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चुनौतियों के बावजूद भी बना ए ग्रेड का विश्वविद्यालय, 47 वें स्थापना दिवस पर विशेष

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हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय का फर्श से अर्श तक का सफर

शिमला,जुलाई,डा0 बलदेव सिंह नेगी- शिमला 22 जुलाई 1970 को तत्कालीन मुख्यमंत्री डा0 यशवंत सिंह परमार द्वारा हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद, प्रदेश विश्वविद्यालय अपने 47 साल पूरे कर चूका है और 48वां स्थापना दिवस 22 जुलाई को मनाया गया । इन वर्षो में विश्वविद्यालय ने कई आयामों को छुआ है और भौगोलिक दृष्टि से इस कठिन प्रदेश के लोगों को उच्च शिक्षा प्रदान करने में अपनी अहम भुमिका अदा की है।

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इसी कारण आज हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे से पहाड़ी प्रदेश की गणना शिक्षा के क्षेत्र में केरल जैसे अग्रणी राज्यो में की जाती है। इस छोटे से पहाड़ी प्रदेश में जब अंग्रजी हकूमत की ग्रीष्मकालीन पहाड़ी (समरहिल) पर हिमाचल के पहले विश्वविद्यालय की स्थापना हुई तो उस समय क्या और कितनी चुनौतियां रही होंगी। उस एतिहासिक पृष्ठभुमि को जानने के लिए और विश्वविद्यालय की उस वक्त और वर्तमान की कार्यप्रणाली के खिट्टे मीठे अनुभवों को जानने के लिए प्रोफैसर मोहिन्दर कुमार शर्मा से डा. बलदेव सिंह नेगी द्वारा की गयी बातचीत के अंश।

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प्रो.मोहिन्दर कुमार शर्मा: संक्षिप्त परिचय

प्रो. मोहिन्दर कुमार शर्मा हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के मैनेजमेंट स्कूल के पहले निदेशक रहे है प्रथम पीढ़ी के शिक्षकों में से हैं जिन्हें पंजाब विश्वविद्यालय से यहां अध्यापन कार्य के लिए आमंत्रित किया गया था। प्रो. शर्मा ने ही मैनेजमेंट स्कूल को स्थापित किया और उतर भारत ही नहीं पूरे देश के प्रसिद्ध मैनेजमेंट स्कूल बनाने में अपना योगदान दिया। एमबीए प्रवेश में गुणवता कायम करने के लिए साल 1978 में एमबीए में प्रवेश मैरिट की बजाए प्रवेश परीक्षा के आधार पर प्रवेश करने का श्रेय भी इन्ही को जाता है। अपने कार्यकाल में अकादमिक निष्ठावान होने के साथ-2 एक साहसी शिक्षक की छवि वाले प्रो. शर्मा विश्वविद्यालय की स्वायतता के लिए भी विभिन्न मंचों चाहे अकादमिक परिषद् हो या कार्यकारी परिषद् पर अपने अकादमिक साहस से लड़ते रहे। इसी लिए प्रो. एम.के. के नाम से मशहूर प्रोफैसर मोहिन्दर कुमार की गणना पहली पीढ़ी के निष्ठावान और साहसी शिक्षकों में की जाती है।

डा0 बलदेव सिंह नेगी: सर, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के स्थापना के 47 वर्ष पुरे हो चुके हैं आप अपने शुरुआती दौर में क्या देखते हैं कि किस माहौल में इस विश्वविद्यालय की स्थापना हुई?

प्रोफैसर एम0के0 शर्मा: डा0 यशवंत सिंह परमार, जो हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री थे उन्होंने प्रदेश के प्रौफेसर आर. के. सिंह जो उस समय मेरठ विश्वविद्यालय के कुलपति थे उन्हें हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय का पहला कुलपति नियुक्त किया था। उस समय प्रदेश विश्वविद्यालय में भौतिक मूलढ़ांचा कुछ नही था।अंग्रेजों के समय कुछ पुराने भवनों जिसमें राजकुमारी अमृतकौर का एक पुराना मकान था जिसे तोड़कर एक ब्लाॅक का निर्माण किया और कुछ लकड़ी के ढारे जैसे बनाया गया। विश्वविद्यालय के पहले कुलपति प्रौ0 आर0 के0 सिंह बहुत दुरदर्षी व्यक्ति थे जो कहते थे किः

“ईंट और मोटर एक संसथान नहीं बनाते हैं। संसथान में विभिन्न पदों पर चलने वाले व्यक्ति संसथान को अच्छा या बुरा बनाते हैं”

नेगीः सर,आप भी वि0वि0 के पहली पीढ़ी के शिक्षकों में हैं, तो जो शुरुआती शिक्षकों की भर्तियां हुई वो किस प्रकार से हुई?

