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कड़ाके की ठण्ड में, जंगली जानवरों के खतरे के बीच घने जंगल में बिना छत पढ़ने को मजबूर शिमला के ओडी गांव के बच्चे

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जंगल से गुजरने वाले रास्ते में पैदल चलना किसी खतरे से कम नहीं है। घने जंगल में जानवरों के हमले का खतरा रहता है। बांदी से करीब ढाई से तीन किलोमीटर घने जंगल से पैदल चलकर ओडी पहुंचते हैं।

मंडी- घने जंगल में मासूम बच्चों का स्कूल। भवन बना नहीं इसलिए न बिजली-पानी है और न ही टॉयलेट की सुविधा। स्कूल भवन न होने से नौनिहाल कड़ाके की ठंड में जंगल में खुले आसमान के नीचे पढ़ने को मजबूर हैं। चीड़, बान, बुरांस के जंगल में जंगली जानवरों का खतरा हर वक्त रहता है। डेढ़ साल में निर्माणाधीन स्कूल के दो कमरों में लेंटर तक नहीं पड़ा है। कमरों का निर्माण कार्य पंचायत के जरिए करवाया जा रहा है।

पंचायत का कहना है कि बजट की कमी के कारण काम वक्त पर पूरा नहीं हुआ है। दो लाख रुपये की अतिरिक्त राशि मिल चुकी है। अब मार्च तक कमरे तैयार हो जाएंगे। यह हाल हिमाचल के मंडी जिले कि नाचन विधानसभा क्षेत्र की नौण पंचायत के ओडी गांव में 2 साल पहले खुले प्राइमरी स्कूल का है। बांदी से करीब ढाई से तीन किलोमीटर घने जंगल से पैदल चलकर ओडी पहुंचते हैं।

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जंगल से गुजरने वाले रास्ते में पैदल चलना किसी खतरे से कम नहीं है। घने जंगल में जानवरों के हमले का खतरा रहता है। जंगल के बीच बना फॉरेस्ट गार्ड क्वार्टर परिसर में प्राइमरी स्कूल चल रहा है। यहां नौण पंचायत के ओडी, फन्गयार, खनयाबरू गांव के नौनिहाल शिक्षा ग्रहण करने आते हैं। स्कूल में पहली से पांचवीं तक 18 बच्चे पढ़ रहे हैं। इन्हें टाट पट्टी और बोरों पर बैठना पड़ता है। स्कूल में एक शिक्षक और शिक्षिका तैनात हैं।

अप्रैल 2014 में प्राइमरी स्कूल ओडी शुरू हुआ। फन्गयार, ओडी और खनयाबरू गांव के बच्चों को करीब चार किलोमीटर ज्वाल फन्गयार जाना पड़ता था। सरकार ने स्कूल तो दे दिया, लेकिन सुविधा कुछ नहीं है। स्कूल प्रबंधन समिति सदस्य गुलाब सिंह ने बिना किराये के दो कमरे दिए हैं।

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यहां बारिश होने पर बच्चों को बैठाया जाता है। साठ हजार की लागत से मिड-डे मील के लिए निर्माणाधीन भवन के साथ किचन तैयार है। प्रारंभिक शिक्षा उप निदेशक केडी शर्मा ने कहा कि प्राइमरी स्कूल ओडी के लिए विभाग की ओर से करीब छह लाख रुपये की राशि स्वीकृत की गई है। कहा कि पंचायत को भी निर्माणाधीन कमरों का काम शीघ्र पूरा करने के लिए कहा जाएगा। खनयाबरू गांव से दूसरी कक्षा का छात्र देवेंद्र कुमार करीब दो से ढाई किलोमीटर जंगल के रास्ते से पैदल चलकर स्कूल पहुंचता है। घने जंगल के बीचोंबीच से जाने वाले रास्ते में तेंदुए, भालू आदि जानवरों का हमला करने का खतरा रहता है।

