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विभिन्न वार्डो में 85 स्थान पार्किंग के लिए चिन्हित होने और धनराशि का प्रावधान होते हुए भी निर्माण कार्य में हो रही देर

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Parking problem in shimla

शिमला-जिस प्रकार से हाल ही में कुल्लू जिला के बंजार व शिमला के झांझीडी में जो बस हादसे हुए हैं तथा 49 बेगुनाह जाने इसमे गई है इसने पूरे प्रदेश की जनता को झिंजोड कर रख दिया है। जिस प्रकार से सरकार को संजीदगी से इन हादसों को रोकने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए वह आज भी दिखाई नहीं दे रहें हैं। सरकार केवल ऐसे बयान दिखावे के लिए दे रही हैं जिसके जमीनी स्तर पर कोई प्रभाव नहीं दिखाई दे रहा है। यह कहना है शिमला के पूर्व मेयर और भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) की जिला कमेटी के सदस्य जिन्होंने प्रदेश में बढ़ रही सड़क दुर्घटनाओं पर गम्भीर चिंता व्यक्त की हैI

बंजार बस हादसे की सरकार द्वारा बैठाई गई जांच की रिपोर्ट में यह स्पष्ट हो गया है कि हादसे का मुख्य कारण सड़क की दशा व शिकार हुई बस खटारा थी तथा चलने की हालत में नहीं थी। परन्तु फिर भी यह बस लगभग 80 सवारियों को लेकर जा रही थी। जिसमें काफी संख्या में छात्र छात्राएं की थी और इनको सरकार की लापरवाही के कारण अपनी जान गवानी पड़ी। आज सरकार केवल कुछ अधिकारियों के विरुद्ध हलकी कार्यवाही व बस दुर्घटनाग्रस्त होने के बाद उसका परमिट कैंसिल कर अपना पल्ला झाड़ रही है। जबकि जनता की जान व माल की सुरक्षा व सुरक्षित परिवहन व्यवस्था उपलब्ध करवाना सरकार उत्तरदायित्व हैं।

इन हादसों ने सरकार की कार्यप्रणाली पर कई सवालिया निशान खड़े किए हैं। सरकार ने इस बस हादसे से सबक लेते हुए अभी तक निजी व सरकार की खटारा व कंडम बसों को सड़क से हटाने के लिए न ही कोई निर्णय लिया है और न ही कोई निर्देश देकर ठोस कार्यवाही की हैं। आज भी ऐसी सैंकड़ो बसे चल रही है जोकि जनता के जीवन के साथ सरासर खिलवाड़ हैं।

चौहान का कहना है कि झांझीडी बस हादसे के पश्चात भी सरकार जिस प्रकार से कार्य कर रही हैं वह भी इन हादसों का उचित समाधान नहीं है। प्रथमदृष्टया इस हादसे का कारण सड़क किनारे खड़े वाहन व सड़क की दशा ही माना जा रहा है। कुछ मूल प्रशन जो इस हादसे से पैदा हुए हैं कि सड़क के किनारे यदि क्रैश बैरियर लगे होते तो शायद यह हादसा टाला जा सकता था। चौहान ने पूछा है कि यदि इस सड़क पर पार्किंग की मनाही थी तो प्रशासन इसको क्यों नहीं रोक पाया। जिस प्रकार से हादसे के बाद बस के परखच्चे उड़े है क्या यह बस सफर के लायक रह गई थी कि नहीं। इन प्रशनो का उत्तर सरकार को जनता को अवश्य देना होगा क्योंकि यह लोकतंत्र में जवाबदेही किसी भी चुनी हुई सरकार की ही बनती है।

चौहान ने कहा कि इन हादसों से उठे मूल प्रशनो का जवाब देने के बजाय तथा सरकार इन हादसों से सीख लेते हुए इस प्रकार के हादसों को रोकने के लिए कोई ठोस कदम तो नहीं उठा रही बल्कि शिमला शहर में सड़क किनारे पार्किंग की समस्या का स्थायी समाधान करने के बजाए उसको पैसे लेकर अधिकृत करने का कार्य किया जा रहा है। जिससे कि यह समस्या और विकराल रूप ले सकती है तथा शहरवासियों पर भी अतिरिक्त आर्थिक बोझ डालने की कवायद है। सड़क किनारे गाड़ी खड़ी करने से शिमला शहर में जाम की समस्या और अधिक विकराल होगी तथा जिनको इनमें स्थान नही मिलेगा इन गाड़ियों को कहां पार्क किया जाएगा इसके लिए सरकार व नगर निगम कोई भी प्रावधान नहीं कर रहा है। इससे लोगों की और अधिक परेशानी बढ़ेगी व आपसी सदभाव भी बिगड़ने की संभावना बनी रहेगी। चौहान का मानना है कि जिस प्रकार से कल नगर निगम ने सरकार के कहने पर छोटी गाड़ी के 600 रुपए से 2500 रुपए प्रति माह के रूप में दरें निर्धारित की है यह बिल्कुल भी तर्कसंगत नहीं है।