प्रोफैसर एम.के. शर्मा: उस समय देश के कोने-कोने से चुन-2 कर बहुत ही प्रतिष्ठित शिक्षकों को कुलपति ने यहां आमंत्रित किया था और विभिन्न विभागों का अध्यक्ष बनाया गया। मुझे याद है कि प्रोफैसर पी.एल.भटनागर को गणित विभाग का अध्यक्ष बनाया गया था । प्रो.भटनागर जो राजस्थान वि.वि. के कुलपति थे और शायद पद्मश्री आवार्डी थे। प्रो0 ऐ0सी0 जैन को कैमिस्ट्री विभाग का अध्यक्ष बनाया गया । प्रो0 रमेश चन्द जो उस समय अमेरीका के किसी वि.वि. में कार्यरत थे उन्हें बुलाकर फिजिक्स विभाग का अध्यक्ष बनाया गया। प्रो.शांति स्वरूप को राजनीति शास्त्र विभाग और प्रो. डी.डी. नरूला को अर्थशास्त्र विभाग का अध्यक्ष बनाया गया। प्रो. राज भण्डारी को मैनेजमेंट का और प्रो. बच्चन को हिन्दी विभागाध्यक्ष बनाया गया था, दोनो को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से आमंत्रित किया गया था।

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और हां प्रो. के.पी. पाण्डे को अन्तराष्ट्रीय दुरवर्ती शिक्षा केन्द्र का निदेशक बनाया गया। यह प्रो.आर.के.की दुरदर्षिता ही थी कि उन्होंने यहां आते ही इस केन्द्र को भी खोल दिया जो शुरुआती दौर में पत्राचार के माध्यम से भारतवर्ष के कोने-कोने तक उच्च शिक्षा का विस्तार किया और प्रदेश विश्वविद्यालय को प्रसिद्ध करने के साथ वितिय मजबूती भी दी।

इस प्रकार ये सभी उच्चकोटी के शिक्षक थे। और कई प्रकार के अर्वाड वे अपने योगदान के लिए हासिल कर चुके थे। यहां से जाने के बाद बहुत सारे शिक्षक या तो किसी विश्वविद्यालय के कुलपति बनकर गए या किसी राष्ट्रीय अकादमिक संस्था के निदेशक।

नेगीः सर,मिसाल के तौर पर कौन-कौन से शिक्षक बाद में कुलपति और निदेशक बने?

प्रोफैसर एम.के.शर्मा: ऐसे बहुत से शिक्षक थे मिसाल के तौर पर प्रो0 बी0 आर0 मेहता जो यहां राजनीति शास्त्र विभाग में थे वे दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति बने। प्रो.डी.वी. सिंह जो यहां मैनेजमेंट विभाग में थे वे राजस्थान विश्वविद्यालय के कुलपति बने। प्रो.एस.एन. दुबे जो यहा गणित विभाग में थे वे भी राजस्थान के कोटा या किसी दूसरे विश्वविद्यालय के कुलपति बने। प्रो.डी.डी.नरूला जो यहां अर्थशास्त्र विभाग में थे उन्हें भारतीय सामाजिक विज्ञान शोध परिषद् के निदेशक बने और बाद में प्रो. जावेद आलम जो यहां राजनीति शास्त्रविभाग में थे वे भी इसी परिषद् में निदेशक बने।

नेगीः सर, विश्वविद्यालय के शुरुआती समय की कार्य प्रणाली किस प्रकार की रही?

