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अनुराग ठाकुर को केंद्रीय मंत्री बनने पर भी नहीं है अपनी जिम्मेदारियों का एहसास, जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान जमकर उड़ी कोरोना प्रोटोकॉल की धज्जियाँ

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शिमला- केन्द्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर हिमाचल प्रदेश में पांच दिन की जन आशीर्वाद यात्रा पर आए थे। इस दौरान चंड़ीगढ़, सोलन, शिमला, बिलासपुर, मंडी, हमीरपुर तथा काँगड़ा तक 630 किलोमीटर का सफर तय किया। इस जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान कोरोना नियमो की जमकर धज्जियां उड़ी। इनके कार्यक्रमों में उपस्थित जनता के साथ-2 नेताओं ने भी कोरोना नियमो का पालन नहीं किया। खुद केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के साथ कई अन्य मंत्री और विधायक भी बिना मास्क और समाजिक दूरी का पालन न करते हुए दिखे।

धर्मशाला में प्रेसवार्ता के दौरान जब एक पत्रकार ने कोरोना प्रोटोकॉल को लेकर सवाल किये तो केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर कोई भी जवाब नहीं दे पाए ,केवल धन्यवाद कहा। इस दौरान वहां भाजपा प्रदेशाध्यक्ष सुरेश कश्यप और मंत्री सरवीण चौधरी भी मौजूद थी। सुरेश कश्यप ऐसा सवाल पूछने पर हंसने लगे और मुस्कुराते हुए अनुराग की तरफ देखने लगे। इनमे से किसी भी नेता ने मास्क नहीं लगाया था। जब पेट्रोल और डीजल की बढ़ती हुई कीमतों को लेकर केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर से सवाल किया गया तो उन्होंने कांग्रेस पार्टी को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया।

सवाल यह उठता है की कोरोना के नियम क्या आम लोगों के लिए ही बने है। प्रदेश सरकार ने कोरोना नियमो का उलंघन करने वालों पर चालान काटने की प्रकिया शुरू की है। क्या चालान ऐसी जगह नहीं काटे जाते जहां ये नेता लोग इतनी सारी भीड़ इकठा करते है? क्या इनके भीड़ इकठा करने पर कोरोना नहीं फैलता? आखिर पत्रकार के कोरोना प्रोटोकॉल पर सवाल करने पर अनुराग ठाकुर की बोलती क्यों बंद हो गई? बात सिर्फ नियमो की नहीं है बात यह है की नियम बनाये क्यों गए। ये नियम सभी सुरक्षा के लिए बनें  हैं।  यह गर्व की बात है कि अनुराग ठाकुर को केंद्रीय मंत्री का दर्जा मिला है। लेकिन यह शर्म की बात है की उन्हें अपनी जिम्मेदारी का एहसास नहीं है। ऐसी जन आशीर्वाद यात्रा करके वह क्या साबित करना चाहते थे?  क्या आने वाले उप चुनाव के लिए यह सब किया जा रहा है ?

वैज्ञानिकों ने कोरोना की तीसरी लहर की चेतावनी दी है।  ऐसे में भी राजनितिक दल अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहे। कोरोना के कारण प्रदेश में हजारों तथा देश में लाखों लोगों की मृत्यु हो चुकी है।  इस महामारी में कई बच्चे अनाथ हो गए है तथा कई लोगो का रोजगार चला गया है। ऐसी स्थिति में ये भीड़ इकट्ठी करना क्या जरूरी है? इस संकट के समय में अगर कोई व्यक्ति किसी को कॉल भी करता है तो कॉल के माध्यम से भी कोरोना के नियमो का सख्ती से पालन करने के लिए प्रेरित किया जाता है तो दूसरी तरफ राजनैतिक दल कोरोना को बढ़ावा देने के लिए राजनितिक रैलियां आयोजित कर रहे है। ये गैरज़िम्मेदराना हरकतें केवल भाजपा तक सिमित नहीं हैं , बल्कि अन्य राजनितिक दल भी करोना के नियमो का पालन नहीं कर रहे है। अगर किसी नेता या मंत्री को कोरोना हो जाये तो वह बड़े से बड़े अस्पताल में अपना ईलाज करवाता है।   पर आम आदमी को कोरोना हो जाये तो उनको अस्पताल में जाकर लाइन में लगना पड़ता है और बीएड तक नसीब नहीं होते ।

बता दें कि कोरोना की दूसरी लहर में भी मौत का तांडव देखने को मिला था जिसमे लाखों लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था, अस्पताल में कोरोना मरीजों को बेड नहीं मिल पा रहे थे,शमशान घाटों के बाहर लाशों की इतनी लंबी कतारें लगी थी कि लाशों को जलाने के लिए कई दिनों का इंतजार करना पड़ता था। लाशों को जलाने के लिए लकड़ियां की भी कमी पड़ रही थी,  लाशो को श्मशान घाट तक पहुँचाने के लिए एम्बुलेंस भी नहीं मिल रही थी और लाशों को कन्धों पर उठाकर शमशानघाट तक ले जाना पद रहा था। हमारे माननीय मंत्री और नेताओं के लिए ये सब कोई माईने नहीं रखता। मायने रखती है तो सिर्फ एक चीज़ – राजनितिक स्वार्थ। इसके लिए चाहे लोगों की जान ही दांव पर क्यों न लगनी पद जाये।

