कैम्पस वॉच
कैसे अपने बच्चों और चहेतों के लिए नियमों की धज्जियां उड़ा रहा विश्वविद्यालय प्रशासन
शिमला-हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की एसएफआई इकाई ने पीएचडी (PhD) में बिना प्रवेश परीक्षा के हुए दाखिलों को लेकर प्रेस कांफ्रेंस की और उन दाखिलों को निरस्त करने की मांग उठाई है। प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए कैंपस सचिव रॉकी ने विश्वविद्यालय में हाल ही में हुई पीएचडी (PhD) भर्ती पर आपत्ति जताते हुए इसे अध्यादेश और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों की अवहेलना बताया।
रॉकी का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन अपने चहेतों को फायदा पहुंचाने के लिए इस तरह की धांधलियां पीएचडी के अंदर कर रहा है। विश्वविद्यालय में जो भी दाखिलें पीएचडी में हुए हैं, वह यूजीसी (UGC)और विश्वविद्यालय के अध्यादेश के नियमों को दरकिनार करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति द्वारा अपने फायदे के लिए किए गए हैं।
टीचर कोटा:-
विश्वविद्यालय के अंदर कार्यकारी परिषद में तय किया गया की हाल ही में जिन प्रोफेसर की भर्तियां हुई है और जिन अध्यापकों की पीएचडी पूरी नहीं हुई है, वह अध्यापक पीएचडी में दाखिला बिना किसी प्रवेश परीक्षा के ले सकते हैं। उनके लिए कार्यकारी परिषद (EC) के अंदर एक सुपरन्यूमैरेरी (Supernumerary) सीट का प्रस्ताव पास किया गया। जिससे वे अपनी पीएचडी बिना किसी प्रवेश परीक्षा (Entrance Exam) के पूरी कर सकते हैं।
एसएफआई (SFI) ने कहा है कि विश्वविद्यालय प्रशासन यदि इस तरह की सुपरन्यूमैरेरी सीट रख रहा है, तो इसमें जितने भी प्राध्यापक कॉलेजों और विश्वविद्यालय के अंदर पढ़ाते हैं उन्हें समान अवसर का मौका मिलना चाहिए जोकि प्रवेश परीक्षा के माध्यम से ही दिया जाना चाहिए, जिसे विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा नहीं दिया गया, क्योंकि विश्वविद्यालय प्रशासन और प्रदेश की सरकार अपने चहेतों के दाखिलें पीएचडी के अंदर करवाना चाहती है और इस विश्वविद्यालय को एक विशेष विचारधारा का अड्डा बनाना चाहती है।
रॉकी ने कहा कि इस भेदभाव पूर्ण फैसले के कारण जो प्राध्यापक अपनी पीएचडी पूरी करना चाहता भी था, वह भी अपनी पीएचडी पूरी नहीं कर पाएगा।एसएफआई ने सवाल उठाया की अगर एक छात्र पीएचडी (PhD) में प्रवेश के लिए प्रवेश परीक्षा पास कर सकता है तो एक अध्यापक क्यों नहीं ?
