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हिमाचल हाईकोर्ट ने मनमानी फीस वसूलने वाले निजी शिक्षण संस्थानों पर कसा शिकंजा, जांच के आदेश
शिमला- हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने प्रदेश में स्थित सभी निजी शिक्षण संस्थानों में मूलभूत सुविधाओं व मान्यता संबंधी जांच हेतु एक कमेटी का गठन करने के आदेश पारित किए। कोर्ट ने मुख्य सचिव को आदेश दिए हैं कि एक कमेटी का गठन करें जोकि हर स्तर के निजी शिक्षण संस्थान जैसे स्कूल, कॉलेज, कोचिंग सैंटर व किसी भी नाम से चलने वाले एक्सटैंशन सैंटर व विश्वविद्यालय की जांच 3 माह के भीतर पूरी करे। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने अपने आदेशों में कहा है कि उक्त कमेटी एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार करे, जिसमें यह स्पष्ट किया गया हो कि क्या निजी संस्थान के पास पर्याप्त इन्फ्रास्ट्रक्चर, प्रशिक्षित स्टाफ, अध्यापक-अभिभावक संघ इत्यादि हैं।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट करने को कहा है कि क्या सभी निजी शिक्षण संस्थान सरकार द्वारा अधिकृत फीस से अधिक तो नहीं वसूल रहे। इस कमेटी का दायित्व यह भी होगा कि वह रिपोर्ट में स्पष्ट करे कि क्या कोई विश्वविद्यालय, डिम्ड विश्वविद्यालय या अन्य संस्थान ओपन डिस्टैंस लॄनग के माध्यम से कोई प्रोग्राम/कोर्स करवा रहा है जोकि यूजीसी के नियमों के विपरीत है। कोर्ट ने कमेटी को कहा है कि वह बताए कि क्या कोई गुमराह करने वाले विज्ञापन उक्त संस्थाओं द्वारा जारी किए गए हैं। कोर्ट ने इन आदेशों के अलावा प्रधान शिक्षा सचिव को आदेश दिए हैं कि वह निजी संस्थानों से जुड़ी कम से कम 11 जानकारियां अपनी वैबसाइट और संस्थान के मुख्य द्वार पर लगाएं।
इन जानकारियों में वह बताएं कि उनके संस्थान में फैकल्टी सदस्यों की योग्यता एवं काम का अनुभव, इन्फ्रास्ट्रक्चर का विवरण, मान्यता प्रमाण पत्र, इंटर्नशिप व प्लेसमैंट का विवरण, फीस का संपूर्ण विवरण, अन्य गैर-शैक्षणिक गतिविधियों की संपूर्ण जानकारी, अध्यापक-अभिभावक संघ की संपूर्ण जानकारी, परिवहन सुविधाओं की विस्तृत जानकारी, संस्थान की आयु व उपलब्धियां, छात्रवृत्तियों की जानकारी व पूर्व छात्रों के पते व फोन नंबर सहित सूची शामिल है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि उपरोक्त आदेशों की अवहेलना करने पर अवमानना का मामला चलाया जाएगा।
बिजनैस इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमैंट स्टडी की याचिकाओं को निपटाते हुए कोर्ट ने प्रदेश में धड़ल्ले से चल रहे निजी शिक्षण संस्थानों की मनमानी पर आपत्ति प्रकट करते हुए कहा है कि निजी संस्थान नाजायज ढंग से फीस वसूल कर अपने संसाधन बढ़ा रहे हैं। शिक्षा का स्तर गिराते हुए इसे व्यावसायिक बना दिया है। हरेक शिक्षण संस्थान की जवाबदेही है और कोई भी कानून से ऊपर नहीं है। कोर्ट ने याचिका को खारिज करते हुए प्रार्थी निजी शिक्षण संस्थान को 10,000 रुपए की कॉस्ट लगाई। मामले के अनुसार रैगुलेटरी कमीशन (विश्वविद्यालय) ने बिजनैस इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमैंट स्टडी को छात्राओं की फीस लौटाने के आदेश दिए थे जो संस्था से एम.बी.ए. व पी.जी.डी.एम. कोर्स कर रही थीं।
इन छात्रों ने आरोप लगाया था कि संस्थान द्वारा वसूली जा रही फीस हद से ज्यादा है और यह कोर्स मान्यता प्राप्त भी नहीं है। संस्थान के अनुसार वह सिक्किम (मणिपाल) यूनिवर्सिटी से मान्यता प्राप्त है इसलिए उसके कोर्स भी मान्यता प्राप्त ही हुए। कोर्ट ने रैगुलेटरी कमीशन के आदेशों को सही पाते हुए यह स्पष्ट किया कि उक्त संस्थान सिक्किम से बाहर संस्थान नहीं चला सकता क्योंकि यह सिक्किम सरकार के अधीन विश्वविद्यालय से मान्यता प्राप्त है।
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हिमाचल की तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर लगे 76,000 से अधिक सेब के पौधे
शिमला- डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के विस्तार शिक्षा निदेशालय में पहाड़ी कृषि एवं ग्रामीण विकास एजेंसी(हार्प), शिमला द्वारा एक अनुभव-साझाकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया।