प्रोफैसर एम.के.शर्मा:देखिये भले ही उस वक़्त वि0वि0 नया था और ढारों में चल रहा था लेकिन जैसे मैंने पहले भी कहा है कि कुलपति ने देशभर के विश्वविद्यालय से चुन-चुनकर और नामी गिरामी शिक्षकों को आमंत्रित किया गया था तो गुणात्मक रूप से किसी भी पुराने विश्वविद्यालय से हमारा वि.वि. कम नहीं था। अब देखिये जो सेमेस्टर प्रणाली देश के वि0वि0 उच्चतर शिक्षण संस्थानों चाहे वि.वि. हों, प्रौद्योगिकी या मैनेजमेंट संस्थान हो उन्होंने यह सेमेस्टर प्रणाली नब्बे के दशक या बाद में लागू की लेकिन हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में इसे शुरू से ही अपनाया गया।

नेगीः सर,उस समय प्रदेश विश्वविद्यालयकी कार्य प्रणाली में सवेत्ता स्वायत्तता को किस प्रकार तवज्जो दी जाती रही?

प्रोफैसर एम.के.शर्मा: प्रो.आर.के. सिंह जो प्रदेश विश्वविद्यालय के पहले कुलपति थे उन्होंने राजनीतिक दखल को कभी बरदाश्त नहीं किया। उस समय विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद् में विभिन्न संकाय के अधिष्ठाताओं और आचार्यों के अलावा कोई भी सदस्य नहीं होता था। एक बार की बात है कि न्यू ब्याॅज होस्टल के एक कार्यक्रम में छात्रों ने कुलपति को बिना बताए तत्कालीन मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी को बतौर मुख्यातिथि बुलाया इसी मुददे पर प्रो.आर.के. ने इस्तीफा दे दिया।

नेगीः सर,जो स्वायत्तता पर हमला बोले या राजनैतिक दखल कब से बढ़ा और इसके क्या प्रभाव विश्वविद्यालय पर आप देखते हैं?

प्रोफैसर एम.के.शर्मा: प्रो.आर.के. सिंह के बाद प्रो. बी.एस. जोगी को कुलपति बनाया गया जो इससे पहले कृषि विभाग में निदेशक थे। वो लगभग सरकार के साथ ही चलते रहे। प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने प्रो.एल.पी. सिन्हा के समय वि.वि. के अधिनियमों में बदलाव कर वि.वि. की कार्यकारी परिषद् में राजनैतिक लोगों और नौकरशाहों को पनाह दी जिससे जो फैसले शिक्षाविद लेते थे अब वह निर्णय सरकार द्वारा सचिवालय से लिए जाने लगे।

नेगीः सर, आप के जमाने में किस-किस कुलपति के कार्यकाल को अच्छा मानते है?

प्रोफैसर एम.के. शर्मा: देखिये प्रो.आर.के. सिह के बाद दो कुलपतियों का कार्यकाल बहुत अच्छा रहा ऐसा मैं मानता हूँ। उसमे एक थे प्रो. एल.पी. सिन्हा और दूसरे थे प्रो.एच.पी. दिक्षित।

नेगीः सर, उनका कार्यकाल क्यों और किस तरह से अच्छा रहा?

प्रोफैसर एम.के.शर्मा: देखिए प्रो.आर.के. सिंह ने इस विश्वविद्यालय की एक मजबूत नींव रखी और नामी गिरामी शिक्षाविदों को बतौर शिक्षक प्रदेश वि0वि0 लाने में सफल हुए। जहां तक बात है प्रो0 एल0पी0 सिन्हा की है तो उन्होंने स्थानीय लोगों में से शिक्षक भर्ती किये। क्योंकि माटी का पूत (सन आफ द स्वायल) की बात आर0के0 सिंह के समय से ही उठनी शरू हो गई थी। कुलपति के रूप में एच0पी0 दिक्षित काफी उर्जावान व्यक्तिव के थे उन्होने वि0वि0 की वितीय स्वास्थ्य की मजबूती के लिए एन0आर0आई0 के कनसेप्ट को लाया और उन्होने तो वि0वि0 का जो दुरवर्ती शिक्षा केन्द्र था भारत से बाहर खोलने के लिए गंभीर प्रयास किए जिसमें करीब पांच देशो में तो लगभग खुलने की कगार पर थे अगर वो महीना भर और कुलपति रहते।

नेगीः सर, किस कुलपति का कार्यकाल अच्छा नहीं रहा और क्योँ ?

