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फंगस लगी बदबूदार दाल ही बेच दी सरकारी डिपुओं में, प्रशासन को आम आदमी की जान की नहीं कोई कदर
आरोप है कि सोलन में डिपुओं में फंगस लगी राजमाह की दाल के पैकेट राशनकार्ड उपभोक्ताओं को थमाए जा रहे हैं।
शिमला- जहाँ एक ओर प्रदेश की सरकार अपनी जनता को साफ और पोष्टिक आहार देने की बात करती है वहीँ दूसरे ओर आम आदमी की उम्मीद और उसके विश्वास से भी खिलवाड़ कर रही है! आम लोगो को सरकारी डिपो में दिए जाने वाले राशन की यूं तो गुणवक्ता खाने लायक नहीं होती तथा आम लोगो को बेकार या घटिया किस्म का राशन देने में हिमाचल के सरकारी डिपो अव्वल है!
लोगो में इस बात का आक्रोश का है कि एक तरफ वे सरकार को पूरा टैक्स देते हैं जबकि दूसरे तरफ से उन्हें न तो सुविधा मिलती है और न ही खाने लायक राशन!
प्रदेश का कोई ही ऐसा ज़िला होगा जहाँ सरकारी राशन की दुकानों में घटिया किसम का राशन नहीं मिलता होगा! आये दिन ये खबर सुनने को मिलती है कि सरकारी राशन कि दुकानों में या तो मिलावटी राशन मिला या फंगस युक्त राशन तथा कहीं डिपुओं में तो चूहों द्वारा राशन खाने के किस्से भी सुनने को मिले जो कि आम आदमी कि जान के से साथ खिलवाड़ तो है ही साथ ही साथ आम आदमी कि भावनाओं को भी ठेस पहुंचता है!
ऐसा हे मामला सोलन में भी सामने आया है! सोलन के सरकारी डिपुओं पर मिलने वाली राजमाह की दाल की खेप की गुणवत्ता पर सवाल उठने लगे हैं। आरोप है कि डिपुओं में फंगस लगी राजमाह की दाल के पैकेट राशनकार्ड उपभोक्ताओं को थमाए जा रहे हैं। प्रभावितों ने इसकी शिकायत जिला खाद्य आपूर्ति विभाग के नियंत्रक कार्यालय में भी की है। इस पर कार्रवाई करते हुए राजमाह की दाल के सैंपल भरे हैं।
शिकायतकर्ताओं का कहना है कि इस फंगस युक्त दाल के सेवन से लोग बीमार तक पड़ सकते हैं। सस्ते राशन की दुकानों से चने की दाल की सप्लाई वापस लेने की मांग की गई है। जिला सोलन में करीब पौने दो लाख परिवार सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत राशन प्राप्त करते हैं। इसमें इस माह तक पांच से अधिक सदस्यों वाले परिवारों को यह दाल की सप्लाई दी जा रही है। उधर शिकायत के बाद विभाग ने सोलन, कंडाघाट, कसौली, अर्की और नालागढ़ उपमंडलों में दालों की जांच के आदेश दे दिए हैं।
सोलन के नाराण सिंह ने कि उन्होंने डिपो से दो दिन पहले राशन खरीदा। इसमें राजमाह की दाल भी शामिल है। जब पैकेट को घर में खोला गया तो उसमें फंगस लगी थी। दाल से तेज बदबू आ रही थी। उन्होंने कहा कि इसकी शिकायत संबंधित विभाग से की गई है। इस दाल के सेवन से कोई भी बीमार पड़ सकता है।
सपरूण क्षेत्र के प्रमोद कुमार का कहना है कि वह डिपू से सस्ते राजमाह की दाल लेकर आए थे। लेकिन जब पैकेट खोला तो उसमें बदबू आने लगी। ध्यान से देखा तो दान के दाने खाए हुए थे और खराब थे। इस दाल के सेवन से कोई भी बीमार हो सकता है। ऐसी दालों की सप्लाई विभाग की कार्यशैली पर सवाल खड़े करती है।
25 हजार परिवार के लिए पहुंच चुकी दाल
जिला सोलन में पांच से अधिक सदस्य वाले राशनकार्ड धारकों को इस माह तक दालें मिलेंगी। अगले माह से सदस्यों की संख्या की शर्त नहीं रहेगी। वर्तमान में जिला भर में करीब 25 हजार किलो दाल 25 हजार परिवारों के लिए डिपुओं में सप्लाई की जाती है। उधर अधिकांश जगह से सूचना है कि दाल लोग घर ले जा चुके हैं। खोलने के बाद पैकेट डिपो संचालकों को सौंपकर शिकायत की जा रही है।
सैंपलिंग कर रहे नियंत्रक
खाद्य आपूर्ति नियंत्रक यादवेंद्र पाल ने कहा कि दाल में फंगस और बदबू की शिकायतें मिली रही हैं। इसके तहत डिपो धारकों को स्टाक चेक करने के निर्देश दिए हैं। कहा कि कुछ क्षेत्रों से सैंपलिंग भी की जा रही है। नालागढ़ और सोलन से सैंपल लिए गए हैं।
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हिमाचल की तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर लगे 76,000 से अधिक सेब के पौधे
शिमला- डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के विस्तार शिक्षा निदेशालय में पहाड़ी कृषि एवं ग्रामीण विकास एजेंसी(हार्प), शिमला द्वारा एक अनुभव-साझाकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया।
