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बख्‍शो जैसे खिलाड़ियों पर रहम खाए हिमाचल सरकार, आठ महीने हो गए अभी तक दाखिला नहीं

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आठ महीने हो गए, उसे दाखिला नहीं मिला। अब सरकारी अफसर कह रहे हैं वह ट्रायल में फेल हो गई है। उन्हें लगता है गांव की एक गरीब लड़की बिना किसी ट्रेनिंग के जिंदगी भर हर रेस में अव्वल रहेगी। इसलिए उसका घर बैठना ही ठीक है।

शिमला- हिमाचल में खेल विधेयक को लेकर खेल जारी है। सरकार चाहती है कि वह जल्द से जल्द हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एचपीसीए) को अपने कब्जे में लेकर राज्य को खेल पर फोकस करे। राजभवन इस विधेयक को ठंडे बस्ते में डाल कर बैठ गया है।

राज्य की चिर प्रतीक्षित खेल नीति सरकारी फाइलों में कैद है। खिलाड़ियों का कोई पुरसाहाल नहीं। बख्शो देवी आपको याद होगी जिसने ऊना जिले में नंगे पांव दौड़कर गोल्ड मेडल जीता था। सूबे का हर खेल प्रेमी उसके साथ खड़ा था। सरकार ने कहा था उसे स्पोर्ट्स हॉस्टल में दाखिला देंगे।

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आठ महीने हो गए, उसे दाखिला नहीं मिला। अब सरकारी अफसर कह रहे हैं वह ट्रायल में फेल हो गई है। उन्हें लगता है गांव की एक गरीब लड़की बिना किसी ट्रेनिंग के जिंदगी भर हर रेस में अव्वल रहेगी। इसलिए उसका घर बैठना ही ठीक है। आप समझ सकते हैं इस राज्य में खिलाड़ियों के लिए सरकार किस कद्र संवेदनहीन है।

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खेल विधेयक एक अच्छी शुरुआत हो सकती थी, लेकिन अगर इसके पीछे गंदी राजनीति न होती। अनुराग ठाकुर हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन (एचपीसीए) के अकेले शो मैन हैं। इसके जरिए उन्होंने खेल की दुनिया में हिमाचल को एक नई पहचान दी।

इसके जरिये उन्हें भी खेल की दुनिया में एक पहचान मिली। आज वह बीसीसीआई के अध्यक्ष हैं तो सिर्फ इसलिए क्योंकि इस स्टेडियम के जरिये वह क्रिकेट के सिरमौर बने। सरकार की यही दिक्कत है और यही आरोप भी कि अनुराग ने इसे प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बना दिया है।

बख्‍शों पर अब ये है विभाग का तर्क

अब उसका तर्क है कि वह ट्रायल में हार गई उसे कैसे दाखिला दें? खेल विभाग को लगता है ये उड़नपरी आसमान से बन कर आई है। वह हर बार जीतेगी। जबकि सच ये है कि गरीबी रेखा के नीचे रहने वाली इस लड़की के घर में दो वक्त का पौष्टिक खाना तक नसीब में नहीं।

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बेवा मां है और छोटे भाई बहन। आज के इस प्रतियोगी युग में बिना ट्रेनिंग बिना संतुलित खुराक के अगर खेल विभाग समझता है कि कोई पीटी उषा बन जाएगी तो इसे नासमझी ही कहा जा सकता है। विभाग अगर जिला स्तर पर ही बख्शो की ट्रेनिंग का इंतजाम कर देता तो उसके पंखों को नई उड़ान मिल जाती। बख्शो को ईश्वर लंबी जिंदगी देगा लेकिन बतौर एक खिलाड़ी वह उम्मीद की रेस लगभग हार चुकी है।

