कैम्पस वॉच
पहले जो पीएचडी एंट्रेंस पास करने के योग्य नहीं उन्हे बनाया प्रोफेसर, अब शिक्षक व गैर शिक्षकों के बच्चों को बिना एंट्रेंस के पीएचडी में दाखिला: एसएफआई
शिमला- सभी छात्र संगठनों ने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय को शिक्षक व गैर शिक्षकों के बच्चों बिना एंट्रेंस या नेट/जेआरफ पास किये पीएचडी (Ph.D) में एडमिशन देने पर घेर लिया है। याद दिल दें के इन बच्चों में कुलपति का अपना लाड़ला भी शामिल है। इसके अलावा यूआईआईटी के निदेशक, डीन प्लानिंग एंड डेवलपमेंट के बच्चों को सीधे पीएचडी में प्रवेश दे दिया गया है।
आज एसएफआई (SFI) हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय इकाई ने प्रेस विज्ञप्ति जारी की जिसमें एसएफआई ने विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा पीएचडी में विश्वविद्यालय के शिक्षक व गैर शिक्षकों के बच्चों व विश्वविद्यालय में जो शिक्षक भर्ती हुए हैं उनको बिना प्रवेश परीक्षा के पीएचडी में प्रवेश देने के निर्णय का विरोध किया है।
एचपीयू कुलपति और निदेशक के बच्चों को नियमों के खिलाफ पीएचडी में दाखिले के खिलाफ एनएसयूआई (NSUI) ने भी मोर्चा खोला दिया है। दाखिलों को रद्द करने की मांग को लेकर एनएसयूआई नें सोमवार को कुलसचिव व डीन स्टडीज की अनुपस्थिति में परीक्षा नियंत्रकक को ज्ञापन सौंपा। एनएसयूआई नें चेतावनी दी है कि अगर फ़र्ज़ी दाखिले रद्द न हुए तो उग्र आंदोलन होगा।
एसएफआई ने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने 21 अगस्त 2021 को हुई EC की मीटिंग में निर्णय लिया था कि विश्वविद्यालय मे जो शिक्षक है वो बिना एंट्रेंस टेस्ट दिए सीधे पीएचडी में प्रवेश ले सकते है । इसके साथ साथ इस मीटिंग में निर्णय लिया गया कि विश्वविद्यालय के शिक्षक व गैर शिक्षकों के बच्चो को एक लाख फीस के साथ बिना एंट्रेंस के पीएचडी में एडमिशन दी जाएगी।
विश्वविद्यालय में मिनिमम क्राइटेरिया (minimum criteria) के आधार पर शिक्षकों की भर्तियां करवाई गई है जिसमें बीजेपी व आरएसएस के लोगो को जो प्रोफेसर भर्ती के लिए क्राइटेरिया पूरा नहीं करते थे उनको धांधलियां कर विश्वविद्यालय में भर्ती किया गया है। अब इस निर्णय के माध्यम से विश्वविद्यालय प्रशासन उन शिक्षकों को बिना एंट्रेंस टेस्ट क्वालीफाई किए पीएचडी करवाना चाहता है । इन शिक्षकों पर सवाल उठता है कि क्या यह शिक्षक पीएचडी में एडमिशन लेने के लिए एंट्रेंस क्वालीफाई करने के योग्य है या नहीं है यदि नहीं तो ये शिक्षक किस तरह आने वाले समय में जो छात्र एंट्रेंस क्वालीफाई करके पीएचडी में एडमिशन लेगा तो ये शिक्षक उन्हें किस तरह की पीएचडी करवाएंगे ।
दूसरी ओर शिक्षक व गैर शिक्षकों के बच्चों को बिना एंट्रेंस के पीएचडी में एडमिशन दिलवाकर शोध के स्तर को गिराया जा रहा है व जो छात्र पीएचडी में एडमिशन लेने के लिए मेहनत कर रहा है नेट/जेआरएफ/सेट क्वालीफाई कर रहा है उनके साथ दोगला व्यहवार किया जा रहा है । एसएफआई मांग करती है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने EC की मीटिंग में जो निर्णय लिए है उन्हें तुरंत वापिस लिया जाए व जिन छात्रों की एडमिशन इस निर्णय के माध्यम से करवाई गई है उन्हें तुरंत रद्ध किया जाए। अगर इन निर्णयों को वापिस नहीं लिया जाता तो एसएफआई आम छात्रों को लामबंद करते हुए पूरे प्रदेश में एक उग्र आंदोलन करेगी जिसका खामियाजा प्रदेश सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन को भुगतना पड़ेगा।
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विश्वविद्यालय को आरएसएस का अड्डा बनाने का कुलपति सिंकदर को मिला ईनाम:एनएसयूआई
शिमला- भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन ने हिमाचल प्रदेश के शैक्षणिक संस्थानों मे भगवाकरण का आरोप प्रदेश सरकार पर लगाया हैं। भाजपा की ओर से एचपीयू के कुलपति को राज्यसभा का उमीदवार बनाने पर प्रदेश सरकार ओर भाजपा नेतृत्व को आडे़ हाथ लेते हुए एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष छत्तर सिंह ठाकुर ने कहा की एनएसयूआई बीते कई दिनों से प्रदेश विश्वविद्यालय में भगवाकरण को बढ़ावा दिया जाने के खिलाफ मुखर थी।