बता दें कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने अपने एक बयान में कहा था कि पर्यटकों के आगमन से राज्य के विभिन्न हिस्सों में कोरोना का कोई प्रभाव नहीं पड़ा है। उन्होंने विवाह समारोह, दावतें आदि को कोरोना फैलने का कारण माना था। अब सवाल ये उठता है कि ऐसे राजनितिक कार्यक्रमों के आयोजन से क्या कोरोना नहीं फैलता? इतनी भारी भरकम भीड़ इकठी करके सरकार क्या साबित करना चाहती है? ये बात सिर्फ भाजपा की ही नहीं, प्रदेश के अन्य राजनितिक दल भी पीछे नहीं है।

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घोटाला: चंबा के पहाड़ों को बंजर कर रही कशमल की अवैध तस्करी, वन विभाग पर लगा भ्रष्टाचार का गंभीर आरोप

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चंबा: पहले पेयजल घोटाला, फिर रेत-बजरी ढुलाई का घोटाला और अब चंबा जिला में वन विभाग पर भ्रष्टाचार के आरोप लग रहे हैं। पिछले कुछ समय से चंबा जिला में कशमल की जड़ों को अवैध रुप से उखाड़ने और उनकी तस्करी का मामला काफी चर्चा में है।

इसी कड़ी में चंबा के मंसरुड वन परिक्षेत्र में कशमल तस्करी का मामला सोशल मीडिया और खबरों में छाया हुआ है। मंसरुड वन परिक्षेत्र के निवासी उनके इलाकों में हो रही कशमल की अवैध तस्करी के खिलाफ खुल कर आवाज़ उठा रहे हैं और प्रशासन की कार्रवाई पर भी सवाल कर रहे हैं। लोगों में कशमल की अवैध तस्करी को लेकर काफी रोष देखने को मिल रहा है।

मसरुंड वन परिक्षेत्र की जनता का वन विभाग पर आरोप

लोगों का आरोप है कि वन माफिया निजी भूमि की आड़ में वन भूमि से भारी मात्रा में कशमल उखाड़ रहा है। यह भी आरोप है कि वन माफिया बड़े पैमाने पर रात के अंधेरे में कशमल की तस्करी कर रहा है जिस पर विभाग सही से कार्रवाई नहीं कर रहा। यह बड़ी हैरानी की बात है सरकारी जमीन से इतने बड़े पैमाने पर कशमल उखाड़ने का काम हो रहा था और वन विभाग को इसकी कोई खबर ही नहीं थी। उनका यह भी कहना है कि यह काम काफी समय से चला आ रहा है।

लोगों का यह भी आरोप है कि वन विभाग कहीं न कहीं इस सब में शामिल है। हांलाकि यह पहली बार नहीं है जब वन विभाग पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं। वन रक्षक होशियार सिंह मामले को हिमाचल की जनता अभी भी भूली नहीं है।

कशमल क्या है ?

इससे पहले की हम इस आरोपित घोटाले पर और बात करें आइए जान लेते हैं कि कशमल होता क्या है और इसकी तस्करी क्यों की जाती है।

कशमल एक झाड़ीदार औषधीय पौधा (झाड़ी) है जो हिमालयी क्षेत्र में पाया जाता है। इसकी जड़ों का इस्तेमाल आयुर्वेदिक दवाईयां बनाने में किया जाता है। पीलिया,  मधुमेह और आंखों के संक्रमण के इलाज के लिए कशमल की जड़ों से दवाइयां बनाई जाती है। कैंसर के इलाज के लिए भी इस पर शोध किया जा रहा है।

कशमल सबसे ज्यादा वन भूमि पर पाया जाता है। कशमल निकालने के लिए कुछ कानून बनाए गए है। सरकारी ज़मीन से कशमल उखाड़ना अपराध है। सिर्फ निजी भूमि से ही कशमल उखाड़ने की अनुमति है। लेकिन निजी भूमि से भी कुल उपज का केवल 40% कशमल उखाड़ने की अनुमति है।

अगर आप अपनी निजी भूमि से कशमल उखाड़ना चाहते है तो इसके लिए आपको पहले वन विभाग से अनुमति लेनी होगी। इसके बाद वन विभाग जांच करता है कि आपकी जमीन पर कितनी कशमल है। अनुमति मिलने के बाद ही कशमल उखाड़ सकते है और बेच सकते हैं। विभाग इस सब का रिकॉर्ड रखता है। ठेकेदार किसानों से कशमल खरीदते है और दूसरे राज्यों में बेचते हैं।

निजी भूमि की आड़ में वन भूमि से उखाड़ी जा रही कशमल 

मंसरुड वन परिक्षेत्र में लोगों का आरोप है कि वन भूमि से कशमल उखाड़ कर बेचने का काम अंधाधुंध तरीके किया जा रहा है पर मामले की जांच सही तरीके से नहीं की जा रही।