प्राइमरी स्कूल ओडी के मुख्याध्यापक जालम सिंह का कहना है कि स्कूल भवन न होने से दिक्कतें हो रही हैं। स्कूल के दो कमरों का निर्माण तीन लाख रुपये से पंचायत के माध्यम से करवाया जा रहा है। दो लाख रुपये पंचायत को अतिरिक्त जारी हो चुके हैं। स्कूल के लिए आज तक कोई ग्रांट नहीं मिली है। एसएमसी ने ही अपने स्तर पर फर्नीचर की व्यवस्था की है। स्कूल की दूसरी मंजिल के लिए विभाग से 6.30 लाख रुपये मिले हैं, लेकिन अभी तक दो कमरे ही तैयार नहीं हुए हैं, जिससे उक्त राशि को खर्च नहीं कर पा रहे हैं।

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जिला मंडी के प्राइमरी स्कूलों में बच्चों को पढ़ाने के लिए 3133 जेबीटी, 318 सीएचटी, 460 मुख्याध्यापक तैनात हैं। जिला में 248 प्राइमरी में 10 से कम व 82 मिडल स्कूलों में 15 से कम बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इसके अलावा 12 प्राइमरी और मिडल स्कूल ऐसे हैं, जिनमें एक भी छात्र नहीं है। 88 प्राइमरी स्कूलों में पांच से भी कम बच्चे हैं। जिले में वर्तमान समय में 1737 प्राइमरी स्कूलों में 42602 और 337 मिडल स्कूलों में 33992 बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। इनमें 248 प्राइमरी स्कूलों में महज 1635 विद्यार्थी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।

एसएमसी सदस्य गुलाब सिंह का कहना है कि स्कूल के दो कमरों का काम डेढ़ साल पहले शुरू हुआ था। निर्माण कार्य में लेटलतीफी के चलते स्कूली बच्चों को इसका खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। उन्होंने सरकार और विभाग से मांग की है कि स्कूल के निर्माणाधीन कमरों का काम शीघ्र पूरा किया जाए ताकि नौनिहालों को पढ़ने के लिए छत नसीब हो सके।

नाचन के विधायक विनोद कुमार ने कहा कि प्रदेश सरकार की लापरवाही से शिक्षा का स्तर गिर रहा है। राजकीय प्राथमिक पाठशाला ओडी के भवन निर्माण का मामला कई बार सरकार के ध्यान में लाया गया, बावजूद इसके भवन का काम पूरा नहीं हुआ है। पूर्व विधायक टेक चंद डोगरा ने कहा कि प्राइमरी स्कूल का भवन पंचायत के माध्यम से बन रहा है। कार्य जल्द पूरा करने के लिए मैं व्यक्तिगत तौर पर बीडीओ से मिला हूं। ओडी में स्कूल की सख्त जरूरत थी, जिसे सरकार ने पूरा किया है।

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हिमाचल की तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर लगे 76,000 से अधिक सेब के पौधे

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शिमला- डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के विस्तार शिक्षा निदेशालय में पहाड़ी कृषि एवं ग्रामीण विकास एजेंसी(हार्प), शिमला द्वारा एक अनुभव-साझाकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया।

इस कार्यशाला में जिला किन्नौर के निचार विकास खंड के रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों के 34 किसानों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर जीएम नाबार्ड डॉ. सुधांशु मिश्रा मुख्य अतिथि रहे जबकि नौणी विवि के अनुसंधान निदेशक डॉ रविंदर शर्मा ने विशिष्ट अतिथि के रूप में शिरकत की।

संस्था के अध्यक्ष डॉ. आर एस रतन ने कहा कि यह कार्यक्रम एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना के तहत रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों में वर्ष 2014 से आयोजित किया जा रहा है। परियोजना को नाबार्ड द्वारा वित्त पोषित किया गया है और इसे हार्प द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।

उन्होंने यह बताया कि यह एक बागवानी आधारित आजीविका कार्यक्रम है जिसे किसानों की भागीदारी से लागू किया गया है। इन तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर 76,000 से अधिक सेब के पौधे लगाए गए हैं और 607 परिवार लाभान्वित हुए हैं।