इस कार्यशाला में जिला किन्नौर के निचार विकास खंड के रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों के 34 किसानों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर जीएम नाबार्ड डॉ. सुधांशु मिश्रा मुख्य अतिथि रहे जबकि नौणी विवि के अनुसंधान निदेशक डॉ रविंदर शर्मा ने विशिष्ट अतिथि के रूप में शिरकत की।
संस्था के अध्यक्ष डॉ. आर एस रतन ने कहा कि यह कार्यक्रम एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना के तहत रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों में वर्ष 2014 से आयोजित किया जा रहा है। परियोजना को नाबार्ड द्वारा वित्त पोषित किया गया है और इसे हार्प द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
उन्होंने यह बताया कि यह एक बागवानी आधारित आजीविका कार्यक्रम है जिसे किसानों की भागीदारी से लागू किया गया है। इन तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर 76,000 से अधिक सेब के पौधे लगाए गए हैं और 607 परिवार लाभान्वित हुए हैं।
डॉ. सुधांशु मिश्रा ने यह भी कहा कि नाबार्ड हमेशा सामाजिक-आर्थिक उत्थान कार्यक्रमों के संचालन में आगे रहा है। उन्होंने इस कार्यशाला में भाग लेने वाले किसानों से अपने सहयोग से विभिन्न कार्यक्रमों को सफल बनाने का आग्रह किया।
अनुसंधान निदेशक डॉ. रविंदर शर्मा और विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. दिवेंद्र गुप्ता ने नाबार्ड और हार्प के प्रयासों की सराहना की और किसानों को आश्वासन दिया कि विश्वविद्यालय किसानों को तकनीकी रूप से समर्थन देने के लिए हमेशा तैयार है।
डॉ. नरेद्र कुमार ठाकुर ने कहा कि हार्प ने कृषक समुदाय के समन्वय से दुर्गम क्षेत्रों में कठिन परिस्थितियों में काम किया है। इस अवसर पर एक किसान-वैज्ञानिक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया जिसमें भाग लेने वाले किसानों के तकनीकी प्रश्नों को संबोधित किया गया।
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हिमाचल सरकार पुलिसकर्मियों का कर रही है शोषण
पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है,कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है,राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है,हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।
शिमला सीटू राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। कमेटी ने यह कहा है कि वह हिमाचल प्रदेश के पुलिसकर्मियों की मांगों का पूर्ण समर्थन करती है। आरोप लगाते हुए सीटू ने कहा है कि प्रदेश सरकार पुलिसकर्मियों का शोषण कर रही है।
राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार से यह मांग की है कि वर्ष 2013 के बाद नियुक्त पुलिसकर्मियों को पहले की भांति 5910 रुपये के बजाए 10300 रुपये संशोधित वेतन लागू किया जाए व उनकी अन्य सभी मांगों को बिना किसी विलंब के पूरा किया जाए।
सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में भी कर्मचारियों की प्रमुख मांगों को अनदेखा किया गया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में पुलिसकर्मियों की मांगों को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है।
सीटू कमेटी ने कहा कि सबसे मुश्किल डयूटी करने वाले व चौबीस घण्टे डयूटी में कार्यरत पुलिसकर्मियों को इस बैठक से मायूसी ही हाथ लगी है। इसी से आक्रोशित होकर पुलिसकर्मी मुख्यमंत्री आवास पहुंचे थे। उनके द्वारा पिछले कुछ दिनों से मैस के खाने के बॉयकॉट से उनकी पीड़ा का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि पुलिस कर्मियों के साथ ही सभी सरकारी कर्मचारी नवउदारवादी नीतियों की मार से अछूते नहीं है। कमेटी ने कहा कि पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है। कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।
