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एचपीयू के छः करोड़ ईआरपी घोटाले में जांच की मांग, निजी कंपनी को फायदा पहुँचाने के लिए छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ का आरोप

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शिमला– हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के छात्र लम्बे समय से  इ.आर.पी. (ERP) प्रणाली की खामियों पर सवाल उठाते आ रहे है।  विश्वविद्यालय प्रशासन और ERP कंपनी न केवल विश्वविद्यालय के संसाधनों को बर्बाद कर रही है बल्कि हजारों छात्रों के भविष्य  के साथ खिलवाड़ भी कर रही है। पहले विवि प्रशासन ईआरपी सिस्टम को संचालित करने के लिए अपनी किसी चहेती निजी कंपनी को आउटसोर्स करती है और फिर उसकी खामियों को दूर करने के नाम पर आठ करोड़ बजट का प्रावधान करती है। विवि के अनुसार इसमे से अभी तक ईआरपी सिस्टम को दुरुस्त करने के नाम पर लगभग छह करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके है। लेकिन विश्वविद्यालय के सारे छात्र संघ संगठनों ने ये आरोप लगाया है कि करोड़ो खर्च करने पर भी ईआरपी सिस्टम का हाल वही फटीचर का फटीचर ही है।

जब से ईआरपी सिस्टम को विश्वविद्यालय ने अपनाया है इस पूरे प्रकरण में लगभग छः साल का समय बीत चुका है परंतु विश्वविद्यालय ने इतने लंबे समय के दौरान हमेशा ईआरपी सिस्टम की खामियों मानने से इंकार करती रही । ऑनलाइन सिस्टम होने के बावजूद भी हज़ारों छात्रों को अपनी समस्याओं के समाधान के लिए दूरदराज के जिलों से शिमला विवि की ओर रुख करना पड़ता है, जिससे उनका समय व पैसा दोनो बर्बाद होता है।

यही कारण है कि अब छात्र संगठन एचपीयू के ईआरपी स्कैम की न्यायिक या सीबीआई जांच की मांग उठा रहे हैं।

वहीं अगर फीस की बात की जाये तो विश्वविद्यालय इस मामले में भी पीछे नहीं है छात्रों से भारी भरकम फीस ली जाती है, वहीं अगर छात्रों के किसी दस्तावेज में कोई गलती हो और गलती भी विश्वविद्यालय प्रशासन की हो तब भी उस गलती को सुधारने के लिए भी अलग से छात्रों से ही भारी भरकम फीस ऐंठी जाती है।

वंही विश्वविद्यालय के कुलपपति राजनीति में व्यस्त रहते हैैं।  छात्रों की माने तो उन्होंने विश्वविद्यालय को आर एस एस (RSS) का अड्डा बना के रख दिया है। यही नहीं कुलपति के चयन के ऊपर भी गंभीर आरोप लगे हैं। उनपे अपनी अयोग्यता को लेकर झूठ  बोलने का आरोप है जिससे राजभवन ने भी स्वीकारा है। यंहा तक की अब अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद भी उनके निक्कमेंपन से परेशान होकर उन पर सवाल कर रही है। जब छात्र संगठनों ने उनका विरोध किया या उनसे बात करनी चाहि तो कुलपति ने अपने निक्कमेंपन को छुपाने के लिए पुलिस की आड़ ली और छात्रों पर ही मुकदमें दायर करवा दिए ।

अ.भा.वि.प (ABVP) नें ई आर पी प्रणाली की गुणवत्ता पर उठाये सवाल 

अ.भा.वि.प विश्वविद्यालय इकाई अध्यक्ष विशाल सकलानी ने कहा है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ई आर पी (ERP) प्रणाली की गुणवत्ता के लिए अपनी पीठ थपथपाने के मौके की तलाश में रहता है। प्रशासन विश्वविद्यालय ई आर पी प्रणाली को पूरे देश भर में सर्वोत्तम कोटि का बताती है लेकिन ई आर पी प्रणाली सवालों के घेरे में तब आती है जब हम देखते है की लगातार दूसरी बार ई आर पी की टेस्टिंग के नाम पर छात्रों के गलत परिणाम घोषित किए गए हैं, गलत परिणामों को देख छात्रों को काफी तनाव का सामना करना पड़ रहा है जबकि वास्तव में घोषित किए गए परिणाम सही नहीं है।

उन्होंने यह भी कहा है कि विश्वविद्यालय ने अभी तक यूजी के छात्रों का अंतिम सत्र के परीक्षा परिणाम नहीं निकाले है, ऐसे में पूरे प्रदेश भर में ऐसे भी छात्र है जो पीजी के प्रवेश बाहरी राज्यो के विश्वविद्यालयों से लेना चाहते है लेकिन यूजी के परिणामों के बगैर अन्य विश्वविद्यालयों में प्रवेश ले पाना सम्भव नहीं हो पा रहा अगर परिणाम घोषित करने में ज्यादा समय लगाया जाता है तो छात्र प्रवेश नहीं ले पाएगा।

