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छात्र संगठन ने हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय प्रशाशन पर लगाए ये 7 गंभीर आरोप, कहा 50 वर्षों के इतिहास में पहली बार इतना चरमारया प्रशासनिक ढ़ांचा
शिमला-आज एस एफ आई हिमाचल प्रदेश राज्य कमेटी, हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय इकाई व एस एफ आई शिमला जिला कमेटी ने संयुक्त प्रैस वार्ता का आयोजन किया। इस प्रैस वार्ता के माध्यम से एस एफ आई ने कहा कि हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय का प्रशासनिक ढ़ांचा पूरी तरह से चरमरा गया है जिसके लिए कुलपति,वि वि प्रशासन व प्रदेश सरकार समान रूप से जिम्मेवार हैं।
एस एफ आई ने कहा कि हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के 50 वर्षों के इतिहास में पहली बार वि।वि। का प्रशासनिक ढ़ांचा इतना चरमरा चुका है कि वि वि के कुलपति के रूप में सिकंदर कुमार जी ने शपथ ली तो उन्होंने पहला बयान यह दिया कि मैं आरएसएस की वजह से यहां तक पहुंचा हूँ और ता उम्र इस विचार के लिए काम करूँगा। इस बात का सिकंदर साहब समय-समय पर खूबी सबूत भी देते रहते है। विश्वविद्यालय के डीन ऑफ स्टडीज श्रीमान अरविन्द कालिया भष्टाचार में संलिप्त है। एस एफ आई ने आरोप लगाया कि ICDEOL के निदेशक कुलवंत पठानिया 10 महीनों में Ph.D करवाने का कारनामा कर चुके है।
विश्वविद्यालय के कुलसचिव ऑउटसोर्स के माध्यम से वि।वि। में आर ऐस ऐस (RSS) और बी जे पी के लोगों की भर्तियां करवाने में लीन है। प्रदेश के ज्यादातर कॉलेजों में प्रिंसिपल की कुर्सी पर ऐसे लोगो को बिठाया गया है जो अपने-अपने कॉलेज में ए बी वी पी का काम प्रत्यक्ष रूप से कर रहे हैं। एस एफ आई ने कहा कि ऐसे लोगो का विश्वविद्यालय व कॉलेज के प्रशासन में होना यह दर्शाता है कि ये किस मंशा से इन पदों पर आसीन है। विश्वविद्यालय प्रशासन की बागड़ोर इस तरह के लोगो के हाथ में होने के कारण पिछले एक साल से विश्वविद्यालय का स्तर तेजी से गिरता जा रहा है। एस।एफ। आई। ने कहा कि यह बातें वह अनुमान के आधार पर नहीं बल्कि तथ्यों के साथ बोल रही है और संस्था ने निम्नलिखित तथ्य पेश किये:-
एच पी यू ऑनलाईन प्रणाली के खस्ताहालात
एस एफ आई ने कहा कि जब से हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय ने ऑफलाईन की जगह ऑनलाईन प्रणाली को लागू किया है तब से लेकर आज तक परीक्षा परिणाम एक भी बार समय पर घोषित नहीं हुए है और न ही सही परिणाम घोषित किए है। विश्वविद्यालय की वेबसाइट के हालात दयनीय है जिसका कारण कंप्यूटर शाखा का ठेकाकरण व नियमित की जगह ऑउटसोर्स भर्तियां का होना है। हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन ने 8 में करोड़ ERP(Enterprise Resource Programme) लागू किया है लेकिन इस प्रणाली को चलाने के लिए योग्य कर्मचारियों की जगह अपने चहेते बिठाये है। जर्जर हो चुके इस ऑनलाईन सिस्टम के कारण छात्रों के परिणाम समय पर नहीं आ रहे है और न ही काउंसलिंग के परिणाम समय पर आ रहे है, न तो हॉस्टल फॉर्म समय पर भरे जा रहे है और न ही फिसे जमा हो पा रही है। इसके साथ-साथ परीक्षा परिणामो का दुरुस्तीकरण भी समय पर नहीं हो रहा है जिसके कारण छात्रों की पढ़ाई वाधित हो रही है।एस एफ आई ने कहा कि इन सभी कारणों की वजह से विश्वविद्यालय का शैक्षणिक सत्र भी लगभग 20 दिन देरी से शुरू होगा।
विश्वविद्यालय के अधीन सभी कॉलेजों के छात्रों के हालात दयनीय