इस कार्यशाला में जिला किन्नौर के निचार विकास खंड के रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों के 34 किसानों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर जीएम नाबार्ड डॉ. सुधांशु मिश्रा मुख्य अतिथि रहे जबकि नौणी विवि के अनुसंधान निदेशक डॉ रविंदर शर्मा ने विशिष्ट अतिथि के रूप में शिरकत की।
संस्था के अध्यक्ष डॉ. आर एस रतन ने कहा कि यह कार्यक्रम एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना के तहत रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों में वर्ष 2014 से आयोजित किया जा रहा है। परियोजना को नाबार्ड द्वारा वित्त पोषित किया गया है और इसे हार्प द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
उन्होंने यह बताया कि यह एक बागवानी आधारित आजीविका कार्यक्रम है जिसे किसानों की भागीदारी से लागू किया गया है। इन तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर 76,000 से अधिक सेब के पौधे लगाए गए हैं और 607 परिवार लाभान्वित हुए हैं।
डॉ. सुधांशु मिश्रा ने यह भी कहा कि नाबार्ड हमेशा सामाजिक-आर्थिक उत्थान कार्यक्रमों के संचालन में आगे रहा है। उन्होंने इस कार्यशाला में भाग लेने वाले किसानों से अपने सहयोग से विभिन्न कार्यक्रमों को सफल बनाने का आग्रह किया।
अनुसंधान निदेशक डॉ. रविंदर शर्मा और विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. दिवेंद्र गुप्ता ने नाबार्ड और हार्प के प्रयासों की सराहना की और किसानों को आश्वासन दिया कि विश्वविद्यालय किसानों को तकनीकी रूप से समर्थन देने के लिए हमेशा तैयार है।
डॉ. नरेद्र कुमार ठाकुर ने कहा कि हार्प ने कृषक समुदाय के समन्वय से दुर्गम क्षेत्रों में कठिन परिस्थितियों में काम किया है। इस अवसर पर एक किसान-वैज्ञानिक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया जिसमें भाग लेने वाले किसानों के तकनीकी प्रश्नों को संबोधित किया गया।
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हिमाचल सरकार पुलिसकर्मियों का कर रही है शोषण
पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है,कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है,राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है,हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।
शिमला सीटू राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। कमेटी ने यह कहा है कि वह हिमाचल प्रदेश के पुलिसकर्मियों की मांगों का पूर्ण समर्थन करती है। आरोप लगाते हुए सीटू ने कहा है कि प्रदेश सरकार पुलिसकर्मियों का शोषण कर रही है।
राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार से यह मांग की है कि वर्ष 2013 के बाद नियुक्त पुलिसकर्मियों को पहले की भांति 5910 रुपये के बजाए 10300 रुपये संशोधित वेतन लागू किया जाए व उनकी अन्य सभी मांगों को बिना किसी विलंब के पूरा किया जाए।
सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में भी कर्मचारियों की प्रमुख मांगों को अनदेखा किया गया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में पुलिसकर्मियों की मांगों को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है।
सीटू कमेटी ने कहा कि सबसे मुश्किल डयूटी करने वाले व चौबीस घण्टे डयूटी में कार्यरत पुलिसकर्मियों को इस बैठक से मायूसी ही हाथ लगी है। इसी से आक्रोशित होकर पुलिसकर्मी मुख्यमंत्री आवास पहुंचे थे। उनके द्वारा पिछले कुछ दिनों से मैस के खाने के बॉयकॉट से उनकी पीड़ा का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि पुलिस कर्मियों के साथ ही सभी सरकारी कर्मचारी नवउदारवादी नीतियों की मार से अछूते नहीं है। कमेटी ने कहा कि पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है। कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।
