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पहाड़ों की रानी शिमला की हवा में भी घुलने लगा जहरीला धुआं, पर सरकार व जनता के कान पर नहीं रेंग रही जूँ तक

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शिमला-  आजकल देश की राजधानी पूरे विश्व के लिए वायु प्रदुषण के खिलाफ एक कड़े सन्देश का काम कर रहा है। दिल्ली में प्रदुषण का स्तर खतरनाक बिंदु तक पहुँच गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि ये स्तर एक व्यक्ति द्वारा एक दिन में पच्चीस सिगरेट पीने के बराबर है! दिल्ली के लोग ये तो मान रहे हैं की प्रदुषण का स्तर बढ़ गया है पर ये मानाने को तैयार नहीं की इसका कारण खुद जनता है।

सभी लोग इस प्रकार व्यवहार कर रहे हैं जैसे ये प्रदुषण परग्रहियों की साजिश हो। प्रदुषण से बचने के लिए शिमला और धर्मशाला जैसे पहाड़ी इलाकों की तरफ पलायन कर रहे हैं। हिमाचल में होटलों और पर्यटन कारोबार से जुड़े लोगों की लाटरी निकलआयी है।

पर हिमाचल भी प्रदुषण से अछूता नहीं है। ये जानते हुए भी प्रदुषण को रोकने के लिए कोई प्रत्यन नहीं कर रहा है। और न ही सरकार की तरफ से कोई जागरूकता को लेकर पहल हुई है! सच बात तो यह है कि अब प्रदेश कि राजधानी, पहाड़ो की रानी शिमला की साफ हवा भी बहुत तेजी से जहरीली होती जा रही है।

इससे अधिक विडंबना और क्या हो सकती है कि दिल्ली कि हालात देख कर भी किसी के सर पे जूँ तक नहीं रेंग रही! सभी मूर्खों कि तरह अपने विनाश का सामान तैयार करने में जुटे हैं।

प्रदूषण का स्तर बढ़ने से दमा, खांसी ,और भी कई प्रकार की बीमारियां होने का खतरा बड़ जाता है। अगर आम तौर पर शिमला को देखा जाये तो प्रदुषण का स्तर हर दिन एक समान ही है।हाँ यह जरूर है कि मानसून में बारिश होने के कारण प्रदुषण कम हो जाता है , लकिन जैसे ही मानसून की रफ़्तार कम होती है पिछले स्तिथि वापिस लौट आती है।

Air Pollution Symptoms

चित्र: हिमाचल वाचर

शहर की सड़को पर प्राइवेट और एचआरटीसी की बसें तथा बड़े मालवाहक गाड़ियां, जहरीला धुंआं फैंकते मिल जायेंगे! हिमाचल वाचर पिछले कई सालो से शिमला व पूरे प्रदेश में बसों और गाड़ियों से निकलने वाले ज़हरीले धुंए को लेकर प्रदेश के प्रदुषण कन्ट्रोल बोर्ड, शिमला पुलिस, एचआरटीसी, आरटीओ तक को लिखित और सबूत समेत शिकायत दर्ज करवाता आ रहा है पर किसी भी विभाग के कान पर जूँ तक नहीं रेंगी।

आपको यह जान कर हैरानी होगी की शिमला में बढ़ रहे रहे प्रदुषण के बारे में जब हिमाचल वाचर ने प्रदेश के प्रदुषण विभाग से जवाब मांग तो प्रदुषण बोर्ड ने साफ लिख दिया की वाहनों से होने वाले प्रदुषण को जाँचने का काम प्रदुषण विभाग का नहीं है। हम केवल औद्योगिक प्रदुषण की जाँच करने के लिए ही बाध्य है।