प्रोफैसर एम.के. शर्मा: देखिए वैसे तो कई कुलपति ऐसे रहे जिन्होने वि.वि. के संसाधनो का और अपनी कुर्सी का दुरूप्योग किया। लेकिन उन सब में मेरे आकलन के हिसाब से गणपति चन्द्र गुप्त का कार्यकाल बहुत ख़राब रहा। जिसमें चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी से लेकर प्रोफैसर लेवल और छात्रों तक लामबन्द हुए।

नेगीः क्यों और कैसे?

प्रोफैसर एम0के0 शर्मा: उसकी सोच और अप्रोच दोनों बहुत कम्यूनल थी। प्रदेश में जब पहली भाजपा सरकार बनी तो उन्हें कुलपति बनाया गया। उसने एक मुस्लिम शिक्षक के खिलाफ झुठे आरोप लगाकर उसके खिलाफ कार्रवाई की गयी। यह कहा गया कि वह हिन्दू छात्रों को गाइड नहीं करता। उनके खिलाफ 45 दिनों तक आंदोलन चला जिसमें छात्रों,कर्मचारियों और शिक्षकों तक ने बढ़चढ़ का हिस्सा लिया और गणपति चन्द्र गुप्त को बर्खास्त किया गया। कुल मिलाकर मैं यह कह सकता हूं कि प्रो.आर.के. सिंह के बाद कोई भी कुलपति उनकी कदकाठी का नहीं आया हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय का नही बना।

नेगीः सर, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय पर एक आरोप लगता है कि यह पढ़ाई से ज्यादा राजनीतिक आखाड़ा बन चुका है।

प्रोफैसर एम0के0 शर्मा: इस स्थिति का मुल्यांकन हमे विश्वविद्यालय की स्वायत्तता पर होने वाले हमले से जोड़कर देखना होगा। जब वि.वि. की दैनिक कार्यप्रणाली पर राजनैतिक दखल बढ़ेगा तो निश्चित तौर पर विपक्ष में बैठी दूसरी पार्टियां भी सक्रिय होंगी। उदाहरण के तौर पर वि.वि. भर्तियां अकादमिक पात्रता की बजाय राजनैतिक पृष्टभूमि को देखकर होंगी तो वि.वि. परिसर का राजनीतिक अखाड़ा बनना स्वाभाविक है।

नेगीः सर,हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के छात्र में जो राजनीति है इसका विश्वविद्यालय की छवि पर पड़ने वाले प्रभाव को आप कैसे देखते हैं?

प्रोफैसर एम0के0 शर्मा: मैं छात्र राजनीति को साकारात्मक दृष्टि से देखता रहा हूं। हां,शिक्षकों के छात्र राजनितिक संगठनों में प्रत्यक्ष दखल का धुर विरोधी हूं। जो छात्रों के आपसी झगडे़ होते रहें हैं उसके लिए राज्य और पुलिस तथा वि0वि0 प्रशासन की एकतरफा कार्यवाही को में कारण मानता हूं। समय पर इन झगड़ों में इन तीनों अभिकरणों पर निष्पक्ष हस्तक्षेप हो तो इन्हें काबू करना कोई राॅकेट सांईंस नही।

छात्र राजनीति का प्रभाव ही है आज चाहे किसी भी पार्टी के नेतृत्व की बात करे वो विश्वविद्यालय में किसी न किसी छात्र संगठन के नेता रहें हैं और आज प्रदेश को नेतृत्व प्रदान कर रहे हैं । मुझे याद है कि जब में वि0वि0 के मैनेजमेंट स्कूल का निदेशक था और हमने एमबीए में गुणवता और पारदर्शिता को सुनिष्चित करने के लिए प्रवेश मैरिट आधार की बजाए प्रवेश परीक्षा करने पर ज़ोर दिया था तो उस समय जे.पी. नड्डा और राकेश वर्मा के नेतृत्व में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् और भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन ने इस के खिलाफ भूख हड़ताल की थी। आज नड्डा जी भारत सरकार में स्वास्थ्य मंत्रालय संभाले हुए है जो प्रदेश के लिए गर्व का विषय है। ऐसे ही अनेकों नेता हैं जिन्होनें छात्र जीवन में इस परिसर में पढ़ाई के साथ-2 अपने अन्दर के नेतृत्व को निखारा है।

नेगीः सर, यह जो विश्वविद्यालय की स्वायत्तता पर हमला है विस्तृत परिप्रेक्ष्य में इसका प्रभाव आप कैसे आंकते हैं?