शिमला शहर में पूर्व नगर निगम द्वारा शहर में विभिन्न स्थान पार्किंग के लिये चिन्हित किये थे। वर्ष 2016 में 85 स्थान विभिन्न वार्डो में तथा 10 बड़ी पार्किंग जिनमे लिफ्ट, छोटा शिमला, संजौली, टूटीकंडी क्रॉसिंग,आई जी एम सी, स्नोव्यू, ढली, विकासनगर, एस डी ए कॉम्प्लेक्स, पंथाघाटी में कार्य किया जा रहा था और इसके लिए धन का प्रावधान भी उसी समय किया जा चुका था। लिफ्ट, छोटा शिमला, संजौली व टूटीकंडी क्रॉसिंग पार्किंग का निर्माण पूर्ण हो गया है। टूटीकंडी क्रॉसिंग पार्किंग का कार्य 5 माह पूर्व पूर्ण हो गया है परन्तु इसे अभी तक आरम्भ नहीं किया गया है। शेष पार्किंग का निर्माण कार्य या तो अभी आरम्भ ही नहीं किया गया है या फिर बेहद धीमी गति से चलाया जा रहा है। वर्तमान सरकार व नगर निगम इन परियोजनाओं की ओर कोई ध्यान नहीं दे रही है और इन्हें लटकाने का कार्य कर रही हैं।

सी.पी.एम. ने सरकार से मांग की है कि प्रदेश में सड़क हादसों व बस दुर्घटनाओं को रोकने के लिए संजीदगी से ठोस कदम उठाए। सड़को की दशा में तुरन्त सुधार करे तथा विशेष रूप से दुर्घटना संभावित क्षेत्रों को चिन्हित कर इनको युद्धस्तर पर दुरुस्त किया जाए। प्रत्येक सड़क में मजबूत क्रैश बैरियर लगाए जाए। निजी व सरकार की खटारा व कंडम बसों को तुरंत सेवा से हटाया जाए तथा नई बसों का प्रावधान किया जाए। सभी बसों का निरीक्षण उचित रूप से किया जाए तथा कोताही के लिए जिम्मेवार व्यक्ति के विरुद्ध कड़ी कानूनी कार्यवाही की जाए।

सड़क किनारे गाड़ी खड़ी करने की परंपरा को समाप्त करने के लिए बस्ती के स्तर पर सड़क के साथ स्थान चिन्हित कर पार्किंग का निर्माण तुरंत किया जाए। शिमला शहर में पार्किंग की विकराल होती समस्या को दूर करने के लिए सरकार क़ानून पारित करे जिनके घर सड़क के साथ बने हैं तथा उसमें पार्किंग नहीं है उनको पार्किंग फ्लोर बनाने का प्रावधान करें तथा उन्हें एक अतिरिक्त मंजिल का प्रावधान किया जाए। पार्टी ने कहा है कि यदि सरकार शीघ्र जनता को सुरक्षित व उचित परिवहन की व्यवस्था नहीं करती तो पार्टी 11 जुलाई, 2019 से सरकार के खिलाफ आंदोलन आरम्भ करेगी।

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हिमाचल की तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर लगे 76,000 से अधिक सेब के पौधे

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nauni university himachal pradesh

शिमला- डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के विस्तार शिक्षा निदेशालय में पहाड़ी कृषि एवं ग्रामीण विकास एजेंसी(हार्प), शिमला द्वारा एक अनुभव-साझाकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया।

इस कार्यशाला में जिला किन्नौर के निचार विकास खंड के रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों के 34 किसानों ने हिस्सा लिया। इस अवसर पर जीएम नाबार्ड डॉ. सुधांशु मिश्रा मुख्य अतिथि रहे जबकि नौणी विवि के अनुसंधान निदेशक डॉ रविंदर शर्मा ने विशिष्ट अतिथि के रूप में शिरकत की।

संस्था के अध्यक्ष डॉ. आर एस रतन ने कहा कि यह कार्यक्रम एकीकृत आदिवासी विकास परियोजना के तहत रूपी, छोटा कम्बा और नाथपा ग्राम पंचायतों में वर्ष 2014 से आयोजित किया जा रहा है। परियोजना को नाबार्ड द्वारा वित्त पोषित किया गया है और इसे हार्प द्वारा कार्यान्वित किया जा रहा है।