वार्ड (Ward) कोटा:-
एसएफआई इकाई सचिव रॉकी ने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने अपनी भगवाकरण की इसी मुहिम को आगे बढ़ाते हुए 21 अगस्त 2021 को विश्वविद्यालय की एग्जीक्यूटिव काउंसिल की मीटिंग में यह पारित किया था कि विश्वविद्यालय का प्राध्यापक व कर्मचारी वर्ग अपने बच्चों की एडमिशन PhD के अंदर बिना किसी प्रवेश परीक्षा के करवा सकता है। इसके माध्यम से सबसे पहले जिनके बच्चे PhD में दाखिला लेते हैं वह है विश्वविद्यालय के कुलपति, डीन ऑफ सोशल साइंसेज और डायरेक्टर है।
रॉकी ने कहा कि इससे यह सिद्ध होता है कि यह कहीं ना कहीं उन 1200 से अधिक कर्मचारियों व 300 से अधिक प्राध्यापकों के बच्चों के साथ भी भेदभाव है उनके समान अवसर के अधिकार को छीन लिया गया है क्योंकि सबसे पहले जिनके बच्चों की भर्ती PhD में हुई है वे विश्वविद्यालय के सबसे सर्वोच्च स्थान पर बैठे हुए अधिकारी हैं और कहीं ना कहीं प्रभावशाली लोग हैं ।
सचिव ने आरोप लगाया कि कोटा कहीं ना कहीं प्रशासन और प्रदेश सरकार के इशारे पर कुलपति के बेटे को फायदा पहुंचाने की साजिश है। क्योंकि जब कार्यकारी परिषद के द्वारा इस कोटे के तहत यह सीटें निकाली गई, तो इन सीटों को विज्ञापित भी नही किया गया और न ही प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया गया, जोकि समान अवसर के अधिकार की भी छीनना है और यूजीसी की गाइडलाइंस की अवहेलना है।
दीनदयाल उपाध्याय घोटाला (DDU PhD Scam)
एसएफआई इकाई सचिव रॉकी ने कहा कि विश्वविद्यालय के अंदर दीनदयाल उपाध्याय नाम से एक पीठ का गठन किया गया है और जिसके अंदर डिप्लोमा कोर्स शुरू किया गया है, जिसकी अपनी कोई मास्टर डिग्री नहीं है । विश्वविद्यालय प्रशासन ने अयोग्य लोगों को इस विश्वविद्यालय में भर्ती करने के लिए इस पीठ में PhD का प्रावधान किया। अब सवाल यह है कि जिस पीठ की मास्टर डिग्री ही नहीं है वह पीएचडी कैसे करवा रही है।
सचिव ने कहा कि इस विश्वविद्यालय के अंदर यह होता आ रहा है कि जितनी सीटें पीएचडी के लिए विज्ञापित की जाती हैं उससे ज्यादा भर्तियां की जा रही हैं। ये एक बहुत बड़ी सोची समझी साजिश के तहत किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि डीडीयू के अंदर भी इसी तरह की धांधली सामने आई थी जिसमें पहले 5 सीटों को विज्ञापित किया गया था परंतु अपने चहेतों को फायदा पहुंचाने के लिए आठ और लोगों को दाखिला पीएचडी में दिलाया गया।
एसएसआई ने आरोप लगाए हैं कि विश्वविद्यालय प्रशासन या कुलपति प्रदेश सरकार और आरएसएस (RSS) के इशारे पर इस विश्वविद्यालय के अंदर नियमों को दरकिनार करते हुए एक विशेष विचारधारा को इस विश्वविद्यालय के अंदर आरक्षण दे रही है। एसएसआई ने इन भर्तियों की जो नियमों को ताक पर रखकर की गई हैं और मेहनत करने वाले छात्रों को समान अवसर के अधिकार को छीन कर की गई हैं उनकी कड़ी निंदा की है। एसएसआई ने प्रदेश सरकार और प्रशासन से यह मांग की है कि इन भर्तियों को निरस्त किया जाएं।
पीएचडी स्थानांतरण मुद्दा (PhD Migration issue)
एसएफआई इकाई सचिव रॉकी ने कहा कि विश्वविद्यालय के अंदर पिछले कुछ समय से निजी शिक्षण संस्थानों से छात्रों की माइग्रेशन हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के अंदर की जा रही है जो सरासर विश्वविद्यालय के अध्यादेश का उल्लंघन करता है। विश्वविद्यालय के अंदर पीएचडी में दाखिला लेने के लिए प्रवेश परीक्षा और नेट जेआरएफ (NET JRF) पास करना पड़ता है, जबकि दूसरी ओर निजी संस्थानों के अंदर सिर्फ पैसे के बलबूते पर पीएचडी के अंदर दाखिला मिल जाता है और अंत में अपने चहेते लोगों को विश्वविद्यालय में पीएचडी के अंदर माइग्रेशन करवा देते है, जो पीएचडी के अंदर बैठने के योग्य ही नहीं हैं।
एसएफआई (SFI) के कुछ सवाल जो वह प्रदेश सरकार और विश्वविद्यालय प्रशासन के समक्ष रखना चाहती है-
1. जब छात्र पीएचडी (PhD) में प्रवेश पाने के लिए प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर सकता है तो एक अध्यापक क्यों नहीं?
