कैम्पस वॉच
जयराम सरकार का बजट असंतोषजनक और शिक्षा विरोधी:एसएफआई

शिमला- मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने शुक्रवार को वर्ष 2022-23 के लिए हिमाचल प्रदेश विधानसभा में 51 हज़ार 365 करोड़ का बजट पेश किया।इस बजट में उन्होंने कर्मचारियों, कारोबारियों, युवाओं, महिलाओं,वरिष्ठ नागरिकों,आशा वर्कर, चौकीदारों समेत अन्य वर्गों के लिए कई घोषणाएं की है।
कुछ वर्ग बजट से खुश है तो कुछ ने इस बजट पर निराशा व्यक्त की है। वहीं छात्र संगठन एसएफआई की बात की जाए तो उन्होंने जयराम सरकार के इस बजट को असंतोषजनक और शिक्षा विरोधी बताया है।
एसएफआई का कहना है कि जहां शिक्षा को लेकर गठित कोठारी आयोग व अन्य विभिन्न आयोगों की सिफारिशों के मुताबिक शिक्षा पर राज्य बजट का 30 फ़ीसदी खर्च होना चाहिए था। जो कि पिछले बार के बजट में कुल बजट का 16.8 प्रतिशत था इस बार 2022 -23 के बजट में शिक्षा के बजट में कटौती करते हुए मात्र 16 प्रतिशत अनुमानित बजट का प्रावधान किया है।के इससे साफ झलकता है कि शिक्षा को लेकर राज्य की सरकार चिंतित नहीं हैं।
वहीं दूसरी तरफ विश्वविद्यालय ने अपने वितीय संचालन हेतु राज्य सरकार से 189 करोड़ की मांग की थी लेकिन विश्वविद्यालय के लिए भी मात्र 147 करोड़ का प्रावधान ही किया गया है। बजट में इस कटौती का असर आने वाले समय मे छात्र समुदाय पर बढ़ता जाएगा। इकाई ने कहा कि मौजूदा समय मे प्रदेश के सरकारी महाविद्यालयों में करोड़ो रुपया पीटीए फीस के नाम पर छात्रों से वसूला जा रहा है।
सरकार इस आर्थिक संकट की स्थिति में जनता को राहत देने की बजाय इस बजट से यह संकेत दे रही है कि आने वाले वर्ष में कोविड दौर में खाली हुए सरकारी खजाने को आम जनता से पूरा किया जाएगा, इसीलिए सरकारी खर्च को कम करते हुए जनता से संसाधन बटोरने का बजट तैयार किया गया है, जिसे किसी भी हालत में स्वीकार नहीं किया जाएगा।
एसएफआई इकाई का यह भी कहना है कि विश्वविद्यालय में स्टाफ की कमी होने की वज़ह से छात्रों के परीक्षा परिणाम समय से घोषित नहीं हो पा रहे है वहीं ईआरपी व्यवस्था की वजह से छात्रों के परिणाम भी बदल रहे है जो छात्र पहले पास थे एक माह के बाद उसी विषय मे उनका परिणाम फेल दिखाया जाया रहा है। यह इसी वजह से हो रहा है कि स्टाफ की कमी और इस सिस्टम में खामियां बहुत अधिक है जिसे दुरुस्त करने की आवश्यकता है,लेकिन आर्थिक संसाधनों की कमी का रोना रो रहा विश्वविद्यालय प्रशासन इस बार फिर से हॉस्टल बंद होने पर भी छात्रों से जबरन हॉस्टलफीस फीस वसूल कर अपने घाटे को पूरा करने में लगा है।
एसएफआई का आरोप है कि जयराम सरकार पिछले 3 सालों से लंबित विभिन्न तरह की छात्रवृतियों को बहाल नहीं कर पाई है और सरकार पुरानी योजनाओं को नया नाम देकर छात्रों से ठगी करना चाहती है, जबकि सच्चाई सबके सामने है कि सरकार पिछले 4 सालों से छात्रों की छात्रवृति बहाल नहीं कर पाई है। अभी तक छात्र अपनी स्कॉलरशिप के लिए दर बदर भटक रहे है ।
इकाई ने बताया कि कुछ नई मेधावी छात्र सम्मान योजनाएं शुरू की गई है जो की सराहनीय कार्य है, लेकिन वो भी अगर कागजों तक सिमट जाएगी तो यह भी एक चुनावी जुमला ही सिद्ध होगी। उनका कहना है कि पिछले 2 सालों से हिमाचल प्रदेश सरकार पहले से चली आ रही मेधावी छात्र सम्मान योजना के माध्यम से मिलने वाले लैपटॉप्स व सम्मान राशि अभी तक छात्रों को नहीं दे पाई है।