उन्होंने यह बताया कि यह एक बागवानी आधारित आजीविका कार्यक्रम है जिसे किसानों की भागीदारी से लागू किया गया है। इन तीन ग्राम पंचायतों में 435 एकड़ भूमि पर 76,000 से अधिक सेब के पौधे लगाए गए हैं और 607 परिवार लाभान्वित हुए हैं।

डॉ. सुधांशु मिश्रा ने यह भी कहा कि नाबार्ड हमेशा सामाजिक-आर्थिक उत्थान कार्यक्रमों के संचालन में आगे रहा है। उन्होंने इस कार्यशाला में भाग लेने वाले किसानों से अपने सहयोग से विभिन्न कार्यक्रमों को सफल बनाने का आग्रह किया।

अनुसंधान निदेशक डॉ. रविंदर शर्मा और विस्तार शिक्षा निदेशक डॉ. दिवेंद्र गुप्ता ने नाबार्ड और हार्प के प्रयासों की सराहना की और किसानों को आश्वासन दिया कि विश्वविद्यालय किसानों को तकनीकी रूप से समर्थन देने के लिए हमेशा तैयार है।

डॉ. नरेद्र कुमार ठाकुर ने कहा कि हार्प ने कृषक समुदाय के समन्वय से दुर्गम क्षेत्रों में कठिन परिस्थितियों में काम किया है। इस अवसर पर एक किसान-वैज्ञानिक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया जिसमें भाग लेने वाले किसानों के तकनीकी प्रश्नों को संबोधित किया गया।

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हिमाचल सरकार पुलिसकर्मियों का कर रही है शोषण

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पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है,कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है,राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है,हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।

शिमला सीटू राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। कमेटी ने यह कहा है कि वह हिमाचल प्रदेश के पुलिसकर्मियों की मांगों का पूर्ण समर्थन करती है। आरोप लगाते हुए सीटू ने कहा है कि प्रदेश सरकार पुलिसकर्मियों का शोषण कर रही है।

राज्य कमेटी ने प्रदेश सरकार से यह मांग की है कि वर्ष 2013 के बाद नियुक्त पुलिसकर्मियों को पहले की भांति 5910 रुपये के बजाए 10300 रुपये संशोधित वेतन लागू किया जाए व उनकी अन्य सभी मांगों को बिना किसी विलंब के पूरा किया जाए।

सीटू प्रदेशाध्यक्ष विजेंद्र मेहरा व महासचिव प्रेम गौतम ने प्रदेश सरकार पर कर्मचारी विरोधी होने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में भी कर्मचारियों की प्रमुख मांगों को अनदेखा किया गया है। उन्होंने कहा कि जेसीसी बैठक में पुलिसकर्मियों की मांगों को पूरी तरह दरकिनार कर दिया गया है।

सीटू कमेटी ने कहा कि सबसे मुश्किल डयूटी करने वाले व चौबीस घण्टे डयूटी में कार्यरत पुलिसकर्मियों को इस बैठक से मायूसी ही हाथ लगी है। इसी से आक्रोशित होकर पुलिसकर्मी मुख्यमंत्री आवास पहुंचे थे। उनके द्वारा पिछले कुछ दिनों से मैस के खाने के बॉयकॉट से उनकी पीड़ा का अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि पुलिस कर्मियों के साथ ही सभी सरकारी कर्मचारी नवउदारवादी नीतियों की मार से अछूते नहीं है। कमेटी ने कहा कि पुलिसकर्मियों की डयूटी बेहद सख्त है। कई-कई बार तो चौबीसों घण्टे वर्दी व जूता उनके शरीर में बंधा रहता है।

कमेटी ने यह भी कहा है कि थानों में स्टेशनरी के लिए बेहद कम पैसा है व आईओ को केस की पूरी फ़ाइल का सैंकड़ों रुपये का खर्चा अपनी ही जेब से करना पड़ता है। थानों में खाने की व्यवस्था तीन के बजाए दो टाइम ही है। मैस मनी केवल दो सौ दस रुपये महीना है जबकि मैस में पूरा महीना खाना खाने का खर्चा दो हज़ार रुपये से ज़्यादा आता है। यह प्रति डाइट केवल साढ़े तीन रुपये बनता है, जोकि पुलिस जवानों के साथ घोर मज़ाक है। यह स्थिति मिड डे मील के लिए आबंटित राशि से भी कम है।

उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के जमाने के बने बहुत सारे थानों की स्थिति खंडहर की तरह प्रतीत होती है जहां पर कार्यालयों को टाइलें लगाकर तो चमका दिया गया है परन्तु कस्टडी कक्षों,बाथरूमों,बैरकों,स्टोरों,मेस की स्थिति बहुत बुरी है। इन वजहों से भी पुलिस जवान भारी मानसिक तनाव में रहते हैं।

