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हिमाचल कांग्रेस ने नोटबंदी के खिलाफ आरबीआई की शिमला शाखा का किया घेराव, गवर्नर को सौंपा ज्ञापन

नोटबंदी का फायदा मात्र भाजपा के चुनिदां लोगों को फयादा पंहुचान तथा अमरिकी मुद्रा डाॅलर की किमत को बढाना था, नोटबंदी से आम लोगो को कोई भी फायदा नही हुआ है।
शिमला- आज हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ठाकुर सुखविन्दर सिंह सुक्खू की अध्यक्षता में कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने शिमला (कसुम्पटी) में नोटबंदी के खिलाफ धरना प्रदर्शन कर भारतीय रिजर्व बैंक की शाखा का घेराव किया।
धरने-प्रदर्शन में आये कांग्रेस कार्यकर्ताओं को सम्बोधित करते हुए अपने सम्बोधन में प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष ठाकुर सुखविन्दर सिंह सुक्खू ने कहा कि नोटबंदी का फैसला बिना सोचे समझें, आगे की तैयारी किये बैगर जल्दवाजी में देश की जनता पर थोपा गया है, जिसमे आरबीआई संस्था की स्वायत्ता को भी खत्म किया गया। उन्होंनें कहा कि नोटबंदी के बाद हिमाचल प्रदेश में कई जहग में भाजपा ने पार्टी के नाम पर करोडों रूपये की जमीने खरीदी हैं।
हरियाण के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुडडा ने अपने सम्बोधन में कहा कि नोटबंदी का फायदा मात्र भाजपा के चुनिदां लोगों को फयादा पंहुचान तथा अमरिकी मुद्रा डाॅलर की किमत को बढाना था, नोटबंदी से आम लोगो को कोई भी फायदा नही हुआ है।
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पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा
अपने संभोदन के बाद कांग्रेस पार्टी ने नोटबंदी के खिलाफ भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर को ज्ञापन सौंपा, जिसमें प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ठाकुर सुखविन्दर सिंह सुक्खू, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुडडा, सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य मंत्री विद्या स्टोक्स, डा0 कर्नल धनी राम शांडिल, सांसद शादी लाल बत्रा, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी समन्यवक निर्मल सिंह, संजय कोचड, प्रदेश कांग्रेस कमेटी महासचिव हरभजन सिंह भज्जी, हर्षवर्धन चैहान, ने आरबीआई के अधिकारी के माध्यम से भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर को ज्ञापन सौंपा।

आरबीआई अधिकारी के माध्यम से भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर को ज्ञापन सौंपते कांग्रेस नेता
इस धरने प्रदर्शन में हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष,विधायक अनिरूध सिंह, प्रदेश महिला कांग्रेस अध्यक्षा,सेवा दल प्रमुख सहित इस धरने प्रदर्शन में कांग्रेस पार्टी के पदाधिकारीयों, कार्यकारिणी के सदस्यों, अंग्रणी संगठनों व विभागों के प्रमुख एवं कार्यकारिणी के सदस्यों, जिला व ब्लाॅक अध्यक्षों एवं कार्यकारिणीयों के सदस्यों सहित पूरे प्रदेश से आये सैंकाड़ों कार्यकर्ताओं ने हिस्सा लिया।

सड़क के बीच बैठकर नारे लगाते कांग्रेस कार्यकर्ता
हिमाचल प्रदेश कांग्रेस द्वारा आरबीआई के अधिकारी के माध्यम से भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर को सौंपें ज्ञापन में दिए गए सुझाव
1: नोटबंदी -बिना सोचे-समझे लिया फैसला, आर्थिक अराजकता तथा मुसीबतों का पहाड़
आम भारतीयों को अपने ही खाते से अपनी गाढ़े पसीने की कमाई क्यों नहीं निकालने दी जा रही है? कांग्रेस उपाध्यक्ष, राहुल गांधी और भूतपूर्व प्रधानमंत्री, डाॅ. मनमोहन सिंह मोदी सरकार तथा आरबीआई से पूछते हैं कि क्या वो किसी भी एक ऐसे देश का नाम बता सकते हैं जहां लोगों को अपने बैंक खातों में अपना पैसा निकालने पर ही रोक लगा दिया गया हो? आरबीआई हर सप्ताह 24,000 रु. निकालने की सीमा को आखिर क्यों नहीं हटा रहा है?