himachal Pradesh Pollution Control Board

चित्र: हिमाचल वाचर

वहीँ प्रदुषण बोर्ड ने सारा ठीकरा शिमला पुलिस के सर फोड़ दिया! हिमाचल वाचर ने जब शिमला ट्रैफिक पुलिस के डीएसपी से शिमला शहर में बढ़ रहे प्रदुषण के बारे में जवाब मांग तो उन्होंने उल्टा प्रदेश प्रदुषण बोर्ड को ज़िम्मेदार ठहराया। वहीँ अगर बात एचआरटीसी की बसों द्वारा हर दिन फैलाये जा रहे प्रदुषण की करें तो सोने पर सुहागा यह कहना गलत नहीं होगा।अगर आम आदमी शिमला शहर में दौड़ रही बसों को ध्यान से देखें तो उन्हें जहरीला धुआं फैंकती सरकारी बसें रोज अपने आस पास देखने को मिल जाएँगी।

यहाँ तक की शिमला ट्रैफिक पुलिस भी आम आदमी की तरह वाहनों से निकलता विषैला धुंआ खाने को मजबूर है।

पहाड़ो की रानी कहे जाने वाला शिमला अब अपने वैसा नहीं रहा जैसा हुआ करता था। साफ-सफाई, साफ हवा, शांत लोग और वातावरण और भी बहुत कुछ जो कभी शिमला की शोभा बढ़ाता था अब यह सब देखने को नहीं मिलता!

वाहनों से निकलने वाले ज़हरीले धुंए के अलावा खुले में कूड़ा जालाने का प्रचलन भी वायु को प्रदूषित कर रहा है!यह शर्म की बात है कि शिमला नगर निगम के सफाई कर्मचारी रोजाना खुले में कूड़ा जलाते दिखते हैं

विडियो

धांधलियों के चलते निगम अपने पांच साल के कार्य काल में राजधानी के महापौर शहर को एक कूड़ा संयंत्र भी मोहिया नहीं करवा पाए।
Shimla Solid Waste Treatment Plant

वही शहर के लोग भी कूड़ा जलाने और गंदगी फैलाने में पीछे नहीं है! कोई ज़हमत नहीं उठाता की घर से कूड़ा उठा कर कूड़े दान तक डाल दे। आम आदमी भी अपने फ़र्ज़ से कहीं न कहीं चूंक रहा है।

शहर में कई ऐसे स्थान है जहाँ कूड़ा डालने के लिए कूड़े दान की व्यवस्था नहीं है!शिमला के सार्वजानिक स्थानों पर भी कूड़ादान जैसी व्यवस्था न के बराबर है। शिमला शहर के दो सबसे भीड़ वाले बस स्टॉप्स, एम्एलऐ क्रासिंग ( MLA Crossing ) और टुटीकंडी क्रासिंग (Tutikandi Crossing) पर एक भी कूड़ादान नहीं रखवाया गया है। साथ ही साथ सार्वजनिक शौचालय तथा एक भी वर्षा शालिका का भी को प्रावधान नहीं। हिमाचल वॉचर की लगातार शिकायतों के बाद भी जनता बारिश और सर्दी के मौसम में खुले आसमान के नीचे अपनी बसों का इंतज़ार करने को मजबूर हैं।

यहाँ तक की प्रदेश के उच्च शिक्षण संसथान हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के परिसर के आस पास के स्थान भी कूड़े के अम्बार से ढके हुए हैं। विश्वविद्यालय के फैकल्टी हाउस जाने वाले रास्ते को देखें तो आपको सड़क का किनारा गन्दगी से भरा हुआ दिख जायेगा। पर सबसे जायद हैरानी तो तब होती हो प्रदेश विश्वविद्यालय में पढ़ रहे छात्रों और वहां के मननीय कुलपति को यह कूड़ा नहीं दिखता।उल्टा वहीँ पर कार्यालय का कूड़ा करकट फैंकते व जलाते है।