छत्तर ठाकुर ने बताया की एनएसयूआई ने लगातार कुलपति के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था,जिसमें उन्होंने कुलपति की योग्यता के खिलाफ लगातार प्रश्न चिन्ह उठाए थे।
वहीं कुलपति के बेटे की फर्जी तरीके से यूजीसी के नियमों के खिलाफ जाकर पीएचडी में दाखिले, इसके अलावा प्रदेश विश्वविद्यालय मे 160+ प्रोफेसरों, गैर शिक्षक वर्ग व आउटसोर्स के माध्यम से सैकडो़ भर्तीयां प्रदेश विश्वविद्यालय में की गई, जिनमें यूजीसी के नियमों की धजियां उडा़ई गई, नियमों को ताक पर रख कर गलत तरीके से कई साक्षात्कार किए गए, विश्व विद्यालय के बुनियादी ढांचे के विकास मे कई घोटाले बाजी की गई, सैनिटाइज़र मशीनों के नाम पर घोटालेबाजी की गई,एनएसयूआई ने इन सभी मुद्दों को प्रमुखता से उठाया जिसके लिए एनएसयूआई के तीन पदाधिकारियों को असवैधांनिक तरीके से विश्वविद्यालय से निष्कासित भी किया गया।
उन्होंने कहा कि एनएसयूआई के लगातार इन सभी मुद्दों को उठाने के बाद चुनावी वर्ष आते ही अब कुलपति को शिक्षा विभाग से हटा दिया गया।
एनएसयूआई प्रदेश अध्यक्ष ने बताया की वाईस चांसलर को राज्यसभा भेजा जाए या लोकसभा लेकिन प्रदेश मे सता परिवर्तन तय है और सरकार बदलते ही प्रदेश सरकार से इन सभी गलत तरीके से हुई भर्तियों की ओर विश्वविद्यालय में हुई घोटालेबाजी की जांच करा कर, दोषियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करवाई जाएगी।
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जब छात्र हॉस्टल में रहे ही नहीं तो हॉस्टल फीस क्यों दे:एसएफआई
शिमला- प्रदेश विश्वविद्यालय के होस्टलों में रह रहे छात्रों की समस्याओं को लेकर आज एचपीयू एसएफआई इकाई की ओर से वित्त अधिकारी को ज्ञापन सौंपा गया। ज्ञापन के माध्यम से एसएफआई ने छात्रों से 2020-2021 के सत्र की हॉस्टल कंटीन्यूशन फीस न लेने की मांग की है।
एसएफआई इकाई अध्यक्ष रॉकी ने कहा कि कोरोना काल की हॉस्टल कंटीन्युशन फीस को माफ़ किया जाना चाहिए क्योंकि कोरोना ने पहले छात्रों की आर्थिक स्थिति खराब कर दी है और छात्रों ने हॉस्टल सुविधा का उपयोग भी नहीं किया है।
इकाई अध्यक्ष ने कहा कि जब कोरोना काल में छात्र हॉस्टल में रहा ही नहीं तो छात्र हॉस्टल फीस क्यों दे? उन्होंने बताया कि हिमाचल विश्वविद्यालय में पढ़ने वाला अधिकतर छात्र समुदाय आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से संबंध रखता है। ऐसे में इस समय में जहां तो वि.वि. प्रशासन को छात्रों के लिए फीस पर रियायतें देनी चाहिए थी, वहीं इसके विपरीत विश्वविद्यालय प्रशासन छात्रों से जबरदस्ती फीस वसूलने में लगा हुआ है। जिससे छात्र मानसिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित हो रहे हैं।
अध्यक्ष रॉकी ने यह भी कहा कि कोरोना काल में सिर्फ परीक्षा के समय ही हॉस्टल खुले थे जिसके लिए छात्रों ने उतने समय की फीस उस समय दे दी थी और उसके बाद उस सत्र में अधिकतर समय हॉस्टल बंद ही रहे थे। अब विश्विद्यालय किस आधार पर छात्रों से फीस मांग रहा है यह सवाल एसएफआई ने वित्त अधिकारी के समाने रखा है।
अध्यक्ष ने बताया कि बहुत से छात्र ऐसे है जिनकी विश्वविद्यालय प्रशासन अब डिग्री लेने पर भी रोक लगा रहा है।
एसएफआई इकाई ने कहा है कि अगर जल्द से जल्द इन छात्र मांगों को पूरा नहीं किया गया तो आने वाले समय में एसएफआई आम छात्रों को लामबंद करते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ उग्र आंदोलन करेगी।
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एचपीयू की स्वतयत्ता बहाली की मांग को लेकर एबीवीपी ने शिक्षा मंत्री को सौंपा ज्ञापन