एस एफ आई ने कहा कि कॉलेज के अधिकतर छात्र आजकल विश्वविद्यालय के चक्कर काटने को मजबूर है। छात्रों के परीक्षा परिणाम प्रशासन की नालायकी के कारण लंबे समय से लंबित है। छात्रों की Internal Assessment(I A) अभी तक विश्वविद्यालय नहीं पहुंची है। बहुत सारे छात्रों के Term end marks एक साल बीते जाने के बाद भी अपडेट नहीं किए गए है। हद तो तब हो जाती है जब छात्र एक ग्रेड कार्ड में पास और उसी सत्र के दूसरे ग्रेड कार्ड में फेल हो जाता है। कॉलेज में प्राध्यापकों की कमी के कारण सरेआम छात्रों के भविष्य को रौंदा जा रहा है। एस एफ आई ने कहा कि वर्तमान समय में छात्र अपने शिक्षण संस्थान नहीं जा पा रहा है या समय पर नहीं पहुंच पा रहा है क्योंकि बसों में ओवरलोडिंग मान्य नहीं है और कॉलेज के पास छत्रों के लिए विशेष बसों का प्रावधान नहीं है और न ही प्रशासन द्वारा बसों का प्रावधान करने की जहमत उठाई जाती है न तो बस पास काउंटर खोले जा रहे है जिससे साफ तौर पर समझा जा सकता है कि प्रदेश का छात्र किन विपरीत परिस्थितियों में अपनी शिक्षा ग्रहण करने के लिए मज़बूर है।
विश्वविद्यालय में भगवाकरण की मुहिम को तेज़ करना
एस एफ आई ने आरोप लगाया है कि विश्वविद्यालय में पिछले कुछ समय से भर्तियों की प्रकिया नियमित न करवाकर ऑउटसोर्स के माध्यम से करवाई जा रही है। जिस कारण विश्वविद्यालय में आरएसएस व भाजपा की राजनीतिक विचारधारा के व्यक्तियों की भर्तियाँ धड़ल्ले से करवाई जा रही है। ऑउटसोर्स प्रणाली के चलते विश्वविद्यालय प्रशासन ने गैर कानूनी तरीके ऑउटसोर्स भर्तियों का टेंडर आरएसएस से तलूक रखने वाले व्यक्ति को दिया जिसने आरएसएस व भाजपा से सम्बन्ध रखने वाले लगभग 70 लोगों की भर्ती की। इसके साथ-साथ प्रशासन और प्रदेश सरकार द्वारा विश्वविद्यालय व कॉलेजों में प्राध्यापकों के ए बी वी पी का प्रचार-प्रसार करने की खुली छूट दी गई है। एस एफ आई ने कहा कि परिसर में बहुत से प्राध्यापक सरेआम ए बी वी पी की बैठकें आयोजित करवाते हैं व विचारधारा के आधार पर छात्रों को Internal Assessment व प्रैक्टिकल मार्क्स देते है। जिसके कारण विश्वविद्यालय में शिक्षा का स्तर लगातार गिरता जा रहा है और साथ ही साथ विश्वविद्यालय का भगवाकरण जोर पकड़ता जा रहा है।
विश्वविद्यालय में ए बी वी पी को मिलता संघ-रक्षण
एस एफ आई का यह भी कहना है की जब से प्रदेश में भाजपा सरकार आई है और जब से विश्वविद्यालय में सिकंदर कुमार कुलपति के पद पर आसीन हुए है तब से लेकर प्रशासन व कुलपति द्वारा ए बी वी पी के नेताओं को पूरा संरक्षण दिया जा रहा है। इसका उदाहरण हाल ही में विश्वविद्यालय प्रशासन,कुलपति व ए बी वी पी के गठजोड़ के द्वारा तैयार किया गया निष्कासन का ढोंग है। प्रशासन ने परिसर में घेराव व धरना प्रदर्शन पर प्रतिबन्ध लगाया है। ऐसे में जब ए बी वी पी रजिस्ट्रार का घेराव करती है तो विश्वविद्यालय प्रशासन व कुलपति महाशय अपने आप को निष्पक्ष दिखाने व ए बी वी पी को छात्रहितैषी दिखाने के लिए ए बी वी पी के नेताओं को निष्काषित करने का ढोंग रचती है पर यह स्वांग कथा मात्र तीन दिनों में सिमट गया और निष्कासन वापिस ले लिया जाता है जिस निर्णय का हम स्वागत करते है। एस एफ आई ने कहा कि लेकिन यह निर्णय ए बी वी पी , कुलपति व प्रशासन के कूटनीतिक चेहरे के मुखौटे को उतार देता है और यह भी साबित करता है कि परिसर में घेराव व प्रदर्शन पर प्रतिबन्ध केवल SFI के लिए है। पिछले 5 सालों से SFI के 7 छात्रों का विश्वविद्यालय से निष्कासन इस बात का साक्ष है। निष्कासन की बहाली का पैमाना भी विशेष विचारधारा पर मेहरबान है। एस एफ आई ने कहा कि विश्वविद्यालय में आरएसएस सम्बंधित विचारधारा पूरी तरह से प्रशासनिक अमले में घुल गई है और यही आर ऐस ऐस युक्त प्रशासन ए बी वी पी को संरक्षण प्रदान कर रहा है।
