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हिमाचल के अवैध भवनों को नियमित करने का रास्ता साफ, विवादित टीसीपी संशोधन विधेयक पास
शिमला- हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट की सख्त टिप्पणी के बावजूद मंगलवार को राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने आखिरकार सूबे के अवैध भवनों को वैध करने वाले विवादित टीसीपी संशोधन विधेयक को मंजूरी दे दी है। इससे राज्य में अवैध तरीके से बने हजारों अवैध भवनों को नियमित करने का रास्ता साफ हो गया है। इससे पहले राज्यपाल ने विधेयक के कुछ बिन्दुओं पर राज्य सरकार से स्पष्टीकरण मांगा था। इस पर सरकार ने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी थी।
उल्लेखनीय है कि अगस्त, 2016 में विधानसभा से संशोधन विधेयक को पारित किया गया था। इसके बाद संशोधन विधेयक को राजभवन से अनुमति न मिलने पर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने राज्यपाल से मामला उठाया था। मुख्यमंत्री के बाद शहरी विकास एवं आवास मंत्री सुधीर शर्मा ने 27 अक्तूबर, 2016 को विभागीय अधिकारियों के साथ राज्यपाल से भेंट की थी।
सुधीर शर्मा ने राज्यपाल को पत्र लिखकर किया था यह आग्रह
इस भेंट के बाद जब राजभवन से विधेयक को मंजूरी नहीं मिली तो शहरी विकास एवं आवास मंत्री ने राज्यपाल को पत्र लिखकर संशोधन विधेयक को लौटाने या फिर इसे स्वीकार करने का आग्रह किया था। उनका तर्क था कि विधेयक के लटकने से राज्य में अवैध निर्माण को बल मिला है। उनके पत्र के बाद राजभवन की तरफ से कुछ बिन्दुओं पर सरकार से स्पष्टीकरण मांगा गया था, जिसके बाद अब जाकर इसे मंजूरी मिल पाई है। नेता प्रतिपक्ष एवं पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने भी विधेयक को लेकर पहले राज्यपाल के समक्ष अपना पक्ष रखा था। राजभवन से संशोधन विधेयक को मंजूरी मिलने के बाद अब राज्य में हजारों अवैध भवनों को नियमित करने की प्रक्रिया शीघ्र शुरू हो जाएगी।
पढ़िए क्या है संशोधन विधेयक का प्रारूप
राज्य विधानसभा से पारित टीसीपी संशोधन विधेयक में ‘‘जहां हैं, जैसे हैं’’ के आधार पर नियमित करने की बात कही गई थी। इसके अनुसार पार्किंग मंजिल को यदि किसी अन्य उपयोग के लिए भी परिवर्तित किया गया हो तो वैकल्पिक पार्किंग जगह उपलब्ध करवाने पर नियमितीकरण के लिए माना जाएगा। जिन लोगों ने मकानों के नक्शे पास करवाए हैं, उन्हें विचलन शुल्क नगर निगम क्षेत्र में 800 रुपए प्रति वर्ग मीटर की दर से फ्लैट रेट पर जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 400 रुपए प्रति वर्ग मीटर की दर से वसूले जाने की बात कही गई थी। पूर्णरूप से अवैध निर्माण के लिए ये दरें शहरी क्षेत्रों में 1,200 रुपए जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 600 रुपए प्रति वर्ग मीटर रखने की बात कही गई थी।
60 दिनों के भीतर प्रस्तुत करना होगा आवेदन
विधेयक में संशोधित अधिनियम के प्रकाशन के 60 दिनों के भीतर आवेदन प्रस्तुत करना प्रस्तावित है। आवेदकों को इस आशय का शपथ पत्र प्रस्तुत करना होगा कि उन्होंने किसी व्यक्ति अथवा सरकारी भूमि पर अतिक्रमण नहीं किया है तथा लोक निर्माण अथवा राष्ट्रीय उच्च मार्गों की नियंत्रित चौड़ाई पर किसी प्रकार का निर्माण नहीं किया है। नगर निगम अथवा शहरी एवं नगर नियोजन क्षेत्र से बाहर के क्षेत्रों के लोगों को नियमितीकरण के लिए आवेदन करने की आवश्यकता नहीं है।
सरकार के अनुसार 13 हजार अवैध भवन
राज्य सरकार के अनुसार प्रदेश में अधिसूचित योजना और विशेष क्षेत्रों में मार्च, 2016 तक करीब 13 हजार अनधिकृत भवन हैं। इससे पहले सरकार की तरफ से पहले दी गई रियायत के आधार पर 6090 मामलों का निपटारा किया जा चुका है। सरकार का मानना है कि इतनी बड़ी संख्या में अनधिकृत निर्माण को गिराना उचित नहीं है, इसलिए इसके लिए नियमों में संशोधन किया जा रहा है।
कांग्रेस ने पूरा किया वायदा- नरेश चौहान
हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव एवं मीडिया विभाग के अध्यक्ष नरेश चौहान ने कहा कि कांग्रेस पार्टी ने अपने चुनाव घोषणा पत्र के अनुरूप जनता से किए गए वायदे को पूरा कर दिखाया है। इससे राज्य के हजारों लोगों को राहत मिलेगी। उन्होंने आरोप लगाया कि इससे पहले भाजपा ने ऐसा वायदा किया था लेकिन सत्ता में आने पर इसे मंजूरी प्रदान नहीं की। इससे सरकार की कथनी और करनी में अंतर का पता चलता है।