हिमाचल वॉचर ने  इस मामले में जब स्थानीय लोगों से बातचीत की तो स्थानीय निवासी कपिल शर्मा ने बताया कि उन्होनें कईं दफा वन विभाग, आरो, और डीएफओ को इस अवैध खनन की शिकायतें भी भेजी, लेकिन इस मामले पर कोई खास कार्रवाई नहीं की गई। उन्होंने कहा कि लगातार सोशल मीडिया पर सबूत पेश करने के बावजूद कोई ढंग की कार्यवाही नहीं हुई।

वहीं 8 जनवरी को विजिलेंस विभाग की टीम ने एक गुप्त शिकायत मिलने पर मसरूण्ड रेंज का दौरा किया, जहां से टनों के हिसाब से कश्मल के ढे़र जब्त किए गए। इस दौरान कुछ मजदूर कशमल के टुकड़ों को गाड़ियों में भरते हुए भी पाए गए। कामगारों से पूछताछ भी की गई लेकिन टीम को मौके पर न तो कोई ठेकेदार मौजूद दिखा और न ही कशमल की खरीद-फराेख्त का कोई रजिस्टरी रिकॉर्ड मिला।

लगातार शिकायतों के बाद 10 जनवरी को चंबा वन मंडल अधिकारी कृतज्ञ कुमार ज़मीनी स्तर पर अपनी टीम के साथ जांच के लिए पहुंचें। उनका कहना था “वन भूमि पर किसी भी तरह का अवैध कशमल नहीं मिला है। वन विभाग हर गतिविधि पर नजर रखे हुए है, जगह-जगह नाके भी लगाए गए हैं। विभाग ने 4 जनवरी से कशमल के दोहन पर रोक लगा दी है। अगर कोई व्यक्ति कशमल को उखाड़ता या ढुलान करता पाया गया तो उस पर कार्रवाई होगी।”

इस पर कपिल शर्मा ने पत्रकार वार्ता में कहा कि “मसरूण्ड रेंज में टनों के हिसाब से वन भूमि से कश्मल का अवैध रूप से दोहन हुआ है लेकिन विभाग की टीम ने सिर्फ सड़क किनारे जाकर ही चेकिंग की, और वापिस आ गई।”

मसंरुड के स्थानीय निवासियों का कहना है कि कशमल के दोहन पर रोक लगने के बावजूद भी काम जारी रहा। लोग वन विभाग की कार्रवाई से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं है। लोगों ने खुद वन भूमि पर जाकर वहां से उखाड़ी गई कशमल की जड़ों की विडियोज सोशल मीडिया पर साझा भी किए।

यही हाल हिमगिरि रेंज का भी है। इससे पहले हिमगिरी रेंज में भी विजिलैंस विभाग ने 8 कविंटल अवैध कशमल जब्त की थी जबकि वहां भी कशमल उखाड़ने पर रोक लगाई जा चुकी थी। लेकिन उसके बाद भी सड़कों के किनारे जगह–जगह पर कशमल के ढेर देखने को मिले रहे थे।

वन विभाग की टीम ने मंसरुड का फिर से दौरा किया। कशमल की अवैध डंपिग के साथ कशमल से भरी गाड़ियां भी देखने को मिली। रिकॉर्ड चेक किए गए तो उनमें भी कुछ खास जानकारी नहीं मिली कि किसके नाम पर यह कशमल उखाड़ी गई है।

ग्रामीणों का आरोप है कि जब उन्होने एकजुट होकर खुद वन विभाग की टीम को वन भूमि से उखाड़ी गई कशमल के सबूत दिखाए तो उस वक्त टीम के पास बोलने के लिए कुछ नहीं था।

वहीं सोशल मीडिया पर गांव की एक महिला विडियो में वन विभाग के अधिकारियों के सामने यह बताती हुई नजर आई कि किस तरह अभी भी वन माफिया अवैध रुप से वन भूमि से कशमल चुरा कर ले जा रहे है। महिला ने साफ-साफ आरोप लगाते हुए कहा कि वन गार्ड भी अवैध कार्यों में शामिल है।

ग्रामीणों का कहना है कि तस्करों ने वन भूमि से करीब 400-500 साल पुरानी कशमल की जड़ों को भी उखाड़ लिया है। वन भूमि पूरी तरह से तहस-नहस कर दी गई है। फिर भी वन विभाग ने इस पर समय रहते कोई कार्रवाई नहीं की।

इसी बीच 24 जनवरी को हुई बैठक में मंत्रिमंडल ने कशमल के निष्कर्षण पर लगी रोक और कशमल की परिवहन की अवधि को 15 फरवरी तक बढ़ा दिया है। इस फैसले को ग्रामीणों ने उचित नहीं बताया है। उनका कहना है कि, इस दौरान और भारी मात्रा में कशमल के अवैध दोहन की आशंका है और कशमल के जितने भी ढेर लगे है उनकी पूरी जांच के बाद ही उनके ढुलान की अनुमति मिलनी चाहिए। लोगों का कहना है कि निजी भूमि पर उतना कशमल है ही नहीं जितना गाड़ियों में भरा जा रहा है और डंपिग में देखा जा रहा है।

लोग पूछ रहे हैं कि आखिर क्यों वन विभाग इतने नाके लगाने और पैट्रोलिंग के बाद भी मंसरुड में हो रहे कशमल के अवैध कटान को नहीं रोक पा रहा है। लोगों का यह भी आरोप है कि वन विभाग सिर्फ नाम की कार्रवाई करता है। इतनी शिकायतें भेजने के बाद भी सही से एक्शन क्यूं नहीं लिया गया? जितनी भी डंपिंग पड़ी है उनकी जांच क्यों नहीं की जा रही?

