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इस वर्ष पौंग डैम में बढ़ी प्रवासी पक्षियों की संख्या , मंडी जिला में दिखी गिरावट

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कांगड़ा: प्रदेश सरकार द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार इस साल पौंग डैम में प्रवासी पक्षियों की संख्या में वृद्धि हुई है। दिसंबर 2024 तक 92,885 प्रवासी पक्षियों की संख्या दर्ज की गई है। सीजन के अंत तक इस  संख्या के एक लाख पार कर जाने की उम्मीद है। जबकि पिछले साल अक्तूबर से जनवरी तक पूरे सीजन के दौरान 85,000 पक्षी डैम में आए थे। सरकार के अनुसार पौंग डैम में हर साल औसतन  100 प्रजातियों के प्रवासी पक्षी पहुंचते हैं। इस सीजन में प्रवासी पक्षियों की 85 प्रजातियां देखी जा चुकी हैं।

वहीं अगर बात करें मंडी जिला की तो एक मीडिया रिपोर्ट  के अनुसार जिला की नदियों , झीलों और कृत्रिम व प्राकृतिक जलाशयों में गत वर्ष की तरह प्रवासी पक्षियों की संख्या कम देखने को मिली है। वन विभाग इन पक्षियों की कोई अधिकारिक गणना तो नहीं करता लेकिन अनुमान के आधार पर ही इनकी संख्या तय की जाती है।

यह प्रवासी पक्षी हर वर्ष दिसंबर महीने में अपने देशों में पारा माइनस में चले जाने के कारण तीन महीनों के लिए यहां के जलाशयों में रुकते हैं। यह प्रवास दिसंबर माह से शुरू होकर फरवरी माह तक रहता है।

आए हुए प्रवासी पक्षियों में कॉमन कूट, टफ्ड डक, मल्लार्ड, कॉमन पोचार्ड, रेड क्रेस्टेड पोचार्ड, लिटिल ग्रेब, कार्माेरेंट आदि प्रजातियों के पक्षी शामिल हैं। आजकल इन प्रवासी पक्षियों ने जिला की ब्यास नदी, पंडोह डैम, लारजी डैम, रिवालसर झील और सुंदरनगर झील में अपना डेरा जमाया हुआ है।

Tuffed-Duck- Himachal

Tuffed Duck – Photo : Jon Pauling/ Pixabay

Cormorants In Himachal – Photo : K Vlogger / Pixabay

Common Coots Birds in Himachal

Common Coots Birds in Himachal – Photo : Alexas_Fotos / Pixabay

Mallard-Duck – Photo : Pixabay

Common pochard – Photo : DavidReed / Pixabay

Little Grebe – Photo : Naturepic / Pixabay

मुख्य अरण्यपाल वन वृत मंडी अजीत ठाकुर ने बताया कि फिल्ड स्टाफ को इन पक्षियों पर निगरानी रखने के निर्देश दिए गए हैं ताकि इनके साथ किसी भी प्रकार की कोई छेड़छाड़ न हो सके। उन्होंने बताया कि इस वर्ष भी गत वर्ष के मुकाबले पक्षियों की संख्या बराबर ही है।

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मंडी जिला में एक निजी गौशाला में गाय की संदिग्ध मौत, अमानवीय कृत्य का आरोप

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मंडी: सुंदरनगर उपमंडल के तहत आने वाली भौर पंचायत में 3 फरवरी को  निजी गौशाला में एक गाय की संदिग्ध हालत में मृत्यु का मामला सामने आया है। आरोप है कि गाय के साथ पहले कुकर्म जैसे अमानवीय कृत्य को अंजाम दिया गया और उसके बाद गाय की हत्या कर दी गई। पूरे इलाके के लोग इस इस जघन्य अपराध से हैरान हैं।

