखी जा सकेगी।
नई आबकारी नीति में खुदरा लाइसेंसधारियों को आपूर्ति की जाने वाली देसी शराब के निर्माताओं और बॉटलर्ज के लिए निर्धारित 15 प्रतिशत कोटा समाप्त कर दिया गया है। इस निर्णय से खुदरा लाइसेंसधारी अपना कोटा अपनी पसंद के आपूर्तिकर्ता से उठा सकेंगे और प्रतिस्पर्धात्मक मूल्यों पर अच्छी गुणवत्ता की देसी शराब की आपूर्ति सुनिश्चित होगी। देसी शराब का अधिकतम खरीद मूल्य मौजूदा मूल्य से 16 प्रतिशत सस्ता हो जाएगा।
इस वर्ष की नीति में गौवंश के कल्याण के लिए अधिक निधि प्रदान करने के दृष्टिगत गौधन विकास निधि में एक रुपये की बढ़ोतरी करते हुए इसे मौजूदा 1.50 रुपये से बढ़ाकर 2.50 रुपये किया गया है।
राज्य में कोविड-19 के मामलों में कमी को देखते हुए कोविड उपकर में मौजूदा से 50 प्रतिशत की कमी की गई है।
लाइसेंस शुल्क के क्षेत्र विशिष्ट स्लैब को समाप्त करके बार के निश्चित वार्षिक लाइसेंस शुल्क को युक्तिसंगत बनाया गया है। अब पूरे राज्य में होटलों में कमरों की क्षमता के आधार पर एक समान लाइसेंस स्लैब होंगे।
जनजातीय क्षेत्रों में आने वाले पर्यटकों को बेहतर सुविधा प्रदान करने और होटल उद्यमियों को राहत प्रदान करने के लिए जनजातीय क्षेत्रों में बार के वार्षिक निर्धारित लाइसेंस शुल्क की दरों में काफी कमी की गई है।
शराब के निर्माण, संचालन, थोक विक्रेताओं को इसके प्रेषण और बाद में खुदरा विक्रेताओं को बिक्री की निगरानी के लिए इन सभी हितधारकों को अपने प्रतिष्ठानों में सीसीटीवी कैमरे लगाना अनिवार्य किया गया है।
विभाग की ओर से हाल ही में शराब बॉटलिंग प्लांटों, थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं में पाई गई अनियमितताओं को ध्यान में रखते हुए हिमाचल प्रदेश आबकारी अधिनियम, 2011 को और सख्त किया गया है।
राज्य में एक प्रभावी एंड-टू-एंड ऑनलाईन आबकारी प्रशासन प्रणाली स्थापित की जाएगी जिसमें शराब की बोतलों की ट्रैक एंड टेक्स की सुविधा के अलावा निगरानी के लिए अन्य मॉडयूल शामिल होंगे।
मंत्रिमंडल ने वर्ष 2022-23 के लिए हिमाचल प्रदेश राज्य पथकर नीति को अपनी मंजूरी प्रदान की है जिसमें राज्य में सभी पथकर बेरियर की नीलामी व निविदा शामिल हैं। वर्ष 2021-22 के दौरान टोल राजस्व में गत वर्ष के राजस्व के मुकाबले 20 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
मंत्रिमंडल ने हिमाचल प्रदेश आपदा राहत नियमावली, 2012 में संशोधन को अपनी मंजूरी प्रदान की जिसमें मधुमक्खी, हॉरनेट और वैस्प के काटने से होने वाली मृत्यु, दुर्घटनाग्रस्त डूबने, और वाहन दुर्घटना मंे होने वाली मृत्यु के मामलोें को राहत नियमावली के अंतर्गत शामिल किया गया है।
मंत्रिमंडल ने लोक सेवा आयोग के माध्यम से राजस्व विभाग में नियमित आधार पर सीधी भर्ती के माध्यम से तहसीलदार श्रेणी-1 के 11 पदों को भरने की स्वीकृति प्रदान की।