प्रोफैसर एम0के0 शर्मा: विश्वविद्यालयों को स्वातता राज्य विधानसभाओं और देश की संसद द्वारा प्रदान इसलिए की जाती है ताकि इन संस्थानों में जो मानवसंम्पदा तैयार हो वो अपनी भरपूर पूर्ण क्षमता से देश के विकास में अपने-2 क्षेत्र में अपनी भुमिका अदा करे।

अब इस उच्चतर संस्थानों में भी राजनैतिक दखलदांजी जब बढ़ जाती है तो भर्तियों में दखल होने से काबिल शिक्षक को भर्ती नहीं कर सकते, वितीय संसाधनों पर कैंची ये आम बात है और छात्रों की विभिन्न प्रकार के शुल्कों पर संस्थानों की निर्भरता के कारण इन संस्थानों की उपयोगिता कम हो जाती है और सरकारी और निजि में फर्क न के बरावर हो जाता है।

एक शिक्षक जब विश्वविद्यालय में भर्ती होता है कम से कम तीस पीढ़ियों को शिक्षित करता है अब यह आप ही अंदाजा लगा लो तो तीस पीढ़िया एक अच्छे शिक्षक मिलने से लाभान्वित भी हो सकती हैं और बुरे शिक्षक मिलने से नुकसान भी झेल सकती है। होगा जो भी मानवसंम्पदा तो अपने प्रदेश की ही होगी।

सिंह नेगीः सर, हांलाकि आप सेवानिवृत हो चुके हो लेकिन फिर भी आप प्रदेश विश्वविद्यालय को कहां आंकते है।

प्रोफैसर एम0के0 शर्मा: जिस विश्वविद्यालय ने ढारों से अपनी शुरुआत की थी इन्फ्रास्ट्रक्चर के मामले में तो शुरुआती जमाने के मुताबिक तो काफी विकास किया हैै लेकिन जो गुणात्मक स्तर में गिरावट है वह पूरे प्रदेश के लिए चिंताजनक है। जो स्वातता पर हमला दैनिक कार्यप्रणाली में राजनैतिक दखल, वितीय संकट और मौजूदा फैकल्टी का शिक्षण कार्यो से ज्यादा प्रशासनिक और राजनैतिक कार्यों में ज्यादा दिलचस्पी लेना इस गिरावट का मुख्य कारण है जिसमें सुधार किया जा सकता है अगर प्रदेश विश्वविद्यालय की प्रतिष्ठा को वापिस हासिल करना है तो उसके लिए सरकार वि0वि0 प्रशासन और छात्रों को गम्भीर प्रयास करने होगें।

डा0 बलदेव सिंह नेगी
फैकल्टी, अंतः विषयअध्ययन विभाग
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय , शिमला ।

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हिमाचल की तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर लगे 76,000 से अधिक सेब के पौधे

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शिमला- डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के विस्तार शिक्षा निदेशालय में पहाड़ी कृषि एवं ग्रामीण विकास एजेंसी(हार्प), शिमला द्वारा एक अनुभव-साझाकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया।

इस कार्यशाला में जिला किन्नौर के निचार विकास खंड के रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों के 34 किसानों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर जीएम नाबार्ड डॉ. सुधांशु मिश्रा मुख्य अतिथि रहे जबकि नौणी विवि के अनुसंधान निदेशक डॉ रविंदर शर्मा ने विशिष्ट अतिथि के रूप में शिरकत की।

संस्था के अध्यक्ष डॉ. आर एस रतन ने कहा कि यह कार्यक्रम एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना के तहत रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों में वर्ष 2014 से आयोजित किया जा रहा है। परियोजना को नाबार्ड द्वारा वित्त पोषित किया गया है और इसे हार्प द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।

