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30 साल पुरानी धर्मशाला बस्ती में रहने वाले करीब 1,500 प्रवासी दर-दर की ठोकरें खाने को मजबूर

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Himachal Slums

शिमला- जिला कांगड़ा के धर्मशाला का केंद्र सरकार के स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में चयन क्या हुआ, यहां चरान खड्ड के किनारे रहने वाले करीब डेढ़ हजार प्रवासियों की आफत ही आ गई। चरान खड्ड के किनारे पिछले करीब तीन दशकों से बसी इस झोंपड़ पट्टी को प्रशासन ने हटा दिया है, व यहां रहने वाले प्रवासी दर दर की ठोंकरें खान को मजबूर हैं।

धर्मशाला में उनके रहने को कोई ठोर ठिकाना नहीं है। ठिठुरती ठंड व भारी बारिश के बीच इन दिनों यहां रहने वाले करीब डेढ़ हजार लोग जिनमें तीन सौ छोटे बच्चे ही हैं, यहां वहां गुजर बसर कर रहे हैं। उन्हें अभी तक छत नसीब नहीं हुई है। प्रशासन की ओर से जिस तरीके से जोर जबरदस्ती बीते सप्ताह यहां रहने वाले प्रवासियों को हटाया गया, उसका विरोध भी हो रहा है।


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रोज कर रहे है प्रदर्शन

अपने आशियानों के उजडऩे से गुस्साये यह प्रवासी रोजाना शहीद स्मारक व स्थानीय नगर निगम कार्यालय के बाहर रोजाना प्रर्दशन कर रहे हैं। गारबों को उजाडऩा बंद करो, चरान खड्ड विस्थापितों का पुर्नवास करो जैसे नारे लगाते यह लोग देखे जा सकते हैं। लेकिन प्रशासन के कानों में जूं तक नहीं रेंगी है।

Charan Khud Slum

Photo: Manshi Ashar

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समाज सेवी संस्था कर रही है मद्द

अब इन उजड़े प्रवासियों की मदद के लिये इलाके की जानी मानी समाज सेवी संस्था हिमधारा जो पर्यावरण संरक्षण कि दिशा में काम कर रही है, आगे आई है। हिमधारा की कार्यकर्ता मानसी अशर कहती हैं कि नगर निगम धर्मशाला ने जिस तरीके से इस झोंपड़ पट्टी को हटाया, वह गलत है। नियमों की यहां अवहेलना की गई है। यहां से हटाये गये लोंगों के लिये नगर निगम कोई पुर्नवास निति लेकर नहीं आया। जिससे आज यह लोग सडक़ पर हैं।

वीडियो देखें:

धर्मशाला क्रिकेट स्टेडियम के पास ही चरान खड्ड के पास यह मलीन बस्ती है, यहां राजस्थान से कांगड़ा घाटी में काम करने वाले प्रवासी लोग रहते हैं, यह लोग इलाके में मजदूरी व कचरा बीनने का काम करते हैं। अरसे से इसी इलाके को इन लोगों ने अपना घर बना लिया है। आज तक तो इन्हें यहां रहने को कोई दिक्कत नहीं आई। यहां ही इनकी रिशतेदारियां हैं।

16 मई को प्रशासन ने दिया था नोटिस

लेकिन बीते साल अप्रैल माह में नगर निगम अधिकारियों ने इस स्लम बस्ती में रहने वालों के लिये वार्तालाप शुरू किया। व यहां रहे करीब डेढ़ हजार लोगों के लिये तीन सौ आवास बनाने की बात भी की। उसके बाद 16 मई को नगर निगम अधिकरियों ने इलाके को खाली करने का पहला नोटिस जारी कर दिया, उसके तीन जून को एक ओर आदेश जारी किया गया कि यहां बसी इस स्लम बस्ती में रहने वाले लोग गंदगी फैला रहे हैं, जिससे इलाके के पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है।