2. पीएचडी के अंदर वार्ड कोटे से भरी गई सीटों को विज्ञापित क्यों नहीं किया गया?
3. छात्रों को शिक्षा ग्रहण करने के लिए समान अधिकार के अवसर क्यों नही दिए गए?
4.क्या विश्वविद्यालय की EC vice chancellor के दवाब में काम रही है?
5. पीएचडी (Phd) के अंदर सीटों की संख्या विज्ञापित कम और दाखिले ज्यादा कैसे ?
6. जिस कोर्स के अंदर मास्टर डिग्री नहीं है उसमें पीएचडी (PhD) मे दाखिलें कैसे?
7. बिना नेट जेआरएफ (NET JRF) के पीएचडी सीटें बांटने के बाद उसकी वैधता पर संशय?
8. पीएचडी के अंदर निजी शिक्षण संस्थानों से एचपीयू (HPU) में माइग्रेशन कैसे?
9. विश्वविद्यालय अध्यादेश की अवहेलना करने वाले वाइस चांसलर, डीन ऑफ स्टडीज, डीन ऑफ सोशल साइंसेज पर कार्यवाही कब?
10. डीन ऑफ स्टडीज (DS) के पद पर पिछले तीन चार साल से एक ही शख्स क्यों?
एसएफआई ने मांग की है कि उच्च न्यायलय शीघ्र अति शीघ्र इस पर स्वत: संज्ञान ले और विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी बढ़ते भ्रष्टाचार के खिलाफ संज्ञान ले और जो दोषी अधिकारी इसमें शामिल है उन पर कड़ी कार्यवाही अमल मे लाई जाए।
कैम्पस वॉच
विश्वविद्यालय को आरएसएस का अड्डा बनाने का कुलपति सिंकदर को मिला ईनाम:एनएसयूआई
शिमला- भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन ने हिमाचल प्रदेश के शैक्षणिक संस्थानों मे भगवाकरण का आरोप प्रदेश सरकार पर लगाया हैं। भाजपा की ओर से एचपीयू के कुलपति को राज्यसभा का उमीदवार बनाने पर प्रदेश सरकार ओर भाजपा नेतृत्व को आडे़ हाथ लेते हुए एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष छत्तर सिंह ठाकुर ने कहा की एनएसयूआई बीते कई दिनों से प्रदेश विश्वविद्यालय में भगवाकरण को बढ़ावा दिया जाने के खिलाफ मुखर थी।
छत्तर ठाकुर ने बताया की एनएसयूआई ने लगातार कुलपति के खिलाफ मोर्चा खोल रखा था,जिसमें उन्होंने कुलपति की योग्यता के खिलाफ लगातार प्रश्न चिन्ह उठाए थे।
वहीं कुलपति के बेटे की फर्जी तरीके से यूजीसी के नियमों के खिलाफ जाकर पीएचडी में दाखिले, इसके अलावा प्रदेश विश्वविद्यालय मे 160+ प्रोफेसरों, गैर शिक्षक वर्ग व आउटसोर्स के माध्यम से सैकडो़ भर्तीयां प्रदेश विश्वविद्यालय में की गई, जिनमें यूजीसी के नियमों की धजियां उडा़ई गई, नियमों को ताक पर रख कर गलत तरीके से कई साक्षात्कार किए गए, विश्व विद्यालय के बुनियादी ढांचे के विकास मे कई घोटाले बाजी की गई, सैनिटाइज़र मशीनों के नाम पर घोटालेबाजी की गई,एनएसयूआई ने इन सभी मुद्दों को प्रमुखता से उठाया जिसके लिए एनएसयूआई के तीन पदाधिकारियों को असवैधांनिक तरीके से विश्वविद्यालय से निष्कासित भी किया गया।
उन्होंने कहा कि एनएसयूआई के लगातार इन सभी मुद्दों को उठाने के बाद चुनावी वर्ष आते ही अब कुलपति को शिक्षा विभाग से हटा दिया गया।
एनएसयूआई प्रदेश अध्यक्ष ने बताया की वाईस चांसलर को राज्यसभा भेजा जाए या लोकसभा लेकिन प्रदेश मे सता परिवर्तन तय है और सरकार बदलते ही प्रदेश सरकार से इन सभी गलत तरीके से हुई भर्तियों की ओर विश्वविद्यालय में हुई घोटालेबाजी की जांच करा कर, दोषियों के खिलाफ उचित कार्रवाई करवाई जाएगी।
