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हिमाचल की 37 बेटियां पहली बार बनीं कमांडो, 39 पुरुष जवानों ने भी कमांडो ट्रेनिंग की पूरी
ऊना- हिमाचल की 37 बेटियां पहली बार कमांडो बनी हैं। 77 दिन की कठिन ट्रेनिंग के बाद अब वे देश की हिफाजत के लिए तैयार हैं। उन्हें किसी भी राज्य, संवेदनशील क्षेत्र या खतरनाक मिशन पर भेजा जा सकता हैं। सूबे की इन बेटियों की भोली सूरत पर न जाएं किसी भी मुश्किल वक्त में हर स्थिति से निपटने में काबिल हैं।
हिमाचल प्रदेश की इन 37 महिला पुलिस कर्मियों के अलावा 39 पुरुष जवानों ने भी सोमवार को कमांडो की ट्रेनिंग पूरी की। प्रथम भारतीय आरक्षित वाहनी बनगढ़ परिसर में कमांडो के विदाई समारोह में धर्मशाला रेंज के आईजी जीडी भार्गव ने इनका हौसला बढ़ाया। 77 दिन की ट्रेनिंग के लिए कुल एक सौ महिला,पुरुष कर्मियों का चयन हुआ था।
इनमें 37 महिलाओं, 39 पुरुषों ने हिस्सा लिया। शेष चयनित प्रशिक्षुओं ने किन्हीं कारणों से ट्रेनिंग नहीं ली। आईटीबीपी के खास प्रशिक्षकों की टीम ने इन कमांडोज को तैयार किया। आईआरबी बनगढ़ के साथ द्वितीय वाहनी सकोह, तृतीय वाहनी पंडोह तथा प्रथम एचपीएपी जुन्गा से आए प्रशिक्षुओं ने कड़ी ट्रेनिंग लेकर खुद इस काबिल बनाया कि उनके कंधों पर अब कमांडोज का बिल्ला दिखाई देगा।
हिमाचल की बेटियां किसी से कम नहीं
धर्मशाला रेंज के आईजी जीडी भार्गव ने कमांडोज से कहा कि उनका चयन उनकी मेहनत, लग्न एवं अनुशासन के दम पर हुआ है। कड़ी ट्रेनिंग के बाद प्रदेश में पहली दफा कमांडो बनीं बेटियों को बधाई देते हुए भार्गव ने कहा कि यह गर्व का विषय है कि बेटियां भी किसी बात में पीछे नहीं हैं।
कमांडो को उन बेहद कठिन कार्यों के लिए लगाया जाता है। जहां लक्ष्य तक पहुंचने को कमांडो के बाद कोई भी बहाना नहीं होता। कमांडो बनीं चांदनी ने अनुभव साझा करते हुए कहा कि ट्रेनिंग बेहद कठिन थी, लेकिन जैसे-जैसे हम इसमें जुड़ते गए, सब आसान होता चला गया। अभिषेक जसवाल ने भी अपने ट्रेनिंग के अनुभव साझा किए।
सात कमांडोज को मिला श्रेष्ठ पुरस्कार
ऊना के बनगढ़ स्थित प्रथम भारतीय आरक्षित वाहनी में कमांडोज की विदाई समारोह में धर्मशाला रेंज के आईजी जीडी भार्गव ने कमांडो ट्रेनिंग के दौरान कुल 76 में से सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले सात पुरुष एवं महिला कमांडोज को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया।
इन दौरान शूटिंग, पीटी के अलावा उनके अनुशासन दूसरे के प्रति सम्मान के भाव रखना तथा अपने काम को पूरी लगन के साथ करने के लिए संजीदगी दिखाने वाले इन कमांडोज की हौसला अफजाई तथा दूसरे कमांडोज के लिए प्रेरणा के तौर पर सम्मानित किया गया।
समादेशक एसआर राणा की देखरेख में हुए कमांडो ट्रेनिंग कैंप में विभिन्न क्षेत्रों में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले जिन कमांडोज को सम्मानित किया गया, उनमें तृतीय आईआरबी पंडोह से आरक्षी अभिषेक जसवाल, पंडोह से ही आरक्षी तेज सिंह तथा पंडोह से ही महिला आरक्षी प्रेरणा, आरक्षी रीना द्वितीय वाहनी सकोह, रीत सिंह पंडोह, रामचंद, प्रथम एचपीएपी जुन्गा, अमित कुमार आईआरबी सकोह, मनोज कुमार आईआरबी पंडोह, अरुण कटोच आईआरबी सकोह के नाम शामिल हैं।
आईटीबीपी के प्रशिक्षकों निरीक्षक रमेशचंद, टेकचंद, मुख्य आरक्षी सुरेंद्र कुमार, गौतम प्रसाद तथा पंकज कुमार ने प्रशिक्षुओं को प्रशिक्षित करने में अहम रोल अदा किया। जीडी भार्गव के साथ समादेशक एसआर राणा, उपसमादेशक सुरेश शर्मा, कुलवंत सिंह, कोर्स प्रभारी अजय राणा, डीएसपी हेडक्वार्टर कुलविंदर सिंह, डाइट देहलां के प्रिसिंपल कमलदीप सिंह, मुख्य आरक्षी दिलदार सिंह तथा देवेंद्र सिंह मौजूद रहे।
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हिमाचल की तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर लगे 76,000 से अधिक सेब के पौधे
शिमला- डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के विस्तार शिक्षा निदेशालय में पहाड़ी कृषि एवं ग्रामीण विकास एजेंसी(हार्प), शिमला द्वारा एक अनुभव-साझाकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया।