अब सरकार की सारी ऊर्जा सिर्फ खेल विधेयक पर खर्च हो रही है। राज्यपाल ने इसे रोक रखा है। उनके पास तीन विकल्प हैं। वह विधेयक को अनुमति दे सकते हैं। दूसरा अनुमति न देकर उसे पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकते हैं और तीसरा राष्ट्रपति की अनुमति के लिए उसे सुरक्षित रख सकते हैं। वह इसे सुरक्षित कब तक रख सकते हैं इसकी कोई समय सीमा संविधान में नहीं।

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और तो और राज्यपाल के बिल वापस भेजने की समय सीमा भी संविधान ने तय नहीं की है। अनुच्छेद 173 में सिर्फ इतना कहा गया है कि राज्यपाल अपने विवेक का प्रयोग करते हुए बिल को वापस भेज सकता है। संविधान के अनुच्छेद 200 के प्रथम उपबंध में जितना शीघ्र संभव हो सके वाक्य का जरूर प्रयोग किया गया है। लेकिन यह शब्दावली भी अस्पष्ट है।

क्योंकि जैसा कि संविधानविद हरि विष्णु कामद ने कहा – किसी को भी नहीं मालूम कि जितना शीघ्र संभव हो सके वाक्य का क्या अर्थ है। खैर ये कानूनी भाषा और कानूनी दांव पेच हैं। सच तो यह है कि सरकार बिल पर दस्तखत के लिए राजभवन को मजबूर नहीं कर सकती। कोर्ट भी इसमें सरकार की कोई मदद कर सकेगा कहना कठिन है। असल मुद्दा ये है कि सरकार को अब ये खेल बंद करना चाहिए।

जरूरत इस बात की है कि वह खेल और खिलाड़ियों के प्रति संवेदनशील हो। लेकिन दिक्कत ये है कि संवेदना के लिए कोई कानून नहीं लाया जा सकता। राजनेताओं और अफसरों की तरबियत (ग्रूमिंग)ऐसी होनी चाहिए कि वे इस पहलू पर स्वत: गौर करें। राजनीति से कुछ हासिल नहीं होगा। अखबार की अपनी सीमाएं हैं। एक चीनी कहावत है- आप घोड़े को नदी तक ले जा सकते हैं लेकिन उसे पानी पीने के लिए मजबूर नहीं कर सकते।

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हिमाचल की तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर लगे 76,000 से अधिक सेब के पौधे

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शिमला- डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के विस्तार शिक्षा निदेशालय में पहाड़ी कृषि एवं ग्रामीण विकास एजेंसी(हार्प), शिमला द्वारा एक अनुभव-साझाकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया।

इस कार्यशाला में जिला किन्नौर के निचार विकास खंड के रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों के 34 किसानों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर जीएम नाबार्ड डॉ. सुधांशु मिश्रा मुख्य अतिथि रहे जबकि नौणी विवि के अनुसंधान निदेशक डॉ रविंदर शर्मा ने विशिष्ट अतिथि के रूप में शिरकत की।

संस्था के अध्यक्ष डॉ. आर एस रतन ने कहा कि यह कार्यक्रम एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना के तहत रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों में वर्ष 2014 से आयोजित किया जा रहा है। परियोजना को नाबार्ड द्वारा वित्त पोषित किया गया है और इसे हार्प द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।

उन्होंने यह बताया कि यह एक बागवानी आधारित आजीविका कार्यक्रम है जिसे किसानों की भागीदारी से लागू किया गया है। इन तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर 76,000 से अधिक सेब के पौधे लगाए गए हैं और 607 परिवार लाभान्वित हुए हैं।

डॉ. सुधांशु मिश्रा ने यह भी कहा कि नाबार्ड हमेशा सामाजिक-आर्थिक उत्थान कार्यक्रमों के संचालन में आगे रहा है। उन्होंने इस कार्यशाला में भाग लेने वाले किसानों से अपने सहयोग से विभिन्न कार्यक्रमों को सफल बनाने का आग्रह किया।