जानकारी के अनुसार हलेल गांव निवासी रामकृष्ण की गौशाला में दिल को झकझोर करने वाली इस घटना को अंजाम दिया गया है। गाय के पिछले पैर रस्सी से बंधे हुए थे। गौशाला में गाय के साथ उसका छोटा बछड़ा भी बंधा था, जिसे किसी तरह का कोई नुक्सान नहीं पहुंचाया गया है।  रामकृष्ण के बेटे तरुण ने सुबह गौशाला का दरवाजा खोला तो उसने गाय को फर्श पर पड़े देखा और गाय के मुंह से झाग निकली हुई थी। गाय का गला किसी ने मजबूती से लकड़ी के पिलर के साथ रस्सी मजबूती से बांध कर घोंट दिया था। रामकृष्ण ने गाय के साथ अमानवीय कृत्य के आरोप लगाते हुए आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग उठाई है।

मंडी जिला के धनोटू थाना के तहत यह मामला सामने आया है। घटना की सूचना मिलने के बाद थाना की टीम ने मामला दर्ज कर आगामी कार्रवाई शुरू कर दी है। फोरेंसिक टीम ने घटना स्थल पर कईं साक्ष्य जुटाएं हैं। वहीं पशुपालन विभाग द्नारा गाय का पोस्टमार्टम करने के उपरांत वेटनरी डॉक्टरों ने आगामी परीक्षण के लिए सैंपल पुलिस टीम को सौंप दिए हैं। BNS की धारा 325 और पशु क्रूरता अधिनियम 1960 के तहत यह मामला दर्ज किया गया है।

पुलिस अधीक्षक मंडी साक्षी वर्मा ने मामले में जल्द कार्रवाई का भरोसा दिया है। उनका कहना है “मामले की जांच जारी है। जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।”

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बेटे ने दवा बताकर मां को लगा दी चिट्टे की लत, नशे के लिए बेच दिए गहने, बर्तन और पेड़

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मंडी: हिमाचल प्रदेश में चिट्टे का जाल इस हद तक फैल चुका है कि कईं परिवार इसकी चपेट में आकर तबाह हो चुके है। चिट्टे की लत के कारण युवाओं के मां बाप से लड़ने झगड़ने ,चोरी-चकारी और तस्करी करने की खबरें आम हो चुकी हैं। पर अब एक चौंकानें वाला मामला सामने आया है जहां बेटे ने अपनी लत के चलते मां को ही चिट्टे की लत लगा दी।

सलापड़ क्षेत्र में एक ऐसा ही हैरान कर देने वाला मामला सामने आया है जहां एक युवक ने घुटनों के दर्द की दवाई बताकर अपनी मां को चिट्टा देना शुरु किया। जब महिला को दर्द से राहत मिली तो उसने फिर से दवा की मांग की। इसी तरह बेटे ने अपनी मां को चिट्टे का आदि बना दिया। इसके बाद मां-बेटे ने नशे के लिए बार-बार रिश्तेदारों से उधार लेना शुरू कर दिया। हालात इतने बिगड़ गए है कि परिवार ने नशे के लिए गहने, बर्तन, यहां तक की पेड़ तक बेच दिए।

रिश्तेदारों ने भी एक वक्त के बाद उधार देने से मना कर दिया। रिश्तेदारों को मां-बेटे के व्यवहार पर शक होने लगा। रिश्तेदारों ने परिवार की शादीशुदा दो बेटियों को मां-बेटे के बारे में अवगत करवाया। अब परिवार की दोनों बेटियां अपनी मां और भाई को नशे की लत से बाहर निकालने की कोशिश में जुटी है।

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घोटाला: चंबा के पहाड़ों को बंजर कर रही कशमल की अवैध तस्करी, वन विभाग पर लगा भ्रष्टाचार का गंभीर आरोप

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चंबा: पहले पेयजल घोटाला, फिर रेत-बजरी ढुलाई का घोटाला और अब चंबा जिला में वन विभाग पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं। पिछले कुछ समय से चंबा जिला में कशमल की जड़ों को अवैध रुप से उखाड़ने और उनकी तस्करी का मामला काफी चर्चा में है।