कोटशेरा कॉलेज में प्रिंसिपल द्वारा एस एफ आई के नेताओ पर एक तरफा कारवाई
एस एफ आई ने कहा कि बीते दिनो कोटशेरा कॉलेज में ए बी वी पी के छात्रों द्वारा एक छात्र के साथ रैगिंग जैसी गैर कानूनी वारदात को अंजाम दिया जाता है।जिसकी बाकायदा पीड़ित छात्र द्वारा प्रशासन के समक्ष शिक़ायत की जाती है।अगले दिन रैगिंग लेने वाले उन्ही छात्रों में से पांच छात्र शराब के नशे में चूर होकर कॉलेज में हथियार लहराते है।दो शराबी छात्रों को एस एफ आई ने आम छात्रों की मदद से पुलिस के हवाले किया लेकिन तीन शराबी छात्र वहां से रफू चक्कर होने में कामयाब रहे। एस एफ आई ने आरोप लगाया है कि इन तीन छात्रों के कारनामे यही नहीं थमे बल्कि उसी दिन एक छात्रा के साथ छेड़खानी की। छात्रा ने प्रशासन के समक्ष इस प्रकरण की शिकायत की। कहां तो कॉलेज के प्रिंसिपल को शराबी और गुंडागर्दी करने वाले छात्रों पर कार्रवाई अम्ल में लानी चाहिए थी ,लेकिन उल्टा रैगिंग पीड़ित छात्र और छेड़खानी की शिकार छात्रा को प्रताड़ित किया गया। छात्र अब कॉलेज से माइग्रेशन करने को मजबूर है। एस एफ आई ने कहा कि वही छात्रा के अभिभावकों को बुलाकर छात्रा के संदर्भ में बेबुनियाद बाते कही गई।प्रिंसिपल पी के सलारिया सरेआम ए बी वी पी के कार्यकर्ता की भूमिका अदा करते हुए ए बी वी पी के स्थापना दिवस समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में जाते है।
विश्वविद्यालय व कॉलेजों में छात्रों के लोकतांत्रिक अधिकारों का हनन
एस एफ आई ने कहा कि पिछले पांच वर्षों में विवि तथा कॉलेजों में लोकतंत्र की हत्या कर केन्द्रीय छात्र संघ चुनाव पर प्रतिबंध लगाकर प्रशासन पहले ही छात्रों की आवाज़ को दबा चुका है व अब छात्रों की आज़ादी को पूरी तरह से कुचलने पर आमादा है। कन्या छात्रावासों में छत्राओं की इंटर होस्टल आउटिंग को पूरी तरह से बंद कर दिया गया है जो कि पहले रात 11 बजे तक होती थी। कन्या छात्रावास में बेवजह गेस्ट एंट्री को बढ़ाया गया है जो कि प्रशासनिक डकैती की एक जीता जागता उदाहरण है। विवि में छात्रों को पढ़ाई से दूर करने के प्रयास भी किये जा रहे हैं।बॉयज होस्टल के छात्रों को 24 ऑवर लाइब्रेरी में नही जाने दिया जा रहा है और रात 10 बजे ही होस्टल के गेट पर ताले जड़ दिए जाते हैं। एस एफ आई ने कहा कि ये गेट पहले कभी बन्द ही नहीं होते थे। छात्र रात भर आ जा सकते थे पर अब नहीं। अब छात्र रात भर पिंजरे में रहने को मज़बूर हैं। छात्रों के धरने प्रदर्शन करने के अधिकार पर पूरी तरह से प्रतिबंध है और न ही विवि प्रशासन से सवाल पूछने का अधिकार है। एस एफ आई ने कहा कि यदि प्रशासन इसका विरोध करता है तो उसे कक्षाओं से सस्पेंड किया जाता है व उसके अभिभावकों को बुलाकर उस छात्र के साथ साथ उन्हें भी प्रताड़ित किया जाता है।
पीएचडी में फ़र्ज़ी प्रवेश की बाढ़