नोटबंदी के चलते 120 से अधिक निर्दोष नागरिकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। उनका क्या कसूर था? नोटबंदी के चलते लोगों पर आई मुसीबतों तथा इन दर्दनाक मौतों का जिम्मेदार कौन है? आरबीआई और मोदी सरकार को इन परिवारों तथा पूरे देश से माॅफी मांगनी चाहिए एवं मृत लोगों के परिवारों को मुआवजा भी देना चाहिए।
आरबीआई, वित्त मंत्रालय तथा सरकार के अन्य विभागों ने 70 दिनों में नोटबंदी के नियमों में 138 बार बदलाव किया। अकेले आरबीआई ने 70 दिनों 78 बार नियम बदले जिसके बाद लोगों ने इसे ‘रिवर्स बैंक आॅफ इंडिया’ कहना शुरु कर दिया। क्या इससे यह प्रदर्शित नहीं होता है कि आरबीआई ने इस फैसले के लिए कोई भी तैयारी नहीं की थी? सच्चाई यह है कि आरबीआई एवं मोदी सरकार ने आनन फानन में नोटबंदी फैसला ले डाला।
8 नवंबर, 2016 के नोटबंदी के फैसले से देश के 86 प्रतिशत नोट चलन से बाहर हो गए। विशेषज्ञों की मानें तो 500 रु. के 1658 करोड़ नोट तथा 1000 रु. के 668 करोड़ नोट, यानि कुल 15 लाख करोड़ रु. के 2327 करोड़ नोट चलन से बाहर कर दिए गए।
1000 रु. के नोट ‘भारतीय रिज़र्व बैंक नोट मुद्रण प्राईवेट लिमिटेड’ द्वारा छापे जाते हैं। दो शिफ्ट में काम करने पर इसकी नोट छापने की क्षमता 133 करोड़ नोट प्रतिमाह है। अगर तीन शिफ्ट में भी काम करें, तो यह कंपनी हर महीने 200 करोड़ नोट छाप सकती है। 500 रु. के नोट सरकारी कंपनी ‘सिक्योरिटी प्रिंटिंग एंड मिंटिंग कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड’ द्वारा छापे जाते हैं, जिसकी क्षमता 100 करोड़ नोट प्रतिमाह की है। दोनों कंपनियों की क्षमता को देखते हुए चलन से बाहर हुए 86 प्रतिशत नोटों को छापने में 6 से 8 माह लगेंगे।
आरबीआई देश के लोगों को ईमानदारी से यह क्यों नहीं बता रही है कि ‘पुराने नोटों’ की जगह ‘नए नोटों’ को छापने में आखिर कितना समय लगेगा?
500 रु. और 2000 रु. के नए नोटों में कोई नया मबनतपजल थ्मंजनतम नहीं है। न कोई नया वाॅटरमार्क है, न ैमबनतपजल जीतमंक न थ्पइमत और न ही स्ंजमदज प्उंहम । ऐसे में ये नोट पुराने बंद किए गए नोटों से ज्यादा सुरक्षित कैसे होंगे? क्या मात्र रंग व साईज़ बदलने से क्या नए नोटों की पर्याप्त सुरक्षा रह पाएगी? क्या आरबीआई और मोदी जी इसकी जिम्मेदारी लेते हैं?
चैंकाने वाली बात यह है कि मोदी सरकार ने तीन अलग-अलग तरह के 500 रु. के नोट छाप दिए, जो आरबीआई ने स्वयं माना है। जब सरकार खुद कह रही है कि 500 रु. के तीनों तरह के नोट कानूनी मुद्रा हैं, तो फिर क्या ऐसे में नकली नोटों के कारोबारियों द्वारा स्थिति का फायदा उठाकर लोगों को ठगे जाने की संभावना नहीं बढ़ जाएगी?
चैंकाने वाली दूसरी बात यह है कि 500 रु. और 2000 रु. के नए नोटों में बहुत ही खराब क्वालिटी की स्याही का प्रयोग किया गया है, जिससे इन नोटों का रंग कुछ समय में ही उतरने लगता है। क्या इससे भारत के नोटों की विश्वसनीयता को दांव पर नहीं लगा दिया गया है, जिनकी क्वालिटी इतनी घटिया है कि इनकी प्रिंटिंग की स्याही तक उतर रही है?