अध्यक्ष ने बी.एड (B.Ed) के प्रथम और तृतीय सत्र के परिणामों को घोषित करने की भी मांग उठाई है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय ने बी.एड (B.Ed) के लिए प्रथम सत्र की प्रवेश परीक्षाएं करवा ली है। लेकिन अभी पिछले साल के पहले और तीसरे सत्र के परिणाम घोषित नहीं किए है। उन्होंने बीबीए (BBA) और बीसीए (BCA) के रि-अपीयर के परिणाम घोषित करने की मांग उठाते हुए कहा कि विश्वविद्यालय ने काफी लंबे समय से बीबीए (BBA) और बीसीए (BCA) के छात्रों के रि-अपीयर के परिणाम नहीं निकाले है, इसलिए विश्वविद्यालय प्रशासन छात्र हितों को ध्यान में रखते हुए परिणामों को जल्द से जल्द घोषित करे।

ये कहना है एनएसयूआई (NSUI) का 

एन.एस.यू.आई के इकाई उपाध्यक्ष रजत भारद्वाज पोन्टू ने कहा है कि प्रदेशभर से हज़ारों छात्रों की शिकायतें उन्हें मिली जिसमे छात्र जब अपने पोर्टल पर रिजल्ट देखत है तो वहां पास शो करता है और दो दिन बाद रिजल्ट में फेल या कोई अनियमितताएं शो करता है। इन सभी कारणों से विवि और कॉलेजों के छात्र कई वर्षों से परेशान है। ऐसे में एनएसयूआई ने ईआरपी (ERP) घोटाले की न्यायिक जांच की मांग की है।

एनएसयूआई ने एचपीयू परीक्षा नियंत्रक को ज्ञापन सौंप कर कोरोना महामारी के चलते छात्रों के लिए प्रदेश के सभी जिलों में पीजी के परीक्षा केंद्रों को खोलने की भी मांग की है। इसके अतिरिक्त विश्विद्यालय लाइब्रेरी के 24 ऑवर सेक्शन को तत्काल छात्रों के लिए खोलने सहित पिछले लंबित सभी पीजी व यूजी परीक्षा परिणामों को जल्द घोषित करने की मांग उठाई।

निजी कंपनी को फायदा पहुंचाने के चक्कर में छात्रों की जिंदगी से खिलवाड़: एसएफआई (SFI)

एस.एफ.आई (SFI) सचिव रॉकी का कहना है कि छात्र छः सालों से इ आर पी (ERP) प्रणाली पर सवाल उठा रहे थे तब तो विश्वविद्यालय प्रशासन हमेशा से इस चीज को अस्वीकार करता रहा और इस बेकार सिस्टम के कसीदे पढ़ता रहा। ऐसे में सवाल उत्पन होता है कि आज तक जिन छात्रों का भविष्य इस सिस्टम की वजह से बर्बाद हुआ है उसकी भरपाई कैसे की जाएगी।

एसएफआई ने आरोप लगाया कि एक निजी कंपनी को फायदा पहुंचाने के चक्कर में छात्रों की जिंदगी से खिलवाड़ किया गया है। अगर इस सिस्टम को स्थापित करने के लिए छः करोड से ज्यादा का खर्च विश्वविद्यालय वहन कर रहा है कहीं ना कहीं यह चीज संदेह के दायरे में आती है कि इतने बड़े बजट का दुरुपयोग कहां हुआ। इस पूरे सिस्टम को लेकर तथा इसको स्थापित करने की प्रक्रिया को लेकर सीबीआई जांच होनी चाहिए ताकि यह साफ हो सके की कहीं अधिकारियों के द्वारा कंपनी के साथ सांठगांठ करके उस पैसे को डकार तो नहीं लिया गया है।

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विश्वविद्यालय को आरएसएस का अड्डा बनाने का कुलपति सिंकदर को मिला ईनाम:एनएसयूआई

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शिमला- भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन ने हिमाचल प्रदेश के शैक्षणिक संस्थानों मे भगवाकरण का आरोप प्रदेश सरकार पर लगाया हैं। भाजपा की ओर से एचपीयू के कुलपति को राज्यसभा का उमीदवार बनाने पर प्रदेश सरकार ओर भाजपा नेतृत्व को आडे़ हाथ लेते हुए एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष छत्तर सिंह ठाकुर ने कहा की एनएसयूआई बीते कई दिनों से प्रदेश विश्वविद्यालय में भगवाकरण को बढ़ावा दिया जाने के खिलाफ मुखर थी।