एस एफ आई ने यह भी आरोप लगाया है कि किविश्वविद्यालय का एमसीए विभाग पीएचडी में अवैध प्रवेश के लिए बदनाम हो चुका है। एचपीयू के डीन ऑफ स्टडीज अरविंद कालिया इसी विभाग में कार्यरत है लेकिन शर्म की बात है कि इन फ़र्ज़ी प्रवेशों को करवाने में इनकी भी एक बड़ी भूमिका है। नियमों को दरकिनार कर अपने एक चहेते को टीचर कोटे से पीएचडी में प्रवेश दिलाना उनके भ्रष्टाचार की सबसे बड़ी उपलब्धि है। एस एफ आई ने कहा कि उन्ही के चलते ऐसे लोगों को पीएचडी में प्रवेश दिया गया है जिनकी योग्यता एमसीए के अनूरूप भी नहीं थी। आज वो ही लोग प्राध्यापक बन कर विवि में बैठे हैं। हैरानी की बात तो तब सामने आई जब डीएस के एक करीबी को उसकी एमसीए पूरी हाने से पहले ही पीएचडी में प्रवेश दिया गया। वाणिज्य विभाग में 10 महीने में पीएचडी पूरी करवाने का कारनामा भी वर्तमान इक्डोल निदेशक द्वारा ही किया गया है। इस समय भी एमसीए विभाग में NET/JRF को दरकिनार कर अपने चहेतों को प्रवेश देने की कोशिशें की जा रही हैं।
एस एफ आई ने कहा कि इन तमाम तथ्यों से यह साबित होता है कि एचपीयू में प्रदेश सरकार के संरक्षण में कुलपति व प्रशासन द्वारा सरेआम इसके व्यापारीकरण व भगवाकरण की मुहिम को पूरी ताक़त के साथ लागू किया जा रहा व एचपीयू के प्रशासनिक ढांचे को पूरी तरह से खस्ताहाल बना दिया है।
एस एफ आई एचपीयू में व्याप्त इन तमाम समस्याओं, भ्रष्टाचार व नाइंसाफी के खिलाफ आंदोलन की शुरुआत 29 जुलाई को कोटशेरा कॉलेज प्रिंसिपल पी के सलारिया की तानाशाही के खिलाफ कॉलेगर में धरना प्रदर्शन व प्रिंसिपल का घेराव करके करेगी। एस एफ आई ने कहा कि 30 व 31 जुलाई को प्रदेश के तमाम कॉलेज व विवि में इन सभी मुद्दों को लेकर हस्ताक्षर अभियान चलाया जाएगा जिसे कुलपति तक पहुंचाया जाएगा।
एक अगस्त को हिमाचल के प्रत्येक कॉलेज व विवि में इन तमाम मुद्दों पर धरना प्रदर्शन किया जाएगा। एस एफ आई ने कहा कि अगर प्रशासन फिर भी नहीं मानता है तो इस आंदोलन को और व्यापक व उग्र किया जाएगा जिसके ज़िम्मेदार कुलपति, प्रशासन व प्रदेश सरकार होंगे
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हिमाचल की तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर लगे 76,000 से अधिक सेब के पौधे
शिमला- डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के विस्तार शिक्षा निदेशालय में पहाड़ी कृषि एवं ग्रामीण विकास एजेंसी(हार्प), शिमला द्वारा एक अनुभव-साझाकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया।
इस कार्यशाला में जिला किन्नौर के निचार विकास खंड के रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों के 34 किसानों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर जीएम नाबार्ड डॉ. सुधांशु मिश्रा मुख्य अतिथि रहे जबकि नौणी विवि के अनुसंधान निदेशक डॉ रविंदर शर्मा ने विशिष्ट अतिथि के रूप में शिरकत की।
संस्था के अध्यक्ष डॉ. आर एस रतन ने कहा कि यह कार्यक्रम एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना के तहत रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों में वर्ष 2014 से आयोजित किया जा रहा है। परियोजना को नाबार्ड द्वारा वित्त पोषित किया गया है और इसे हार्प द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।
उन्होंने यह बताया कि यह एक बागवानी आधारित आजीविका कार्यक्रम है जिसे किसानों की भागीदारी से लागू किया गया है। इन तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर 76,000 से अधिक सेब के पौधे लगाए गए हैं और 607 परिवार लाभान्वित हुए हैं।
डॉ. सुधांशु मिश्रा ने यह भी कहा कि नाबार्ड हमेशा सामाजिक-आर्थिक उत्थान कार्यक्रमों के संचालन में आगे रहा है। उन्होंने इस कार्यशाला में भाग लेने वाले किसानों से अपने सहयोग से विभिन्न कार्यक्रमों को सफल बनाने का आग्रह किया।