कैम्पस वॉच
जब छात्र हॉस्टल में रहे ही नहीं तो हॉस्टल फीस क्यों दे:एसएफआई
शिमला- प्रदेश विश्वविद्यालय के होस्टलों में रह रहे छात्रों की समस्याओं को लेकर आज एचपीयू एसएफआई इकाई की ओर से वित्त अधिकारी को ज्ञापन सौंपा गया। ज्ञापन के माध्यम से एसएफआई ने छात्रों से 2020-2021 के सत्र की हॉस्टल कंटीन्यूशन फीस न लेने की मांग की है।
एसएफआई इकाई अध्यक्ष रॉकी ने कहा कि कोरोना काल की हॉस्टल कंटीन्युशन फीस को माफ़ किया जाना चाहिए क्योंकि कोरोना ने पहले छात्रों की आर्थिक स्थिति खराब कर दी है और छात्रों ने हॉस्टल सुविधा का उपयोग भी नहीं किया है।
इकाई अध्यक्ष ने कहा कि जब कोरोना काल में छात्र हॉस्टल में रहा ही नहीं तो छात्र हॉस्टल फीस क्यों दे? उन्होंने बताया कि हिमाचल विश्वविद्यालय में पढ़ने वाला अधिकतर छात्र समुदाय आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से संबंध रखता है। ऐसे में इस समय में जहां तो वि.वि. प्रशासन को छात्रों के लिए फीस पर रियायतें देनी चाहिए थी, वहीं इसके विपरीत विश्वविद्यालय प्रशासन छात्रों से जबरदस्ती फीस वसूलने में लगा हुआ है। जिससे छात्र मानसिक और आर्थिक रूप से प्रताड़ित हो रहे हैं।
अध्यक्ष रॉकी ने यह भी कहा कि कोरोना काल में सिर्फ परीक्षा के समय ही हॉस्टल खुले थे जिसके लिए छात्रों ने उतने समय की फीस उस समय दे दी थी और उसके बाद उस सत्र में अधिकतर समय हॉस्टल बंद ही रहे थे। अब विश्विद्यालय किस आधार पर छात्रों से फीस मांग रहा है यह सवाल एसएफआई ने वित्त अधिकारी के समाने रखा है।
अध्यक्ष ने बताया कि बहुत से छात्र ऐसे है जिनकी विश्वविद्यालय प्रशासन अब डिग्री लेने पर भी रोक लगा रहा है।
एसएफआई इकाई ने कहा है कि अगर जल्द से जल्द इन छात्र मांगों को पूरा नहीं किया गया तो आने वाले समय में एसएफआई आम छात्रों को लामबंद करते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन के खिलाफ उग्र आंदोलन करेगी।
कैम्पस वॉच
एचपीयू की स्वतयत्ता बहाली की मांग को लेकर एबीवीपी ने शिक्षा मंत्री को सौंपा ज्ञापन
शिमला- हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की स्वायत्तता बहाली की मांग को लेकर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने ऐतिहासिक पिंक पैटल पर धरना प्रदर्शन किया गया।
एबीवीपी इकाई सचिव कमलेश ठाकुर ने कहा कि प्रदेश का प्रमुख उच्च शिक्षण संस्थान हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के अधिनियम 1970 के अनुच्छेद 21 एवं 28(1) में वर्ष 2015 में तत्कालीन कांग्रेस सरकार की ओर से किए गए संशोधन की वजह से विश्वविद्यालय के विकास कार्य तथा छात्र हितों में शीघ्र निर्णय लेने की प्रक्रिया में बहुत बाधाएं उत्पन्न हो रही हैं।