उन्होंने यह बताया कि यह एक बागवानी आधारित आजीविका कार्यक्रम है जिसे किसानों की भागीदारी से लागू किया गया है। इन तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर 76,000 से अधिक सेब के पौधे लगाए गए हैं और 607 परिवार लाभान्वित हुए हैं।

डॉ. सुधांशु मिश्रा ने यह भी कहा कि नाबार्ड हमेशा सामाजिक-आर्थिक उत्थान कार्यक्रमों के संचालन में आगे रहा है। उन्होंने इस कार्यशाला में भाग लेने वाले किसानों से अपने सहयोग से विभिन्न कार्यक्रमों को सफल बनाने का आग्रह किया।

अनुसंधान निदेशक डॉ. रविंदर शर्मा और विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. दिवेंद्र गुप्ता ने नाबार्ड और हार्प के प्रयासों की सराहना की और किसानों को आश्वासन दिया कि विश्वविद्यालय किसानों को तकनीकी रूप से समर्थन देने के लिए हमेशा तैयार है।

डॉ. नरेद्र कुमार ठाकुर ने कहा कि हार्प ने कृषक समुदाय के समन्वय से दुर्गम क्षेत्रों में कठिन परिस्थितियों में काम किया है। इस अवसर पर एक किसान-वैज्ञानिक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया जिसमें भाग लेने वाले किसानों के तकनीकी प्रश्नों को संबोधित किया गया।

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हिमाचल सरकार पुलिसकर्मियों का कर रही है शोषण

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पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है,कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है,राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है,हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।

शिमला सीटू राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। कमेटी ने यह कहा है कि वह हिमाचल प्रदेश के पुलिसकर्मियों की मांगों का पूर्ण समर्थन करती है। आरोप लगाते हुए सीटू ने कहा है कि प्रदेश सरकार पुलिसकर्मियों का शोषण कर रही है।

राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार से यह मांग की है कि वर्ष 2013 के बाद नियुक्त पुलिसकर्मियों को पहले की भांति 5910 रुपये के बजाए 10300 रुपये संशोधित वेतन लागू किया जाए व उनकी अन्य सभी मांगों को बिना किसी विलंब के पूरा किया जाए।

सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में भी कर्मचारियों की प्रमुख मांगों को अनदेखा किया गया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में पुलिसकर्मियों की मांगों को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है।

सीटू कमेटी ने कहा कि सबसे मुश्किल डयूटी करने वाले व चौबीस घण्टे डयूटी में कार्यरत पुलिसकर्मियों को इस बैठक से मायूसी ही हाथ लगी है। इसी से आक्रोशित होकर पुलिसकर्मी मुख्यमंत्री आवास पहुंचे थे। उनके द्वारा पिछले कुछ दिनों से मैस के खाने के बॉयकॉट से उनकी पीड़ा का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि पुलिस कर्मियों के साथ ही सभी सरकारी कर्मचारी नवउदारवादी नीतियों की मार से अछूते नहीं है। कमेटी ने कहा कि पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है। कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।

कमेटी ने यह भी कहा है कि थानों में स्टेशनरी के लिए बेहद कम पैसा है व आईओ को केस की पूरी फ़ाइल का सैंकड़ों रुपये का खर्चा अपनी ही जेब से करना पड़ता है। थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है। मैस मनी केवल दो सौ दस रुपये महीना है जबकि मैस में पूरा महीना खाना खाने का खर्चा दो हज़ार रुपये से ज़्यादा आता है। यह प्रति डाइट केवल साढ़े तीन रुपये बनता है, जोकि पुलिस जवानों के साथ घोर मज़ाक है। यह स्थिति मिड डे मील के लिए आबंटित राशि से भी कम है।

उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के जमाने के बने बहुत सारे थानों की स्थिति खंडहर की तरह प्रतीत होती है जहां पर कार्यालयों को टाइलें लगाकर तो चमका दिया गया है परन्तु कस्टडी कक्षों,बाथरूमों,बैरकों,स्टोरों,मेस की स्थिति बहुत बुरी है। इन वजहों से भी पुलिस जवान भारी मानसिक तनाव में रहते हैं।