पिछले 2 वर्षो में माहमारी के चलते सबसे ज्यादा आर्थिक नुकसान भी छात्रों व उनके अभिभावकों को झेलना पड़ा है। जिसके लिए एसएफआई राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार से हर एक गरीब परिवार को 7500 प्रतिमाह आर्थिक सहयोग देने की मांग की थी,लेकिन आर्थिक तंगी का राग अलापती सरकार ने उसे इस बार के बजट में शामिल नहीं किया जबकि विधायकों व मंत्रियों का लंबित वेतन तुंरत जारी करने के आदेश दिए है। यह सरकार की प्राथमिकता को दर्शाता है।
राज्य कमेटी ने कहा कि इसके साथ-साथ स्वर्ण जयंती उत्कृष्ट विद्यालय व महाविद्यालय के नाम से जिस योजना में 100 स्कूलों 9 महाविद्यालयों को उत्कृष्ट बनाने का सपना दिखाया गया है वह महज काल्पनिक औऱ लोगो को गुमराह करने की योजना है। पहले सरकार पिछले साल के बजट में निर्धारित 100 स्कूलों और 9 महाविद्यालय के नाम बताए जिन्हें सुधारने व उत्कृष्ट बनाने का प्रयास किया गया बल्कि इसके विपरीत पिछले 3 सालों में लगातार प्रदेश में शिक्षा के स्तर में भयंकर गिरावट देखी गई है।
एसएफआई ने कहा कि निजी शिक्षण संस्थानों की खुली लूट को रोकने के लिए कोई कारगर योजना नही बनाई गई है बल्कि यह बजट निजी शिक्षण संस्थानों को बढ़ावा देने, सहयोग और समझौता परस्त है जिसका एसएफआई विरोध करती है। कमेटी ने कहा कि मुख्यमंत्री चुनावी साल में अपने आखिरी बजट से जनता को लुभाने में नाकाम रहे है।
कैम्पस वॉच
विश्वविद्यालय को आरएसएस का अड्डा बनाने का कुलपति सिंकदर को मिला ईनाम:एनएसयूआई

शिमला- भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन ने हिमाचल प्रदेश के शैक्षणिक संस्थानों मे भगवाकरण का आरोप प्रदेश सरकार पर लगाया हैं। भाजपा की ओर से एचपीयू के कुलपति को राज्यसभा का उमीदवार बनाने पर प्रदेश सरकार ओर भाजपा नेतृत्व को आडे़ हाथ लेते हुए एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष छत्तर सिंह ठाकुर ने कहा की एनएसयूआई बीते कई दिनों से प्रदेश विश्वविद्यालय में भगवाकरण को बढ़ावा दिया जाने के खिलाफ मुखर थी।
छत्तर ठाकुर ने बताया की एनएसयूआई ने लगातार कुलपति के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था,जिसमें उन्होंने कुलपति की योग्यता के खिलाफ लगातार प्रश्न चिन्ह उठाए थे।
वहीं कुलपति के बेटे की फर्जी तरीके से यूजीसी के नियमों के खिलाफ जाकर पीएचडी में दाखिले, इसके अलावा प्रदेश विश्वविद्यालय मे 160+ प्रोफेसरों, गैर शिक्षक वर्ग व आउटसोर्स के माध्यम से सैकडो़ भर्तीयां प्रदेश विश्वविद्यालय में की गई, जिनमें यूजीसी के नियमों की धजियां उडा़ई गई, नियमों को ताक पर रख कर गलत तरीके से कई साक्षात्कार किए गए, विश्व विद्यालय के बुनियादी ढांचे के विकास मे कई घोटाले बाजी की गई, सैनिटाइज़र मशीनों के नाम पर घोटालेबाजी की गई,एनएसयूआई ने इन सभी मुद्दों को प्रमुखता से उठाया जिसके लिए एनएसयूआई के तीन पदाधिकारियों को असवैधांनिक तरीके से विश्वविद्यालय से निष्कासित भी किया गया।
उन्होंने कहा कि एनएसयूआई के लगातार इन सभी मुद्दों को उठाने के बाद चुनावी वर्ष आते ही अब कुलपति को शिक्षा विभाग से हटा दिया गया।