अनुसंधान निदेशक डॉ. रविंदर शर्मा और विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. दिवेंद्र गुप्ता ने नाबार्ड और हार्प के प्रयासों की सराहना की और किसानों को आश्वासन दिया कि विश्वविद्यालय किसानों को तकनीकी रूप से समर्थन देने के लिए हमेशा तैयार है।

डॉ. नरेद्र कुमार ठाकुर ने कहा कि हार्प ने कृषक समुदाय के समन्वय से दुर्गम क्षेत्रों में कठिन परिस्थितियों में काम किया है। इस अवसर पर एक किसान-वैज्ञानिक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया जिसमें भाग लेने वाले किसानों के तकनीकी प्रश्नों को संबोधित किया गया।

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हिमाचल सरकार पुलिसकर्मियों का कर रही है शोषण

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पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है,कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है,राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है,हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।

शिमला सीटू राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। कमेटी ने यह कहा है कि वह हिमाचल प्रदेश के पुलिसकर्मियों की मांगों का पूर्ण समर्थन करती है। आरोप लगाते हुए सीटू ने कहा है कि प्रदेश सरकार पुलिसकर्मियों का शोषण कर रही है।

राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार से यह मांग की है कि वर्ष 2013 के बाद नियुक्त पुलिसकर्मियों को पहले की भांति 5910 रुपये के बजाए 10300 रुपये संशोधित वेतन लागू किया जाए व उनकी अन्य सभी मांगों को बिना किसी विलंब के पूरा किया जाए।

सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में भी कर्मचारियों की प्रमुख मांगों को अनदेखा किया गया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में पुलिसकर्मियों की मांगों को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है।

सीटू कमेटी ने कहा कि सबसे मुश्किल डयूटी करने वाले व चौबीस घण्टे डयूटी में कार्यरत पुलिसकर्मियों को इस बैठक से मायूसी ही हाथ लगी है। इसी से आक्रोशित होकर पुलिसकर्मी मुख्यमंत्री आवास पहुंचे थे। उनके द्वारा पिछले कुछ दिनों से मैस के खाने के बॉयकॉट से उनकी पीड़ा का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि पुलिस कर्मियों के साथ ही सभी सरकारी कर्मचारी नवउदारवादी नीतियों की मार से अछूते नहीं है। कमेटी ने कहा कि पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है। कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।

कमेटी ने यह भी कहा है कि थानों में स्टेशनरी के लिए बेहद कम पैसा है व आईओ को केस की पूरी फ़ाइल का सैंकड़ों रुपये का खर्चा अपनी ही जेब से करना पड़ता है। थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है। मैस मनी केवल दो सौ दस रुपये महीना है जबकि मैस में पूरा महीना खाना खाने का खर्चा दो हज़ार रुपये से ज़्यादा आता है। यह प्रति डाइट केवल साढ़े तीन रुपये बनता है, जोकि पुलिस जवानों के साथ घोर मज़ाक है। यह स्थिति मिड डे मील के लिए आबंटित राशि से भी कम है।

उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के जमाने के बने बहुत सारे थानों की स्थिति खंडहर की तरह प्रतीत होती है जहां पर कार्यालयों को टाइलें लगाकर तो चमका दिया गया है परन्तु कस्टडी कक्षों,बाथरूमों,बैरकों,स्टोरों,मेस की स्थिति बहुत बुरी है। इन वजहों से भी पुलिस जवान भारी मानसिक तनाव में रहते हैं।

सीटू ने कहा कि पुलिस में स्टाफ कि बहुत कमी है या यूं कह लें कि बेहद कम है व कुल अनुमानित नियुक्तियों की तुलना में आधे जवान ही भर्ती किये गए हैं जबकि प्रदेश की जनसंख्या पहले की तुलना में काफी बढ़ चुकी है यहाँ तक पुलिस के पास रिलीवर भी नहीं है।