उन्होंने कहा कि बीते वर्ष 22 जुलाई को हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस के उपलक्ष्य पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान इन संशोधनों को वापिस लेने तथा विश्वविद्यालय की स्वायतता को पुनः बहाल करने की घोषणा मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ओर शिक्षा मंत्री गोविंद ठाकुर की ओर सेकी गई थी जिसका विद्यार्थी परिषद ने स्वागत किया था,लेकिन अभी तक प्रदेश सरकार की ओर से इस घोषणा का पूरा नहीं किया गया है जिसके कारण विश्वविद्यालय में कई विकास कार्यों और नियुक्तियों को लेकर बाधाएं आ रही है।
कमलेश ने कहा की किसी भी विश्वविद्यालय के विकास तथा गुणवत्ता के लिए उसकी पूर्णतः स्वायतता का होना अति आवश्यक है। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की स्वायतता न होने की वजह से विश्वविद्यालय के विकास से संबंधित और महत्वपूर्ण निर्णय लेने की प्रक्रिया में देरी होना विश्वविद्यालय के छात्रों, अध्यापकों व कर्मचारियों के लिए सही नहीं है। स्वायतता बहाल न होने के कारण विवि प्रशासन विश्वविद्यालय से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर निर्णय नहीं ले पा रहा है ।
इकाई सचिव ने कहा कि अनुच्छेद 28(1) के अंतर्गत विश्वविद्यालय में शिक्षकों एवं गैर शिक्षकों की विभिन्न श्रेणियों के पदों का सृजन व पदों की भर्तियां, पदोन्नति नियमों का निर्माण एवं संशोधन इत्यादि सर्वप्रथम प्रदेश सरकार की वित्त समिति के समक्ष प्रस्तुत किया जाना अपेक्षित है। उसके पश्चात वह प्रस्ताव कार्यकारिणी परिषद में विचारार्थ/ अनुमोदनार्थ हेतु प्रस्तुत किया जाता है जिस वजह से विश्वविद्यालय में विकासशील कार्य करने में बहुत समय लगता है।
उन्होंने कहा जहां तक पदों की भर्तियां व उनके सृजन का सम्बंध है, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में शिक्षकों व गैर शिक्षकों की भर्तियां व पदों का सृजन प्रदेश सरकार के आदेशानुसार और स्वीकृति के बाद ही संभावित होती है। कई बार कुछ प्रकरणों पर विश्वविद्यालय को शीघ्र कार्रवाई ओर शीघ्र निर्णय लेना बहुत आवश्यक होता है,लेकिन उपरोक्त अधिनियम में संशोधन की वजह से इन कार्यों में बहुत देरी हो जाती है।
विद्यार्थी परिषद का मानना है कि विश्वविद्यालय जैसे शिक्षण संस्थान के लिए विकास कार्यो में और महत्वपूर्ण निर्णय लेने में देरी होना प्रदेश विश्वविद्यालय के छात्रों, अध्यापकों व कर्मचारियों के लिए सही नहीं है।
विद्यार्थी परिषद प्रदेश सरकार से मांग करते हुए कहा कि अधिनियम 1970 के अनुच्छेद 21 एवं 28 में वर्ष 2015 में किए गए संशोधन पर सरकार पुनः विचार करे ओर प्रदेश विश्वविद्यालय के छात्रों, अध्यापकों व कर्मचारियों के हित को ध्यान में रखते हुए उपरोक्त अधिनियम में किए गए संशोधन को पुनः इसके मूल रूप में बहाल करे, ताकि हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की स्वायतता यथावत बनी रहे।
धरने प्रदर्शन के उपरांत एबीवीपी एचपीयू का प्रतिनिधिमंडल शिक्षा मंत्री को ज्ञापन सौंपा और सरकार से मांग की है कि प्रदेश सरकार जल्द से जल्द विवि की स्वायतता को बहाल करे ताकि विवि प्रशासन अपने बलबूते पर विश्वविद्यालय के विकास एवं अन्य मुद्दों पर फैसले ले सके।
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