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हिमाचल के दृष्टिहीन एवं बधिर बच्चों के स्कूल में धांधली

उमंग फाउंडेशन ने हिमाचल के राज्यपाल को सौंपा पत्र
सेवा में,
आचार्य देवव्रत जी,
महामहिम राज्यपाल,
हिमाचल प्रदेश
विषय: दृष्टिहीन एवं बधिर बच्चों के स्कूल की हालत में सुधार तथा धांधली की जांच का अनुरोध
महोदय,
हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल का पदभार संभालने पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। हमें पूर्ण विश्वास है कि इस महत्वपूर्ण संवैधानिक पद के निर्वहन में आप राज्य के सभी वर्गों के साथ न्याय करेंगे। हमें आशा है कि समाज के सर्वाधिक दुर्बल वर्गों – दृष्टिहीन एवं मूकबधिर बच्चों, अन्य विकलांगों, थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों, कुष्ठरोगियों, मंदबुद्धि लोगों, मनोरोगियों, निर्धन मरीजों, बेसहारा महिलाओं और बेघर बुजुर्गों को भी आपके माध्यम से न्याय एवं सार्थक जीवन जीने का अवसर प्राप्त होगा।
उमंग फाउंडेशन एक जन कल्याण न्यास है जो हिमाचल में उपरोक्त सभी दुर्बल वर्गों के मानवाधिकार संरक्षण तथा सशक्तिकरण हेतु कार्य कर रहा है। हम बिना किसी सरकारी अनुदान के कार्य कर रहे हैं। विशेषकर दृष्टिहीन, मूकबधिर एवं अन्य विकलांग बालक- बालिकाओं के शैक्षणिक सशक्तिकरण के लिए हम समाज के सहयोग से कार्यरत हैं। शिमला के दो प्रतिष्ठित राजकीय महाविद्यालयों में हमारी शतप्रतिशत छात्रवृत्ति से 22 दृष्टिहीन विद्यार्थी, जिनमे 9 लड़कियां हैं, होस्टल में रह कर शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। शिमला के पोर्टमोर स्कूल में 19 बच्चियां हमारे सहयोग से होस्टल में रह कर पढ़ रही हैं जिनमे 14 मूकबधिर एवं 5 दृष्टिहीन हैं। हम इन वर्गों के अधिकारों की रक्षा के लिए हर स्तर तक संघर्ष करते हैं जिनमे हाईकोर्ट में जनहित याचिकाएं दायर करना भी शामिल है। हमे अपने उद्देश्य में कई सफलताएं भी मिली हैं।
यहाँ हम आपका ध्यान शिमला के ढली क्षेत्र में राज्य बाल कल्याण परिषद द्वारा संचालित दृष्टिहीन एवं मूकबधिर बालकों के विशेष विद्यालय की दुर्दशा, विकलांग बच्चों के मानवाधिकारों के उल्लंघन और वित्तीय अनियमितताओं की और खींचना चाहते हैं। राज्यपाल के नाते आप बाल कल्याण परिषद् के प्रेसीडेंट हैं और मुख्यमंत्री अध्यक्ष हैं और यह प्रदेश में दृष्टिहीन एवं मूकबधिर बालकों का एकमात्र स्कूल है जिसके सर्वोच्च पदाधिकारी भी आप ही हैं।
आपसे निवेदन है कि कृपया निम्नलिखित मुद्दों पर विचार करने की कृपा करें:
1. ढली स्थित विशेष विद्यालय के दृष्टिहीन एवं मूकबधिर विद्यालय में पहली से 10वीं कक्षा तक के कुल 120 बच्चे हैं जिनमें 27 दृष्टिहीन और 93 मूकबधिर हैं।
2. वर्षों से दृष्टिहीन और बधिर, दोनों वर्गों के लिए गणित तथा विज्ञान विषयों का कोई शिक्षक ही नहीं है। सभी कक्षाओं के लिए विषयवार शिक्षक नहीं हैं।