इसी कड़ी में चंबा के मंसरुड वन परिक्षेत्र में कशमल तस्करी का मामला सोशल मीडिया और खबरों में छाया हुआ है। मंसरुड वन परिक्षेत्र के निवासी उनके इलाकों में हो रही कशमल की अवैध तस्करी के खिलाफ खुल कर आवाज़ उठा रहे हैं और प्रशासन की कार्रवाई पर भी सवाल कर रहे हैं। लोगों में कशमल की अवैध तस्करी को लेकर काफी रोष देखने को मिल रहा है।

मसरुंड वन परिक्षेत्र की जनता का वन विभाग पर आरोप

लोगों का आरोप है कि वन माफिया निजी भूमि की आड़ में वन भूमि से भारी मात्रा में कशमल उखाड़ रहा है। यह भी आरोप है कि वन माफिया बड़े पैमाने पर रात के अंधेरे में कशमल की तस्करी कर रहा है जिस पर विभाग सही से कार्रवाई नहीं कर रहा। यह बड़ी हैरानी की बात है सरकारी जमीन से इतने बड़े पैमाने पर कशमल उखाड़ने का काम हो रहा था और वन विभाग को इसकी कोई खबर ही नहीं थी। उनका यह भी कहना है कि यह काम काफी समय से चला आ रहा है।

लोगों का यह भी आरोप है कि वन विभाग कहीं न कहीं इस सब में शामिल है। हांलाकि यह पहली बार नहीं है जब वन विभाग पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। वन रक्षक होशियार सिंह मामले को हिमाचल की जनता अभी भी भूली नहीं है।

कशमल क्या है ?

इससे पहले की हम इस आरोपित घोटाले पर और बात करें आइए जान लेते हैं कि कशमल होता क्या है और इसकी तस्करी क्यों की जाती है।

कशमल एक झाड़ीदार औषधीय पौधा (झाड़ी) है जो हिमालयी क्षेत्र में पाया जाता है। इसकी जड़ों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाईयां बनाने में किया जाता है। पीलिया,  मधुमेह और आंखों के संक्रमण के इलाज के लिए कशमल की जड़ों से दवाइयां बनाई जाती है। कैंसर के इलाज के लिए भी इस पर शोध किया जा रहा है।

कशमल सबसे ज्यादा वन भूमि पर पाया जाता है। कशमल निकालने के लिए कुछ कानून बनाए गए है। सरकारी ज़मीन से कशमल उखाड़ना अपराध है। सिर्फ निजी भूमि से ही कशमल उखाड़ने की अनुमति है। लेकिन निजी भूमि से भी कुल उपज का केवल 40% कशमल उखाड़ने की अनुमति है।

अगर आप अपनी निजी भूमि से कशमल उखाड़ना चाहते है तो इसके लिए आपको पहले वन विभाग से अनुमति लेनी होगी। इसके बाद वन विभाग जांच करता है कि आपकी जमीन पर कितनी कशमल है। अनुमति मिलने के बाद ही कशमल उखाड़ सकते है और बेच सकते हैं। विभाग इस सब का रिकॉर्ड रखता है। ठेकेदार किसानों से कशमल खरीदते है और दूसरे राज्यों में बेचते हैं।

निजी भूमि की आड़ में वन भूमि से उखाड़ी जा रही कशमल 

मंसरुड वन परिक्षेत्र में लोगों का आरोप है कि वन भूमि से कशमल उखाड़ कर बेचने का काम अंधाधुंध तरीके किया जा रहा है पर मामले की जांच सही तरीके से नहीं की जा रही।

हिमाचल वॉचर ने  इस मामले में जब स्थानीय लोगों से बातचीत की तो स्थानीय निवासी कपिल शर्मा ने बताया कि उन्होनें कईं दफा वन विभाग, आरो, और डीएफओ को इस अवैध खनन की शिकायतें भी भेजी, लेकिन इस मामले पर कोई खास कार्रवाई नहीं की गई। उन्होंने कहा कि लगातार सोशल मीडिया पर सबूत पेश करने के बावजूद कोई ढंग की कार्यवाही नहीं हुई।