आरोप लगाते हुए कमेटी ने कहा कि प्रदेश की राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है। वहीं पुलिस कर्मी निरन्तर ओवरटाइम डयूटी करते हैं। इसकी एवज में उन्हें केवल एक महीना ज़्यादा वेतन दिया जाता है। इस से प्रत्येक पुलिसकर्मी को वर्तमान वेतन की तुलना में दस से बारह हज़ार रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है। उन्हें लगभग नब्बे साप्ताहिक अवकाश,सेकंड सैटरडे,राष्ट्रीय व त्योहार व अन्य छुट्टियों के मुकाबले में केवल पन्द्रह स्पेशल लीव दी जाती है।

सीटू कमेटी ने यह भी कहा कि वर्ष 2007 में हिमाचल प्रदेश में बने पुलिस एक्ट के पन्द्रह साल बीतने पर भी नियम नहीं बन पाए हैं। इस एक्ट के अनुसार पुलिसकर्मियों को सुविधा तो दी नहीं जाती है परन्तु कर्मियों को दंडित करने के लिए इसके प्रावधान बगैर नियमों के भी लागू किये जा रहे हैं जिसमें एक दिन डयूटी से अनुपस्थित रहने पर तीन दिन का वेतन काटना भी शामिल है। पुलिसकर्मियों की प्रोमोशन में भी कई विसंगतियां हैं व इसका टाइम पीरियड भी बहुत लंबा है। हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।

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किन्नौर में लापता पर्यटकों में से 2 और के शव बरामद, 2 की तालाश जारी,आभी तक कुल 7 शव बरामद

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शिमला रिकोंगपिओ में 14 अक्तुबर को उत्तरकाशी के हर्षिल से छितकुल की ट्रैकिंग पर निकले 11 पर्यटकों में से लापता चार पर्वतारोहीयों में से दो  पर्वतारोहियों के शवो को आई.टी.बी.पी व पुलिस दल द्वारा पिछले कल सांगला लाया गया था जहां सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र सांगला में दोनों शवों का पोस्टमार्टम किया गया।

यह जानकारी देते हुए उपायुक्त किन्नौर अपूर्व देवगन ने बताया कि इन दोनों की पहचान कर ली गई है जिनमे मे एक उतरकाशी व दूसरा पश्चिम बंगाल से सम्बंधित था।

उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन किन्नौर द्वारा आज एक शव वाहन द्वारा उतरकाशी को भेज दिया गया है जहाँ शव को जिला प्रशासन उतरकाशी को सौंपा जाएगा। जब कि दूसरा शव वाहन द्वारा शिमला भेजा गया है जिसे शिमला में मृतक के परिजनों को सौंपा जायेगा।

उपायुक्त अपूर्व देवगन ने बताया कि अभी भी लापता दो  पर्यटकों की तलाश आई.टी.बी.पी के जवानों द्वारा जारी है। उल्लेखनीय है कि गत दिनों उतरकाशी से छितकुल के लिये 11 पर्वतारोही ट्रेकिंग पर निकले थे जो बर्फबारी के कारण लमखंगा दर्रे में फंस गये थे जिसकी सूचना मिलने पर जिला प्रशासन द्वारा सेना के हेलीकॉप्टर व आई.टी.बी.पी के जवानों की सहायता से राहत व बचाव कार्य आरम्भ किया था। सेना व आई.टी.बी.पी के जवानों ने 21 अक्टूबर को दो पर्यटकों को सुरक्षित ढूंढ निकाला था। इसी दौरान उन्हें अलग अलग स्थानों पर पाँच ट्रेकरों के शव ढूंढ निकलने में सफलता मिली थी। जबकि 4 पर्यटक लापता थे जिसमे से राहत व बचाव दल को 22 अक्तुबर को 2 शव ढूढ़ निकालने में सफलता मिली थी। अभी भी दो पर्यटक लापता हैं जिनकी राहत व बचाव दल द्वारा तलाश जारी है।

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