इस कार्यशाला में जिला किन्नौर के निचार विकास खंड के रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों के 34 किसानों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर जीएम नाबार्ड डॉ. सुधांशु मिश्रा मुख्य अतिथि रहे जबकि नौणी विवि के अनुसंधान निदेशक डॉ रविंदर शर्मा ने विशिष्ट अतिथि के रूप में शिरकत की।
संस्था के अध्यक्ष डॉ. आर एस रतन ने कहा कि यह कार्यक्रम एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना के तहत रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों में वर्ष 2014 से आयोजित किया जा रहा है। परियोजना को नाबार्ड द्वारा वित्त पोषित किया गया है और इसे हार्प द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
उन्होंने यह बताया कि यह एक बागवानी आधारित आजीविका कार्यक्रम है जिसे किसानों की भागीदारी से लागू किया गया है। इन तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर 76,000 से अधिक सेब के पौधे लगाए गए हैं और 607 परिवार लाभान्वित हुए हैं।
डॉ. सुधांशु मिश्रा ने यह भी कहा कि नाबार्ड हमेशा सामाजिक-आर्थिक उत्थान कार्यक्रमों के संचालन में आगे रहा है। उन्होंने इस कार्यशाला में भाग लेने वाले किसानों से अपने सहयोग से विभिन्न कार्यक्रमों को सफल बनाने का आग्रह किया।
अनुसंधान निदेशक डॉ. रविंदर शर्मा और विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. दिवेंद्र गुप्ता ने नाबार्ड और हार्प के प्रयासों की सराहना की और किसानों को आश्वासन दिया कि विश्वविद्यालय किसानों को तकनीकी रूप से समर्थन देने के लिए हमेशा तैयार है।
डॉ. नरेद्र कुमार ठाकुर ने कहा कि हार्प ने कृषक समुदाय के समन्वय से दुर्गम क्षेत्रों में कठिन परिस्थितियों में काम किया है। इस अवसर पर एक किसान-वैज्ञानिक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया जिसमें भाग लेने वाले किसानों के तकनीकी प्रश्नों को संबोधित किया गया।
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हिमाचल सरकार पुलिसकर्मियों का कर रही है शोषण
पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है,कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है,राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है,हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।
शिमला सीटू राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। कमेटी ने यह कहा है कि वह हिमाचल प्रदेश के पुलिसकर्मियों की मांगों का पूर्ण समर्थन करती है। आरोप लगाते हुए सीटू ने कहा है कि प्रदेश सरकार पुलिसकर्मियों का शोषण कर रही है।
राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार से यह मांग की है कि वर्ष 2013 के बाद नियुक्त पुलिसकर्मियों को पहले की भांति 5910 रुपये के बजाए 10300 रुपये संशोधित वेतन लागू किया जाए व उनकी अन्य सभी मांगों को बिना किसी विलंब के पूरा किया जाए।
सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में भी कर्मचारियों की प्रमुख मांगों को अनदेखा किया गया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में पुलिसकर्मियों की मांगों को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है।
सीटू कमेटी ने कहा कि सबसे मुश्किल डयूटी करने वाले व चौबीस घण्टे डयूटी में कार्यरत पुलिसकर्मियों को इस बैठक से मायूसी ही हाथ लगी है। इसी से आक्रोशित होकर पुलिसकर्मी मुख्यमंत्री आवास पहुंचे थे। उनके द्वारा पिछले कुछ दिनों से मैस के खाने के बॉयकॉट से उनकी पीड़ा का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि पुलिस कर्मियों के साथ ही सभी सरकारी कर्मचारी नवउदारवादी नीतियों की मार से अछूते नहीं है। कमेटी ने कहा कि पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है। कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।