वन माफिया तीसा से हिमगिरी ब्लॉक में पहुंचा रहा  कशमल

हाल ही में एक और खबर देखने को मिलती है जिससे एक बात तो सपष्ट है कि चंबा में वन माफिया बेखौफ और सक्रिय है। रात के अंधेरे में कशमल का वन भूमि से दोहन किया जा रहा है। 27 जनवरी को तीसा पुलिस ने रात को कशमल की गाड़ी के साथ पाँच लोगों को गिरफतार किया जो कशमल को अवैध रुप से ले जा रहे थे। यह तस्कर तीसा से हिमगीरी ब्लॉक में कशमल पहुंचा रहे थे।

इसी तरह सलूनी में कशमल से भरी एक गाड़ी को जब वन विभाग की टीम ने रुकने का ईशारा किया तो गाड़ी चैक पोस्ट का बैरियर तोड़ कर ही निकल गई। हांलाकि विभाग की टीम ने करीब डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर गाड़ी को कब्जे में ले लिया था।

मसरुंड वन परिक्षेत्र की जनता ने बुलाई चिंतन बैठक 

मसंरुड वन परिक्षेत्र की जनता कशमल की अवैध तस्करी से परेशान हो चुकी है। इस विषय पर ग्रामीणों ने एक चिंतन बैठक भी की और लोगों को जागरुक भी किया कि उनके क्षेत्र में इन दिनों कशमल उखाड़ने के नाम पर अवैध कार्य चल रहा है। लोग सिर्फ कशमल के अवैध दोहन से ही परेशान नहीं है। लोगों का कहना है कि ठेकेदारों द्वारा उन्हें ठगा जा रहा है। ठेकेदार लोगों से 10-20 रुपए प्रति किलो के भाव से में कशमल खरीदते है और खुद वही कशमल बाहर के राज्यों में 500-600 रुपए किलो में बेचते है।

कशमल के अवैध कटान पर्यावरण के लिए बना बड़ा खतरा

कशमल का अवैध कटान पर्यावरण के लिए भी एक बहुत बड़ा खतरा है। जड़ेरा पंचायत के पर्यावरणविद रत्नचंद का कहना है कि कशमल एक समृद्ध झाड़ी है, जिसका पर्यावरण के लिए एक अहम योगदान भी है। कशमल का मूल्यांकन कुछ रुपयों से नहीं किया जा सकता। आने वाले से समय में कशमल के दोहन का बुरा प्रभाव प्रकृति पर देखने को मिलेगा। कशमल की जड़े काफी गहराई मे ज़मीन के अंदर तक समाई होती है। यह जड़ें मिट्टी को जकड़ कर रखती है। इस पर लगे फल जंगली जानवरों और पक्षियों का भोजन है, जिसके कारण किसानों की फसलें जानवरों से भी बची रहती है। कशमल के अवैध दोहन से भूमि कटाव जैसी समस्यांए देखने को मिलेगी और यह पौधा खत्म होने की कगार तक पहुंच सकता है। उनका कहना है कि यह अवैध तस्करी का कार्य जल्द से जल्द बंद होना चाहिए।

वहीं एक दैनिक अंग्रेजी अखबार के अनुसार  चंबा के वन संरक्षक अभिलाष दामोदरन ने कश्मल के बड़े पैमाने पर निष्कर्षण से इनकार किया है। उन्होंने कहा कि कुछ लोग जो निजी संपत्ति से कश्मल निष्कर्षण के लिए परमिट प्राप्त करते हैं, वे सरकारी भूमि में अतिक्रमण करते हैं और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की गई है। इस खबर के अनुसार एक क्विंटल कश्मल की जड़ों से एक किलोग्राम पाउडर बनता है, जिसे बाजार में एक लाख रुपये प्रति किलोग्राम से अधिक की कीमत पर बेचा जाता है और इसकी कीमत काफी हद तक उत्पाद की गुणवत्ता और मांग पर निर्भर करती है।

आवाज़ उठाने पर ग्रामीणों को मिल रही धमकियां

स्थानाीय लोगों ने सरकार से इस मामले पर गंभीरता दिखाने की मांग की है। उनका कहना है कि इस तरह कशमल खत्म होने की कगार पर पहुंच जाएगी। कशमल ग्रामीणों के लिए एक रोजगार का साधन है और उनके पालतू जानवरों के लिए चारे का काम भी करता है।

ग्रामीणों ने हिमाचल वॉचर से बातचीत के दौरान बताया कि उन्हें कशमल की अवैध तस्करी के खिलाफ आवाज़ उठाने पर अब धमकियां भी दी जा रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ स्थानीय लोग और ठेकेदार जो अवैध कार्य में लिप्त है वे उनकी आवाज़ बंद करने के लिए पुलिस में झूठी शिकायतें दर्ज करवा रहे हैं।