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हिमाचल की तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर लगे 76,000 से अधिक सेब के पौधे
शिमला- डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के विस्तार शिक्षा निदेशालय में पहाड़ी कृषि एवं ग्रामीण विकास एजेंसी(हार्प), शिमला द्वारा एक अनुभव-साझाकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया।
इस कार्यशाला में जिला किन्नौर के निचार विकास खंड के रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों के 34 किसानों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर जीएम नाबार्ड डॉ. सुधांशु मिश्रा मुख्य अतिथि रहे जबकि नौणी विवि के अनुसंधान निदेशक डॉ रविंदर शर्मा ने विशिष्ट अतिथि के रूप में शिरकत की।
संस्था के अध्यक्ष डॉ. आर एस रतन ने कहा कि यह कार्यक्रम एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना के तहत रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों में वर्ष 2014 से आयोजित किया जा रहा है। परियोजना को नाबार्ड द्वारा वित्त पोषित किया गया है और इसे हार्प द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
उन्होंने यह बताया कि यह एक बागवानी आधारित आजीविका कार्यक्रम है जिसे किसानों की भागीदारी से लागू किया गया है। इन तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर 76,000 से अधिक सेब के पौधे लगाए गए हैं और 607 परिवार लाभान्वित हुए हैं।
डॉ. सुधांशु मिश्रा ने यह भी कहा कि नाबार्ड हमेशा सामाजिक-आर्थिक उत्थान कार्यक्रमों के संचालन में आगे रहा है। उन्होंने इस कार्यशाला में भाग लेने वाले किसानों से अपने सहयोग से विभिन्न कार्यक्रमों को सफल बनाने का आग्रह किया।
अनुसंधान निदेशक डॉ. रविंदर शर्मा और विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. दिवेंद्र गुप्ता ने नाबार्ड और हार्प के प्रयासों की सराहना की और किसानों को आश्वासन दिया कि विश्वविद्यालय किसानों को तकनीकी रूप से समर्थन देने के लिए हमेशा तैयार है।
डॉ. नरेद्र कुमार ठाकुर ने कहा कि हार्प ने कृषक समुदाय के समन्वय से दुर्गम क्षेत्रों में कठिन परिस्थितियों में काम किया है। इस अवसर पर एक किसान-वैज्ञानिक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया जिसमें भाग लेने वाले किसानों के तकनीकी प्रश्नों को संबोधित किया गया।
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हिमाचल सरकार पुलिसकर्मियों का कर रही है शोषण
पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है,कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है,राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है,हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।
शिमला सीटू राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। कमेटी ने यह कहा है कि वह हिमाचल प्रदेश के पुलिसकर्मियों की मांगों का पूर्ण समर्थन करती है। आरोप लगाते हुए सीटू ने कहा है कि प्रदेश सरकार पुलिसकर्मियों का शोषण कर रही है।
राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार से यह मांग की है कि वर्ष 2013 के बाद नियुक्त पुलिसकर्मियों को पहले की भांति 5910 रुपये के बजाए 10300 रुपये संशोधित वेतन लागू किया जाए व उनकी अन्य सभी मांगों को बिना किसी विलंब के पूरा किया जाए।
सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में भी कर्मचारियों की प्रमुख मांगों को अनदेखा किया गया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में पुलिसकर्मियों की मांगों को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है।
सीटू कमेटी ने कहा कि सबसे मुश्किल डयूटी करने वाले व चौबीस घण्टे डयूटी में कार्यरत पुलिसकर्मियों को इस बैठक से मायूसी ही हाथ लगी है। इसी से आक्रोशित होकर पुलिसकर्मी मुख्यमंत्री आवास पहुंचे थे। उनके द्वारा पिछले कुछ दिनों से मैस के खाने के बॉयकॉट से उनकी पीड़ा का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि पुलिस कर्मियों के साथ ही सभी सरकारी कर्मचारी नवउदारवादी नीतियों की मार से अछूते नहीं है। कमेटी ने कहा कि पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है। कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।