सीटू ने कहा कि पुलिस में स्टाफ कि बहुत कमी है या यूं कह लें कि बेहद कम है व कुल अनुमानित नियुक्तियों की तुलना में आधे जवान ही भर्ती किये गए हैं जबकि प्रदेश की जनसंख्या पहले की तुलना में काफी बढ़ चुकी है यहाँ तक पुलिस के पास रिलीवर भी नहीं है।

आरोप लगाते हुए कमेटी ने कहा कि प्रदेश की राजधानी शिमला के कुछ थानों के पास अपनी खुद की गाड़ी तक नहीं है। वहीं पुलिस कर्मी निरन्तर ओवरटाइम डयूटी करते हैं। इसकी एवज में उन्हें केवल एक महीना ज़्यादा वेतन दिया जाता है। इस से प्रत्येक पुलिसकर्मी को वर्तमान वेतन की तुलना में दस से बारह हज़ार रुपये का नुकसान उठाना पड़ता है। उन्हें लगभग नब्बे साप्ताहिक अवकाश,सेकंड सैटरडे,राष्ट्रीय व त्योहार व अन्य छुट्टियों के मुकाबले में केवल पन्द्रह स्पेशल लीव दी जाती है।

सीटू कमेटी ने यह भी कहा कि वर्ष 2007 में हिमाचल प्रदेश में बने पुलिस एक्ट के पन्द्रह साल बीतने पर भी नियम नहीं बन पाए हैं। इस एक्ट के अनुसार पुलिसकर्मियों को सुविधा तो दी नहीं जाती है परन्तु कर्मियों को दंडित करने के लिए इसके प्रावधान बगैर नियमों के भी लागू किये जा रहे हैं जिसमें एक दिन डयूटी से अनुपस्थित रहने पर तीन दिन का वेतन काटना भी शामिल है। पुलिसकर्मियों की प्रोमोशन में भी कई विसंगतियां हैं व इसका टाइम पीरियड भी बहुत लंबा है। हैड कॉन्स्टेबल से एएसआई बनने के लिए सत्रह से बीस वर्ष भी लग जाते हैं।

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किन्नौर में लापता पर्यटकों में से 2 और के शव बरामद, 2 की तालाश जारी,आभी तक कुल 7 शव बरामद

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kinnaur trekker deaths

शिमला रिकोंगपिओ में 14 अक्तुबर को उत्तरकाशी के हर्षिल से छितकुल की ट्रैकिंग पर निकले 11 पर्यटकों में से लापता चार पर्वतारोहीयों में से दो  पर्वतारोहियों के शवो को आई.टी.बी.पी व पुलिस दल द्वारा पिछले कल सांगला लाया गया था जहां सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र सांगला में दोनों शवों का पोस्टमार्टम किया गया।

यह जानकारी देते हुए उपायुक्त किन्नौर अपूर्व देवगन ने बताया कि इन दोनों की पहचान कर ली गई है जिनमे मे एक उतरकाशी व दूसरा पश्चिम बंगाल से सम्बंधित था।

उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन किन्नौर द्वारा आज एक शव वाहन द्वारा उतरकाशी को भेज दिया गया है जहाँ शव को जिला प्रशासन उतरकाशी को सौंपा जाएगा। जब कि दूसरा शव वाहन द्वारा शिमला भेजा गया है जिसे शिमला में मृतक के परिजनों को सौंपा जायेगा।

उपायुक्त अपूर्व देवगन ने बताया कि अभी भी लापता दो  पर्यटकों की तलाश आई.टी.बी.पी के जवानों द्वारा जारी है। उल्लेखनीय है कि गत दिनों उतरकाशी से छितकुल के लिये 11 पर्वतारोही ट्रेकिंग पर निकले थे जो बर्फबारी के कारण लमखंगा दर्रे में फंस गये थे जिसकी सूचना मिलने पर जिला प्रशासन द्वारा सेना के हेलीकॉप्टर व आई.टी.बी.पी के जवानों की सहायता से राहत व बचाव कार्य आरम्भ किया था। सेना व आई.टी.बी.पी के जवानों ने 21 अक्टूबर को दो पर्यटकों को सुरक्षित ढूंढ निकाला था। इसी दौरान उन्हें अलग अलग स्थानों पर पाँच ट्रेकरों के शव ढूंढ निकलने में सफलता मिली थी। जबकि 4 पर्यटक लापता थे जिसमे से राहत व बचाव दल को 22 अक्तुबर को 2 शव ढूढ़ निकालने में सफलता मिली थी। अभी भी दो पर्यटक लापता हैं जिनकी राहत व बचाव दल द्वारा तलाश जारी है।

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