सीटू ने कहा कि पुलिस में स्टाफ कि बहुत कमी है या यूं कह लें कि बेहद कम है व कुल अनुमानित नियुक्तियों की तुलना में आधे जवान ही भर्ती किये गए हैं जबकि प्रदेश की जनसंख्या पहले की तुलना में काफी बढ़ चुकी है यहाँ तक पुलिस के पास रिलीवर भी नहीं है।

आरोप लगाते हुए कमेटी ने कहा कि प्रदेश की राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है। वहीं पुलिस कर्मी निरन्तर ओवरटाइम डयूटी करते हैं। इसकी एवज में उन्हें केवल एक महीना ज़्यादा वेतन दिया जाता है। इस से प्रत्येक पुलिसकर्मी को वर्तमान वेतन की तुलना में दस से बारह हज़ार रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है। उन्हें लगभग नब्बे साप्ताहिक अवकाश,सेकंड सैटरडे,राष्ट्रीय व त्योहार व अन्य छुट्टियों के मुकाबले में केवल पन्द्रह स्पेशल लीव दी जाती है।

सीटू कमेटी ने यह भी कहा कि वर्ष 2007 में हिमाचल प्रदेश में बने पुलिस एक्ट के पन्द्रह साल बीतने पर भी नियम नहीं बन पाए हैं। इस एक्ट के अनुसार पुलिसकर्मियों को सुविधा तो दी नहीं जाती है परन्तु कर्मियों को दंडित करने के लिए इसके प्रावधान बगैर नियमों के भी लागू किये जा रहे हैं जिसमें एक दिन डयूटी से अनुपस्थित रहने पर तीन दिन का वेतन काटना भी शामिल है। पुलिसकर्मियों की प्रोमोशन में भी कई विसंगतियां हैं व इसका टाइम पीरियड भी बहुत लंबा है। हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।

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किन्नौर में लापता पर्यटकों में से 2 और के शव बरामद, 2 की तालाश जारी,आभी तक कुल 7 शव बरामद

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शिमला रिकोंगपिओ में 14 अक्तुबर को उत्तरकाशी के हर्षिल से छितकुल की ट्रैकिंग पर निकले 11 पर्यटकों में से लापता चार पर्वतारोहीयों में से दो  पर्वतारोहियों के शवो को आई.टी.बी.पी व पुलिस दल द्वारा पिछले कल सांगला लाया गया था जहां सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र सांगला में दोनों शवों का पोस्टमार्टम किया गया।

यह जानकारी देते हुए उपायुक्त किन्नौर अपूर्व देवगन ने बताया कि इन दोनों की पहचान कर ली गई है जिनमे मे एक उतरकाशी व दूसरा पश्चिम बंगाल से सम्बंधित था।

उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन किन्नौर द्वारा आज एक शव वाहन द्वारा उतरकाशी को भेज दिया गया है जहाँ शव को जिला प्रशासन उतरकाशी को सौंपा जाएगा। जब कि दूसरा शव वाहन द्वारा शिमला भेजा गया है जिसे शिमला में मृतक के परिजनों को सौंपा जायेगा।

उपायुक्त अपूर्व देवगन ने बताया कि अभी भी लापता दो  पर्यटकों की तलाश आई.टी.बी.पी के जवानों द्वारा जारी है। उल्लेखनीय है कि गत दिनों उतरकाशी से छितकुल के लिये 11 पर्वतारोही ट्रेकिंग पर निकले थे जो बर्फबारी के कारण लमखंगा दर्रे में फंस गये थे जिसकी सूचना मिलने पर जिला प्रशासन द्वारा सेना के हेलीकॉप्टर व आई.टी.बी.पी के जवानों की सहायता से राहत व बचाव कार्य आरम्भ किया था। सेना व आई.टी.बी.पी के जवानों ने 21 अक्टूबर को दो पर्यटकों को सुरक्षित ढूंढ निकाला था। इसी दौरान उन्हें अलग अलग स्थानों पर पाँच ट्रेकरों के शव ढूंढ निकलने में सफलता मिली थी। जबकि 4 पर्यटक लापता थे जिसमे से राहत व बचाव दल को 22 अक्तुबर को 2 शव ढूढ़ निकालने में सफलता मिली थी। अभी भी दो पर्यटक लापता हैं जिनकी राहत व बचाव दल द्वारा तलाश जारी है।

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