अनुसंधान निदेशक डॉ. रविंदर शर्मा और विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. दिवेंद्र गुप्ता ने नाबार्ड और हार्प के प्रयासों की सराहना की और किसानों को आश्वासन दिया कि विश्वविद्यालय किसानों को तकनीकी रूप से समर्थन देने के लिए हमेशा तैयार है।
डॉ. नरेद्र कुमार ठाकुर ने कहा कि हार्प ने कृषक समुदाय के समन्वय से दुर्गम क्षेत्रों में कठिन परिस्थितियों में काम किया है। इस अवसर पर एक किसान-वैज्ञानिक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया जिसमें भाग लेने वाले किसानों के तकनीकी प्रश्नों को संबोधित किया गया।
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हिमाचल सरकार पुलिसकर्मियों का कर रही है शोषण
पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है,कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है,राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है,हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।
शिमला सीटू राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। कमेटी ने यह कहा है कि वह हिमाचल प्रदेश के पुलिसकर्मियों की मांगों का पूर्ण समर्थन करती है। आरोप लगाते हुए सीटू ने कहा है कि प्रदेश सरकार पुलिसकर्मियों का शोषण कर रही है।
राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार से यह मांग की है कि वर्ष 2013 के बाद नियुक्त पुलिसकर्मियों को पहले की भांति 5910 रुपये के बजाए 10300 रुपये संशोधित वेतन लागू किया जाए व उनकी अन्य सभी मांगों को बिना किसी विलंब के पूरा किया जाए।
सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में भी कर्मचारियों की प्रमुख मांगों को अनदेखा किया गया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में पुलिसकर्मियों की मांगों को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है।
सीटू कमेटी ने कहा कि सबसे मुश्किल डयूटी करने वाले व चौबीस घण्टे डयूटी में कार्यरत पुलिसकर्मियों को इस बैठक से मायूसी ही हाथ लगी है। इसी से आक्रोशित होकर पुलिसकर्मी मुख्यमंत्री आवास पहुंचे थे। उनके द्वारा पिछले कुछ दिनों से मैस के खाने के बॉयकॉट से उनकी पीड़ा का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि पुलिस कर्मियों के साथ ही सभी सरकारी कर्मचारी नवउदारवादी नीतियों की मार से अछूते नहीं है। कमेटी ने कहा कि पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है। कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।
कमेटी ने यह भी कहा है कि थानों में स्टेशनरी के लिए बेहद कम पैसा है व आईओ को केस की पूरी फ़ाइल का सैंकड़ों रुपये का खर्चा अपनी ही जेब से करना पड़ता है। थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है। मैस मनी केवल दो सौ दस रुपये महीना है जबकि मैस में पूरा महीना खाना खाने का खर्चा दो हज़ार रुपये से ज़्यादा आता है। यह प्रति डाइट केवल साढ़े तीन रुपये बनता है, जोकि पुलिस जवानों के साथ घोर मज़ाक है। यह स्थिति मिड डे मील के लिए आबंटित राशि से भी कम है।
उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के जमाने के बने बहुत सारे थानों की स्थिति खंडहर की तरह प्रतीत होती है जहां पर कार्यालयों को टाइलें लगाकर तो चमका दिया गया है परन्तु कस्टडी कक्षों,बाथरूमों,बैरकों,स्टोरों,मेस की स्थिति बहुत बुरी है। इन वजहों से भी पुलिस जवान भारी मानसिक तनाव में रहते हैं।