एनएसयूआई प्रदेश अध्यक्ष ने बताया की वाईस चांसलर को राज्यसभा भेजा जाए या लोकसभा लेकिन प्रदेश मे सता परिवर्तन तय है और सरकार बदलते ही प्रदेश सरकार से इन सभी गलत तरीके से हुई भर्तियों की ओर विश्वविद्यालय में हुई घोटालेबाजी की जांच करा कर, दोषियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करवाई जाएगी।
कैम्पस वॉच
जब छात्र हॉस्टल में रहे ही नहीं तो हॉस्टल फीस क्यों दे:एसएफआई

शिमला- प्रदेश विश्वविद्यालय के होस्टलों में रह रहे छात्रों की समस्याओं को लेकर आज एचपीयू एसएफआई इकाई की ओर से वित्त अधिकारी को ज्ञापन सौंपा गया। ज्ञापन के माध्यम से एसएफआई ने छात्रों से 2020-2021 के सत्र की हॉस्टल कंटीन्यूशन फीस न लेने की मांग की है।
एसएफआई इकाई अध्यक्ष रॉकी ने कहा कि कोरोना काल की हॉस्टल कंटीन्युशन फीस को माफ़ किया जाना चाहिए क्योंकि कोरोना ने पहले छात्रों की आर्थिक स्थिति खराब कर दी है और छात्रों ने हॉस्टल सुविधा का उपयोग भी नहीं किया है।
इकाई अध्यक्ष ने कहा कि जब कोरोना काल में छात्र हॉस्टल में रहा ही नहीं तो छात्र हॉस्टल फीस क्यों दे? उन्होंने बताया कि हिमाचल विश्वविद्यालय में पढ़ने वाला अधिकतर छात्र समुदाय आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से संबंध रखता है। ऐसे में इस समय में जहां तो वि.वि. प्रशासन को छात्रों के लिए फीस पर रियायतें देनी चाहिए थी, वहीं इसके विपरीत विश्वविद्यालय प्रशासन छात्रों से जबरदस्ती फीस वसूलने में लगा हुआ है। जिससे छात्र मानसिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित हो रहे हैं।
अध्यक्ष रॉकी ने यह भी कहा कि कोरोना काल में सिर्फ परीक्षा के समय ही हॉस्टल खुले थे जिसके लिए छात्रों ने उतने समय की फीस उस समय दे दी थी और उसके बाद उस सत्र में अधिकतर समय हॉस्टल बंद ही रहे थे। अब विश्विद्यालय किस आधार पर छात्रों से फीस मांग रहा है यह सवाल एसएफआई ने वित्त अधिकारी के समाने रखा है।
अध्यक्ष ने बताया कि बहुत से छात्र ऐसे है जिनकी विश्वविद्यालय प्रशासन अब डिग्री लेने पर भी रोक लगा रहा है।
एसएफआई इकाई ने कहा है कि अगर जल्द से जल्द इन छात्र मांगों को पूरा नहीं किया गया तो आने वाले समय में एसएफआई आम छात्रों को लामबंद करते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ उग्र आंदोलन करेगी।
कैम्पस वॉच
एचपीयू की स्वतयत्ता बहाली की मांग को लेकर एबीवीपी ने शिक्षा मंत्री को सौंपा ज्ञापन

शिमला- हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की स्वायत्तता बहाली की मांग को लेकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने ऐतिहासिक पिंक पैटल पर धरना प्रदर्शन किया गया।
एबीवीपी इकाई सचिव कमलेश ठाकुर ने कहा कि प्रदेश का प्रमुख उच्च शिक्षण संस्थान हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के अधिनियम 1970 के अनुच्छेद 21 एवं 28(1) में वर्ष 2015 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार की ओर से किए गए संशोधन की वजह से विश्वविद्यालय के विकास कार्य तथा छात्र हितों में शीघ्र निर्णय लेने की प्रक्रिया में बहुत बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं।