आदमी को खतरा केवल वायु (Air Pollution) , जल प्रदूषण (Water Pollution) , मृदा प्रदूषण (Soil Pollution), से ही नहीं है !बल्की तेज़ी से भड़ता ध्वनि प्रदूषण (Noise Pollution), और दृश्य प्रदूषण(Visual Pollution) भी हमारे सेहत पर बुरा आर ड़ालते है। यहाँ प्रेशर हॉर्न (Pressure Horn) का इस्तेमाल आम तोर पर देखा और सुना जा सकता है। मॉडिफाइड गाड़ियों और बाइक्स भी जब शहर में चलती है तो इनसे काफी शोर होता है और इस ध्वनि प्रदूषण का असर हमारी मानसिक सेहत पर पड़ता है।

Noise Pollution

चित्र: हिमाचल वाचर

अगर बात दृश्य प्रदूषण की करें तो शिमला शहर में यह सबसे आम दृश्य बन चूका है।आसानी से समझे तो ये प्रदुषण हमारे देखने और सोचने के नज़रिये में बदलाव लाता है जैसे की शहर के हवा घर, सड़कों की दीवारे, सार्वजानिक जगहों पर, खम्बो पर, पेड़ो पर, बैठने वाले बेंचो पर बेतरतीब ढंग से चिपके रंग बिरंगे पोस्टर, विज्ञापन, इत्यादि आम दृश्य बन गए है। जो की आप निचे दी गयी तस्वीरों में देख सकते हैं। ये दृश्य प्रदूषण हमारे शहर की सुंदरता को ग्रहण लगा रहे हैं।कानूनी कार्यवाही का प्रावधान होते हुई भी प्रशाशन आंखें मूंदे बैठा है।

चाहे तो नगर निगम इन्ही साधन से अछि-खासी आमदनी कर सकता है जो की शहर के विकास कार्यों में लगाई जा सकती है। परंतु, नगर निगम का रवैया चौकाने वाला है।

अगर इसी तरह जनता और सरकार आंखें मूँद पर्यावरण के साथ इस बचकाने मजाक पर लगाम लगाने के बजाये इसी तरह मूक दर्शक बने रहे तो वो दिन दूर नहीं जब शिमला भी दिल्ली की तरह प्रदुषित होगा और जनता सरकार और सरकार जनता को कोसेगी।

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हिमाचल की तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर लगे 76,000 से अधिक सेब के पौधे

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nauni university himachal pradesh

शिमला- डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के विस्तार शिक्षा निदेशालय में पहाड़ी कृषि एवं ग्रामीण विकास एजेंसी(हार्प), शिमला द्वारा एक अनुभव-साझाकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया।

इस कार्यशाला में जिला किन्नौर के निचार विकास खंड के रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों के 34 किसानों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर जीएम नाबार्ड डॉ. सुधांशु मिश्रा मुख्य अतिथि रहे जबकि नौणी विवि के अनुसंधान निदेशक डॉ रविंदर शर्मा ने विशिष्ट अतिथि के रूप में शिरकत की।

संस्था के अध्यक्ष डॉ. आर एस रतन ने कहा कि यह कार्यक्रम एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना के तहत रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों में वर्ष 2014 से आयोजित किया जा रहा है। परियोजना को नाबार्ड द्वारा वित्त पोषित किया गया है और इसे हार्प द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।

उन्होंने यह बताया कि यह एक बागवानी आधारित आजीविका कार्यक्रम है जिसे किसानों की भागीदारी से लागू किया गया है। इन तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर 76,000 से अधिक सेब के पौधे लगाए गए हैं और 607 परिवार लाभान्वित हुए हैं।

डॉ. सुधांशु मिश्रा ने यह भी कहा कि नाबार्ड हमेशा सामाजिक-आर्थिक उत्थान कार्यक्रमों के संचालन में आगे रहा है। उन्होंने इस कार्यशाला में भाग लेने वाले किसानों से अपने सहयोग से विभिन्न कार्यक्रमों को सफल बनाने का आग्रह किया।