सीटू ने कहा कि पुलिस में स्टाफ कि बहुत कमी है या यूं कह लें कि बेहद कम है व कुल अनुमानित नियुक्तियों की तुलना में आधे जवान ही भर्ती किये गए हैं जबकि प्रदेश की जनसंख्या पहले की तुलना में काफी बढ़ चुकी है यहाँ तक पुलिस के पास रिलीवर भी नहीं है।
आरोप लगाते हुए कमेटी ने कहा कि प्रदेश की राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है। वहीं पुलिस कर्मी निरन्तर ओवरटाइम डयूटी करते हैं। इसकी एवज में उन्हें केवल एक महीना ज़्यादा वेतन दिया जाता है। इस से प्रत्येक पुलिसकर्मी को वर्तमान वेतन की तुलना में दस से बारह हज़ार रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है। उन्हें लगभग नब्बे साप्ताहिक अवकाश,सेकंड सैटरडे,राष्ट्रीय व त्योहार व अन्य छुट्टियों के मुकाबले में केवल पन्द्रह स्पेशल लीव दी जाती है।
सीटू कमेटी ने यह भी कहा कि वर्ष 2007 में हिमाचल प्रदेश में बने पुलिस एक्ट के पन्द्रह साल बीतने पर भी नियम नहीं बन पाए हैं। इस एक्ट के अनुसार पुलिसकर्मियों को सुविधा तो दी नहीं जाती है परन्तु कर्मियों को दंडित करने के लिए इसके प्रावधान बगैर नियमों के भी लागू किये जा रहे हैं जिसमें एक दिन डयूटी से अनुपस्थित रहने पर तीन दिन का वेतन काटना भी शामिल है। पुलिसकर्मियों की प्रोमोशन में भी कई विसंगतियां हैं व इसका टाइम पीरियड भी बहुत लंबा है। हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।
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किन्नौर में लापता पर्यटकों में से 2 और के शव बरामद, 2 की तालाश जारी,आभी तक कुल 7 शव बरामद
शिमला रिकोंगपिओ में 14 अक्तुबर को उत्तरकाशी के हर्षिल से छितकुल की ट्रैकिंग पर निकले 11 पर्यटकों में से लापता चार पर्वतारोहीयों में से दो पर्वतारोहियों के शवो को आई.टी.बी.पी व पुलिस दल द्वारा पिछले कल सांगला लाया गया था जहां सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र सांगला में दोनों शवों का पोस्टमार्टम किया गया।
यह जानकारी देते हुए उपायुक्त किन्नौर अपूर्व देवगन ने बताया कि इन दोनों की पहचान कर ली गई है जिनमे मे एक उतरकाशी व दूसरा पश्चिम बंगाल से सम्बंधित था।
उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन किन्नौर द्वारा आज एक शव वाहन द्वारा उतरकाशी को भेज दिया गया है जहाँ शव को जिला प्रशासन उतरकाशी को सौंपा जाएगा। जब कि दूसरा शव वाहन द्वारा शिमला भेजा गया है जिसे शिमला में मृतक के परिजनों को सौंपा जायेगा।
उपायुक्त अपूर्व देवगन ने बताया कि अभी भी लापता दो पर्यटकों की तलाश आई.टी.बी.पी के जवानों द्वारा जारी है। उल्लेखनीय है कि गत दिनों उतरकाशी से छितकुल के लिये 11 पर्वतारोही ट्रेकिंग पर निकले थे जो बर्फबारी के कारण लमखंगा दर्रे में फंस गये थे जिसकी सूचना मिलने पर जिला प्रशासन द्वारा सेना के हेलीकॉप्टर व आई.टी.बी.पी के जवानों की सहायता से राहत व बचाव कार्य आरम्भ किया था। सेना व आई.टी.बी.पी के जवानों ने 21 अक्टूबर को दो पर्यटकों को सुरक्षित ढूंढ निकाला था। इसी दौरान उन्हें अलग अलग स्थानों पर पाँच ट्रेकरों के शव ढूंढ निकलने में सफलता मिली थी। जबकि 4 पर्यटक लापता थे जिसमे से राहत व बचाव दल को 22 अक्तुबर को 2 शव ढूढ़ निकालने में सफलता मिली थी। अभी भी दो पर्यटक लापता हैं जिनकी राहत व बचाव दल द्वारा तलाश जारी है।
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