ग्रामीणों नें भी इस संबध में उन लोगों के खिलाफ शिकायत दर्ज करवाई है। ग्रामीणों के अनुसार एसपी अभिषेक यादव ने उन्हें आशवासन दिया है कि वे इस मामले की पूरी छानबीन करेंगे। वहीं ग्रामीणों का कहना है कि वे सब पुलिस के साथ मिलकर पूरे मामले की छानबीन में मदद करने के लिए तैयार हैं और कशमल के वन भूमि से हो रहे अवैध दोहन के सारे साक्ष्य उनके सामने पेश करेंगे।

ग्रामीण वन विभाग की कार्रवाई से संतुष्ट नहीं है। उनका आरोप है कि वन विभाग आंखे मूंद कर कशमल का वन भूमि से दोहन देखता रहा। उनका यह भी आरोप है कि सरकार इस मामले में वन विभाग को जांच का जिम्मा तो बिल्कुल भी न सौंपे क्योकि उन्हें वन विभाग से कोई निष्पक्ष कार्रवाई की उम्मीद नहीं है।

उनकी मांग है कि अभी जितने भी कशमल के ढेर लगे है उनकी जांच किए बिना किसी भी गाड़ी को भरने की अनुमति न दी जाए। उनका यह भी कहना है कि अगर इस मामले में अब कोई निष्पक्ष जांच नहीं करवाई गई तो मसरुंड वन परिक्षेत्र की सभी पंचायतें धरना प्रदर्शन करने के लिए तैयार हैं। उनका कहना है कि जब तक इस मामले में सही से एक्शन नहीं लिया जाता तब तक वे चुप नहीं बैठेंगे।

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गुड़िया दुष्कर्म और हत्याकांड : सूरज हत्या मामले में आईजी जैदी समेत 8 पुलिस अधिकारियों को उम्रकैद

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शिमला : बहुचर्चित गुड़िया दुष्कर्म और हत्या मामले में गिरफ्तार आरोपी सूरज की पुलिस हिरासत में हत्या के मामले में आज चंडीगढ़ की सीबीआई अदालत ने फैसला सुनाया है। न्यायालय ने तत्कालीन आईजी जहूर जैदी समेत सभी आठ पुलिस अधिकारियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। सभी दोषियों पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है।

इससे पहले पिछली सुनवाई में न्यायालय ने तत्कालीन जहूर जैदी सहित DSP मनोज जोशी, राजिंदर सिंह, दीप चंद शर्मा, मोहन लाल, सूरत सिंह, रफीक मोहम्मद, रंजीत स्टेटा को दोषी ठहराया था। हालांकि तत्कालीन एसपी शिमला डीडब्लू नेगी को न्यायालय ने सबूतों के अभाव में बरी कर दिया था।

क्या था गुड़िया दुष्कर्म और हत्या मामला :

6 जुलाई 2017 को कोटखाई में एक स्कूली छात्रा के साथ दुष्कर्म और हत्या का मामला सामने आया था।  10वीं की छात्रा 4 जुलाई को अपने भाई के साथ स्कूल गई थी, लेकिन घर वापस नहीं लौटी। 5 जुलाई को लड़की का पता न चलने पर माता-पिता ने उसकी तलाश शुरू की। 6 जुलाई को किसी ने लिंक रोड से करीब 100 मीटर ऊपर दांडी जंगल में एक लड़की का शव नग्न अवस्था में पड़ा देखा और इस बारे में सभी को सूचित किया। घटनास्थल के पास से लड़की की वर्दी भी बरामद हुई। घटना की सूचना मिलते ही सैकड़ों ग्रामीण, उप-मंडल मजिस्ट्रेट और पुलिस उपाधीक्षक ठियोग मौके पर पहुंचे। शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेजा गया। शुरुआती जांच में यह कहा गया कि छात्रा की सामूहिक दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गई थी।

इसके बाद अज्ञात आरोपियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 302, 376 और पोस्को (यौन अपराध से बच्चों का संरक्षण) अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया और अपराध की जांच के लिए तीन विशेष टीमें गठित की गई। 10 जुलाई 2017  को तत्कालीन आईजी जहूर जैदी की अध्यक्षता में एसआईटी ( स्पेशल इनवेस्टीगेशन टीम ) गठित की गई जिसमें दीप चंद शर्मा, मोहन लाल, सूरत सिंह, मनोज जोशी, राजिंद्री सिंह, रफी मोहम्मद व रंजीत सतेता शामिल थे।

11 जुलाई 2017 की रात को तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के आधिकारिक और सत्यापित फेसबुक पेज पर कथित तौर पर चार तस्वीरें पोस्ट की गईं थी, साथ में लिखा था कि ये चार लोग स्कूली छात्रा के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या के भयावह मामले के पीछे के संदिग्ध हैं। लेकिन तस्वीरें वायरल होने के तुरंत बाद अचानक से हटा दी गईं थी

13 जुलाई 2017 को एसआईटी ने रेप-मर्डर के आरोप में छह लोगों ( आशीष चौहान उर्फ ​​आशु (29),  सुभाष सिंह बिष्ट (42) और दीपक उर्फ ​​देपू (38), राजिंदर सिंह उर्फ ​​राजू (32), सूरज सिंह (29) और  ​​छोटू (19)  को गिरफ्तार किया। सभी आरोपियों को उनके निवास स्थान कोटखाई से गिरफ्तार किया गया था।