अनुसंधान निदेशक डॉ. रविंदर शर्मा और विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. दिवेंद्र गुप्ता ने नाबार्ड और हार्प के प्रयासों की सराहना की और किसानों को आश्वासन दिया कि विश्वविद्यालय किसानों को तकनीकी रूप से समर्थन देने के लिए हमेशा तैयार है।

डॉ. नरेद्र कुमार ठाकुर ने कहा कि हार्प ने कृषक समुदाय के समन्वय से दुर्गम क्षेत्रों में कठिन परिस्थितियों में काम किया है। इस अवसर पर एक किसान-वैज्ञानिक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया जिसमें भाग लेने वाले किसानों के तकनीकी प्रश्नों को संबोधित किया गया।

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हिमाचल सरकार पुलिसकर्मियों का कर रही है शोषण

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पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है,कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है,राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है,हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।

शिमला सीटू राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। कमेटी ने यह कहा है कि वह हिमाचल प्रदेश के पुलिसकर्मियों की मांगों का पूर्ण समर्थन करती है। आरोप लगाते हुए सीटू ने कहा है कि प्रदेश सरकार पुलिसकर्मियों का शोषण कर रही है।

राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार से यह मांग की है कि वर्ष 2013 के बाद नियुक्त पुलिसकर्मियों को पहले की भांति 5910 रुपये के बजाए 10300 रुपये संशोधित वेतन लागू किया जाए व उनकी अन्य सभी मांगों को बिना किसी विलंब के पूरा किया जाए।

सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में भी कर्मचारियों की प्रमुख मांगों को अनदेखा किया गया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में पुलिसकर्मियों की मांगों को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है।

सीटू कमेटी ने कहा कि सबसे मुश्किल डयूटी करने वाले व चौबीस घण्टे डयूटी में कार्यरत पुलिसकर्मियों को इस बैठक से मायूसी ही हाथ लगी है। इसी से आक्रोशित होकर पुलिसकर्मी मुख्यमंत्री आवास पहुंचे थे। उनके द्वारा पिछले कुछ दिनों से मैस के खाने के बॉयकॉट से उनकी पीड़ा का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि पुलिस कर्मियों के साथ ही सभी सरकारी कर्मचारी नवउदारवादी नीतियों की मार से अछूते नहीं है। कमेटी ने कहा कि पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है। कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।

कमेटी ने यह भी कहा है कि थानों में स्टेशनरी के लिए बेहद कम पैसा है व आईओ को केस की पूरी फ़ाइल का सैंकड़ों रुपये का खर्चा अपनी ही जेब से करना पड़ता है। थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है। मैस मनी केवल दो सौ दस रुपये महीना है जबकि मैस में पूरा महीना खाना खाने का खर्चा दो हज़ार रुपये से ज़्यादा आता है। यह प्रति डाइट केवल साढ़े तीन रुपये बनता है, जोकि पुलिस जवानों के साथ घोर मज़ाक है। यह स्थिति मिड डे मील के लिए आबंटित राशि से भी कम है।

उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के जमाने के बने बहुत सारे थानों की स्थिति खंडहर की तरह प्रतीत होती है जहां पर कार्यालयों को टाइलें लगाकर तो चमका दिया गया है परन्तु कस्टडी कक्षों,बाथरूमों,बैरकों,स्टोरों,मेस की स्थिति बहुत बुरी है। इन वजहों से भी पुलिस जवान भारी मानसिक तनाव में रहते हैं।

सीटू ने कहा कि पुलिस में स्टाफ कि बहुत कमी है या यूं कह लें कि बेहद कम है व कुल अनुमानित नियुक्तियों की तुलना में आधे जवान ही भर्ती किये गए हैं जबकि प्रदेश की जनसंख्या पहले की तुलना में काफी बढ़ चुकी है यहाँ तक पुलिस के पास रिलीवर भी नहीं है।