छत्तर ठाकुर ने बताया की एनएसयूआई ने लगातार कुलपति के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था,जिसमें उन्होंने कुलपति की योग्यता के खिलाफ लगातार प्रश्न चिन्ह उठाए थे।

वहीं कुलपति के बेटे की फर्जी तरीके से यूजीसी के नियमों के खिलाफ जाकर पीएचडी में दाखिले, इसके अलावा प्रदेश विश्वविद्यालय मे 160+ प्रोफेसरों, गैर शिक्षक वर्ग व आउटसोर्स के माध्यम से सैकडो़ भर्तीयां प्रदेश विश्वविद्यालय में की गई, जिनमें यूजीसी के नियमों की धजियां उडा़ई गई, नियमों को ताक पर रख कर गलत तरीके से कई साक्षात्कार किए गए, विश्व विद्यालय के बुनियादी ढांचे के विकास मे कई घोटाले बाजी की गई, सैनिटाइज़र मशीनों के नाम पर घोटालेबाजी की गई,एनएसयूआई ने इन सभी मुद्दों को प्रमुखता से उठाया जिसके लिए एनएसयूआई के तीन पदाधिकारियों को असवैधांनिक तरीके से विश्वविद्यालय से निष्कासित भी किया गया।

उन्होंने कहा कि एनएसयूआई के लगातार इन सभी मुद्दों को उठाने के बाद चुनावी वर्ष आते ही अब कुलपति को शिक्षा विभाग से हटा दिया गया।

एनएसयूआई प्रदेश अध्यक्ष ने बताया की वाईस चांसलर को राज्यसभा भेजा जाए या लोकसभा लेकिन प्रदेश मे सता परिवर्तन तय है और सरकार बदलते ही प्रदेश सरकार से इन सभी गलत तरीके से हुई भर्तियों की ओर विश्वविद्यालय में हुई घोटालेबाजी की जांच करा कर, दोषियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करवाई जाएगी।

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जब छात्र हॉस्टल में रहे ही नहीं तो हॉस्टल फीस क्यों दे:एसएफआई

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शिमला- प्रदेश विश्वविद्यालय के होस्टलों में रह रहे छात्रों की समस्याओं को लेकर आज एचपीयू एसएफआई इकाई की ओर से वित्त अधिकारी को ज्ञापन सौंपा गया। ज्ञापन के माध्यम से एसएफआई ने छात्रों से 2020-2021 के सत्र की हॉस्टल कंटीन्यूशन फीस न लेने की मांग की है।

एसएफआई इकाई अध्यक्ष रॉकी ने कहा कि कोरोना काल की हॉस्टल कंटीन्युशन फीस को माफ़ किया जाना चाहिए क्योंकि कोरोना ने पहले छात्रों की आर्थिक स्थिति खराब कर दी है और छात्रों ने हॉस्टल सुविधा का उपयोग भी नहीं किया है।

इकाई अध्यक्ष ने कहा कि जब कोरोना काल में छात्र हॉस्टल में रहा ही नहीं तो छात्र हॉस्टल फीस क्यों दे? उन्होंने बताया कि हिमाचल विश्वविद्यालय में पढ़ने वाला अधिकतर छात्र समुदाय आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से संबंध रखता है। ऐसे में इस समय में जहां तो वि.वि. प्रशासन को छात्रों के लिए फीस पर रियायतें देनी चाहिए थी, वहीं इसके विपरीत विश्वविद्यालय प्रशासन छात्रों से जबरदस्ती फीस वसूलने में लगा हुआ है। जिससे छात्र मानसिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित हो रहे हैं।

अध्यक्ष रॉकी ने यह भी कहा कि कोरोना काल में सिर्फ परीक्षा के समय ही हॉस्टल खुले थे जिसके लिए छात्रों ने उतने समय की फीस उस समय दे दी थी और उसके बाद उस सत्र में अधिकतर समय हॉस्टल बंद ही रहे थे। अब विश्विद्यालय किस आधार पर छात्रों से फीस मांग रहा है यह सवाल एसएफआई ने वित्त अधिकारी के समाने रखा है।

अध्यक्ष ने बताया कि बहुत से छात्र ऐसे है जिनकी विश्वविद्यालय प्रशासन अब डिग्री लेने पर भी रोक लगा रहा है।

एसएफआई इकाई ने कहा है कि अगर जल्द से जल्द इन छात्र मांगों को पूरा नहीं किया गया तो आने वाले समय में एसएफआई आम छात्रों को लामबंद करते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ उग्र आंदोलन करेगी।