कमेटी ने यह भी कहा है कि थानों में स्टेशनरी के लिए बेहद कम पैसा है व आईओ को केस की पूरी फ़ाइल का सैंकड़ों रुपये का खर्चा अपनी ही जेब से करना पड़ता है। थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है। मैस मनी केवल दो सौ दस रुपये महीना है जबकि मैस में पूरा महीना खाना खाने का खर्चा दो हज़ार रुपये से ज़्यादा आता है। यह प्रति डाइट केवल साढ़े तीन रुपये बनता है, जोकि पुलिस जवानों के साथ घोर मज़ाक है। यह स्थिति मिड डे मील के लिए आबंटित राशि से भी कम है।
उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के जमाने के बने बहुत सारे थानों की स्थिति खंडहर की तरह प्रतीत होती है जहां पर कार्यालयों को टाइलें लगाकर तो चमका दिया गया है परन्तु कस्टडी कक्षों,बाथरूमों,बैरकों,स्टोरों,मेस की स्थिति बहुत बुरी है। इन वजहों से भी पुलिस जवान भारी मानसिक तनाव में रहते हैं।
सीटू ने कहा कि पुलिस में स्टाफ कि बहुत कमी है या यूं कह लें कि बेहद कम है व कुल अनुमानित नियुक्तियों की तुलना में आधे जवान ही भर्ती किये गए हैं जबकि प्रदेश की जनसंख्या पहले की तुलना में काफी बढ़ चुकी है यहाँ तक पुलिस के पास रिलीवर भी नहीं है।
आरोप लगाते हुए कमेटी ने कहा कि प्रदेश की राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है। वहीं पुलिस कर्मी निरन्तर ओवरटाइम डयूटी करते हैं। इसकी एवज में उन्हें केवल एक महीना ज़्यादा वेतन दिया जाता है। इस से प्रत्येक पुलिसकर्मी को वर्तमान वेतन की तुलना में दस से बारह हज़ार रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है। उन्हें लगभग नब्बे साप्ताहिक अवकाश,सेकंड सैटरडे,राष्ट्रीय व त्योहार व अन्य छुट्टियों के मुकाबले में केवल पन्द्रह स्पेशल लीव दी जाती है।
सीटू कमेटी ने यह भी कहा कि वर्ष 2007 में हिमाचल प्रदेश में बने पुलिस एक्ट के पन्द्रह साल बीतने पर भी नियम नहीं बन पाए हैं। इस एक्ट के अनुसार पुलिसकर्मियों को सुविधा तो दी नहीं जाती है परन्तु कर्मियों को दंडित करने के लिए इसके प्रावधान बगैर नियमों के भी लागू किये जा रहे हैं जिसमें एक दिन डयूटी से अनुपस्थित रहने पर तीन दिन का वेतन काटना भी शामिल है। पुलिसकर्मियों की प्रोमोशन में भी कई विसंगतियां हैं व इसका टाइम पीरियड भी बहुत लंबा है। हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।
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किन्नौर में लापता पर्यटकों में से 2 और के शव बरामद, 2 की तालाश जारी,आभी तक कुल 7 शव बरामद
शिमला रिकोंगपिओ में 14 अक्तुबर को उत्तरकाशी के हर्षिल से छितकुल की ट्रैकिंग पर निकले 11 पर्यटकों में से लापता चार पर्वतारोहीयों में से दो पर्वतारोहियों के शवो को आई.टी.बी.पी व पुलिस दल द्वारा पिछले कल सांगला लाया गया था जहां सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र सांगला में दोनों शवों का पोस्टमार्टम किया गया।
यह जानकारी देते हुए उपायुक्त किन्नौर अपूर्व देवगन ने बताया कि इन दोनों की पहचान कर ली गई है जिनमे मे एक उतरकाशी व दूसरा पश्चिम बंगाल से सम्बंधित था।
उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन किन्नौर द्वारा आज एक शव वाहन द्वारा उतरकाशी को भेज दिया गया है जहाँ शव को जिला प्रशासन उतरकाशी को सौंपा जाएगा। जब कि दूसरा शव वाहन द्वारा शिमला भेजा गया है जिसे शिमला में मृतक के परिजनों को सौंपा जायेगा।
उपायुक्त अपूर्व देवगन ने बताया कि अभी भी लापता दो पर्यटकों की तलाश आई.टी.बी.पी के जवानों द्वारा जारी है। उल्लेखनीय है कि गत दिनों उतरकाशी से छितकुल के लिये 11 पर्वतारोही ट्रेकिंग पर निकले थे जो बर्फबारी के कारण लमखंगा दर्रे में फंस गये थे जिसकी सूचना मिलने पर जिला प्रशासन द्वारा सेना के हेलीकॉप्टर व आई.टी.बी.पी के जवानों की सहायता से राहत व बचाव कार्य आरम्भ किया था। सेना व आई.टी.बी.पी के जवानों ने 21 अक्टूबर को दो पर्यटकों को सुरक्षित ढूंढ निकाला था। इसी दौरान उन्हें अलग अलग स्थानों पर पाँच ट्रेकरों के शव ढूंढ निकलने में सफलता मिली थी। जबकि 4 पर्यटक लापता थे जिसमे से राहत व बचाव दल को 22 अक्तुबर को 2 शव ढूढ़ निकालने में सफलता मिली थी। अभी भी दो पर्यटक लापता हैं जिनकी राहत व बचाव दल द्वारा तलाश जारी है।
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