एसआईटी द्वारा गिरफ्तार किए छह आरोपियों पर पत्रकारों और अधिकांश लोगों ने संदेह जताया और कईं सवाल भी उठाए। लोगों को असली दोषियों को बचाने की साजिश का आभास हुआ और  केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से जांच की मांग उठने लगी। वहीं पुलिस ने भी तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र की आधिकारिक फेसबुक वॉल पर शेयर की गई कुछ लोगों की तस्वीरों पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। लोगों का सवाल था कि वह तस्वीरें अखिर क्यों हटा दी गई।

वहीं 15 जुलाई 2017 को दो संदिगधों जिनकी फोटो मुख्यमंत्री के फेसबुक पेज पर पोस्ट की गई थी , उन्हें पूछताछ और सैंपल के लिए पुलिस द्वारा हिरासत में लिया गया। जिनके बारे में कहा जा रहा था कि वे दोनों बहुत प्रभावशाली परिवारों से जुड़े हैं। संदिग्धों को भारी पुलिस बल की तैनाती के तहत शिमला के रिप्पन अस्पताल में मेडिकल जांच के लिए लाया गया जिसमें उनके सीरम और डीएनए प्रोफाइलिंग नमूने लिए गए । कथित तौर पर मेडिकल जांच के बाद संदिग्धों को छोड़ दिया गया। हालांकि,बाकी दो लोगों के बारे में कुछ नहीं कहा गया।

पुलिस हिरासत में अचानक हुई सूरज की मौत:

इसके बाद एक और चौंकाने वाला घटनाक्रम सामने आया। 17 और 18 जुलाई की रात के बीच पुलिस हिरासत में सूरज की अचानक हत्या हो गई। पुलिस ने हत्या की पुष्टि की और कहा कि आरोपी राजिंदर (32) ने  सूरज सिंह (29) को जमीन पर पटक कर उसकी हत्या कर दी। मारपीट और हत्या का समय आधी रात के आसपास का बताया गया। पुलिस ने सूरज की हत्या के लिए सह-आरोपी राजिंदर को दोषी ठहराया और तत्कालीन एसपी डीडब्ल्यू नेगी ने भी इसका समर्थन किया। इस घटना ने पुलिस की कार्यप्रणाली और रवैये पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया ।

इस घटना से लोगों में और रोष भर गया। स्थानीय लोगों द्वारा एसआईटी पर असली दोषियों को बचाने का संदेह और भी पक्का हो गया। सीबीआई जांच की मांग उठी। लोगों द्वारा बड़े पैमाने पर उग्र विरोध प्रदर्शन किया गया। इस मामले में न्याय की मांग को लेकर लोग सड़कों पर उतर आए और प्रदेश में कईं जगह उग्र प्रदर्शन हुए तो यह केस 19 जुलाई को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के हवाले कर दिया। सीबीआई को दो दिनों के भीतर एक विशेष जांच दल गठित करने और कोटखाई बलात्कार और हत्या मामले की जांच अपने हाथ में लेने का आदेश दिया गया।

सूरज की हत्या के बाद उसकी पत्नी ने दिया चौंकाने वाला बयान :

वहीं मामले में एक और नया मोड़ आया ,सूरज की पत्नी ने हिंदी दैनिक भास्कर को दिए गए बयान में बताया कि उसके पति ने उसे 9 जुलाई को पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने से पहले उसके साथ हुई बातचीत का खुलासा न करने को कहा था। उसकी पत्नी के अनुसार सूरज ने उसे भरोसा दिलाया था कि वह छह महीने में जेल से वापस आ जाएगा और फिर वे गरीब नहीं रहेंगे। उसने उससे कहा था कि उसके लौटने के बाद वे नेपाल में रहेंगे। उसकी पत्नी ने आरोप लगाया कि उनके पति को इस जाल में फंसाने के लिए पैसे का लालच दिया गया था और इसमें उच्च अधिकारी शामिल हैं। पत्नी को डर था कि इस खुलासे  के बाद उनके पति की तरह उनकी भी हत्या कर दी जाएगी। उन्होंने बताया कि अपने बच्चों की जान के डर से वह अब तक चुप थी।

सूरज हत्या मामले में अधिकारी गिरफ्तार :

22 जुलाई को सीबीआई ने दो अलग-अलग मामले दर्ज किए। एक नाबालिग लड़की के बलात्कार और हत्या की जांच से संबंधित और दूसरा नेपाली आरोपी सूरज सिंह की रहस्यमय परिस्थितियों में पुलिस हिरासत में मौत की जांच से संबंधित।

29 अगस्त 2017 को सीबीआई ने सूरज की हिरासत में हत्या के लिए एसआईटी के प्रमुख जहूर एच जैदी, आईजी, दक्षिणी रेंज, डीएसपी, ठियोग, मनोज जोशी और छह अन्य सहित नौ पुलिस अधिकारियों को गिरफ्तार कर लिया गया। बाद में, सीबीआई ने शिमला के तत्कालीन पुलिस अधीक्षक डीडब्ल्यू नेगी को भी नवंबर 2017 में गिरफ्तार कर लिया।

उस वक्त हिमाचल की जनता के अनुसार सीबीआई देवदूत बनकर आई थी। लोगों को उम्मीद थी की सीबीआई की जांच से गुड़िया को इंसाफ जरुर मिलेगा।