3. दृष्टिहीन बच्चे संगीत में अच्छा कार्य कर सकते हैं पर स्कूल में संगीत का शिक्षक ही नहीं है।
4. बधिर बच्चे पेंटिंग और ग्राफ़िक्स में बहुत अच्छे निकल सकते हैं पर इस विषय का कोई अध्यापक नहीं है।
5. दृष्टिहीन एवं बधिर बच्चे कम्प्यूटर के माध्यम से आत्मनिर्भर बन सकते हैं और रोज़गार कमा सकते हैं परंतु उन्हें इसकी कोई वोकेशनल ट्रेनिंग नहीं दी जाती है।
6. विज्ञान प्रयोगशाला और लैब सहायक तक विद्यालय में नहीं है।
7. दृष्टिहीन बच्चों की पहली से दसवीं तक की कुल दस कक्षाओं के लिए स्कूल में मात्र 3 कमरे ही हैं।
8. इसी तरह मूकबधिर बच्चों की कुल 10 कक्षाओं हेतु मात्र 6 कमरे उपलब्ध हैं।
9. विशेष विद्यालय में राज्य के गरीब परिवारों के बच्चे ही पढ़ते हैं। धनी लोग अपने दृष्टिहीन तथा बधिर बच्चों को पढ़ने के लिए प्रदेश से बाहर भेज देते हैं। लेकिन बाल कल्याण परिषद् कई वर्षों से बच्चों को वर्दी व पुस्तकें तक नहीं देरही थी। अप्रैल में मैंने उमंग फाउंडेशन की ओर से माननीय मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा जिसके बाद बच्चों को एक पैंट और एक शर्ट दी गई।
9. यह बड़े खेद का विषय है कि बाल कल्याण परिषद् और विशेष विद्यालय भ्रष्टाचार के लिए जाने जाते हैं। उदाहरण के लिए अप्रैल में मुख्यमंत्री को लिखा पत्र जब अखबारों में छपा तो बाल कल्याण परिषद् हरकत में आई और बच्चों के लिए वर्दी सप्लाई का आर्डर दिया।
10. विशेष विद्यालय में खरीद के लिए बाकायदा एक परचेज कमेटी है जिसे अँधेरे में रख कर मूकबधिर स्कूल की प्रिंसिपल ने अप्रैल में अपने स्तर पर 120 पैंटें और इतनी ही शर्टें खरीदने का आर्डर एक निजी दूकानदार को दिया। यह नियमों के विपरीत था।
11. नियम के अनुसार प्रिंसिपल अपनी खरीद- जरूरतों का ब्यौरा बाल कल्याण परिषद् को भेजती जिसकी मंजूरी मिलने के बाद स्कूल की परचेज कमेटी सरकारी एजेंसी यानी राज्य खाद्य एवं आपूर्ति निगम से खरीद के लिए संपर्क करती। आपूर्ति निगम में सामग्री उपलब्ध न होने पर उससे अनापत्ति प्रमाणपत्र (NOC) लेकर सरकारी रेट कॉन्ट्रैक्ट वाले आपूर्तिकर्ताओं से सामग्री खरीदी जानी चाहिए थी।
12. रेट कॉन्ट्रैक्ट वाले आपूर्तिकर्ताओं के पास सामग्री अनुपलब्ध होने पर परचेज कमेटी सील्ड कुटेशन आमंत्रित करती और वही कमेटी कुटेशन व् सैंपल का निरीक्षण करके सप्लाई आर्डर देती।
13. हैरानी की बात ये है कि अप्रैल में मूकबधिर विद्यालय की प्रिंसिपल ने सप्लाई के लिए मौखिक आर्डर दे दिया और 22- 23 मई को 120 बच्चों की पैंट- शर्ट स्कूल पहुँच गई। 25 मई 2015 को दूकानदार ने लगभग 70 हजार रुपये का बिल भी दे दिया। लेकिन राज्य आपूर्ति निगम को उक्त प्रिंसिपल ने NOC के लिए पत्र उसके एक महीने बाद 22 जून 2015 को लिखा। निगम ने NOC 23 जून को जारी किया।
14. राज्य बाल कल्याण परिषद् ने नियमों के विपरीत उक्त प्रिंसिपल के खाते में सामग्री की खरीद हेतु 2 लाख रुपए डाल दिए जिससे 5 अगस्त को लगभग 70 हज़ार रु. का भुगतान किया गया। जबकि बिल का भुगतान परिषद् को खुद करना चाहिए था। परिषद् के अधिकारी भी अनियमितताओं में शामिल लगते हैं।
