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धर्मशाला ने जीती स्मार्ट सिटी की जंग , शिमला से 15 अंक आगे निकला

शिमला- हिमाचल प्रदेश का एकमात्र स्मार्ट शहर धर्मशाला ही बनेगा। हाईकोर्ट की ओर से धर्मशाला शहर को स्मार्ट सिटी चुनने की अधिसूचना रद्द करने के बाद राज्य सचिवालय में एक बार फिर स्मार्ट सिटी हाईपावर कमेटी की बैठक हुई। इसमें नए सिरे से शिमला और धर्मशाला शहर का चयन करने के लिए आंकड़ों का आकलन किया गया।
केंद्र की गाइडलाइन की अनुसार कमेटी ने दूसरी बार भी धर्मशाला को शिमला से ज्यादा नंबर दिए हैं। धर्मशाला को सबसे ज्यादा 90.63 जबकि शिमला 77.5 नंबर मिले हैं। अतिरिक्त मुख्य सचिव मनीषा नंदा की अध्यक्षता में हुई बैठक में नगर निगम शिमला और धर्मशाला के अलावा 14 शहरों के अधिकारियों ने भी भाग लिया।
इस बैठक के बाद अतिरिक्त मुख्य सचिव शहरी ने धर्मशाला स्मार्ट सिटी के चयन की रिपोर्ट मुख्य सचिव पी मित्रा को सौंप दी है। बैठक में शहरी विकास विभाग के निदेशक कैप्टन जेएम पठानिया, नगर निगम शिमला और धर्मशाला समेत अन्य अधिकारी मौजूद रहे। विभाग के निदेशक पठानिया ने बताया कि दोबारा आकलन में भी धर्मशाला को सर्वाधिक नंबर मिले हैं।
इस बार 100 नहीं 80 नंबरों में हुआ आकलन
स्मार्ट सिटी के चयन को लेकर केंद्र सरकार की ओर से तय नियम के अनुसार जिस शहर में जवाहर लाल नेहरू अर्बन रिन्यूअल मिशन (जेएनएनयूआरएम) के प्रोजेक्ट चल रहे हैं वहां 100 से नंबरिंग जबकि जिन शहरों में इस योजना के तहत प्रोजेक्ट के लिए पैसा जारी नहीं हुआ है वहां 80 में से मार्किंग की गई। शिमला शहर में जेएनएनयूआरएम के प्रोजेक्ट चल रहे हैं, ऐसे में यहां 100 से मार्किंग हुई है। अन्य शहरों में जेएनएनयूआरएम प्रोजेक्ट न होने से 80 में से मार्किगिं की गई। ऐसे में धर्मशाला को सबसे ज्यादा नंबर मिले हैं।
अब धर्मशाला नगर निगम ने जताई आपत्ति- बैठक में धर्मशाला नगर निगम ने शिमला एमसी की कार्यप्रणाली पर उंगलियां उठाई है। सूत्रों के अनुसार बैठक में धर्मशाला नगर निगम के अधिकारी ने बताया कि फार्म में 5 और 6 नंबर कॉलम में स्मार्ट सिटी का प्रस्ताव हाउस से पास किया जाना था, लेकिन नगर निगम शिमला ने ऐसा नहीं किया। दूसरा विकास कार्यों के बारे में लोगों की भी राय भी ली जानी चाहिए थी, लेकिन नहीं किया गया। ऐसे में शिमला नगर निगम को स्मार्ट सिटी के लिए शामिल ही नहीं किया जाना चाहिए था।
ढंग से नहीं सुना पक्ष, कोर्ट जाएंगे
स्मार्ट सिटी को लेकर पहले की गई नंबरिंग में शिमला और पिछड़ गया है। शिमला को पहले 85 जबकि धर्मशाला को 87.5 नंबर मिले थे। पहले शिमला धर्मशाला से ढाई नंबर से पीछे था अब शिमला साढ़े सात नंबर पीछे हो गया है। शिमला के महापौर संजय चौहान ने कहा कि बैठक में उनका पक्ष ढंग से सुना नहीं गया।
बैठक में हर प्वाइंट पर चर्चा के दौरान निगम ने अपना पक्ष रखा है। बाकायदा डाक्यूमेंट देकर इसे नोट कराया गया है। अभी तक स्मार्ट सिटी की प्रोसीडिंग्स नहीं आई है। अगर अफसरों ने धर्मशाला को स्मार्ट सिटी के लिए चयनित किया है तो वह किस आधार पर किया होगा, यह देखना होगा। गलत मार्किगिं के लिए नगर निगम के पास हाईकोर्ट के दरवाजे खुले हैं।स्मार्ट सिटी को लेकर पहले की गई नंबरिंग में शिमला और पिछड़ गया है। शिमला को पहले 85 जबकि धर्मशाला को 87.5 नंबर मिले थे। पहले शिमला धर्मशाला से ढाई नंबर से पीछे था अब शिमला साढ़े सात नंबर पीछे हो गया है। शिमला के महापौर संजय चौहान ने कहा कि बैठक में उनका पक्ष ढंग से सुना नहीं गया।