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एचपीयू की स्वतयत्ता बहाली की मांग को लेकर एबीवीपी ने शिक्षा मंत्री को सौंपा ज्ञापन

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शिमला- हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की स्वायत्तता बहाली की मांग को लेकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने ऐतिहासिक पिंक पैटल पर धरना प्रदर्शन किया गया।

एबीवीपी इकाई सचिव कमलेश ठाकुर ने कहा कि प्रदेश का प्रमुख उच्च शिक्षण संस्थान हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के अधिनियम 1970 के अनुच्छेद 21 एवं 28(1) में वर्ष 2015 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार की ओर से किए गए संशोधन की वजह से विश्वविद्यालय के विकास कार्य तथा छात्र हितों में शीघ्र निर्णय लेने की प्रक्रिया में बहुत बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं।

उन्होंने कहा कि बीते वर्ष 22 जुलाई को हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान इन संशोधनों को वापिस लेने तथा विश्वविद्यालय की स्वायतता को पुनः बहाल करने की घोषणा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ओर शिक्षा मंत्री गोविंद ठाकुर की ओर सेकी गई थी जिसका विद्यार्थी परिषद ने स्वागत किया था,लेकिन अभी तक प्रदेश सरकार की ओर से इस घोषणा का पूरा नहीं किया गया है जिसके कारण विश्वविद्यालय में कई विकास कार्यों और नियुक्तियों को लेकर बाधाएं आ रही है।

कमलेश ने कहा की किसी भी विश्वविद्यालय के विकास तथा गुणवत्ता के लिए उसकी पूर्णतः स्वायतता का होना अति आवश्यक है। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की स्वायतता न होने की वजह से विश्वविद्यालय के विकास से संबंधित और महत्वपूर्ण निर्णय लेने की प्रक्रिया में देरी होना विश्वविद्यालय के छात्रों, अध्यापकों व कर्मचारियों के लिए सही नहीं है। स्वायतता बहाल न होने के कारण विवि प्रशासन विश्वविद्यालय से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर निर्णय नहीं ले पा रहा है ।

इकाई सचिव ने कहा कि अनुच्छेद 28(1) के अंतर्गत विश्वविद्यालय में शिक्षकों एवं गैर शिक्षकों की विभिन्न श्रेणियों के पदों का सृजन व पदों की भर्तियां, पदोन्नति नियमों का निर्माण एवं संशोधन इत्यादि सर्वप्रथम प्रदेश सरकार की वित्त समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जाना अपेक्षित है। उसके पश्चात वह प्रस्ताव कार्यकारिणी परिषद में विचारार्थ/ अनुमोदनार्थ हेतु प्रस्तुत किया जाता है जिस वजह से विश्वविद्यालय में विकासशील कार्य करने में बहुत समय लगता है।

उन्होंने कहा जहां तक पदों की भर्तियां व उनके सृजन का सम्बंध है, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में शिक्षकों व गैर शिक्षकों की भर्तियां व पदों का सृजन प्रदेश सरकार के आदेशानुसार और स्वीकृति के बाद ही संभावित होती है। कई बार कुछ प्रकरणों पर विश्वविद्यालय को शीघ्र कार्रवाई ओर शीघ्र निर्णय लेना बहुत आवश्यक होता है,लेकिन उपरोक्त अधिनियम में संशोधन की वजह से इन कार्यों में बहुत देरी हो जाती है।

विद्यार्थी परिषद का मानना है कि विश्वविद्यालय जैसे शिक्षण संस्थान के लिए विकास कार्यो में और महत्वपूर्ण निर्णय लेने में देरी होना प्रदेश विश्वविद्यालय के छात्रों, अध्यापकों व कर्मचारियों के लिए सही नहीं है।

विद्यार्थी परिषद प्रदेश सरकार से मांग करते हुए कहा कि अधिनियम 1970 के अनुच्छेद 21 एवं 28 में वर्ष 2015 में किए गए संशोधन पर सरकार पुनः विचार करे ओर प्रदेश विश्वविद्यालय के छात्रों, अध्यापकों व कर्मचारियों के हित को ध्यान में रखते हुए उपरोक्त अधिनियम में किए गए संशोधन को पुनः इसके मूल रूप में बहाल करे, ताकि हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की स्वायतता यथावत बनी रहे।

धरने प्रदर्शन के उपरांत एबीवीपी एचपीयू का प्रतिनिधिमंडल शिक्षा मंत्री को ज्ञापन सौंपा और सरकार से मांग की है कि प्रदेश सरकार जल्द से जल्द विवि की स्वायतता को बहाल करे ताकि विवि प्रशासन अपने बलबूते पर विश्वविद्यालय के विकास एवं अन्य मुद्दों पर फैसले ले सके।

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