वहीं 8 जनवरी को विजिलेंस विभाग की टीम ने एक गुप्त शिकायत मिलने पर मसरूण्ड रेंज का दौरा किया, जहां से टनों के हिसाब से कश्मल के ढे़र जब्त किए गए। इस दौरान कुछ मजदूर कशमल के टुकड़ों को गाड़ियों में भरते हुए भी पाए गए। कामगारों से पूछताछ भी की गई लेकिन टीम को मौके पर न तो कोई ठेकेदार मौजूद दिखा और न ही कशमल की खरीद-फराेख्त का कोई रजिस्टरी रिकॉर्ड मिला।

लगातार शिकायतों के बाद 10 जनवरी को चंबा वन मंडल अधिकारी कृतज्ञ कुमार ज़मीनी स्तर पर अपनी टीम के साथ जांच के लिए पहुंचें। उनका कहना था “वन भूमि पर किसी भी तरह का अवैध कशमल नहीं मिला है। वन विभाग हर गतिविधि पर नजर रखे हुए है, जगह-जगह नाके भी लगाए गए हैं। विभाग ने 4 जनवरी से कशमल के दोहन पर रोक लगा दी है। अगर कोई व्यक्ति कशमल को उखाड़ता या ढुलान करता पाया गया तो उस पर कार्रवाई होगी।”

इस पर कपिल शर्मा ने पत्रकार वार्ता में कहा कि “मसरूण्ड रेंज में टनों के हिसाब से वन भूमि से कश्मल का अवैध रूप से दोहन हुआ है लेकिन विभाग की टीम ने सिर्फ सड़क किनारे जाकर ही चेकिंग की, और वापिस आ गई।”

मसंरुड के स्थानीय निवासियों का कहना है कि कशमल के दोहन पर रोक लगने के बावजूद भी काम जारी रहा। लोग वन विभाग की कार्रवाई से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं है। लोगों ने खुद वन भूमि पर जाकर वहां से उखाड़ी गई कशमल की जड़ों की विडियोज सोशल मीडिया पर साझा भी किए।

यही हाल हिमगिरि रेंज का भी है। इससे पहले हिमगिरी रेंज में भी विजिलैंस विभाग ने 8 कविंटल अवैध कशमल जब्त की थी जबकि वहां भी कशमल उखाड़ने पर रोक लगाई जा चुकी थी। लेकिन उसके बाद भी सड़कों के किनारे जगह–जगह पर कशमल के ढेर देखने को मिले रहे थे।

वन विभाग की टीम ने मंसरुड का फिर से दौरा किया। कशमल की अवैध डंपिग के साथ कशमल से भरी गाड़ियां भी देखने को मिली। रिकॉर्ड चेक किए गए तो उनमें भी कुछ खास जानकारी नहीं मिली कि किसके नाम पर यह कशमल उखाड़ी गई है।

ग्रामीणों का आरोप है कि जब उन्होने एकजुट होकर खुद वन विभाग की टीम को वन भूमि से उखाड़ी गई कशमल के सबूत दिखाए तो उस वक्त टीम के पास बोलने के लिए कुछ नहीं था।

वहीं सोशल मीडिया पर गांव की एक महिला विडियो में वन विभाग के अधिकारियों के सामने यह बताती हुई नजर आई कि किस तरह अभी भी वन माफिया अवैध रुप से वन भूमि से कशमल चुरा कर ले जा रहे है। महिला ने साफ-साफ आरोप लगाते हुए कहा कि वन गार्ड भी अवैध कार्यों में शामिल है।

ग्रामीणों का कहना है कि तस्करों ने वन भूमि से करीब 400-500 साल पुरानी कशमल की जड़ों को भी उखाड़ लिया है। वन भूमि पूरी तरह से तहस-नहस कर दी गई है। फिर भी वन विभाग ने इस पर समय रहते कोई कार्रवाई नहीं की।