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35 सालों से रह रहे है

मानसी अशर कहती हैं, कि वातावरण को दूषित करने की बात गलत है, यह लोग तो यहां पिछले 35 सालों से रह रहे हैं। प्रशासन ने इनके लिये आज तक एक शौचालय तक नहीं बनाया। अब नगर निगम के अधिकारी तरह तरह की बहाने बाजी कर रहे हैं, पानी में गंदगी फैलने की बात भी गलत है, चूंकि अभी तक यहां के पानी की कोई टेस्टिंग नहीं हुई है। न ही इलाके को हेल्थ सर्वे हुआ है।

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चरान खड्ड में बसे प्रवासी मजदूरों का आरोप है कि उन्हें उजाडऩे से पहले नगर निगम ने उनके लिये प्लान बी नहीं बनाया, जिससे उनका पुर्नस्थापन नहीं हो पाया। इलाके के मानवाधिकार कार्यकर्ता अक्षय जसरोटिया के नेतृत्व में यह लोग कांगड़ा के जिलाधीश रितेश चौहान से भी मिले और अपनी मांगों को प्रशासन के समक्ष रखा। दलील दी गई कि प्रशासन ने उन्हें उजाड़ते समय उनका राईट टू लाईफ, राईट टू शैल्टर एंड राईट टू डिगनटी जैसे मौलिक अधिकारों को छीन लिया।

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होईकोर्ट में जनहित याचिका दायर

वहीं हिमाचल प्रदेश म्यूनिसिपल कार्पोरेशन एक्ट का धारा 278 को भी चुनौती दी गई है। बाद में प्रदेश हाईकोर्ट में भी इस मामले में जनहित याचिका दायर की गई, जिसमें प्रदेश हाईकोर्ट ने भी नगर निगम अधिकारियों को पुर्नवास की मांग पर गौर करने की हिदायत दी। लेकिन नगर निगम अधिकारियों पर किसी भी बात को कोई असर नहीं हुआ।

आज भी यह लोग रोजाना चरान खड्ड पर अपने उजड़े आशियानों को देखने आते हैं, लेकिन इनके आंशुओं को पोंछने के लिये प्रशासन के पास कोई निति नहीं है। लेकिन उजड़े लोगों ने अभी उम्मीद नहीं छोड़ी है।

 

Photos: Manshi Asher

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हिमाचल की तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर लगे 76,000 से अधिक सेब के पौधे

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nauni university himachal pradesh

शिमला- डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के विस्तार शिक्षा निदेशालय में पहाड़ी कृषि एवं ग्रामीण विकास एजेंसी(हार्प), शिमला द्वारा एक अनुभव-साझाकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया।

इस कार्यशाला में जिला किन्नौर के निचार विकास खंड के रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों के 34 किसानों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर जीएम नाबार्ड डॉ. सुधांशु मिश्रा मुख्य अतिथि रहे जबकि नौणी विवि के अनुसंधान निदेशक डॉ रविंदर शर्मा ने विशिष्ट अतिथि के रूप में शिरकत की।

संस्था के अध्यक्ष डॉ. आर एस रतन ने कहा कि यह कार्यक्रम एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना के तहत रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों में वर्ष 2014 से आयोजित किया जा रहा है। परियोजना को नाबार्ड द्वारा वित्त पोषित किया गया है और इसे हार्प द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।

उन्होंने यह बताया कि यह एक बागवानी आधारित आजीविका कार्यक्रम है जिसे किसानों की भागीदारी से लागू किया गया है। इन तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर 76,000 से अधिक सेब के पौधे लगाए गए हैं और 607 परिवार लाभान्वित हुए हैं।

डॉ. सुधांशु मिश्रा ने यह भी कहा कि नाबार्ड हमेशा सामाजिक-आर्थिक उत्थान कार्यक्रमों के संचालन में आगे रहा है। उन्होंने इस कार्यशाला में भाग लेने वाले किसानों से अपने सहयोग से विभिन्न कार्यक्रमों को सफल बनाने का आग्रह किया।

