हिमाचल के जंगलों में लगी भीषण आग के मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कारण बताओ नोटिस जारी कर अपने निर्देश में राज्यों से पूछा है कि वे वन्य क्षेत्र और संपदा को आग व अन्य आपदाओं से बचाने के लिए कौन सी नीति अपना रहे हैं
शिमला- उत्तराखंड और हिमाचल के जंगलों में लगी भीषण आग के मामले में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने दोनों राज्यों को कारण बताओ नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। बेंच ने तल्ख टिप्पणी करते हुए कहा कि पर्यावरण मंत्रालय और अन्य प्राधिकरण वन क्षेत्र में आग की घटनाओं को बहुत हल्के में ले रहे हैं।
यह बहुत ही चौंकाने वाला है। बेंच ने निर्देश में कहा कि दोनों राज्यों के संबंधित सचिव हलफनामा दाखिल कर बताएं कि आग की घटना के कारण क्या थे? आग लगने के बाद स्थिति पर काबू पाने के लिए क्या कदम उठाए गए। मामले की अगली सुनवाई 10 मई को होगी। जस्टिस स्वतंत्र कुमार की अध्यक्षता वाली बेंच ने बुधवार को मामले पर स्वत:संज्ञान लेते हुए यह निर्देश दिया है।
सुनवाई के दौरान पर्यावरण मंत्रालय की ओर से पेश वकील ने कहा कि आग की घटना के बाद वहां वायुसेना और अन्य स्थानीय प्राधिकरणों की मदद से स्थिति पर काबू पाया जा रहा है। इस पर बेंच ने मंत्रालय और राज्यों की ओर से पेश वकील को कहा कि घटना न हो इसके लिए आपकी पूर्व तैयारी क्या थी? अगली सुनवाई पर इस संबंध में स्पष्ट निर्देश लेकर ट्रिब्यूनल के समक्ष आएं।
हिमाचल से पूछा, एमपी वाली नीति का क्या हुआ?
बेंच ने अपने निर्देश में राज्यों से पूछा है कि वे वन्य क्षेत्र और संपदा को आग व अन्य आपदाओं से बचाने के लिए कौन सी नीति अपना रहे हैं। वहीं, इससे पहले सुनवाई के दौरान हिमाचल की ओर से पेश वकील को फटकार लगाते हुए बेंच ने कहा कि आपने एक वर्ष पहले कहा था कि हम मध्य प्रदेश में वन्य क्षेत्र के लिए मौजूद बचाव व प्रबंधन नीति को अपने सूबे में लागू करेंगे। आखिर इस नीति का क्या हुआ? हलफनामे में जवाब के अलावा प्राधिकरण इस पहलू पर भी जवाब दें।
2016 में वन क्षेत्र के भीतर बढ़ी आग की घटनाएं
केंद्रीय पर्यावरण राज्य मंत्री प्रकाश जावडेकर ने सोमवार को राज्यसभा में लिखित जवाब में कहा था कि 2016 के पहले चार महीने (जनवरी-अप्रैल) के बीच वन क्षेत्र में आग लगने की करीब 20 हजार घटनाएं हुई हैं। जबकि 2015 की समान अवधि में 16 हजार घटनाएं दर्ज हुई थीं। वन क्षेत्र में आग लगने की घटनाओं के मामले में उत्तराखंड के पौड़ी, नैनीताल, रुद्रप्रयाग और टिहरी सबसे ज्यादा प्रभावित जिले हैं।