15. वर्ष 2014 मेँ माननीय मुख्यमंत्री ने बच्चों के लिए रु. 30 हज़ार और माननीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्री ने रु. 21 हजार अनुदान मेँ स्कूल को दिए थे। वन विभाग ने 15 हज़ार रु. दिए। ये सभी राशि परचेज कमेटी के ध्यान में लाए बिना प्रिंसिपल द्वारा खर्च की गई।
16. विशेष स्कूल के बच्चों को वर्दी का स्वेटर, जूते, जुराबें तथा अंडरवियर, बनियान, तौलिया व चप्पलें आदि अभी तक नहीं मिले हैं।
17. बच्चोँ को आवश्यकता के अनुसार पठन सामग्री भी उपलब्ध नहीं कराई गई है। दृष्टिहीन बच्चों के लिए डिजिटल पुस्तकालय अभी भी सपना है।
महामहिम, आपसे प्रार्थना है कि आप उपरोक्त सभी मामलों की जांच के आदेश देने की कृपा करें ताकि भ्रष्टाचार पर लगाम लगे और विकलांग बच्चों को न्याय मिल सके।
धन्यवाद।
अजय श्रीवास्तव
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सनवारा टोल प्लाजा पर अब और कटेगी जेब, अप्रैल से 10 से 45 रुपए तक अधिक चुकाना होगा टोल

शिमला- कालका-शिमला राष्ट्रीय राजमार्ग-5 पर वाहन चालकों से अब पहली अप्रैल से नई दरों से टोल वसूला जाएगा। केंद्रीय भूतल एवं परिवहन मंत्रालय की ओर से बढ़ी हुई दरों पर टोल काटने के आदेश जारी हो गए हैं। जारी आदेश के अनुसार कालका-शिमला एनएच-5 पर सनवारा टोल प्लाजा पर 10 से 45 रुपए तक की वृद्धि हुई है।
टोल प्लाजा संचालक कंपनी के मैनेजर ने बताया कि 1 अप्रैल से कार-जीप का एक तरफ शुल्क 65 और डबल फेयर में 95 रुपये देने होंगे।
लाइट कामर्शियल व्हीकल, लाइट गुड्स व्हीकल और मिनी बस को एक तरफ के 105, बस-ट्रक (टू एक्सेल) को एकतरफ के 215, थ्री एक्सेल कामर्शियल व्हीकल को एक तरफ के 235, हैवी कंस्ट्रक्शन मशीनरी को एकतरफ के 340 और ओवरसीज्ड व्हीकल को एकतरफ के 410 रुपये का शुल्क नई दरों के हिसाब से देना होगा।
सनवारा टोल गेट से 20 किलोमीटर के दायरे में आने वाले वाहन चालकों को पास की सुविधा भी नियमों के अनुसार दी जाती है। इस पास के लिए अब 280 की जगह 315 रुपये प्रति महीना चुकाना पड़ेगा।
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बच्चों से खतरनाक किस्म की मजदूरी कराना गंभीर अपराध:विवेक खनाल

शिमला- बच्चों से खतरनाक किस्म की मज़दूरी कराना गंभीर अपराध है। 14 साल के अधिक आयु के बच्चों से ढाबे में 6 घंटे से अधिक काम नहीं लिया जा सकता। उन्हें तीन घंटे के बाद एक घंटे का आराम दिया जाना जरूरी है। यह बात वह उमंग फाउंडेशन द्वारा “मज़दूरों के कानूनी अधिकार, समस्याएं और समाधान” विषय पर वेबिनार में वरिष्ठ सिविल जज एवं राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के अतिरिक्त सचिव विवेक खनाल ने कही।
उन्होंने कहा कि असंगठित मजदूरों के शोषण का खतरा ज्यादा होता है। देश की जीडीपी यानी सकल घरेलू उत्पाद का 50% हिस्सा असंगठित मजदूरों के योगदान से ही अर्जित होता है।