कमेटी ने यह भी कहा है कि थानों में स्टेशनरी के लिए बेहद कम पैसा है व आईओ को केस की पूरी फ़ाइल का सैंकड़ों रुपये का खर्चा अपनी ही जेब से करना पड़ता है। थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है। मैस मनी केवल दो सौ दस रुपये महीना है जबकि मैस में पूरा महीना खाना खाने का खर्चा दो हज़ार रुपये से ज़्यादा आता है। यह प्रति डाइट केवल साढ़े तीन रुपये बनता है, जोकि पुलिस जवानों के साथ घोर मज़ाक है। यह स्थिति मिड डे मील के लिए आबंटित राशि से भी कम है।
उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के जमाने के बने बहुत सारे थानों की स्थिति खंडहर की तरह प्रतीत होती है जहां पर कार्यालयों को टाइलें लगाकर तो चमका दिया गया है परन्तु कस्टडी कक्षों,बाथरूमों,बैरकों,स्टोरों,मेस की स्थिति बहुत बुरी है। इन वजहों से भी पुलिस जवान भारी मानसिक तनाव में रहते हैं।
सीटू ने कहा कि पुलिस में स्टाफ कि बहुत कमी है या यूं कह लें कि बेहद कम है व कुल अनुमानित नियुक्तियों की तुलना में आधे जवान ही भर्ती किये गए हैं जबकि प्रदेश की जनसंख्या पहले की तुलना में काफी बढ़ चुकी है यहाँ तक पुलिस के पास रिलीवर भी नहीं है।
आरोप लगाते हुए कमेटी ने कहा कि प्रदेश की राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है। वहीं पुलिस कर्मी निरन्तर ओवरटाइम डयूटी करते हैं। इसकी एवज में उन्हें केवल एक महीना ज़्यादा वेतन दिया जाता है। इस से प्रत्येक पुलिसकर्मी को वर्तमान वेतन की तुलना में दस से बारह हज़ार रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है। उन्हें लगभग नब्बे साप्ताहिक अवकाश,सेकंड सैटरडे,राष्ट्रीय व त्योहार व अन्य छुट्टियों के मुकाबले में केवल पन्द्रह स्पेशल लीव दी जाती है।
सीटू कमेटी ने यह भी कहा कि वर्ष 2007 में हिमाचल प्रदेश में बने पुलिस एक्ट के पन्द्रह साल बीतने पर भी नियम नहीं बन पाए हैं। इस एक्ट के अनुसार पुलिसकर्मियों को सुविधा तो दी नहीं जाती है परन्तु कर्मियों को दंडित करने के लिए इसके प्रावधान बगैर नियमों के भी लागू किये जा रहे हैं जिसमें एक दिन डयूटी से अनुपस्थित रहने पर तीन दिन का वेतन काटना भी शामिल है। पुलिसकर्मियों की प्रोमोशन में भी कई विसंगतियां हैं व इसका टाइम पीरियड भी बहुत लंबा है। हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।
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किन्नौर में लापता पर्यटकों में से 2 और के शव बरामद, 2 की तालाश जारी,आभी तक कुल 7 शव बरामद
शिमला रिकोंगपिओ में 14 अक्तुबर को उत्तरकाशी के हर्षिल से छितकुल की ट्रैकिंग पर निकले 11 पर्यटकों में से लापता चार पर्वतारोहीयों में से दो पर्वतारोहियों के शवो को आई.टी.बी.पी व पुलिस दल द्वारा पिछले कल सांगला लाया गया था जहां सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र सांगला में दोनों शवों का पोस्टमार्टम किया गया।
यह जानकारी देते हुए उपायुक्त किन्नौर अपूर्व देवगन ने बताया कि इन दोनों की पहचान कर ली गई है जिनमे मे एक उतरकाशी व दूसरा पश्चिम बंगाल से सम्बंधित था।
उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन किन्नौर द्वारा आज एक शव वाहन द्वारा उतरकाशी को भेज दिया गया है जहाँ शव को जिला प्रशासन उतरकाशी को सौंपा जाएगा। जब कि दूसरा शव वाहन द्वारा शिमला भेजा गया है जिसे शिमला में मृतक के परिजनों को सौंपा जायेगा।
उपायुक्त अपूर्व देवगन ने बताया कि अभी भी लापता दो पर्यटकों की तलाश आई.टी.बी.पी के जवानों द्वारा जारी है। उल्लेखनीय है कि गत दिनों उतरकाशी से छितकुल के लिये 11 पर्वतारोही ट्रेकिंग पर निकले थे जो बर्फबारी के कारण लमखंगा दर्रे में फंस गये थे जिसकी सूचना मिलने पर जिला प्रशासन द्वारा सेना के हेलीकॉप्टर व आई.टी.बी.पी के जवानों की सहायता से राहत व बचाव कार्य आरम्भ किया था। सेना व आई.टी.बी.पी के जवानों ने 21 अक्टूबर को दो पर्यटकों को सुरक्षित ढूंढ निकाला था। इसी दौरान उन्हें अलग अलग स्थानों पर पाँच ट्रेकरों के शव ढूंढ निकलने में सफलता मिली थी। जबकि 4 पर्यटक लापता थे जिसमे से राहत व बचाव दल को 22 अक्तुबर को 2 शव ढूढ़ निकालने में सफलता मिली थी। अभी भी दो पर्यटक लापता हैं जिनकी राहत व बचाव दल द्वारा तलाश जारी है।
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