लकड़हारा नीलू दोषी करार :

सीबीआई ने अदालत को बताया कि एसआईटी द्वारा गिरफ्तार किए गए शेष पांच आरोपी निर्दोष हैं और उन्हें झूठे मामले में फंसाया गया और प्रताड़ित किया गया। सीबीआई की टीम ने अगले ग्यारह महीनों तक जांच की, लेकिन कोई सफलता नहीं मिली। 28 मार्च 2018 को हाईकोर्ट ने सुस्त जांच प्रक्रिया को लेकर सीबीआई को फटकार लगाई। अंततः सीबीआई से निराश होकर अदालत ने सीबीआई की क्षमता पर सवाल उठाया और इसके निदेशक को व्यक्तिगत रूप से उसके समक्ष पेश होने को कहा।

इस समन के तुरंत बाद ही सीबीआई ने दावा किया कि इस मामले को सुलझा लिया गया है, जिसमें एक लकड़हारे नीलू को गिरफ्तार किया गया। अदालत ने सीबीआई द्वारा आरोपी के खिलाफ दिए गए 14 में से कम से कम 12 सबूतों को सही पाया। घटनास्थल से लिए गए नमूने के साथ उसके डीएनए का मिलान सबसे महत्वपूर्ण सबूतों में से एक माना।

28 अप्रैल 2021 को सीबीआई जज राजीव भारद्वाज ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए आरोपी नीलू को भारतीय दंड संहिता की धारा 376 (2) (आई), 376 9 (ए) और 302 और पोक्सो एक्ट की धारा 4 के तहत सभी चार आरोपों में दोषी ठहराया। उसे उम्रकैद की सजा सुनाई गई और इसके बाद मामले को बंद माना गया।

लकड़हारे नीलू का बयान :

हालांकि नीलू ने मीडिया से कहा कि वह निर्दोष है और उसे सीबीआई ने फंसाया है। उसने सीबीआई पर जान से मारने की धमकी समेत कई गंभीर आरोप लगाए। उसने न्यूज 18 को बताया कि उसे धमकी दी गई कि उसे भी 18 जुलाई 2017 को  पुलिस हिरासत में मारे गए आरोपी सूरज की तरह ही मार दिया जाएगा। न्यूज 18  की खबर के अनुसार उसने यहां तक ​​कहा कि उसे फंसाने के लिए उसकी मां को बंधक बना लिया गया था। उसने कहा कि वह इस फैसले को चुनौती देने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाएगा।

सीबीआई जांच से परिवार और स्थानीय लोग असंतुष्ट :

2018 में ग्यारह महीने की जांच के बाद सीबीआई ने दावा किया था कि उसने मामले को सुलझा लिया है और गुड़िया के साथ बलात्कार और हत्या के लिए एक आरोपी को गिरफ्तार किया है। इसने इस रिपोर्ट से इनकार किया कि यह सामूहिक बलात्कार था। गिरफ्तार आरोपी एक लकड़हारा था। परिवार और जनता सीबीआई के निष्कर्षों से संतुष्ट नहीं थे और उनका मानना ​​था कि असली अपराधी अभी भी खुलेआम घूम रहे हैं।

इससे सीबीआई की जांच संदेह के घेरे में आ गई थी, जब दो फोरेंसिक विशेषज्ञों ने अदालत में गवाही दी थी कि फोरेंसिक परीक्षण की विश्लेषण रिपोर्ट से पता चला है कि गुड़िया के बलात्कार और हत्या में एक से अधिक लोग शामिल थे।

लोगों को आज भी इस जांच पर संदेह है। लोग आज भी सीबीआई द्वारा की गई इस जांच से असंतुष्ट है। आज भी सवाल उठते है कि मामले में अचानक से सिर्फ एक व्यक्ति लकड़हारे नीलू को आरोपी कैसे ठहराया गया। जहां तक इस मामले को सामूहिक दुष्कर्म माना जा रहा था वहां सीबीआई ने इस मामले में सिर्फ एक आरोपी को कैसे गिरफ्तार कर लिया।

उन फोटो का क्या जो तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के फेसबुक पेज पर पोस्ट किए गए थे और कुछ देर बाद ही हटा दिए गए थे ? एसआईटी की टीम ने क्यूं छह लोगों को झूठे आरोप में गिरफ्तार कर लिया था ? आखिर किसे बचाने की कोशिश की जा रही थी ? यह सवाल ऐसे है जिनका जवाब आज भी नहीं मिल पाया है।

 

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हि.प्र. मंत्रिमंडल के निर्णय: भांग की खेती पर पायलट अध्ययन को मंजूरी,सरकार ने बदले दो संस्थानों के नाम

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कांगड़ा : धर्मशाला में आज मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू की अध्यक्षता में प्रदेश मंत्रिमंडल की बैठक में कईं अहम निर्णय लिए गए।

तांदी गांव में आग प्रभावित परिवारों के लिए विशेष राहत पैकेज:

मंत्रिमंडल ने वर्ष 2023 में आपदा प्रभावित परिवारों के लिए लाए गए विशेष राहत पैकेज को जिला कुल्लू के तांदी गांव में आग की घटना से प्रभावित परिवारों के लिए प्रदान करने का निर्णय लिया। पैकेज के तहत तांदी गांव के प्रभावित परिवारों को पूरी तरह से क्षतिग्रस्त मकानों के लिए 7 लाख रुपये, आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त मकानों के लिए एक लाख रुपये और गौशालाओं के नुकसान के लिए 50,000 रुपये प्रदान किए जाएंगे। इसके अतिरिक्त, प्रभावित परिवारों को 30 जून, 2025 तक मकान के किराए के भुगतान के लिए 5,000 रुपये की मासिक सहायता प्रदान की जाएगी।

रोबोटिक सर्जरी के लिए मशीनरी और उपकरणों की खरीद :

मंत्रिमंडल ने एम्स, नई दिल्ली की तर्ज पर अटल सुपर स्पेशिएलिटी आयुर्विज्ञान संस्थान (एआइएमएसएस) चमियाणा और डॉ राजेंद्र प्रसाद राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय टांडा, कांगड़ा में रोबोटिक सर्जरी के लिए 56 करोड़ रुपये की लागत से अत्याधुनिक मशीनरी और उपकरणों की खरीद को भी स्वीकृति प्रदान की।

कशमल एक्सटरेक्शन की अनुमति :

मंत्रिमंडल ने वन विभाग के पिछले आदेश में संशोधन को मंजूरी प्रदान कर 15 फरवरी, 2025 की कट-ऑफ तिथि के साथ कश्मल की जड़ों के एक्सटरेक्शन की अनुमति प्रदान की। इसके अतिरिक्त, हिमाचल प्रदेश वन उपज पारगमन (लेंड रूटस) नियम, 2013 के प्रावधानों के अनुसार 4 जनवरी, 2025 से पहले खुले स्थानों से निकाले गए वन उत्पादों के परिवहन के लिए 15 फरवरी, 2025 तक की अनुमति प्रदान की।

सुपर लग्जरी बसों की खरीद को मंजूरी :

बैठक में दो नए मंडल ननखड़ी और खोलीघाट के साथ खराहन सेक्शन बनाकर लोक निर्माण विभाग राष्ट्रीय राजमार्ग वृत शाहपुर को पुनर्गठित करने का निर्णय लिया गया।
मंत्रिमंडल ने यात्रियों की सुविधा के लिए हिमाचल पथ परिवहन निगम के लिए 24 वातानुकूलित सुपर लग्जरी बसों की खरीद को मंजूरी दी गई। मंत्रिमंडल ने बेहतर प्रवर्तन और औचक निरीक्षण सुनिश्चित करने के लिए राज्य कर एवं आबकारी विभाग के क्षेत्रीय कार्यालयों को 100 मोटरसाइकिलें प्रदान करने को भी मंजूरी दी।

भांग की खेती पर एक पायलट अध्ययन को मंजूरी:

मंत्रिमंडल ने चौधरी सरवन कुमार कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर, जिला कांगड़ा और डॉ. वाई.एस. परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी, जिला सोलन द्वारा संयुक्त रूप से भांग की खेती पर एक पायलट अध्ययन को मंजूरी दी। यह अध्ययन भांग की खेती के विषय में भविष्य की रूपरेखा का मूल्यांकन और सिफारिश करेगा। इसके अतिरिक्त, कृषि विभाग को इस पहल के लिए नोडल विभाग नामित किया गया।

कर्मचारियों को राज्य कैडर के दायरे में लाने को मंजूरी:

मंत्रिमंडल ने उपायुक्त कार्यालयों में चालकों, सभी तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के पदों के साथ-साथ तीन मंडलायुक्तों, निदेशक भूमि अभिलेख, राजस्व प्रशिक्षण संस्थान जोगिंद्रनगर (मंडी), भू-एकत्रीकरण निदेशालय (शिमला), बंदोबस्त कार्यालय कांगड़ा और बंदोबस्त कार्यालय शिमला के कार्यालयों में तैनात कर्मचारियों को राज्य कैडर के दायरे में लाने को मंजूरी दी।

इन संस्थानों के बदले गए नाम:

बैठक में जिला शिमला में राजकीय महाविद्यालय सीमा का नाम राजा वीरभद्र सिंह राजकीय महाविद्यालय सीमा, जीजीएसएसएस, खेल छात्रावास (कन्या) जुब्बल को श्री रामलाल ठाकुर जीजीएसएसएस खेल छात्रावास (कन्या) और ऊना जिला के राजकीय महाविद्यालय खड्ड का नाम मोहन लाल दत्त राजकीय महाविद्यालय खड्ड रखने को भी मंजूरी दी गई। बैठक में रूकी हुई जल विद्युत परियोजनाओं को शुरू करने और शिक्षा विभाग के निदेशालयों के पुनर्गठन पर भी विस्तृत प्रस्तुति दी गई।

कुल्लू में रोपवे की स्थापना :

कुल्लू बस स्टैंड और पीज पैराग्लाइडिंग प्वाइंट के बीच एक रोपवे की स्थापना को बैठक में मंजूरी दी गई। मंत्रिमंडल ने ग्रामीण विकास विभाग में खंड विकास अधिकारियों के 9 पद भरने को भी स्वीकृति प्रदान की।

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