क्या आरबीआई तथा मोदी सरकार ने पुराने नोटों को नए नोटों से बदलने की कुल लागत आंकी है? क्या यह लागत 25,000-30,000 करोड़ रुपया है, जैसा कई अर्थशास्त्रियों का मानना है? यह खर्च कौन उठाएगा?
प्रधानमंत्री,नरेंद्र मोदी का यह दावा था कि नोटबंदी के इस फैसले से ‘कालाधन’ रोकने में मदद मिलेगी। क्या आरबीआई यह बताएगा कि 1000 रु. के नोटों को 2000 रु. के नोटों से बदलने पर कालाधन रोकने में मदद कैसे मिलेगी? क्या इससे कालाधन इकट्ठा करने वालों को पैसा रखना आसान नहीं हो जाएगा। यदि नोटबंदी का परिणाम यह हुआ कि लोग ज्यादा आसानी से नकद पैसा अपने पास रखने लगे, तो सरकार के लिए कालाधन रोकने में इससे बड़ी असफलता और क्या होगी?
‘ब्लैक मनी एमनेस्टी स्कीम 2016’ के तहत कालाधन घोषित करने वालों को पुराने नोटों में टैक्स देने की छूट दे दी गई। जब ईमानदार और मेहनतकश भारतीय बैंकों की लाईनों में धक्के खा रहे थे, उसी समय टैक्स चोरी करने वालों तथा कालाधन इकट्ठा करके रखने वालों को आरबीआई एवं मोदी सरकार ने अपना पैसा सफेद बनाने का यह सुनहरा मौका क्यों दे डाला? क्या इससे सरकार द्वारा कालाधनधारकों को संरक्षण देना साफ नहीं होता?
नोटबंदी ने ‘राष्ट्रीय आय’ तथा ‘जीडीपी’ पर बहुत बुरा असर डाला है। सेंटर फाॅर माॅनिटरिंग आॅन इंडियन इकाॅनाॅमी (सीएमआईई) ने नोटबंदी के पहले 50 दिनों में हुआ नुकसान 1,28,000 करोड़ रु. आंका है। 16 जनवरी, 2017 की एक रिपोर्ट में इंटरनेशनल मोनेटरी फंड (आईएमएफ) ने वित्तवर्ष 2016-17 में भारत की जीडीपी को 1 प्रतिशत के नुकसान का अनुमान लगाया है। इसका मतलब है कि देश की जीडीपी को 1,50,000 करोड़ रु. का नुकसान होगा। प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री एवं भूतपूर्व प्रधानमंत्री, डाॅ. मनमोहन सिंह ने जीडीपी को लगभग 2 प्रतिशत या 3,00,000 करोड़ रु. के नुकसान का अनुमान लगाया है। आईएमएफ रिपोर्ट की मानें तो भारत अब ‘सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था’ वाले देशों की फेहरिस्त में चीन से पिछड़ गया है। 17 जनवरी, 2017 की ‘वल्र्ड इकाॅनाॅमिक फोरम’ की रिपोर्ट में ‘इंक्लुसिव ग्रोथ एण्ड डेवलपमेंट इंडेक्स’ में 79 देशों में भारत की स्थिति को घटाकर 60 पर कर दिया गया है।
क्या आरबीआई और मोदी सरकार देश की अर्थव्यवस्था तथा जीडीपी को हुए नुकसान के बारे में बताएंगे?
नोटबंदी ने कृषि अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ दी है। फार्म एवं को-आॅपरेटिव सेक्टर इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। 370 जिला को-आॅपरेटिव बैंकों एवं 93,000 से अधिक कृषि को-आॅपरेटिव सोसायटीज़ पर सीधी गाज़ गिरी है।
छोटे और मध्यम उद्योग बंद हो गए हैं और नौकरियां खत्म हो रही हैं। रेहड़ी पटरी वालों, हाॅकर्स, बढ़ई, प्लंबर, राजमिस्त्री, इलेक्ट्रिशियन, लोहार, कपड़ा व्यापारियों, किराना दुकानदारों, सब्जीवालों, छोटे कारोबारियों और दुकानदारों पर मुसीबतों का पहाड़ टूट गया है। भारत में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाली नकद लेन-देन पर आधारित अर्थव्यवस्था पूरी तरह से टूट गई है। क्या आरबीआई या मोदी सरकार को इन परिणामों का अनुमान है?