डॉ. सुधांशु मिश्रा ने यह भी कहा कि नाबार्ड हमेशा सामाजिक-आर्थिक उत्थान कार्यक्रमों के संचालन में आगे रहा है। उन्होंने इस कार्यशाला में भाग लेने वाले किसानों से अपने सहयोग से विभिन्न कार्यक्रमों को सफल बनाने का आग्रह किया।

अनुसंधान निदेशक डॉ. रविंदर शर्मा और विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. दिवेंद्र गुप्ता ने नाबार्ड और हार्प के प्रयासों की सराहना की और किसानों को आश्वासन दिया कि विश्वविद्यालय किसानों को तकनीकी रूप से समर्थन देने के लिए हमेशा तैयार है।

डॉ. नरेद्र कुमार ठाकुर ने कहा कि हार्प ने कृषक समुदाय के समन्वय से दुर्गम क्षेत्रों में कठिन परिस्थितियों में काम किया है। इस अवसर पर एक किसान-वैज्ञानिक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया जिसमें भाग लेने वाले किसानों के तकनीकी प्रश्नों को संबोधित किया गया।

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हिमाचल सरकार पुलिसकर्मियों का कर रही है शोषण

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पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है,कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है,राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है,हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।

शिमला सीटू राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। कमेटी ने यह कहा है कि वह हिमाचल प्रदेश के पुलिसकर्मियों की मांगों का पूर्ण समर्थन करती है। आरोप लगाते हुए सीटू ने कहा है कि प्रदेश सरकार पुलिसकर्मियों का शोषण कर रही है।

राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार से यह मांग की है कि वर्ष 2013 के बाद नियुक्त पुलिसकर्मियों को पहले की भांति 5910 रुपये के बजाए 10300 रुपये संशोधित वेतन लागू किया जाए व उनकी अन्य सभी मांगों को बिना किसी विलंब के पूरा किया जाए।

सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में भी कर्मचारियों की प्रमुख मांगों को अनदेखा किया गया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में पुलिसकर्मियों की मांगों को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है।

सीटू कमेटी ने कहा कि सबसे मुश्किल डयूटी करने वाले व चौबीस घण्टे डयूटी में कार्यरत पुलिसकर्मियों को इस बैठक से मायूसी ही हाथ लगी है। इसी से आक्रोशित होकर पुलिसकर्मी मुख्यमंत्री आवास पहुंचे थे। उनके द्वारा पिछले कुछ दिनों से मैस के खाने के बॉयकॉट से उनकी पीड़ा का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि पुलिस कर्मियों के साथ ही सभी सरकारी कर्मचारी नवउदारवादी नीतियों की मार से अछूते नहीं है। कमेटी ने कहा कि पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है। कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।

कमेटी ने यह भी कहा है कि थानों में स्टेशनरी के लिए बेहद कम पैसा है व आईओ को केस की पूरी फ़ाइल का सैंकड़ों रुपये का खर्चा अपनी ही जेब से करना पड़ता है। थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है। मैस मनी केवल दो सौ दस रुपये महीना है जबकि मैस में पूरा महीना खाना खाने का खर्चा दो हज़ार रुपये से ज़्यादा आता है। यह प्रति डाइट केवल साढ़े तीन रुपये बनता है, जोकि पुलिस जवानों के साथ घोर मज़ाक है। यह स्थिति मिड डे मील के लिए आबंटित राशि से भी कम है।

उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के जमाने के बने बहुत सारे थानों की स्थिति खंडहर की तरह प्रतीत होती है जहां पर कार्यालयों को टाइलें लगाकर तो चमका दिया गया है परन्तु कस्टडी कक्षों,बाथरूमों,बैरकों,स्टोरों,मेस की स्थिति बहुत बुरी है। इन वजहों से भी पुलिस जवान भारी मानसिक तनाव में रहते हैं।

सीटू ने कहा कि पुलिस में स्टाफ कि बहुत कमी है या यूं कह लें कि बेहद कम है व कुल अनुमानित नियुक्तियों की तुलना में आधे जवान ही भर्ती किये गए हैं जबकि प्रदेश की जनसंख्या पहले की तुलना में काफी बढ़ चुकी है यहाँ तक पुलिस के पास रिलीवर भी नहीं है।