बैठक में हर प्वाइंट पर चर्चा के दौरान निगम ने अपना पक्ष रखा है। बाकायदा डाक्यूमेंट देकर इसे नोट कराया गया है। अभी तक स्मार्ट सिटी की प्रोसीडिंग्स नहीं आई है। अगर अफसरों ने धर्मशाला को स्मार्ट सिटी के लिए चयनित किया है तो वह किस आधार पर किया होगा, यह देखना होगा। गलत मार्किगिं के लिए नगर निगम के पास हाईकोर्ट के दरवाजे खुले हैं।
100 में से नंबर मिलते तो शिमला चुन लिया जाता स्मार्ट सिटी
न्यायालय के आदेशों के बाद स्मार्ट सिटी के लिए पात्र शहर के चयन के दौरान अगर शिमला और धर्मशाला दोनों शहरों को 100 में से अंक दिए जाते तो शिमला का नाम फाइनल होना तय हो गया था। लेकिन चयन में शिमला को 100 में से और धर्मशाला को 80 में से अंक दिए गए। शहर के चयन को लेकर बदली गई व्यवस्था के कारण शिमला पिछड़ गया। बैठक के दौरान चयन समिति के सदस्य नगर निगम शिमला के मेयर संजय चौहान ने अपनी आपत्ति दर्ज करवाई लेकिन सुनवाई नहीं हुई।
स्मार्ट सिटी के लिए पात्र शहर का चयन करते हुए जब दोनों शहरों को सौ में से अंक दिए गए तो शिमला के 77.5 और धर्मशाला के कुल 72 अंक बने। इसके बाद जेएनएनयूआरएम प्रोजेक्ट के आधार पर जब चयन की व्यवस्था बदली गई तो धर्मशाला के अंक बढ़ाकर 90.63 कर दिए गए। चयन को लेकर निगम महापौर संजय चौहान ने अपनी आपत्ति दर्ज करवाई तो उनसे आपत्ति लिखित में मांगी गई।
सरकार के दबाव में गड़बड़ी की कोशिश: मेयर
लिखित में देने के बाद आपत्तियों पर विचार करने का आश्वासन दिया गया। सूत्रों के अनुसार बैठक के दौरान सरकार के अधिकारियों ने पिछली बार स्मार्ट सिटी के चयन में जेएनएनयूआरएम के अंकों को लेकर अपनी गलती स्वीकारी। जेएनएनयूआरएम प्रोजेक्ट के आधार पर शहर के चयन को लेकर इस बार व्यवस्था में बदलाव से यह साफ हो गया कि स्मार्ट सिटी के चयन में पिछली बार कहीं न कहीं कोई चूक रह गई थी।
नगर निगम शिमला के मेयर सरकार संजय चौहान ने कहा कि सरकार के दबाव में मिशन डायरेक्टर और मेंबर सेक्रेटरी ने पिछली बार भी आंकड़ों के साथ गड़बड़ी की थी और इस बार भी गड़बड़ी करने का पूरा इरादा है। बैठक में जेएनएनयूआरएम सिटी को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं की गई है। हमने लिखित में अपनी आपत्तियां दर्ज करवाई हैं। भारत सरकार के प्रतिनिधि की अनुपस्थिति में आयोजित इस बैठक की प्रोसिडिंग पर मेरे हस्ताक्षर भी नहीं लिए गए हैं।
धर्मशाला को शिमला से ज्यादा नंबर स्मार्ट शहर के अब धर्मशाला नगर निगम ने जताई आपत्ति हिमाचल प्रदेश का एकमात्र स्मार्ट शहर धर्मशाला ही बनेगा।
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सनवारा टोल प्लाजा पर अब और कटेगी जेब, अप्रैल से 10 से 45 रुपए तक अधिक चुकाना होगा टोल

शिमला- कालका-शिमला राष्ट्रीय राजमार्ग-5 पर वाहन चालकों से अब पहली अप्रैल से नई दरों से टोल वसूला जाएगा। केंद्रीय भूतल एवं परिवहन मंत्रालय की ओर से बढ़ी हुई दरों पर टोल काटने के आदेश जारी हो गए हैं। जारी आदेश के अनुसार कालका-शिमला एनएच-5 पर सनवारा टोल प्लाजा पर 10 से 45 रुपए तक की वृद्धि हुई है।
टोल प्लाजा संचालक कंपनी के मैनेजर ने बताया कि 1 अप्रैल से कार-जीप का एक तरफ शुल्क 65 और डबल फेयर में 95 रुपये देने होंगे।
लाइट कामर्शियल व्हीकल, लाइट गुड्स व्हीकल और मिनी बस को एक तरफ के 105, बस-ट्रक (टू एक्सेल) को एकतरफ के 215, थ्री एक्सेल कामर्शियल व्हीकल को एक तरफ के 235, हैवी कंस्ट्रक्शन मशीनरी को एकतरफ के 340 और ओवरसीज्ड व्हीकल को एकतरफ के 410 रुपये का शुल्क नई दरों के हिसाब से देना होगा।