2: विश्वसनीयता खोने और आरबीआई की स्वायत्ता खत्म करने के लिए आरबीआई गवर्नर पर जिम्मेदारी का निर्धारण
मोदी सरकार ने 7 नवंबर, 2016 को आरबीआई को एक एडवाईज़री भेजा, जिसमें 1000/500 रु. के नोट बंद करने को कहा गया। 8 नवंबर, 2016 को आरबीआई बोर्ड ने बैठक कर इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। इससे यह साबित होता है कि आरबीआई ने बिना सोचे समझे अपनी स्वायत्ता मोदी सरकार को सौंपने का निर्णय कर लिया।
आरबीआई ने मोदी सरकार से एक ही झटके में 86 प्रतिशत नोटों को बंद करने से काॅस्ट-बेनेफिट एनालिसिस के लिए क्यों नहीं कहा? आरबीआई 8 नवंबर, 2016 को हुई आरबीआई की मीटिंग का विवरण जनता के सामने क्यों नहीं रख रही है? क्या यह प्रधानमंत्री के फरमानों की वजह से आरबीआई की अपनी स्वायत्ता को सरकार के समक्ष सौंपने के खुलासे के डर से तो नहीं है?
रिज़र्व बैंक के अधिकारियों तथा कर्मचारियों के यूनाईटेड फोरम ने 13 जनवरी, 2017 को आरबीआई गर्वनर को पत्र लिखकर ‘कार्यसंबंधी कुप्रबंधन’ के बारे में बताया, जिससे आरबीआई की स्वायत्ता तथा प्रतिष्ठा पर गंभीर सवाल उठे हैं। यह आरबीआई के अधिकारियों तथा कर्मचारियों द्वारा आरबीआई गवर्नर के प्रति खोए हुए विश्वास का स्पष्ट प्रमाण है।
आरबीआई अधिकारियों तथा कर्मचारियों ने वित्त मंत्रालय के हस्तक्षेप पर भी आपत्ति की। लेकिन आरबीआई गवर्नर ने इस पूरे मामले में चुप्पी साधे रखी।
आरबीआई के बोर्ड आॅफ डायरेक्टर्स में कुल 21 सदस्य हैं। इनमें से 8 सदस्य 8 नवंबर, 2016 की मीटिंग में शामिल हुए, जिसमें नोटबंदी का फैसला लिया गया। इन 8 सदस्यों में से 4 स्वतंत्र सदस्य थे। तो यह कैसे माना लिया जाए कि नोटबंदी जैसे बड़े फैसले को लेने से पहले पूरी गंभीरता से विचार किया गया होगा?
8 नवंबर, 2016 को कुल 15.44 लाख करोड़ नोट बंद कर दिए गए। आरबीआई के आंकड़े प्रदर्शित करते हैं कि 30 नवंबर, 2016 तक 15 लाख करोड़ फिर से जमा कर दिए गए। एनआरआई को 31 मार्च, 2017 तक अपने पुराने नोट जमा करने की छूट है। इसके अलावा भारत सरकार को पड़ोसी नेपाल से पुराने नोट बदलने के लिए भी एक समाधान निर्मित करना होगा।
97 प्रतिशत पुराने नोट फिर से आरबीआई के खजाने में वापस आ जाने के बाद क्या आरबीआई और मोदी सरकार अब देश को बताएंगे कि काला धन कहां गया? क्या यह नए नोटों में बदल दिया गया? यदि हां, तो आरबीआई तथा सरकार ऐसा करने वालों के खिलाफ क्या कार्यवाही कर रही है?
कैशलेस के नाम पर प्राईवेट कंपनियां भारत के नागरिकों से 2.5 प्रतिशत से 5 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क ले रही हैं। रेगुलेटर के रूप में आरबीआई को कैशलेस के नाम पर लिए जाने वाले कमीशन/सेवा शुल्क को बंद करने के अविलंब निर्देश जारी करने चाहिए।
बैंकों के अलावा कई प्राईवेट कंपनियों को आरबीआई से नोट बदलने की अनुमति दी गई। इनमें से कई का भाजपा सरकार से संबंध है। क्या आरबीआई इन कंपनियों को चुनने के मापदंडों का खुलासा करेगी, जिन्हें पुराने करेंसी नोटों को नए से बदलने की अनुमति दी गई है? क्या इन कंपनियों को चुनने में पारदर्शी प्रक्रिया का पालन किया गया? इन कंपनियों द्वारा कितने पुराने नोट नए नोटों से बदले गए?