आरोप लगाते हुए कमेटी ने कहा कि प्रदेश की राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है। वहीं पुलिस कर्मी निरन्तर ओवरटाइम डयूटी करते हैं। इसकी एवज में उन्हें केवल एक महीना ज़्यादा वेतन दिया जाता है। इस से प्रत्येक पुलिसकर्मी को वर्तमान वेतन की तुलना में दस से बारह हज़ार रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है। उन्हें लगभग नब्बे साप्ताहिक अवकाश,सेकंड सैटरडे,राष्ट्रीय व त्योहार व अन्य छुट्टियों के मुकाबले में केवल पन्द्रह स्पेशल लीव दी जाती है।

सीटू कमेटी ने यह भी कहा कि वर्ष 2007 में हिमाचल प्रदेश में बने पुलिस एक्ट के पन्द्रह साल बीतने पर भी नियम नहीं बन पाए हैं। इस एक्ट के अनुसार पुलिसकर्मियों को सुविधा तो दी नहीं जाती है परन्तु कर्मियों को दंडित करने के लिए इसके प्रावधान बगैर नियमों के भी लागू किये जा रहे हैं जिसमें एक दिन डयूटी से अनुपस्थित रहने पर तीन दिन का वेतन काटना भी शामिल है। पुलिसकर्मियों की प्रोमोशन में भी कई विसंगतियां हैं व इसका टाइम पीरियड भी बहुत लंबा है। हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।

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किन्नौर में लापता पर्यटकों में से 2 और के शव बरामद, 2 की तालाश जारी,आभी तक कुल 7 शव बरामद

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शिमला रिकोंगपिओ में 14 अक्तुबर को उत्तरकाशी के हर्षिल से छितकुल की ट्रैकिंग पर निकले 11 पर्यटकों में से लापता चार पर्वतारोहीयों में से दो  पर्वतारोहियों के शवो को आई.टी.बी.पी व पुलिस दल द्वारा पिछले कल सांगला लाया गया था जहां सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र सांगला में दोनों शवों का पोस्टमार्टम किया गया।

यह जानकारी देते हुए उपायुक्त किन्नौर अपूर्व देवगन ने बताया कि इन दोनों की पहचान कर ली गई है जिनमे मे एक उतरकाशी व दूसरा पश्चिम बंगाल से सम्बंधित था।

उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन किन्नौर द्वारा आज एक शव वाहन द्वारा उतरकाशी को भेज दिया गया है जहाँ शव को जिला प्रशासन उतरकाशी को सौंपा जाएगा। जब कि दूसरा शव वाहन द्वारा शिमला भेजा गया है जिसे शिमला में मृतक के परिजनों को सौंपा जायेगा।

उपायुक्त अपूर्व देवगन ने बताया कि अभी भी लापता दो  पर्यटकों की तलाश आई.टी.बी.पी के जवानों द्वारा जारी है। उल्लेखनीय है कि गत दिनों उतरकाशी से छितकुल के लिये 11 पर्वतारोही ट्रेकिंग पर निकले थे जो बर्फबारी के कारण लमखंगा दर्रे में फंस गये थे जिसकी सूचना मिलने पर जिला प्रशासन द्वारा सेना के हेलीकॉप्टर व आई.टी.बी.पी के जवानों की सहायता से राहत व बचाव कार्य आरम्भ किया था। सेना व आई.टी.बी.पी के जवानों ने 21 अक्टूबर को दो पर्यटकों को सुरक्षित ढूंढ निकाला था। इसी दौरान उन्हें अलग अलग स्थानों पर पाँच ट्रेकरों के शव ढूंढ निकलने में सफलता मिली थी। जबकि 4 पर्यटक लापता थे जिसमे से राहत व बचाव दल को 22 अक्तुबर को 2 शव ढूढ़ निकालने में सफलता मिली थी। अभी भी दो पर्यटक लापता हैं जिनकी राहत व बचाव दल द्वारा तलाश जारी है।

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