कमेटी ने यह भी कहा है कि थानों में स्टेशनरी के लिए बेहद कम पैसा है व आईओ को केस की पूरी फ़ाइल का सैंकड़ों रुपये का खर्चा अपनी ही जेब से करना पड़ता है। थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है। मैस मनी केवल दो सौ दस रुपये महीना है जबकि मैस में पूरा महीना खाना खाने का खर्चा दो हज़ार रुपये से ज़्यादा आता है। यह प्रति डाइट केवल साढ़े तीन रुपये बनता है, जोकि पुलिस जवानों के साथ घोर मज़ाक है। यह स्थिति मिड डे मील के लिए आबंटित राशि से भी कम है।
उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के जमाने के बने बहुत सारे थानों की स्थिति खंडहर की तरह प्रतीत होती है जहां पर कार्यालयों को टाइलें लगाकर तो चमका दिया गया है परन्तु कस्टडी कक्षों,बाथरूमों,बैरकों,स्टोरों,मेस की स्थिति बहुत बुरी है। इन वजहों से भी पुलिस जवान भारी मानसिक तनाव में रहते हैं।
सीटू ने कहा कि पुलिस में स्टाफ कि बहुत कमी है या यूं कह लें कि बेहद कम है व कुल अनुमानित नियुक्तियों की तुलना में आधे जवान ही भर्ती किये गए हैं जबकि प्रदेश की जनसंख्या पहले की तुलना में काफी बढ़ चुकी है यहाँ तक पुलिस के पास रिलीवर भी नहीं है।
आरोप लगाते हुए कमेटी ने कहा कि प्रदेश की राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है। वहीं पुलिस कर्मी निरन्तर ओवरटाइम डयूटी करते हैं। इसकी एवज में उन्हें केवल एक महीना ज़्यादा वेतन दिया जाता है। इस से प्रत्येक पुलिसकर्मी को वर्तमान वेतन की तुलना में दस से बारह हज़ार रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है। उन्हें लगभग नब्बे साप्ताहिक अवकाश,सेकंड सैटरडे,राष्ट्रीय व त्योहार व अन्य छुट्टियों के मुकाबले में केवल पन्द्रह स्पेशल लीव दी जाती है।
सीटू कमेटी ने यह भी कहा कि वर्ष 2007 में हिमाचल प्रदेश में बने पुलिस एक्ट के पन्द्रह साल बीतने पर भी नियम नहीं बन पाए हैं। इस एक्ट के अनुसार पुलिसकर्मियों को सुविधा तो दी नहीं जाती है परन्तु कर्मियों को दंडित करने के लिए इसके प्रावधान बगैर नियमों के भी लागू किये जा रहे हैं जिसमें एक दिन डयूटी से अनुपस्थित रहने पर तीन दिन का वेतन काटना भी शामिल है। पुलिसकर्मियों की प्रोमोशन में भी कई विसंगतियां हैं व इसका टाइम पीरियड भी बहुत लंबा है। हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।
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किन्नौर में लापता पर्यटकों में से 2 और के शव बरामद, 2 की तालाश जारी,आभी तक कुल 7 शव बरामद
शिमला रिकोंगपिओ में 14 अक्तुबर को उत्तरकाशी के हर्षिल से छितकुल की ट्रैकिंग पर निकले 11 पर्यटकों में से लापता चार पर्वतारोहीयों में से दो पर्वतारोहियों के शवो को आई.टी.बी.पी व पुलिस दल द्वारा पिछले कल सांगला लाया गया था जहां सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र सांगला में दोनों शवों का पोस्टमार्टम किया गया।
यह जानकारी देते हुए उपायुक्त किन्नौर अपूर्व देवगन ने बताया कि इन दोनों की पहचान कर ली गई है जिनमे मे एक उतरकाशी व दूसरा पश्चिम बंगाल से सम्बंधित था।
उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन किन्नौर द्वारा आज एक शव वाहन द्वारा उतरकाशी को भेज दिया गया है जहाँ शव को जिला प्रशासन उतरकाशी को सौंपा जाएगा। जब कि दूसरा शव वाहन द्वारा शिमला भेजा गया है जिसे शिमला में मृतक के परिजनों को सौंपा जायेगा।
उपायुक्त अपूर्व देवगन ने बताया कि अभी भी लापता दो पर्यटकों की तलाश आई.टी.बी.पी के जवानों द्वारा जारी है। उल्लेखनीय है कि गत दिनों उतरकाशी से छितकुल के लिये 11 पर्वतारोही ट्रेकिंग पर निकले थे जो बर्फबारी के कारण लमखंगा दर्रे में फंस गये थे जिसकी सूचना मिलने पर जिला प्रशासन द्वारा सेना के हेलीकॉप्टर व आई.टी.बी.पी के जवानों की सहायता से राहत व बचाव कार्य आरम्भ किया था। सेना व आई.टी.बी.पी के जवानों ने 21 अक्टूबर को दो पर्यटकों को सुरक्षित ढूंढ निकाला था। इसी दौरान उन्हें अलग अलग स्थानों पर पाँच ट्रेकरों के शव ढूंढ निकलने में सफलता मिली थी। जबकि 4 पर्यटक लापता थे जिसमे से राहत व बचाव दल को 22 अक्तुबर को 2 शव ढूढ़ निकालने में सफलता मिली थी। अभी भी दो पर्यटक लापता हैं जिनकी राहत व बचाव दल द्वारा तलाश जारी है।
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