शिमला- हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की स्वायत्तता बहाली की मांग को लेकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने ऐतिहासिक पिंक पैटल पर धरना प्रदर्शन किया गया।
एबीवीपी इकाई सचिव कमलेश ठाकुर ने कहा कि प्रदेश का प्रमुख उच्च शिक्षण संस्थान हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के अधिनियम 1970 के अनुच्छेद 21 एवं 28(1) में वर्ष 2015 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार की ओर से किए गए संशोधन की वजह से विश्वविद्यालय के विकास कार्य तथा छात्र हितों में शीघ्र निर्णय लेने की प्रक्रिया में बहुत बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं।
उन्होंने कहा कि बीते वर्ष 22 जुलाई को हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान इन संशोधनों को वापिस लेने तथा विश्वविद्यालय की स्वायतता को पुनः बहाल करने की घोषणा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ओर शिक्षा मंत्री गोविंद ठाकुर की ओर सेकी गई थी जिसका विद्यार्थी परिषद ने स्वागत किया था,लेकिन अभी तक प्रदेश सरकार की ओर से इस घोषणा का पूरा नहीं किया गया है जिसके कारण विश्वविद्यालय में कई विकास कार्यों और नियुक्तियों को लेकर बाधाएं आ रही है।
कमलेश ने कहा की किसी भी विश्वविद्यालय के विकास तथा गुणवत्ता के लिए उसकी पूर्णतः स्वायतता का होना अति आवश्यक है। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की स्वायतता न होने की वजह से विश्वविद्यालय के विकास से संबंधित और महत्वपूर्ण निर्णय लेने की प्रक्रिया में देरी होना विश्वविद्यालय के छात्रों, अध्यापकों व कर्मचारियों के लिए सही नहीं है। स्वायतता बहाल न होने के कारण विवि प्रशासन विश्वविद्यालय से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर निर्णय नहीं ले पा रहा है ।
इकाई सचिव ने कहा कि अनुच्छेद 28(1) के अंतर्गत विश्वविद्यालय में शिक्षकों एवं गैर शिक्षकों की विभिन्न श्रेणियों के पदों का सृजन व पदों की भर्तियां, पदोन्नति नियमों का निर्माण एवं संशोधन इत्यादि सर्वप्रथम प्रदेश सरकार की वित्त समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जाना अपेक्षित है। उसके पश्चात वह प्रस्ताव कार्यकारिणी परिषद में विचारार्थ/ अनुमोदनार्थ हेतु प्रस्तुत किया जाता है जिस वजह से विश्वविद्यालय में विकासशील कार्य करने में बहुत समय लगता है।
उन्होंने कहा जहां तक पदों की भर्तियां व उनके सृजन का सम्बंध है, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में शिक्षकों व गैर शिक्षकों की भर्तियां व पदों का सृजन प्रदेश सरकार के आदेशानुसार और स्वीकृति के बाद ही संभावित होती है। कई बार कुछ प्रकरणों पर विश्वविद्यालय को शीघ्र कार्रवाई ओर शीघ्र निर्णय लेना बहुत आवश्यक होता है,लेकिन उपरोक्त अधिनियम में संशोधन की वजह से इन कार्यों में बहुत देरी हो जाती है।
विद्यार्थी परिषद का मानना है कि विश्वविद्यालय जैसे शिक्षण संस्थान के लिए विकास कार्यो में और महत्वपूर्ण निर्णय लेने में देरी होना प्रदेश विश्वविद्यालय के छात्रों, अध्यापकों व कर्मचारियों के लिए सही नहीं है।
विद्यार्थी परिषद प्रदेश सरकार से मांग करते हुए कहा कि अधिनियम 1970 के अनुच्छेद 21 एवं 28 में वर्ष 2015 में किए गए संशोधन पर सरकार पुनः विचार करे ओर प्रदेश विश्वविद्यालय के छात्रों, अध्यापकों व कर्मचारियों के हित को ध्यान में रखते हुए उपरोक्त अधिनियम में किए गए संशोधन को पुनः इसके मूल रूप में बहाल करे, ताकि हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की स्वायतता यथावत बनी रहे।
धरने प्रदर्शन के उपरांत एबीवीपी एचपीयू का प्रतिनिधिमंडल शिक्षा मंत्री को ज्ञापन सौंपा और सरकार से मांग की है कि प्रदेश सरकार जल्द से जल्द विवि की स्वायतता को बहाल करे ताकि विवि प्रशासन अपने बलबूते पर विश्वविद्यालय के विकास एवं अन्य मुद्दों पर फैसले ले सके।
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