सनवारा टोल गेट से 20 किलोमीटर के दायरे में आने वाले वाहन चालकों को पास की सुविधा भी नियमों के अनुसार दी जाती है। इस पास के लिए अब 280 की जगह 315 रुपये प्रति महीना चुकाना पड़ेगा।
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बच्चों से खतरनाक किस्म की मजदूरी कराना गंभीर अपराध:विवेक खनाल

शिमला- बच्चों से खतरनाक किस्म की मज़दूरी कराना गंभीर अपराध है। 14 साल के अधिक आयु के बच्चों से ढाबे में 6 घंटे से अधिक काम नहीं लिया जा सकता। उन्हें तीन घंटे के बाद एक घंटे का आराम दिया जाना जरूरी है। यह बात वह उमंग फाउंडेशन द्वारा “मज़दूरों के कानूनी अधिकार, समस्याएं और समाधान” विषय पर वेबिनार में वरिष्ठ सिविल जज एवं राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के अतिरिक्त सचिव विवेक खनाल ने कही।
उन्होंने कहा कि असंगठित मजदूरों के शोषण का खतरा ज्यादा होता है। देश की जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद का 50% हिस्सा असंगठित मजदूरों के योगदान से ही अर्जित होता है।
विवेक खनाल ने संगठित एवं असंगठित श्रमिकों से जुड़े विभिन्न कानूनों की जानकारी दी। उन्होंने कहा की 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को खतरनाक किस्म के कामों में नहीं लगाया जा सकता। इनमें औद्योगिक राख, अंगारे, बंदरगाह, बूचड़खाना, बीड़ी, पटाखा, रेलवे निर्माण, कालीन, पेंटिंग एवं डाईंग आदि से जुड़े कार्य शामिल हैं।
उन्होंने बताया कि 14 से 18 वर्ष तक के बच्चे रेस्टोरेंट या ढाबे में काम के तय 6 घंटे तक ही काम कर सकते हैं। शाम 7 बजे से सुबह 8 बजे के बीच उन से काम नहीं लिया जा सकता।
उन्होंने बताया कि भवन निर्माण एवं अन्य कामगार बोर्ड में पंजीकृत होने के बाद श्रमिकों को अनेक प्रकार की सुविधाएं एवं सामाजिक सुरक्षा मिल जाती है।
विवेक के अनुसार असंगठित मजदूरों के लिए कानून भी काफी कम हैं। जबकि उनकी स्थिति ज्यादा खराब होती है। उन्होंने बताया कि मनरेगा के अंतर्गत काम करने वाली महिला मजदूरों के बच्चों को संभालने के लिए उन्हीं में से एक वेतन देकर आया का काम भी दिया जाता है।
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के अतिरिक्त सचिव ने कहा कि कि प्राधिकरण की ओर से समाज के जिन वर्गों को मुफ्त कानूनी सहायता दी जाती है उसमें एक श्रेणी मजदूरों की भी है।
इसके अतिरिक्त महिला, दिव्यांग, ट्रांसजेंडर, बच्चे, अनुसूचित जाति एवं जनजाति, और तीन लाख से कम वार्षिक आय वाले बुजुर्ग इस योजना में शामिल हैं। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से बद्दी में मजदूरों के लिए एक विशेष प्रकोष्ठ स्थापित किया गया है।
इसके अलावा विभिन्न जिलों में वैकल्पिक विवाद समाधान केंद्र चलाए जा रहे हैं। एक अलग पोर्टल पर सरकार ई-श्रम कार्ड भी बना रही है।
इस दौरान उन्होंने युवाओं के सवालों के जवाब भी दिए।
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हिमाचल कैबिनेट के फैसले:प्रदेश में सस्ती मिलेगी देसी ब्रांड की शराब,पढ़ें सभी फैसले

शिमला- मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की अध्यक्षता में आयोजित प्रदेश मंत्रीमंडल की बैठक में आज वर्ष 2022-23 के लिए आबकारी नीति को स्वीकृति प्रदान की गई।
इस नीति में वर्ष के दौरान 2,131 करोड़ रुपये के राजस्व प्राप्ति की परिकल्पना की गई है, जो कि वित्त वर्ष 2021-22 से 264 करोड़ रुपये अधिक होगा। यह राज्य आबकारी राजस्व में 14 प्रतिशत की कुल वृद्धि को दर्शाता है।