आरबीआई के आंकड़े बताते हैं कि अकेले सितंबर, 2016 में शेड्यूल्ड बैंकों में 5,86,000 करोड़ रु. जमा किए गए, जिनमें से 1 से 15 सितंबर, 2016 के बीच की गई फिक्स्ड डिपाॅज़िट लगभग 3,20,000 करोड़ रु. की है। आरबीआई ने इस मामले की जांच करके नोटबंदी से ठीक पहले 5,86,000 करोड़ रु. बैंकों में जमा होने के कारण का पता लगाने की कोशिश क्यों नहीं की?
भारत के वित्तीय रेगुलेटर, भारत की प्रमुख मोनेटरी अथाॅरिटी, भारत के नोटों के संरक्षक एवं जारीकर्ता तथा भारत के राष्ट्रीय लक्ष्यों के प्रमोटर के रूप में आरबीआई की छवि पूरी तरह से क्षत-विक्षत हो गई है। आरबीआई मोदी सरकार की प्रवक्ता बन गई है और केंद्र सरकार की कठपुुतली बनकर काम कर रही है। इससे न केवल भारत के सर्वोच्च वित्तीय रेगुलेटर की निष्पक्षता एवं विश्वसनीयता नष्ट हुई है, बल्कि यह भारत के विकास के लिए स्थिर वित्तीय स्थिति बनाने के लिए भी काफी नुकसानदायक है। आज आरबीआई की विश्वसनीयता, स्वायत्ता तथा अखंडता को दोबारा स्थापित करने तथा आरबीआई के कामकाज पर मोदी सरकार के नाजायज नियंत्रण को समाप्त करने की आवश्यकता है।
2: विश्वसनीयता खोने और आरबीआई की स्वायत्ता खत्म करने के लिए आरबीआई गवर्नर पर जिम्मेदारी का निर्धारण
3: आईएनसी की मांग
हम सरकार से भारत के लोगों पर लगे सारे प्रतिबंध हटाकर ‘अपना पैसा निकालने की स्वतंत्रता’ देने की मांग करते हैं। आरबीआई तथा मोदी सरकार को, भारत के 125 करोड़ लोगों की ओर से कांग्रेस पार्टी द्वारा इस मेमोरेंडम के माध्यम से उठाए गए प्रश्नों के जवाब एक ‘व्हाईट पेपर’ जारी करके देने चाहिए।
आरबीआई की स्वायत्ता तथा वैधानिक शक्तियों के साथ निस्संदेह समझौता किया गया है। आरबीआई की विश्वसनीयता खोने की जिम्मेदारी आज सिर्फ आरबीआई गवर्नर पर है।
आरबीआई गवर्नर को ‘नोटबंदी के कारण हुई अव्यवस्था’ तथा मोदी सरकार द्वारा आरबीआई के कार्यक्षेत्र में दखलंदाजी करने देने की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से तत्काल इस्तीफा देना चाहिए। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने दशकों तक आरबीआई को एक संस्थान के रूप में विकसित किया है। आज आरबीआई की स्वायत्ता को एक बार फिर से भारत के वित्तीय रेगुलेटर के रूप में पुनः स्थापित किए जाने की तत्काल आवश्यकता है।
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हिमाचल की तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर लगे 76,000 से अधिक सेब के पौधे

शिमला- डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के विस्तार शिक्षा निदेशालय में पहाड़ी कृषि एवं ग्रामीण विकास एजेंसी(हार्प), शिमला द्वारा एक अनुभव-साझाकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया।
इस कार्यशाला में जिला किन्नौर के निचार विकास खंड के रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों के 34 किसानों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर जीएम नाबार्ड डॉ. सुधांशु मिश्रा मुख्य अतिथि रहे जबकि नौणी विवि के अनुसंधान निदेशक डॉ रविंदर शर्मा ने विशिष्ट अतिथि के रूप में शिरकत की।
संस्था के अध्यक्ष डॉ. आर एस रतन ने कहा कि यह कार्यक्रम एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना के तहत रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों में वर्ष 2014 से आयोजित किया जा रहा है। परियोजना को नाबार्ड द्वारा वित्त पोषित किया गया है और इसे हार्प द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