कमेटी ने यह भी कहा है कि थानों में स्टेशनरी के लिए बेहद कम पैसा है व आईओ को केस की पूरी फ़ाइल का सैंकड़ों रुपये का खर्चा अपनी ही जेब से करना पड़ता है। थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है। मैस मनी केवल दो सौ दस रुपये महीना है जबकि मैस में पूरा महीना खाना खाने का खर्चा दो हज़ार रुपये से ज़्यादा आता है। यह प्रति डाइट केवल साढ़े तीन रुपये बनता है, जोकि पुलिस जवानों के साथ घोर मज़ाक है। यह स्थिति मिड डे मील के लिए आबंटित राशि से भी कम है।
उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के जमाने के बने बहुत सारे थानों की स्थिति खंडहर की तरह प्रतीत होती है जहां पर कार्यालयों को टाइलें लगाकर तो चमका दिया गया है परन्तु कस्टडी कक्षों,बाथरूमों,बैरकों,स्टोरों,मेस की स्थिति बहुत बुरी है। इन वजहों से भी पुलिस जवान भारी मानसिक तनाव में रहते हैं।
सीटू ने कहा कि पुलिस में स्टाफ कि बहुत कमी है या यूं कह लें कि बेहद कम है व कुल अनुमानित नियुक्तियों की तुलना में आधे जवान ही भर्ती किये गए हैं जबकि प्रदेश की जनसंख्या पहले की तुलना में काफी बढ़ चुकी है यहाँ तक पुलिस के पास रिलीवर भी नहीं है।
आरोप लगाते हुए कमेटी ने कहा कि प्रदेश की राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है। वहीं पुलिस कर्मी निरन्तर ओवरटाइम डयूटी करते हैं। इसकी एवज में उन्हें केवल एक महीना ज़्यादा वेतन दिया जाता है। इस से प्रत्येक पुलिसकर्मी को वर्तमान वेतन की तुलना में दस से बारह हज़ार रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है। उन्हें लगभग नब्बे साप्ताहिक अवकाश,सेकंड सैटरडे,राष्ट्रीय व त्योहार व अन्य छुट्टियों के मुकाबले में केवल पन्द्रह स्पेशल लीव दी जाती है।
सीटू कमेटी ने यह भी कहा कि वर्ष 2007 में हिमाचल प्रदेश में बने पुलिस एक्ट के पन्द्रह साल बीतने पर भी नियम नहीं बन पाए हैं। इस एक्ट के अनुसार पुलिसकर्मियों को सुविधा तो दी नहीं जाती है परन्तु कर्मियों को दंडित करने के लिए इसके प्रावधान बगैर नियमों के भी लागू किये जा रहे हैं जिसमें एक दिन डयूटी से अनुपस्थित रहने पर तीन दिन का वेतन काटना भी शामिल है। पुलिसकर्मियों की प्रोमोशन में भी कई विसंगतियां हैं व इसका टाइम पीरियड भी बहुत लंबा है। हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।
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किन्नौर में लापता पर्यटकों में से 2 और के शव बरामद, 2 की तालाश जारी,आभी तक कुल 7 शव बरामद
शिमला रिकोंगपिओ में 14 अक्तुबर को उत्तरकाशी के हर्षिल से छितकुल की ट्रैकिंग पर निकले 11 पर्यटकों में से लापता चार पर्वतारोहीयों में से दो पर्वतारोहियों के शवो को आई.टी.बी.पी व पुलिस दल द्वारा पिछले कल सांगला लाया गया था जहां सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र सांगला में दोनों शवों का पोस्टमार्टम किया गया।
यह जानकारी देते हुए उपायुक्त किन्नौर अपूर्व देवगन ने बताया कि इन दोनों की पहचान कर ली गई है जिनमे मे एक उतरकाशी व दूसरा पश्चिम बंगाल से सम्बंधित था।
उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन किन्नौर द्वारा आज एक शव वाहन द्वारा उतरकाशी को भेज दिया गया है जहाँ शव को जिला प्रशासन उतरकाशी को सौंपा जाएगा। जब कि दूसरा शव वाहन द्वारा शिमला भेजा गया है जिसे शिमला में मृतक के परिजनों को सौंपा जायेगा।
उपायुक्त अपूर्व देवगन ने बताया कि अभी भी लापता दो पर्यटकों की तलाश आई.टी.बी.पी के जवानों द्वारा जारी है। उल्लेखनीय है कि गत दिनों उतरकाशी से छितकुल के लिये 11 पर्वतारोही ट्रेकिंग पर निकले थे जो बर्फबारी के कारण लमखंगा दर्रे में फंस गये थे जिसकी सूचना मिलने पर जिला प्रशासन द्वारा सेना के हेलीकॉप्टर व आई.टी.बी.पी के जवानों की सहायता से राहत व बचाव कार्य आरम्भ किया था। सेना व आई.टी.बी.पी के जवानों ने 21 अक्टूबर को दो पर्यटकों को सुरक्षित ढूंढ निकाला था। इसी दौरान उन्हें अलग अलग स्थानों पर पाँच ट्रेकरों के शव ढूंढ निकलने में सफलता मिली थी। जबकि 4 पर्यटक लापता थे जिसमे से राहत व बचाव दल को 22 अक्तुबर को 2 शव ढूढ़ निकालने में सफलता मिली थी। अभी भी दो पर्यटक लापता हैं जिनकी राहत व बचाव दल द्वारा तलाश जारी है।
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