विवेक खनाल ने संगठित एवं असंगठित श्रमिकों से जुड़े विभिन्न कानूनों की जानकारी दी। उन्होंने कहा की 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को खतरनाक किस्म के कामों में नहीं लगाया जा सकता। इनमें औद्योगिक राख, अंगारे, बंदरगाह, बूचड़खाना, बीड़ी, पटाखा, रेलवे निर्माण, कालीन, पेंटिंग एवं डाईंग आदि से जुड़े कार्य शामिल हैं।
उन्होंने बताया कि 14 से 18 वर्ष तक के बच्चे रेस्टोरेंट या ढाबे में काम के तय 6 घंटे तक ही काम कर सकते हैं। शाम 7 बजे से सुबह 8 बजे के बीच उन से काम नहीं लिया जा सकता।
उन्होंने बताया कि भवन निर्माण एवं अन्य कामगार बोर्ड में पंजीकृत होने के बाद श्रमिकों को अनेक प्रकार की सुविधाएं एवं सामाजिक सुरक्षा मिल जाती है।
विवेक के अनुसार असंगठित मजदूरों के लिए कानून भी काफी कम हैं। जबकि उनकी स्थिति ज्यादा खराब होती है। उन्होंने बताया कि मनरेगा के अंतर्गत काम करने वाली महिला मजदूरों के बच्चों को संभालने के लिए उन्हीं में से एक वेतन देकर आया का काम भी दिया जाता है।
राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के अतिरिक्त सचिव ने कहा कि कि प्राधिकरण की ओर से समाज के जिन वर्गों को मुफ्त कानूनी सहायता दी जाती है उसमें एक श्रेणी मजदूरों की भी है।
इसके अतिरिक्त महिला, दिव्यांग, ट्रांसजेंडर, बच्चे, अनुसूचित जाति एवं जनजाति, और तीन लाख से कम वार्षिक आय वाले बुजुर्ग इस योजना में शामिल हैं। राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण की ओर से बद्दी में मजदूरों के लिए एक विशेष प्रकोष्ठ स्थापित किया गया है।
इसके अलावा विभिन्न जिलों में वैकल्पिक विवाद समाधान केंद्र चलाए जा रहे हैं। एक अलग पोर्टल पर सरकार ई-श्रम कार्ड भी बना रही है।
इस दौरान उन्होंने युवाओं के सवालों के जवाब भी दिए।
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हिमाचल कैबिनेट के फैसले:प्रदेश में सस्ती मिलेगी देसी ब्रांड की शराब,पढ़ें सभी फैसले

शिमला- मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की अध्यक्षता में आयोजित प्रदेश मंत्रीमंडल की बैठक में आज वर्ष 2022-23 के लिए आबकारी नीति को स्वीकृति प्रदान की गई।
इस नीति में वर्ष के दौरान 2,131 करोड़ रुपये के राजस्व प्राप्ति की परिकल्पना की गई है, जो कि वित्त वर्ष 2021-22 से 264 करोड़ रुपये अधिक होगा। यह राज्य आबकारी राजस्व में 14 प्रतिशत की कुल वृद्धि को दर्शाता है।
बैठक में वित्तीय वर्ष 2022-23 राज्य में प्रति इकाई चार प्रतिशत नवीनीकरण शुल्क पर खुदरा आबकारी ठेकों के नवीनीकरण को स्वीकृति प्रदान की गई। इसका उद्देश्य सरकारी राजस्व में पर्याप्त बढ़ोतरी प्राप्त करना और पड़ोसी राज्यों में दाम कम करके होने वाली देसी शराब की तस्करी पर रोक लगाना है।
लाइसेंस फीस कम होने के कारण देसी शराब ब्रांड सस्ती होगी। इससे उपभोक्ताओं को सस्ती दरों पर अच्छी गुणवत्ता की शराब उपलब्ध होगी और उन्हें अवैध शराब खरीदने के प्रलोभन से भी बचाया जा सकेगा और शुल्क चोरी पर भी निगरानी रखी जा सकेगी।