उन्होंने यह बताया कि यह एक बागवानी आधारित आजीविका कार्यक्रम है जिसे किसानों की भागीदारी से लागू किया गया है। इन तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर 76,000 से अधिक सेब के पौधे लगाए गए हैं और 607 परिवार लाभान्वित हुए हैं।
डॉ. सुधांशु मिश्रा ने यह भी कहा कि नाबार्ड हमेशा सामाजिक-आर्थिक उत्थान कार्यक्रमों के संचालन में आगे रहा है। उन्होंने इस कार्यशाला में भाग लेने वाले किसानों से अपने सहयोग से विभिन्न कार्यक्रमों को सफल बनाने का आग्रह किया।
अनुसंधान निदेशक डॉ. रविंदर शर्मा और विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. दिवेंद्र गुप्ता ने नाबार्ड और हार्प के प्रयासों की सराहना की और किसानों को आश्वासन दिया कि विश्वविद्यालय किसानों को तकनीकी रूप से समर्थन देने के लिए हमेशा तैयार है।
डॉ. नरेद्र कुमार ठाकुर ने कहा कि हार्प ने कृषक समुदाय के समन्वय से दुर्गम क्षेत्रों में कठिन परिस्थितियों में काम किया है। इस अवसर पर एक किसान-वैज्ञानिक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया जिसमें भाग लेने वाले किसानों के तकनीकी प्रश्नों को संबोधित किया गया।
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हिमाचल सरकार पुलिसकर्मियों का कर रही है शोषण

पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है,कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है,राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है,हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।
शिमला सीटू राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। कमेटी ने यह कहा है कि वह हिमाचल प्रदेश के पुलिसकर्मियों की मांगों का पूर्ण समर्थन करती है। आरोप लगाते हुए सीटू ने कहा है कि प्रदेश सरकार पुलिसकर्मियों का शोषण कर रही है।
राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार से यह मांग की है कि वर्ष 2013 के बाद नियुक्त पुलिसकर्मियों को पहले की भांति 5910 रुपये के बजाए 10300 रुपये संशोधित वेतन लागू किया जाए व उनकी अन्य सभी मांगों को बिना किसी विलंब के पूरा किया जाए।
सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में भी कर्मचारियों की प्रमुख मांगों को अनदेखा किया गया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में पुलिसकर्मियों की मांगों को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है।
सीटू कमेटी ने कहा कि सबसे मुश्किल डयूटी करने वाले व चौबीस घण्टे डयूटी में कार्यरत पुलिसकर्मियों को इस बैठक से मायूसी ही हाथ लगी है। इसी से आक्रोशित होकर पुलिसकर्मी मुख्यमंत्री आवास पहुंचे थे। उनके द्वारा पिछले कुछ दिनों से मैस के खाने के बॉयकॉट से उनकी पीड़ा का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि पुलिस कर्मियों के साथ ही सभी सरकारी कर्मचारी नवउदारवादी नीतियों की मार से अछूते नहीं है। कमेटी ने कहा कि पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है। कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।
कमेटी ने यह भी कहा है कि थानों में स्टेशनरी के लिए बेहद कम पैसा है व आईओ को केस की पूरी फ़ाइल का सैंकड़ों रुपये का खर्चा अपनी ही जेब से करना पड़ता है। थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है। मैस मनी केवल दो सौ दस रुपये महीना है जबकि मैस में पूरा महीना खाना खाने का खर्चा दो हज़ार रुपये से ज़्यादा आता है। यह प्रति डाइट केवल साढ़े तीन रुपये बनता है, जोकि पुलिस जवानों के साथ घोर मज़ाक है। यह स्थिति मिड डे मील के लिए आबंटित राशि से भी कम है।
उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के जमाने के बने बहुत सारे थानों की स्थिति खंडहर की तरह प्रतीत होती है जहां पर कार्यालयों को टाइलें लगाकर तो चमका दिया गया है परन्तु कस्टडी कक्षों,बाथरूमों,बैरकों,स्टोरों,मेस की स्थिति बहुत बुरी है। इन वजहों से भी पुलिस जवान भारी मानसिक तनाव में रहते हैं।
सीटू ने कहा कि पुलिस में स्टाफ कि बहुत कमी है या यूं कह लें कि बेहद कम है व कुल अनुमानित नियुक्तियों की तुलना में आधे जवान ही भर्ती किये गए हैं जबकि प्रदेश की जनसंख्या पहले की तुलना में काफी बढ़ चुकी है यहाँ तक पुलिस के पास रिलीवर भी नहीं है।
आरोप लगाते हुए कमेटी ने कहा कि प्रदेश की राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है। वहीं पुलिस कर्मी निरन्तर ओवरटाइम डयूटी करते हैं। इसकी एवज में उन्हें केवल एक महीना ज़्यादा वेतन दिया जाता है। इस से प्रत्येक पुलिसकर्मी को वर्तमान वेतन की तुलना में दस से बारह हज़ार रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है। उन्हें लगभग नब्बे साप्ताहिक अवकाश,सेकंड सैटरडे,राष्ट्रीय व त्योहार व अन्य छुट्टियों के मुकाबले में केवल पन्द्रह स्पेशल लीव दी जाती है।
सीटू कमेटी ने यह भी कहा कि वर्ष 2007 में हिमाचल प्रदेश में बने पुलिस एक्ट के पन्द्रह साल बीतने पर भी नियम नहीं बन पाए हैं। इस एक्ट के अनुसार पुलिसकर्मियों को सुविधा तो दी नहीं जाती है परन्तु कर्मियों को दंडित करने के लिए इसके प्रावधान बगैर नियमों के भी लागू किये जा रहे हैं जिसमें एक दिन डयूटी से अनुपस्थित रहने पर तीन दिन का वेतन काटना भी शामिल है। पुलिसकर्मियों की प्रोमोशन में भी कई विसंगतियां हैं व इसका टाइम पीरियड भी बहुत लंबा है। हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।
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किन्नौर में लापता पर्यटकों में से 2 और के शव बरामद, 2 की तालाश जारी,आभी तक कुल 7 शव बरामद

शिमला रिकोंगपिओ में 14 अक्तुबर को उत्तरकाशी के हर्षिल से छितकुल की ट्रैकिंग पर निकले 11 पर्यटकों में से लापता चार पर्वतारोहीयों में से दो पर्वतारोहियों के शवो को आई.टी.बी.पी व पुलिस दल द्वारा पिछले कल सांगला लाया गया था जहां सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र सांगला में दोनों शवों का पोस्टमार्टम किया गया।
यह जानकारी देते हुए उपायुक्त किन्नौर अपूर्व देवगन ने बताया कि इन दोनों की पहचान कर ली गई है जिनमे मे एक उतरकाशी व दूसरा पश्चिम बंगाल से सम्बंधित था।
उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन किन्नौर द्वारा आज एक शव वाहन द्वारा उतरकाशी को भेज दिया गया है जहाँ शव को जिला प्रशासन उतरकाशी को सौंपा जाएगा। जब कि दूसरा शव वाहन द्वारा शिमला भेजा गया है जिसे शिमला में मृतक के परिजनों को सौंपा जायेगा।
उपायुक्त अपूर्व देवगन ने बताया कि अभी भी लापता दो पर्यटकों की तलाश आई.टी.बी.पी के जवानों द्वारा जारी है। उल्लेखनीय है कि गत दिनों उतरकाशी से छितकुल के लिये 11 पर्वतारोही ट्रेकिंग पर निकले थे जो बर्फबारी के कारण लमखंगा दर्रे में फंस गये थे जिसकी सूचना मिलने पर जिला प्रशासन द्वारा सेना के हेलीकॉप्टर व आई.टी.बी.पी के जवानों की सहायता से राहत व बचाव कार्य आरम्भ किया था। सेना व आई.टी.बी.पी के जवानों ने 21 अक्टूबर को दो पर्यटकों को सुरक्षित ढूंढ निकाला था। इसी दौरान उन्हें अलग अलग स्थानों पर पाँच ट्रेकरों के शव ढूंढ निकलने में सफलता मिली थी। जबकि 4 पर्यटक लापता थे जिसमे से राहत व बचाव दल को 22 अक्तुबर को 2 शव ढूढ़ निकालने में सफलता मिली थी। अभी भी दो पर्यटक लापता हैं जिनकी राहत व बचाव दल द्वारा तलाश जारी है।
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