अनुसंधान निदेशक डॉ. रविंदर शर्मा और विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. दिवेंद्र गुप्ता ने नाबार्ड और हार्प के प्रयासों की सराहना की और किसानों को आश्वासन दिया कि विश्वविद्यालय किसानों को तकनीकी रूप से समर्थन देने के लिए हमेशा तैयार है।

डॉ. नरेद्र कुमार ठाकुर ने कहा कि हार्प ने कृषक समुदाय के समन्वय से दुर्गम क्षेत्रों में कठिन परिस्थितियों में काम किया है। इस अवसर पर एक किसान-वैज्ञानिक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया जिसमें भाग लेने वाले किसानों के तकनीकी प्रश्नों को संबोधित किया गया।

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हिमाचल सरकार पुलिसकर्मियों का कर रही है शोषण

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hp police

पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है,कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है,राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है,हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।

शिमला सीटू राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। कमेटी ने यह कहा है कि वह हिमाचल प्रदेश के पुलिसकर्मियों की मांगों का पूर्ण समर्थन करती है। आरोप लगाते हुए सीटू ने कहा है कि प्रदेश सरकार पुलिसकर्मियों का शोषण कर रही है।

राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार से यह मांग की है कि वर्ष 2013 के बाद नियुक्त पुलिसकर्मियों को पहले की भांति 5910 रुपये के बजाए 10300 रुपये संशोधित वेतन लागू किया जाए व उनकी अन्य सभी मांगों को बिना किसी विलंब के पूरा किया जाए।

सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में भी कर्मचारियों की प्रमुख मांगों को अनदेखा किया गया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में पुलिसकर्मियों की मांगों को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है।

सीटू कमेटी ने कहा कि सबसे मुश्किल डयूटी करने वाले व चौबीस घण्टे डयूटी में कार्यरत पुलिसकर्मियों को इस बैठक से मायूसी ही हाथ लगी है। इसी से आक्रोशित होकर पुलिसकर्मी मुख्यमंत्री आवास पहुंचे थे। उनके द्वारा पिछले कुछ दिनों से मैस के खाने के बॉयकॉट से उनकी पीड़ा का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि पुलिस कर्मियों के साथ ही सभी सरकारी कर्मचारी नवउदारवादी नीतियों की मार से अछूते नहीं है। कमेटी ने कहा कि पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है। कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।

कमेटी ने यह भी कहा है कि थानों में स्टेशनरी के लिए बेहद कम पैसा है व आईओ को केस की पूरी फ़ाइल का सैंकड़ों रुपये का खर्चा अपनी ही जेब से करना पड़ता है। थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है। मैस मनी केवल दो सौ दस रुपये महीना है जबकि मैस में पूरा महीना खाना खाने का खर्चा दो हज़ार रुपये से ज़्यादा आता है। यह प्रति डाइट केवल साढ़े तीन रुपये बनता है, जोकि पुलिस जवानों के साथ घोर मज़ाक है। यह स्थिति मिड डे मील के लिए आबंटित राशि से भी कम है।

उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के जमाने के बने बहुत सारे थानों की स्थिति खंडहर की तरह प्रतीत होती है जहां पर कार्यालयों को टाइलें लगाकर तो चमका दिया गया है परन्तु कस्टडी कक्षों,बाथरूमों,बैरकों,स्टोरों,मेस की स्थिति बहुत बुरी है। इन वजहों से भी पुलिस जवान भारी मानसिक तनाव में रहते हैं।

सीटू ने कहा कि पुलिस में स्टाफ कि बहुत कमी है या यूं कह लें कि बेहद कम है व कुल अनुमानित नियुक्तियों की तुलना में आधे जवान ही भर्ती किये गए हैं जबकि प्रदेश की जनसंख्या पहले की तुलना में काफी बढ़ चुकी है यहाँ तक पुलिस के पास रिलीवर भी नहीं है।