आरोप लगाते हुए कमेटी ने कहा कि प्रदेश की राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है। वहीं पुलिस कर्मी निरन्तर ओवरटाइम डयूटी करते हैं। इसकी एवज में उन्हें केवल एक महीना ज़्यादा वेतन दिया जाता है। इस से प्रत्येक पुलिसकर्मी को वर्तमान वेतन की तुलना में दस से बारह हज़ार रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है। उन्हें लगभग नब्बे साप्ताहिक अवकाश,सेकंड सैटरडे,राष्ट्रीय व त्योहार व अन्य छुट्टियों के मुकाबले में केवल पन्द्रह स्पेशल लीव दी जाती है।

सीटू कमेटी ने यह भी कहा कि वर्ष 2007 में हिमाचल प्रदेश में बने पुलिस एक्ट के पन्द्रह साल बीतने पर भी नियम नहीं बन पाए हैं। इस एक्ट के अनुसार पुलिसकर्मियों को सुविधा तो दी नहीं जाती है परन्तु कर्मियों को दंडित करने के लिए इसके प्रावधान बगैर नियमों के भी लागू किये जा रहे हैं जिसमें एक दिन डयूटी से अनुपस्थित रहने पर तीन दिन का वेतन काटना भी शामिल है। पुलिसकर्मियों की प्रोमोशन में भी कई विसंगतियां हैं व इसका टाइम पीरियड भी बहुत लंबा है। हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।

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किन्नौर में लापता पर्यटकों में से 2 और के शव बरामद, 2 की तालाश जारी,आभी तक कुल 7 शव बरामद

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शिमला रिकोंगपिओ में 14 अक्तुबर को उत्तरकाशी के हर्षिल से छितकुल की ट्रैकिंग पर निकले 11 पर्यटकों में से लापता चार पर्वतारोहीयों में से दो  पर्वतारोहियों के शवो को आई.टी.बी.पी व पुलिस दल द्वारा पिछले कल सांगला लाया गया था जहां सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र सांगला में दोनों शवों का पोस्टमार्टम किया गया।

यह जानकारी देते हुए उपायुक्त किन्नौर अपूर्व देवगन ने बताया कि इन दोनों की पहचान कर ली गई है जिनमे मे एक उतरकाशी व दूसरा पश्चिम बंगाल से सम्बंधित था।

उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन किन्नौर द्वारा आज एक शव वाहन द्वारा उतरकाशी को भेज दिया गया है जहाँ शव को जिला प्रशासन उतरकाशी को सौंपा जाएगा। जब कि दूसरा शव वाहन द्वारा शिमला भेजा गया है जिसे शिमला में मृतक के परिजनों को सौंपा जायेगा।

उपायुक्त अपूर्व देवगन ने बताया कि अभी भी लापता दो  पर्यटकों की तलाश आई.टी.बी.पी के जवानों द्वारा जारी है। उल्लेखनीय है कि गत दिनों उतरकाशी से छितकुल के लिये 11 पर्वतारोही ट्रेकिंग पर निकले थे जो बर्फबारी के कारण लमखंगा दर्रे में फंस गये थे जिसकी सूचना मिलने पर जिला प्रशासन द्वारा सेना के हेलीकॉप्टर व आई.टी.बी.पी के जवानों की सहायता से राहत व बचाव कार्य आरम्भ किया था। सेना व आई.टी.बी.पी के जवानों ने 21 अक्टूबर को दो पर्यटकों को सुरक्षित ढूंढ निकाला था। इसी दौरान उन्हें अलग अलग स्थानों पर पाँच ट्रेकरों के शव ढूंढ निकलने में सफलता मिली थी। जबकि 4 पर्यटक लापता थे जिसमे से राहत व बचाव दल को 22 अक्तुबर को 2 शव ढूढ़ निकालने में सफलता मिली थी। अभी भी दो पर्यटक लापता हैं जिनकी राहत व बचाव दल द्वारा तलाश जारी है।

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