उन्होंने कहा कि बीते वर्ष 22 जुलाई को हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान इन संशोधनों को वापिस लेने तथा विश्वविद्यालय की स्वायतता को पुनः बहाल करने की घोषणा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ओर शिक्षा मंत्री गोविंद ठाकुर की ओर सेकी गई थी जिसका विद्यार्थी परिषद ने स्वागत किया था,लेकिन अभी तक प्रदेश सरकार की ओर से इस घोषणा का पूरा नहीं किया गया है जिसके कारण विश्वविद्यालय में कई विकास कार्यों और नियुक्तियों को लेकर बाधाएं आ रही है।
कमलेश ने कहा की किसी भी विश्वविद्यालय के विकास तथा गुणवत्ता के लिए उसकी पूर्णतः स्वायतता का होना अति आवश्यक है। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की स्वायतता न होने की वजह से विश्वविद्यालय के विकास से संबंधित और महत्वपूर्ण निर्णय लेने की प्रक्रिया में देरी होना विश्वविद्यालय के छात्रों, अध्यापकों व कर्मचारियों के लिए सही नहीं है। स्वायतता बहाल न होने के कारण विवि प्रशासन विश्वविद्यालय से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर निर्णय नहीं ले पा रहा है ।
इकाई सचिव ने कहा कि अनुच्छेद 28(1) के अंतर्गत विश्वविद्यालय में शिक्षकों एवं गैर शिक्षकों की विभिन्न श्रेणियों के पदों का सृजन व पदों की भर्तियां, पदोन्नति नियमों का निर्माण एवं संशोधन इत्यादि सर्वप्रथम प्रदेश सरकार की वित्त समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जाना अपेक्षित है। उसके पश्चात वह प्रस्ताव कार्यकारिणी परिषद में विचारार्थ/ अनुमोदनार्थ हेतु प्रस्तुत किया जाता है जिस वजह से विश्वविद्यालय में विकासशील कार्य करने में बहुत समय लगता है।
उन्होंने कहा जहां तक पदों की भर्तियां व उनके सृजन का सम्बंध है, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में शिक्षकों व गैर शिक्षकों की भर्तियां व पदों का सृजन प्रदेश सरकार के आदेशानुसार और स्वीकृति के बाद ही संभावित होती है। कई बार कुछ प्रकरणों पर विश्वविद्यालय को शीघ्र कार्रवाई ओर शीघ्र निर्णय लेना बहुत आवश्यक होता है,लेकिन उपरोक्त अधिनियम में संशोधन की वजह से इन कार्यों में बहुत देरी हो जाती है।
विद्यार्थी परिषद का मानना है कि विश्वविद्यालय जैसे शिक्षण संस्थान के लिए विकास कार्यो में और महत्वपूर्ण निर्णय लेने में देरी होना प्रदेश विश्वविद्यालय के छात्रों, अध्यापकों व कर्मचारियों के लिए सही नहीं है।
विद्यार्थी परिषद प्रदेश सरकार से मांग करते हुए कहा कि अधिनियम 1970 के अनुच्छेद 21 एवं 28 में वर्ष 2015 में किए गए संशोधन पर सरकार पुनः विचार करे ओर प्रदेश विश्वविद्यालय के छात्रों, अध्यापकों व कर्मचारियों के हित को ध्यान में रखते हुए उपरोक्त अधिनियम में किए गए संशोधन को पुनः इसके मूल रूप में बहाल करे, ताकि हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की स्वायतता यथावत बनी रहे।
धरने प्रदर्शन के उपरांत एबीवीपी एचपीयू का प्रतिनिधिमंडल शिक्षा मंत्री को ज्ञापन सौंपा और सरकार से मांग की है कि प्रदेश सरकार जल्द से जल्द विवि की स्वायतता को बहाल करे ताकि विवि प्रशासन अपने बलबूते पर विश्वविद्यालय के विकास एवं अन्य मुद्दों पर फैसले ले सके।