इसी बीच 24 जनवरी को हुई बैठक में मंत्रिमंडल ने कशमल के निष्कर्षण पर लगी रोक और कशमल की परिवहन की अवधि को 15 फरवरी तक बढ़ा दिया है। इस फैसले को ग्रामीणों ने उचित नहीं बताया है। उनका कहना है कि, इस दौरान और भारी मात्रा में कशमल के अवैध दोहन की आशंका है और कशमल के जितने भी ढेर लगे है उनकी पूरी जांच के बाद ही उनके ढुलान की अनुमति मिलनी चाहिए। लोगों का कहना है कि निजी भूमि पर उतना कशमल है ही नहीं जितना गाड़ियों में भरा जा रहा है और डंपिग में देखा जा रहा है।

लोग पूछ रहे हैं कि आखिर क्यों वन विभाग इतने नाके लगाने और पैट्रोलिंग के बाद भी मंसरुड में हो रहे कशमल के अवैध कटान को नहीं रोक पा रहा है। लोगों का यह भी आरोप है कि वन विभाग सिर्फ नाम की कार्रवाई करता है। इतनी शिकायतें भेजने के बाद भी सही से एक्शन क्यूं नहीं लिया गया? जितनी भी डंपिंग पड़ी है उनकी जांच क्यों नहीं की जा रही?

वन माफिया तीसा से हिमगिरी ब्लॉक में पहुंचा रहा  कशमल

हाल ही में एक और खबर देखने को मिलती है जिससे एक बात तो सपष्ट है कि चंबा में वन माफिया बेखौफ और सक्रिय है। रात के अंधेरे में कशमल का वन भूमि से दोहन किया जा रहा है। 27 जनवरी को तीसा पुलिस ने रात को कशमल की गाड़ी के साथ पाँच लोगों को गिरफतार किया जो कशमल को अवैध रुप से ले जा रहे थे। यह तस्कर तीसा से हिमगीरी ब्लॉक में कशमल पहुंचा रहे थे।

इसी तरह सलूनी में कशमल से भरी एक गाड़ी को जब वन विभाग की टीम ने रुकने का ईशारा किया तो गाड़ी चैक पोस्ट का बैरियर तोड़ कर ही निकल गई। हांलाकि विभाग की टीम ने करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर गाड़ी को कब्जे में ले लिया था।

मसरुंड वन परिक्षेत्र की जनता ने बुलाई चिंतन बैठक 

मसंरुड वन परिक्षेत्र की जनता कशमल की अवैध तस्करी से परेशान हो चुकी है। इस विषय पर ग्रामीणों ने एक चिंतन बैठक भी की और लोगों को जागरुक भी किया कि उनके क्षेत्र में इन दिनों कशमल उखाड़ने के नाम पर अवैध कार्य चल रहा है। लोग सिर्फ कशमल के अवैध दोहन से ही परेशान नहीं है। लोगों का कहना है कि ठेकेदारों द्वारा उन्हें ठगा जा रहा है। ठेकेदार लोगों से 10-20 रुपए प्रति किलो के भाव से में कशमल खरीदते है और खुद वही कशमल बाहर के राज्यों में 500-600 रुपए किलो में बेचते है।