नई आबकारी नीति में खुदरा लाइसेंसधारियों को आपूर्ति की जाने वाली देसी शराब के निर्माताओं और बॉटलर्ज के लिए निर्धारित 15 प्रतिशत कोटा समाप्त कर दिया गया है। इस निर्णय से खुदरा लाइसेंसधारी अपना कोटा अपनी पसंद के आपूर्तिकर्ता से उठा सकेंगे और प्रतिस्पर्धात्मक मूल्यों पर अच्छी गुणवत्ता की देसी शराब की आपूर्ति सुनिश्चित होगी। देसी शराब का अधिकतम खरीद मूल्य मौजूदा मूल्य से 16 प्रतिशत सस्ता हो जाएगा।
इस वर्ष की नीति में गौवंश के कल्याण के लिए अधिक निधि प्रदान करने के दृष्टिगत गौधन विकास निधि में एक रुपये की बढ़ोतरी करते हुए इसे मौजूदा 1.50 रुपये से बढ़ाकर 2.50 रुपये किया गया है।
राज्य में कोविड-19 के मामलों में कमी को देखते हुए कोविड उपकर में मौजूदा से 50 प्रतिशत की कमी की गई है।
लाइसेंस शुल्क के क्षेत्र विशिष्ट स्लैब को समाप्त करके बार के निश्चित वार्षिक लाइसेंस शुल्क को युक्तिसंगत बनाया गया है। अब पूरे राज्य में होटलों में कमरों की क्षमता के आधार पर एक समान लाइसेंस स्लैब होंगे।
जनजातीय क्षेत्रों में आने वाले पर्यटकों को बेहतर सुविधा प्रदान करने और होटल उद्यमियों को राहत प्रदान करने के लिए जनजातीय क्षेत्रों में बार के वार्षिक निर्धारित लाइसेंस शुल्क की दरों में काफी कमी की गई है।
शराब के निर्माण, संचालन, थोक विक्रेताओं को इसके प्रेषण और बाद में खुदरा विक्रेताओं को बिक्री की निगरानी के लिए इन सभी हितधारकों को अपने प्रतिष्ठानों में सीसीटीवी कैमरे लगाना अनिवार्य किया गया है।
विभाग की ओर से हाल ही में शराब बॉटलिंग प्लांटों, थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं में पाई गई अनियमितताओं को ध्यान में रखते हुए हिमाचल प्रदेश आबकारी अधिनियम, 2011 को और सख्त किया गया है।
राज्य में एक प्रभावी एंड-टू-एंड ऑनलाईन आबकारी प्रशासन प्रणाली स्थापित की जाएगी जिसमें शराब की बोतलों की ट्रैक एंड टेक्स की सुविधा के अलावा निगरानी के लिए अन्य मॉडयूल शामिल होंगे।
मंत्रिमंडल ने वर्ष 2022-23 के लिए हिमाचल प्रदेश राज्य पथकर नीति को अपनी मंजूरी प्रदान की है जिसमें राज्य में सभी पथकर बेरियर की नीलामी व निविदा शामिल हैं। वर्ष 2021-22 के दौरान टोल राजस्व में गत वर्ष के राजस्व के मुकाबले 20 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई है।
मंत्रिमंडल ने हिमाचल प्रदेश आपदा राहत नियमावली, 2012 में संशोधन को अपनी मंजूरी प्रदान की जिसमें मधुमक्खी, हॉरनेट और वैस्प के काटने से होने वाली मृत्यु, दुर्घटनाग्रस्त डूबने, और वाहन दुर्घटना मंे होने वाली मृत्यु के मामलोें को राहत नियमावली के अंतर्गत शामिल किया गया है।
मंत्रिमंडल ने लोक सेवा आयोग के माध्यम से राजस्व विभाग में नियमित आधार पर सीधी भर्ती के माध्यम से तहसीलदार श्रेणी-1 के 11 पदों को भरने की स्वीकृति प्रदान की।