आरोप लगाते हुए कमेटी ने कहा कि प्रदेश की राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है। वहीं पुलिस कर्मी निरन्तर ओवरटाइम डयूटी करते हैं। इसकी एवज में उन्हें केवल एक महीना ज़्यादा वेतन दिया जाता है। इस से प्रत्येक पुलिसकर्मी को वर्तमान वेतन की तुलना में दस से बारह हज़ार रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है। उन्हें लगभग नब्बे साप्ताहिक अवकाश,सेकंड सैटरडे,राष्ट्रीय व त्योहार व अन्य छुट्टियों के मुकाबले में केवल पन्द्रह स्पेशल लीव दी जाती है।

सीटू कमेटी ने यह भी कहा कि वर्ष 2007 में हिमाचल प्रदेश में बने पुलिस एक्ट के पन्द्रह साल बीतने पर भी नियम नहीं बन पाए हैं। इस एक्ट के अनुसार पुलिसकर्मियों को सुविधा तो दी नहीं जाती है परन्तु कर्मियों को दंडित करने के लिए इसके प्रावधान बगैर नियमों के भी लागू किये जा रहे हैं जिसमें एक दिन डयूटी से अनुपस्थित रहने पर तीन दिन का वेतन काटना भी शामिल है। पुलिसकर्मियों की प्रोमोशन में भी कई विसंगतियां हैं व इसका टाइम पीरियड भी बहुत लंबा है। हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।

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किन्नौर में लापता पर्यटकों में से 2 और के शव बरामद, 2 की तालाश जारी,आभी तक कुल 7 शव बरामद

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kinnaur trekker deaths

शिमला रिकोंगपिओ में 14 अक्तुबर को उत्तरकाशी के हर्षिल से छितकुल की ट्रैकिंग पर निकले 11 पर्यटकों में से लापता चार पर्वतारोहीयों में से दो  पर्वतारोहियों के शवो को आई.टी.बी.पी व पुलिस दल द्वारा पिछले कल सांगला लाया गया था जहां सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र सांगला में दोनों शवों का पोस्टमार्टम किया गया।

यह जानकारी देते हुए उपायुक्त किन्नौर अपूर्व देवगन ने बताया कि इन दोनों की पहचान कर ली गई है जिनमे मे एक उतरकाशी व दूसरा पश्चिम बंगाल से सम्बंधित था।

उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन किन्नौर द्वारा आज एक शव वाहन द्वारा उतरकाशी को भेज दिया गया है जहाँ शव को जिला प्रशासन उतरकाशी को सौंपा जाएगा। जब कि दूसरा शव वाहन द्वारा शिमला भेजा गया है जिसे शिमला में मृतक के परिजनों को सौंपा जायेगा।

उपायुक्त अपूर्व देवगन ने बताया कि अभी भी लापता दो  पर्यटकों की तलाश आई.टी.बी.पी के जवानों द्वारा जारी है। उल्लेखनीय है कि गत दिनों उतरकाशी से छितकुल के लिये 11 पर्वतारोही ट्रेकिंग पर निकले थे जो बर्फबारी के कारण लमखंगा दर्रे में फंस गये थे जिसकी सूचना मिलने पर जिला प्रशासन द्वारा सेना के हेलीकॉप्टर व आई.टी.बी.पी के जवानों की सहायता से राहत व बचाव कार्य आरम्भ किया था। सेना व आई.टी.बी.पी के जवानों ने 21 अक्टूबर को दो पर्यटकों को सुरक्षित ढूंढ निकाला था। इसी दौरान उन्हें अलग अलग स्थानों पर पाँच ट्रेकरों के शव ढूंढ निकलने में सफलता मिली थी। जबकि 4 पर्यटक लापता थे जिसमे से राहत व बचाव दल को 22 अक्तुबर को 2 शव ढूढ़ निकालने में सफलता मिली थी। अभी भी दो पर्यटक लापता हैं जिनकी राहत व बचाव दल द्वारा तलाश जारी है।

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