कशमल के अवैध कटान पर्यावरण के लिए बना बड़ा खतरा

कशमल का अवैध कटान पर्यावरण के लिए भी एक बहुत बड़ा खतरा है। जड़ेरा पंचायत के पर्यावरणविद रत्नचंद का कहना है कि कशमल एक समृद्ध झाड़ी है, जिसका पर्यावरण के लिए एक अहम योगदान भी है। कशमल का मूल्यांकन कुछ रुपयों से नहीं किया जा सकता। आने वाले से समय में कशमल के दोहन का बुरा प्रभाव प्रकृति पर देखने को मिलेगा। कशमल की जड़े काफी गहराई मे ज़मीन के अंदर तक समाई होती है। यह जड़ें मिट्टी को जकड़ कर रखती है। इस पर लगे फल जंगली जानवरों और पक्षियों का भोजन है, जिसके कारण किसानों की फसलें जानवरों से भी बची रहती है। कशमल के अवैध दोहन से भूमि कटाव जैसी समस्यांए देखने को मिलेगी और यह पौधा खत्म होने की कगार तक पहुंच सकता है। उनका कहना है कि यह अवैध तस्करी का कार्य जल्द से जल्द बंद होना चाहिए।

वहीं एक दैनिक अंग्रेजी अखबार के अनुसार  चंबा के वन संरक्षक अभिलाष दामोदरन ने कश्मल के बड़े पैमाने पर निष्कर्षण से इनकार किया है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग जो निजी संपत्ति से कश्मल निष्कर्षण के लिए परमिट प्राप्त करते हैं, वे सरकारी भूमि में अतिक्रमण करते हैं और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की गई है। इस खबर के अनुसार एक क्विंटल कश्मल की जड़ों से एक किलोग्राम पाउडर बनता है, जिसे बाजार में एक लाख रुपये प्रति किलोग्राम से अधिक की कीमत पर बेचा जाता है और इसकी कीमत काफी हद तक उत्पाद की गुणवत्ता और मांग पर निर्भर करती है।

आवाज़ उठाने पर ग्रामीणों को मिल रही धमकियां

स्थानाीय लोगों ने सरकार से इस मामले पर गंभीरता दिखाने की मांग की है। उनका कहना है कि इस तरह कशमल खत्म होने की कगार पर पहुंच जाएगी। कशमल ग्रामीणों के लिए एक रोजगार का साधन है और उनके पालतू जानवरों के लिए चारे का काम भी करता है।

ग्रामीणों ने हिमाचल वॉचर से बातचीत के दौरान बताया कि उन्हें कशमल की अवैध तस्करी के खिलाफ आवाज़ उठाने पर अब धमकियां भी दी जा रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ स्थानीय लोग और ठेकेदार जो अवैध कार्य में लिप्त है वे उनकी आवाज़ बंद करने के लिए पुलिस में झूठी शिकायतें दर्ज करवा रहे हैं।

ग्रामीणों नें भी इस संबध में उन लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई है। ग्रामीणों के अनुसार एसपी अभिषेक यादव ने उन्हें आशवासन दिया है कि वे इस मामले की पूरी छानबीन करेंगे। वहीं ग्रामीणों का कहना है कि वे सब पुलिस के साथ मिलकर पूरे मामले की छानबीन में मदद करने के लिए तैयार हैं और कशमल के वन भूमि से हो रहे अवैध दोहन के सारे साक्ष्य उनके सामने पेश करेंगे।

ग्रामीण वन विभाग की कार्रवाई से संतुष्ट नहीं है। उनका आरोप है कि वन विभाग आंखे मूंद कर कशमल का वन भूमि से दोहन देखता रहा। उनका यह भी आरोप है कि सरकार इस मामले में वन विभाग को जांच का जिम्मा तो बिल्कुल भी न सौंपे क्योकि उन्हें वन विभाग से कोई निष्पक्ष कार्रवाई की उम्मीद नहीं है।

उनकी मांग है कि अभी जितने भी कशमल के ढेर लगे है उनकी जांच किए बिना किसी भी गाड़ी को भरने की अनुमति न दी जाए। उनका यह भी कहना है कि अगर इस मामले में अब कोई निष्पक्ष जांच नहीं करवाई गई तो मसरुंड वन परिक्षेत्र की सभी पंचायतें धरना प्रदर्शन करने के लिए तैयार हैं। उनका कहना है कि जब तक इस मामले में सही से एक्शन नहीं लिया जाता तब तक वे चुप नहीं बैठेंगे।

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