बैठक में वित्तीय वर्ष 2022-23 राज्य में प्रति इकाई चार प्रतिशत नवीनीकरण शुल्क पर खुदरा आबकारी ठेकों के नवीनीकरण को स्वीकृति प्रदान की गई। इसका उद्देश्य सरकारी राजस्व में पर्याप्त बढ़ोतरी प्राप्त करना और पड़ोसी राज्यों में दाम कम करके होने वाली देसी शराब की तस्करी पर रोक लगाना है।
लाइसेंस फीस कम होने के कारण देसी शराब ब्रांड सस्ती होगी। इससे उपभोक्ताओं को सस्ती दरों पर अच्छी गुणवत्ता की शराब उपलब्ध होगी और उन्हें अवैध शराब खरीदने के प्रलोभन से भी बचाया जा सकेगा और शुल्क चोरी पर भी निगरानी रखी जा सकेगी।
नई आबकारी नीति में खुदरा लाइसेंसधारियों को आपूर्ति की जाने वाली देसी शराब के निर्माताओं और बॉटलर्ज के लिए निर्धारित 15 प्रतिशत कोटा समाप्त कर दिया गया है। इस निर्णय से खुदरा लाइसेंसधारी अपना कोटा अपनी पसंद के आपूर्तिकर्ता से उठा सकेंगे और प्रतिस्पर्धात्मक मूल्यों पर अच्छी गुणवत्ता की देसी शराब की आपूर्ति सुनिश्चित होगी। देसी शराब का अधिकतम खरीद मूल्य मौजूदा मूल्य से 16 प्रतिशत सस्ता हो जाएगा।
इस वर्ष की नीति में गौवंश के कल्याण के लिए अधिक निधि प्रदान करने के दृष्टिगत गौधन विकास निधि में एक रुपये की बढ़ोतरी करते हुए इसे मौजूदा 1.50 रुपये से बढ़ाकर 2.50 रुपये किया गया है।
राज्य में कोविड-19 के मामलों में कमी को देखते हुए कोविड उपकर में मौजूदा से 50 प्रतिशत की कमी की गई है।
लाइसेंस शुल्क के क्षेत्र विशिष्ट स्लैब को समाप्त करके बार के निश्चित वार्षिक लाइसेंस शुल्क को युक्तिसंगत बनाया गया है। अब पूरे राज्य में होटलों में कमरों की क्षमता के आधार पर एक समान लाइसेंस स्लैब होंगे।
जनजातीय क्षेत्रों में आने वाले पर्यटकों को बेहतर सुविधा प्रदान करने और होटल उद्यमियों को राहत प्रदान करने के लिए जनजातीय क्षेत्रों में बार के वार्षिक निर्धारित लाइसेंस शुल्क की दरों में काफी कमी की गई है।
शराब के निर्माण, संचालन, थोक विक्रेताओं को इसके प्रेषण और बाद में खुदरा विक्रेताओं को बिक्री की निगरानी के लिए इन सभी हितधारकों को अपने प्रतिष्ठानों में सीसीटीवी कैमरे लगाना अनिवार्य किया गया है।
विभाग की ओर से हाल ही में शराब बॉटलिंग प्लांटों, थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं में पाई गई अनियमितताओं को ध्यान में रखते हुए हिमाचल प्रदेश आबकारी अधिनियम, 2011 को और सख्त किया गया है।
राज्य में एक प्रभावी एंड-टू-एंड ऑनलाईन आबकारी प्रशासन प्रणाली स्थापित की जाएगी जिसमें शराब की बोतलों की ट्रैक एंड टेक्स की सुविधा के अलावा निगरानी के लिए अन्य मॉडयूल शामिल होंगे।
मंत्रिमंडल ने वर्ष 2022-23 के लिए हिमाचल प्रदेश राज्य पथकर नीति को अपनी मंजूरी प्रदान की है जिसमें राज्य में सभी पथकर बेरियर की नीलामी व निविदा शामिल हैं। वर्ष 2021-22 के दौरान टोल राजस्व में गत वर्ष के राजस्व के मुकाबले 20 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
मंत्रिमंडल ने हिमाचल प्रदेश आपदा राहत नियमावली, 2012 में संशोधन को अपनी मंजूरी प्रदान की जिसमें मधुमक्खी, हॉरनेट और वैस्प के काटने से होने वाली मृत्यु, दुर्घटनाग्रस्त डूबने, और वाहन दुर्घटना मंे होने वाली मृत्यु के मामलोें को राहत नियमावली के अंतर्गत शामिल किया गया है।
मंत्रिमंडल ने लोक सेवा आयोग के माध्यम से राजस्व विभाग में नियमित आधार पर सीधी भर्ती के माध्यम से तहसीलदार श्रेणी-1 के 11 पदों को भरने की स्वीकृति प्रदान की।